मोहम्मद रफी साहब मेरे बाबा थे – नाहिद तबस्सुम


हमारे गाँव उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के पास बसा एक छोटा सा गांव था‚ भारत के बाकी गांवों की तरह, जहाँ ज़िंदगी की रफ्तार खेतों में लहलहाती फसलों की तरह खिली हुई थी और सुबह की ओस की बूँदों जितनी कोमल और नम थी। चारों तरफ हरियाली का समंदर पसरा हुआ था —धान के खेत, गन्ने की लंबी-लंबी पंक्तियाँ, और बीच-बीच में आम और नीम के पेड़, जिनकी छाँव में गाँव के बुजुर्ग चौपाल लगाया करते थे।