श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर विशेष कार्यशाला का आयोजन


नई दिल्ली
, 18
जनवरी: मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई) में "श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें श्वसन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए यौगिक अभ्यासों और जीवनशैली में बदलाव के एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया।

पहले सत्र में श्वसन विकारों पर चर्चा

एमडीएनआईवाई के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. आई.एन. आचार्य ने श्वसन तंत्र की शारीरिक रचना, शरीर क्रिया विज्ञान और कार्यप्रणाली पर चर्चा करके विषय का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि कैसे श्वसन क्रिया के सही तरीके से काम नहीं करने के कारण हाइपोक्सिया, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), डिस्पेनिया, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, वातस्फीति, पल्मोनरी एडिमा, एडल्ट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम और पल्मोनरी एम्बोलिज्म जैसे विकार जन्म ले सकते हैं। उनके व्याख्यान से स्पष्ट हुआ कि कैसे इन स्थितियों के दौरान प्रभावित श्वसन अंगों में विकृति पैदा होती है और विकृति आने पर किस तरह उनका स्वरूप बदल जाता है। डॉ. आचार्य ने फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने और श्वसन क्रिया में सुधार करने में कपालभाति प्राणायाम और यौगिक डीप ब्रीदिंग जैसे यौगिक अभ्यासों की चिकित्सीय क्षमता पर भी प्रकाश डाला।

श्वसन स्वास्थ्य में आहार और पोषण की भूमिका

दूसरे सत्र में एमडीएनआईवाई में कार्यरत आहार विशेषज्ञ मनजोत कौर ने श्वसन विकारों के प्रबंधन में आहार और पोषण की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने श्वसन स्वास्थ्य को सहारा देने में मैक्रो और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स के महत्व पर जोर दिया और खिचड़ी, दलिया, पोहा, उपमा, डोसा और इडली जैसे उपयुक्त खाद्य संयोजनों को अपनाने पर बल दिया। उन्होंने पालक-पनीर और चाय के साथ भोजन जैसे शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को साथ में ना लेने की सलाह दी, जो श्वसन संबंधी विकारों को बढ़ा सकते हैं। मिस कौर ने भोजन से प्राप्त ऊर्जा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए एक सक्रिय जीवन शैली की आवश्यकता पर जोर दिया और समग्र स्वास्थ्य पर जंक फूड और कम पोषण वाले आहार लेने के हानिकारक प्रभाव पर पर भी चर्चा की।



श्वसन प्रबंधन के लिए प्रैक्टिकल सेशन में बताई गईं योग तकनीकें

कार्यशाला का समापन एमडीएनआईवाई में कार्यरत ललित मदान, योग प्रशिक्षक, के नेतृत्व में एक प्रैक्टिकल सेशन के साथ हुआ, जिन्होंने प्रतिभागियों को क्लैविक्युलर, थोरेसिक और उदरीय श्वास लेने सहित अनुभागीय श्वास तकनीकों से परिचित कराया। उन्होंने श्वसन तंत्र को मजबूत करने में सूक्ष्म क्रियाओं, जैसे वक्ष स्थल शक्ति विकासक और उदर शक्ति विकासक क्रिया के लाभों के बारे में विस्तार से बताया। श्री मदान ने इस बात पर जोर दिया कि सांस लेने के प्रति जागरूकता अन्नमय कोष से संबंधित समस्याओं को ठीक कर सकती है, और प्राणायाम का अभ्यास मनोमय कोष पर नियंत्रण पाने में प्रभावी भूमिका निभाता है।

 


श्री सुंदर राजू ने प्रैक्टिकल सेशन के दौरान विभिन्न योगासनों का प्रदर्शन किया, जिसमें शरीर का एलाइनमेंट ठीक रखने और श्वास के प्रति जागरूकता को बढ़ाने देने में योगासनों की अहम भूमिका को दर्शाया गया।

व्यावहारिक कार्यशाला के लिए प्रतिभागियों से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया

कार्यशाला में योग प्रशिक्षकों और योग चिकित्सकों सहित लगभग 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिन्होंने प्राप्त ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के लिए इस पहल की सराहना की। कार्यक्रम ने योग, आहार और जीवनशैली हस्तक्षेपों के माध्यम से श्वसन विकारों के प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण पेश किया।