बॉब कट बालों वाली बिंदास सांसद तारकेश्वरी सिन्हा का यूएनआई से क्या था संबंध

– चन्द्र प्रकाश झा

तारकेश्वरी सिन्हा भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम हैं जो न केवल उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए बल्कि उनके जीवन की अनोखी घटनाओं और उनके स्वतंत्र विचारों के लिए भी याद किया जाता है। उनका जीवन, खासकर 1950 और 1960 के दशक की राजनीति में, एक प्रेरणा है जब राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सीमित थी।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म बिहार के नालंदा जिले में भूमिहार जाति के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में हुई। लेकिन 1942 में महात्मा गांधी के "भारत छोड़ो आंदोलन" से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और भारत लौट आईं। उनके इस कदम को परिवार ने पसंद नहीं किया, लेकिन उनकी देशभक्ति और साहसिकता की मिसाल ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बना दिया।


राजनीतिक करियर की शुरुआत

स्वतंत्रता के बाद 1952 के पहले आम चुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बिहार के पटना पूर्व क्षेत्र (बाद में बाढ़) से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में लगातार चार बार वे लोकसभा सदस्य चुनी गईं। उनके शानदार वक्तृत्व कौशल और नीतिगत समझ ने उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में योजना उप मंत्री का पद दिलाया।

नेहरू सरकार और उनकी कोठी

नई दिल्ली के 9, रफी अहमद किदवई मार्ग स्थित कोठी, जो बाद में "यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया" (यूएनआई) का मुख्यालय बना, उन्हें सरकारी आवास के रूप में आवंटित की गई थी। यह कोठी उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और राजनीतिक करियर का गवाह रही। इस कोठी में कई ऐतिहासिक निर्णय और चर्चाएँ हुईं। दिलचस्प बात यह है कि आज जहाँ यूएनआई के मुख्य संपादक का कक्ष है, वह कभी तारकेश्वरी सिन्हा का बाथरूम हुआ करता था।

फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी से संबंध

तारकेश्वरी सिन्हा और फिरोज गांधी के बीच करीबी रिश्तों की चर्चा उस समय राजनीतिक गलियारों में आम थी। इस रिश्ते से इंदिरा गांधी काफी असहज रहती थीं। रायसीना रोड स्थित वह कोठी, जो फिरोज गांधी को सांसद के रूप में आवंटित थी, तारकेश्वरी अक्सर वहाँ जाया करती थीं।


फिल्म "आंधी" और तारकेश्वरी सिन्हा

गुलजार की 1975 की फिल्म आंधी में भी तारकेश्वरी सिन्हा के जीवन की कुछ झलकियाँ देखने को मिलीं। फिल्म पर प्रतिबंध लगाया गया, क्योंकि इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन से जोड़कर देखा गया। हालांकि, प्रतिबंध हटने के बाद, गुलजार ने स्वीकार किया कि फिल्म में तारकेश्वरी सिन्हा के जीवन की प्रेरणा शामिल थी।


राजनीति से संन्यास और सामाजिक कार्य

1967 के बाद, तारकेश्वरी सिन्हा ने कई बार चुनाव लड़े लेकिन सफलता उनके हाथ नहीं लगी। इंदिरा गांधी से मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी का दामन थामा, लेकिन बाद में वे कांग्रेस में लौट आईं। 1980 के दशक में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेकर समाजसेवा का रास्ता अपनाया। नालंदा में अपने दिवंगत पायलट भाई की याद में उन्होंने गरीबों के लिए एक अस्पताल खोला।


निजी जीवन और विरासत

तारकेश्वरी सिन्हा का निजी जीवन भी काफी रोचक था। उन्होंने कभी शादी नहीं की। जब उन्होंने समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया से उनके विवाह न करने का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, "मैं तो इंतजार करता रहा, आपने कभी बोला ही नहीं।"

उनकी मृत्यु 2007 में 80 वर्ष की आयु में हुई। वे आज भी अपने मजबूत व्यक्तित्व, साहसिक फैसलों और प्रभावशाली राजनीति के लिए याद की जाती हैं। उस दौर में जब महिलाओं की उपस्थिति राजनीति में नाममात्र थी, तारकेश्वरी सिन्हा ने अपने लिए एक अलग पहचान बनाई और राजनीति में एक नए मानदंड की स्थापना की।