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कैसे उबरे मौत के डर से‚ योग भी है कारगर

– विनोद कुमार


मृत्‍यु निश्चित है लेकिन यह जानने के बावजूद हर व्यक्ति को मौत काता है। गुजरता हुआ अत्यधिक सक्रिय हो जाता है जिससे उस सदमे का प्रभाव व्यक्ति पर गहरा और स्थायी रूप से लंबे समय तक रहता है और उसे दुनिया या अधिकतर स्थितियां भयावह और खतरनाक लगने लगती है। जब इस सदमे का समाधान नहीं किया जाता है तो डर और लाचारी की यह भावना आपात का रूप लेने लगती है। 

जीवन का एक-एक पल मृत्यु की ओर बढ़ता कदम है। हालांकि कुछ लोग दीर्घायु होते हैं और कुछ अत्यायु। किसी की सुसमय मृत्यु होती है और किसी की अकाल मृत्यु, लेकिन जिसका जन्म हुआ है, उसका मरना तय है। इसके बावमृत्यु कैसे होगी क्यों होगी कहाँ होगी, कब होगी आदि प्रश्नों का मन में उठना सहज है और इसलिये मृत्यु को लेकर भय भी स्वभाविक है। प्रत्येक जीव इसे लेकर जन्म-जन्मातर से कष्ट का अनुभव करता रहता है। ऐसे में मौत का स्मरण कर भयातुर होना स्वाभाविक है। यह भय केवल मनुष्यों में ही नहीं सभी जीवों को होती है। 

हर व्यक्ति की मृत्यु तय है लेकिन मौत इसका कारण यह कि मृत्यु चाहे सहज हो या असहज यह चिंता एवं पी का कारण होतीकर, कहाँ और कैसे होगी इसको लेकर है। लेकिन जब यह भय हद से बढ़ जाये तो जीवन मौत के समान हो जाता है। 

कहा जाता है कि हर व्यक्ति की मौत एक बार होनी है लेकिन जो लोग मौत के डर से ग्रस्त होते हैं ये बार-बार मरते हैं। ऐसे लोग हा लोग हमेशा मौत के भय के साये में जीते हैं। जिनके मन में मौत को लेकर गहरा भय बैठा होता है उनके लिये जीना मुश्किल हो जाता है। मनोविज्ञानिकों ने इसे चोटोफोबिया नाम दिया है। पोटोफोबिया अथवा मौत का भय दुनिया भर में लाखों लोगों को अपनी चपेट में लेता हैं। कुछ लोगों में इस डर के कारण एग्जाइटी अथवा जुनूनी विचार पैदा होते है। मौत के भय के अनेक कारण हो सकते हैं- उम्र, धर्म, एंग्जाइटी, किसी प्रिय व्यक्ति को खोना, धन- सम्पत्ति का नुकसान, दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा आदि जीवन में कुछ खास संक्रमण स्थितियां होती है जब मौत का भय अधिक होता है। आम तौर पर 4 से 6, 10 से 12, 17 से 24 और 35 से 45 की आयु में यह भय अधिक होता है। 

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एवं कास्मोस इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेस (सीआईएमबीएस) के निदेशक डॉ. सुनील मित्तल के अनुसार व्यक्ति का भावावेश 'एमिगडाला' नामक हमारे मस्तिष्क के एक छोटे से हिस्से के द्वारा नियंत्रित होता है। यह हिस्सा केवल हमारी भावनात्मकता से संबंधित है। यह हमारी भावनाओं और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है। जब व्यक्ति भविष्य में होने वाली अनहोनी बाताए मीत या अतीत में हुयी दर्दनाक घटना या दुर्घटना के बारे में सोचता है तो यह भाग अधिक सक्रिया हो जाता है। 

दिल्ली साइकिएट्रिक सेंटर (डीपीए) एवं क्लिनिकल सीआईएमबीएस साइकोलॉजिस्ट मिताली श्रीवास्तव के अनुसार पाटोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को मौत को लेकर एक तीव्र किन्तु तर्कहीन कर होता है। कुछ लोगों की मौत को लेकर अधिक डर होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें कुछ कारण है। 

अनिश्चितता के कारण कुछ लोगों के मन में अधिक सवाल उठते है और वे मौत को लेकर अधिक जिज्ञासु बन जाते हैं और हमेशा मौत के बारे में सोचते रहते है अथवा इसके बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। मौत को लेकर यह जिज्ञासा एवं उत्सुकता उनके मन में मौत को लेकर अधिक भय पैदा करती है। 

● मौत के बाद के जीवन को लेकर कई कल्पनायें होती है जिनमें से अधिकतर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होती है। कई धर्मो में कहा जाता है कि इस जन्म के बुरे कर्मों का फल अगले जन्म में मिलता है। फल अगले जन्म में मिलता है। ऐसे में कई लोग जाने-अनजाने होने वाले गलत कामों का परिणाम अगले जन्म में या मौत के बाद परिणाम अगले जन्म में या मौत के बाद भुगतने के डर से घिरे रहते हैं। ऐसे लोगों में मौत का डर अधिक होता है। 

● किसी भयानक हादसे या अपने सामने किसी को मरता देखने वाले व्यक्ति को मौत का डर अधिक सताता है। खास कर तब जब ऐसे हादसे या अपने किसी प्रिय के मौत से उस व्यक्ति का जीवन अत्यधिक प्रभावित हुआ हो या उसे गहरा मानसिक आघात पहुंचता है। डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं कि अतीत की दर्दनाक घटनायें हमारे मस्तिष्क पर गहरा छाप छोड़ सकती हैं तथा भावनाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। दरअसल हमारा मस्तिष्क ही हमारे हर कार्य और हमारी मस्तिष्क ही हमारे हर कार्य और हमारी भावनाओं के लिए उत्तरदायी होता है। मस्तिष्क में कई लोग होते हैं जिसके इससे संबंधित कार्य होते हैं। हमारे मस्तिष्क का दायां हिस्सा भावनात्मक स्थिति और उत्तेजना से जुड़ा होता है। जब किसी व्यक्ति को दर्दनाक घटना या दुर्घटना की याद आती है तो उसका बायीं तरफ का फ्रंटल हिस्सा कार्टेक्स, विशेष रूप से आवाज का क्षेत्र (ब्रोका क्षेत्र) प्रभावित होता है। इसलिए जब कोई व्यक्ति किसी भी दर्दनाक घटना के बारे में सोचता है, तो उसका फ्रंटल लोब बाधित होता है और व्यक्ति की सोचने और बोलने की क्षमता प्रभावित होती है। 

मौत के भय से छुटकारा पाने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं: 

• कलाए गीत-संगीत और मनोरंजन का सहारा लें: जब मौत का डर सताये तो आप ऐसे गीत सुन सकते हैं जिससे तनाव दूर होते हों आप स्नान करके भी इस डर को हटा सकते हैं। आप अपना समय खेल-कूद मनोरंजन, घूमने-फिरने और अपने काम में लगायें। आप संगीत, पेंटिंग, कविता लेखन जैसे, सृजनात्मक कामों में अपना ध्यान लगाकर मौत के भय को कम कर सकते हैं। 

● समय एवं स्थितियों पर गौर करें जब आप मौत के बारे में सोचना शुरू करते हैं, उस समय को नोट करें। मौत के भय से मुक्ति पाने के लिये यह जानना जरूरी है कि यह कितना और किस हद तक आपके जीवन को प्रभावित कर रहा है। हम अक्सर आसपास मौजूद कारकों अथवा कारणों से अनजान होते है। उन स्थितियों पर गौर करें जिसके कारण आपके मन में ऐसे भय का जन्म होता है। आप यह सोचें कि मेरे आसपास क्या हो रहा था जब मेरे मन में वह भय उत्पन्न हुआ। 

फालतू विचारों से दूरी बनायें अव्यवहारिक एवं अनुपयोगी विचारों को कम से कम करने की कोषिष करें। जब आप भविश्य के बारे में सोचते हैं, तो आपके मन में यह सवाल उठता है कि अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा। इस तरह के विचार अनुपयोगी हैं जिन्हें कैटास्ट्रोफिडिंग कहा जाता है। ऐसे विचार आपके मन में नकारात्मक भावनायें पैदा करते हैं। ऐसे अनुपयोगी विचारों की जगह पर सकारात्मक विचार अपनायें। मिसाल के तौर पर नकारात्मक विचार यह है, जब आप दफ्तर के लिये देर हो रहे हो तो आप सोच सकते हैं कि देर होने के कारण बॉस मुझे झटेगा और नौकरी से भी निकाल देगा। लेकिन इसे आप सकारात्मक तरीके से भी सोच सकते हैं कि अगर बॉस देर होने के बारे में पूछेंगे तो मैं अधिक ट्रैफिक होने का कारण बताऊंगा और कहूंगा कि मैं देर तक रुक कर काम करूंगा। 

● चिंता करने का समय तय करे मन में यह तय कर लें कि आपके लिये चिंता करने का एक निर्धारित समय होगा। इसके लिये आप चाहें तो दिन में पांच मिनट का समय तय कर सकते हैं जिसमें आप किसी बात को लेकर चिंता करें। ऐसा हर दिन किसी खास समय में करें। हालांकि यह समय सोने के समय के आसपास का तय नहीं करें। अगर आपके मन में किसी और समय नकारात्मक विचार या भय पैदा हों तो आप यह सोचें कि इसके बारे में निर्धारित समय में ही सोचेंगे। 

● प्रिय लोगों के बीच रहें: आप ज्यादातर समय वैसे लोगों के बीच रहे जो आपका ख्याल करते हो और आपको प्यार करते हैं और आपको खुश रखते हो। जब आपका समय अच्छा गुजरेगा तो बाद में आप गुजरे हुये अच्छे समय को याद करके तनाव मुक्त महसूस करेंगे। 

● अपना ख्याल रखें आप खुद को खतच या खतरनाक स्थितियों में डालने से बचें। धूम्रपान, शराब सेवन, खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने जैसी गतिविधियों से बचें अच्छे आहार का सेवन करें, व्यायाम करें तथा अच्छे आहार का सेवन करें, व्यायाम करें तथा तनाव मुक्त रहें। 

● भरपूर जीवन जीयें मौत तो एक दिन आनी ही हैए लेकिन मौत के बारे में सोच- सोच कर जीवन को बर्बाद करने से बेहतर यह है कि जीवन का पूरा आनंद लें। 

● अन्य लोगों के साथ अपनी भावनाओं को साझा करें अपनी भावनाओं, चिंता एवं 'भय के बारे में अपने प्रिय लोगों के साथ बात करें। इससे आपका मन हल्का होगा। हो है कि अन्य लोग भी इसी तरह की समस्या से गुजरे हों या गुजर रहे हों और वे आपको इस समस्या से निबटने का कोई उपाय सुझा सकते हैं।

मनोवैज्ञानिक सहायता जरूरत पड़ने पर मानसिक चिकित्सक से परामर्श लें। अगर मौत का भय बहुत अधिक गंभीर हो जाये जिसके कारण रोजमरे के सामान्य कामकाज करने में क्कित हो अथवा जीवन का आनंद उठाने में परेशानी होने लगे तो आपको किसी मानसिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये। जब आप इस भय के कारण असहायर लाचारए निराश महसूस करने लगे अथवा इस तरह का भय कई महीने तक कायम रहे तो आपको मनोचिकित्सक से इलाज करानी चाहिये। 

चिकित्सा 

मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक मौत के भय को लेकर आपकी भ्रांति को दूर करने में मदद करेंगे तथा इससे छुटकारा पाने में आपकी मदद करेंगे। यह याद रखें कि इस भय से छुटकारा पाने में काफी समय लगता है। हालांकि कई लोगों को काफी समय लगता है। हालांकि कई लोगों को 8 से 10 सेशन में उल्लेखनीय सुधार होता है। इस भय से छुटकारा दिलाने के लिये उपयोग में लायी जाने वाली मनोवैज्ञानिक चिकित्सा विधियां इस प्रकार है: 

कॉग्निटिव बिहेवियरल थिरेपी: अगर में हमें शारीरिक और भावनात्मक रूप से आप मरने से डरते हैं तो आपके मन में ऐसे मदद करने की क्षमता होती है। किसी भी विचार होंगे जो इस भय को तीव्र करते होंगे। दर्दनाक घटना के बाद व्यक्ति पर इसका कॉग्निटिव बिहेवियरल थिरेपी ऐसी विधि है...पहरा प्रभाव पड़ता है और उसके संवेदी और जिसके जरिये चिकित्सक आपके विचारों को बदलने तथा ऐसे विचारों से जुड़ी भावनाओं की पहचान करने में मदद करते हैं। मिसाल के तौर पर आपको यह सोचकर विमान से यात्रा करने को लेकर भय हो सकता है कि विमान से यात्रा करूंगा तो विमान गिर पड़ेगा या विमान टकरा जायेंगे और आपकी मौत हो जायेगी। लेकिन मनोचिकित्क इस विधि की मदद से आपको यह विश्वास दिलाने की कोषिष करेंगे कि आपका यह विचार तर्कहीन है और वे आपको यह विश्वास दिला सकते है कि किसी कार से चलने की हैं कि किसी कार से चलने की तुलना में विमान से यात्रा करना अधिक सुरक्षित है। 

इस हार्मोनल प्रणाली पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसे कई लोग होते हैं जो अपने शरीर में सनसनी के साथ डर का अनुभव करते हैं जो उन्हें खुद को सुरक्षित महसूस करने के लिए महत्वपूर्ण है। दर्दनाक घटना का प्रभाव दर्द, फ्लैशबैक आदि के रूप में होता है। 

थिरेपी की मदद से आपकी सोच अधिक यथथवादी एवं तर्कपूर्ण होगी। आप यह सोचने लगेंगे कि हजारों लोग रोज विमान से यात्रा करते हैं लेकिन वे सभी सुरक्षित हैं। ऐसे में विमान से यात्रा करने पर मैं भी सुरक्षित रहूंगा। 

एक्सपोजर थिरेपी: अगर आपको मौत का भय सताता है तो आप उन खास स्थितियाँ, गतिविधियों एवं जगहों से बचें जो आपके मन में ऐसे भय को बढ़ाती हैं। एक्सपोजर थिरेपी आपको ऐसे भय का सामना करने में मददगार साबित होगी। इस थिरेपी में, थिरेपिस्ट आपसे यह कल्पना करने को कहेंगे कि आप उस स्थिति में हैं जिससे आप बचना चाहते हैं अथवा आपको अपने आप को उसी स्थिति में डालने को कहेंगे। मान लिजिये कि आप विमान में चढ़ने से डरते हैं क्योंकि आपको लगता है कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जायेगा और आपकी मौत हो जायेगी। आपके थिरेपिस्ट आपसे यह कल्पना करने को कहेंगे कि आप विमान में सवार है और आपसे यह पूछेंगे कि आप क्या महसूस कर रहे हैं। 

दवाइयां अगर आपको यह भय इतना अधिक हो जाये कि आपको तीव्र एंग्जाइटी होने लगे तो कुछ दवाइयों का सेवन करने की जरूरत पड़ सकती है। ये दवाइयां भय के कारण होने वाली एंग्जाइटी का उपचार करती है। 

योग 

कई अध्ययनों में यह साबित हो से चुका है कि योगा किसी दर्दनाक घटना प्रभावित लोगों में उनके लक्षणों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ऐसा माना जाता है कि योगा में किसी दर्दनाक घटना या दुर्घटना के कारण होने वाले तनाव से निपटने में मदद मिलती है। 

डॉ. सुनील मित्तल बताते हैं कि योग के दौरान जब व्यक्ति आसन बदलता है, सांस लेने वाले और गहरे रिलैक्सेशन वाले आसन करता है तो उसके तंत्रिका तंत्र और मस्तिश्क पर शांत प्रभाव पड़ता है जो उसे दर्दनाक घटनाओं से निपटने में मदद करता है। 






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