– विनोद कुमार
उत्तराखंड के जोशीमठ के कई इलाकों में लैंडस्लाइड, धंसती जमीन, दरकती दीवारों की वजह से लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं। जो अपने घर में रह रहे हैं, उन लोगों को पूरी पूरी रात नींद नहीं आ रही है। जिनके घरों में दरारें आ चुकीं हैं या जमीन का हिस्सा धंस गया है, वो लोग अपना आशियाना छोड़कर पलायन कर चुके हैं।उत्तराखंड के स्वर्गनुमा शहर जोशीमठ की दीवारें आखिर क्यों दरक रहीं है, जमीन क्यों धंस रही है और घरों के नीचे से पानी क्यों निकल रहा है। क्या ये शहर बिना सोचे समझे निर्माण और कुदरत से खिलवाड़ का खामियाजा भुगत रहा है। क्या ये शहर पाताल में समाने वाला है?
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ समुद्र तल से 6000 फीट की ऊँचाई पर बसा है और चारों तरफ से बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। ये शहर हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र स्थान है। मान्यता है कि 815 ई. में यहीं पर आदि शंकराचार्य ने एक शहतूत के पेड़ के नीचे साधना कर ज्ञान प्राप्ति की थी। शंकराचार्य के दिव्य ज्ञान ज्योति प्राप्त करने की वजह से ही इसे ज्योतिर्मठ कहा जाने लगा. जो बाद में आम बोलचाल की भाषा में जोशीमठ कहा जाने लगा।
बद्रीनाथ धाम और भारत के तीन छोरों पर मठों की स्थापना करने से पहले शंकराचार्य ने जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ शंकर भाष्य की रचना भी की। तभी से जोशीमठ हमेशा ही वेद, पुराणों व ज्योतिष विद्या का केंद्र भी बना रहा।
यहाँ आज भी 36 मीटर की गोलाई वाला 2400 साल पुराना वह शहतूत का पेड़ है जिसके नीचे शंकराचार्य ने साधना की थी। इसी पेड़ के पास शंकराचार्य की तपस्थली गुफा भी मौजूद है, जिसे ज्योतिरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
जोशीमठ में सबसे प्रसिद्ध मंदिर नरसिंह मंदिर है। इसके बारे में कहा जाता है कि बद्रीनाथ यात्रा तब पूरी नहीं मानी जाती, जब तक नरसिंह मंदिर के दर्शन ना किए जाएँ। नरसिंह मंदिर, भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह को समर्पित है। इसके निर्माण के बारे में कई कहानियाँ हैं। राजतरंगिणी के अनुसार इसका निर्माण कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ ने किया। कुछ लोगों का मानना है इसकी स्थापना पांडवों ने की थी और कुछ का मानना है इसका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर में भगवन नरसिंह की काले पत्थर से बनी मूर्ति प्रतिष्ठित है। ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति का बांया हाथ कोहने के पास से लगतार क्षीण होता जाता है। जब यह गिर जायेगा तो नर और नारायण पर्वतों के आपस में मिल जाने से बद्रीनाथ का रास्ता बंद हो जायेगा। तब भगवान बद्रीनाथ की पूजा भविष्यबद्री में हुआ करेगी। शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति इसी मंदिर में प्रतिष्ठित कर दी जाती है।
जोशीमठ में नरसिंह मंदिर जितना पुराना एक और मंदिर है, वासुदेव मंदिर, जो भगवान कृष्ण का मंदिर है। इसको सातवीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं ने बनवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु के चतुर्भुज अवतार की मूर्ति है। उनके हाथों में शंख, गदा, चक्र और पद्यम है लेकिन ये क्रम के अनुसार नहीं है बल्कि उस समय के राजाओं ने इसे बदल दिया था। कहा जाता है कि राजा को सपना आया था कि ऐसा करने से उनका राज्य और प्रजा सुरक्षित रहेगी।
जोशीमठ से 15 कि.मी. दूर है, तपोवन। जोशीमठ से तपोवन जाते हुए आप एक शांत घाटी में पहुँच जाते हैं जहाँ हरे और पीले खेतों के अलावा द्रोणगिरि की खूबसूरत चोटी का नज़ारा दिखाई देता है। तपोवन अपने गर्म कुंडों और जलाशयों के लिए फेमस है। यहाँ गर्म पानी का एक जलाशय है जिसमें आप नहा भी सकते हैं। कहा जाता है कि इन जलाशय में स्नान करने से कई बिमारियाँ दूर हो जाती हैं।
तपोवन में जलाशय के अलावा एक गौरी शंकर मंदिर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को पाने के लिए पार्वती ने इसी जगह पर 6 हजार साल तक तपस्या की थी। भगवान शिव ने पार्वती की उनकी तपस्या कुबूल की और उनसे शादी की। तब से माना जाता है कि कोई भी अपनी इच्छा के लिए इस मंदिर में पूजा करेंगे तो पार्वती की तरह उनकी इच्छा भी पूरी होगी।
यह शहर सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से ही लोकप्रिय नहीं हैं बल्कि शहर भी बेहद खूबसूरत है। जिसका अंदाजा शहर में घुसते ही हो जाता है। शहर में घुसते ही आपको एक खूबसूरत वाटरफाॅल दिखाई देगा। आसमान जितना ऊँचे पहाड़ से गिरता पानी आपको मन मोह लेगा। इस झरने को जोगी नाम दिया गया क्योंकि यहाँ साधु और योगी स्नान करने के लिए रुकते हैं।
इन जगहों के अलावा जोशीमठ में ही बर्फ और स्कीइंग के लिए सबसे फेमस जगह औली भी यहीं है। सर्दियों में बर्फ देखने के लिए टूरिस्ट औली खिचे चले आते हैं। समुद्र तल से तीन हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित है औली। जोशीमठ से औली 16 कि.मी. दूर है। जोशीमठ से औली जाने के तीन रास्ते हैं रोपवे, सड़क मार्ग और पैदल रास्ता। लेकिन जमीन धंसने के बाद अब जोशीमठ में एशिया की सबसे लंबी रोपवे बंद करने का फैसला लिया गया है।
जोशीमठ में आप ट्रेकिंग का भी मज़ा ले सकता है। इसके लिए आपको गोविंदघाट जाना होगा। वहाँ से पुरोला के रास्ते ट्रेकिंग शुरू होती है और पहले दिन आप घांघरिया जाते हैं। यहाँ से दो ट्रेकिंग होती है, एक फूलों की घाटी और दूसरी हेमकुंड साहिब। हेमकुंड साहिब 6 कि.मी. का ट्रेक है और फूलों की घाटी 4 कि.मी. का ट्रेक है। फूलों की घाटी में आपको फूलों की लगभग 600 प्रजातियाँ देखने को मिलेंगी। लेकिन सर्दियों में ये जगह बर्फ से पटी रहती है। अगर आपको फूलों को देखना है तो जून में आना सबसे अच्छा समय रहता है।
लेकिन सवाल यह है कि इतने खूबसूरत शहर की दीवारें क्येां दरक रही है‚ जमीन क्यों धंस रही है और सड़के फटने क्यों लगी है।
इस खतरे को लेकर साल 1976 में ही भविष्यवाणी कर दी गई थी। 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। यह भी बताया गया था कि भूस्खलन से जोशीमठ को बचाने के लिए स्थानीय लेागों की भूमिका किस तरह तय की जा सकती है, वृक्षारोपण किया जा सकता है। इसके बाद साल 2001 में भी एक रिपोर्ट में इस खतरे को लेकर आगाह किया गया था। इस शहर में हो रहे धंसाव की आशंका पहले ही पैदा हो गई थी और सरकार की विशेषज्ञों की टीम ने एक रिपोर्ट भी तैयार की थी. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ में बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, ऊपरी मिट्टी का कटाव और दूसरे कई कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट पैदा हुई है। इसके बावजूद बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई। जिसमें शहर के नीचे से ही सुरंग बनाई गई। भारी विस्फोटों के जरिए न सिर्फ जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंगे खोदी गई बल्कि भारी निर्माण भी हुए हैं। यहां की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है और जंगलों और पहाड़ों का कटाव और अतिक्रमण भी तेजी से हो रहा है।
जोशीमठ के आस-पास चारधाम यात्रा के लिए और बॉर्डर से जुड़े सड़कों के चौड़ीकरण की परियोजनाएं को भी भूस्खलन और भूधंसाव का कारक माना जा रहा है। मौसम के बदलाव ने भूस्खलन-भूधंसाव की घटनाओं में वृद्धि ही की है।