– विनोद कुमार‚ हेल्थ रिपोर्टर
कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण आज अलग–अलग बीमारियों के मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है। कोविड -19 से बचने के लिए कई मरीज इलाज के लिए अस्पताल आने में कतराते हैं जबकि कई अस्पतालों में आर्थोपेडिक सर्जरी एवं अन्य सर्जरी टाली जा रही है। यह देखा जा रहा है कि आर्थोपेडिक के मरीजों को सही समय पर समुचित इलाज नहीं मिल पाने के कारण पाने के कारण उनकी बीमारियां एवं विकलांगता बढ रही है। हालांकि कई अस्पतालों में सभी मरीजों का इलाज एवं उनकी सर्जरी सही समय पर समुचित तरीके से करने का इंतजाम किया गया है। इन अस्पतालों में मरीजों को हर तरह से संक्रमण से सुरक्षा प्रदान की जा रही है। यही नहीं आज आर्थोपेडिक चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी तकनीकों का विकास हुआ है जिनकी मदद से आर्थोपेडिक के मरीजों की सर्जरी पूरी तरह से आसान एवं सुरक्षित हो गई है। इन तकनीकों में से एक तकनीक है इंटेलीजेंट हिप सर्जरी।
आज के समय में कूल्हे बदलने की सर्जरी काफी संख्या में की जाने लगी है। नई तकनीकों से सर्जरी करने पर यह सर्जरी काफी सफल साबित हो रही है। नई तकनीकों के विकसित होने के कारण कूल्हे बदलने की सर्जरी के परिणाम बेहतर हो रहे हैं मरीजों को कम दर्द का सामना करना पडता है अब कम चीरे लगाने पडते हैं तथा यह सर्जरी काफी कारगर साबित हो रही है। इंटेलीजेंट हिप सर्जरी की मदद से सर्जरी करने पर मरीज को एक से दो दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है, मरीज को रक्त चढाने की कोई जरूरत नहीं पडती, बहुत छोटा चीरा लगाकर सर्जरी की जा सकती है, सर्जरी से कोई भी मांसपेशी क्षतिग्रस्त नहीं होती है, सर्जरी के बाद मरीज की चाल में काफी सुधार होता है और मरीज बहुत जल्द सामान्य काम–काज करने लगता है।
इंटेलीजेंट हिप सर्जरी (डीएए) बिल्कुल नई और क्रांतिकारी किस्म की हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी है जिसमें मरीज को बहुत कम दर्द एवं दिक्कत का सामना करना पडता है और मरीज सर्जरी के तीन घंटे में अपने पैरों पर खडा हो सकता है और एक या दो दिन में अपने घर जा सकता है। इसमें कूल्हे के पीछे के बजाए कूल्हे के आगे चीरा लगाया जाता है जिसके कारण मांसपेशियों की क्षति कम होती है और कम दर्द होता है। परम्परागत विधि की तुलना में इस तकनीक से सर्जरी करने पर कूल्हे में खराबी आने की आशंका कम होती है। कूल्हे में खराबी आने पर मरीज के लिए जटिलताएं बढ जाती है।
इस नई तकनीक से सर्जरी कराने के बाद मरीज डेढ माह या उससे भी कम समय में हल्का–फुल्का खेल खेल सकता है। इस नई तकनीक के कारण मरीज को एक सप्ताह की तुलना में एक या दो दिन अस्पताल में रहने की जरूरत पडती है। इस नई तकनीक के कारण मरीज के अस्पताल से छुट्टी मिल जाने से अस्पताल पर मरीजों का दवाब भी घट जाता है और अस्पताल में नए जरूरतमंद मरीजों को भर्ती किया जा सकता है। इस तकनीक में मरीज के शीघ्र पुनर्वास को काफी महत्व दिया गया है। मरीज बहुत तेजी से स्वास्थ्य लाभ करता है’ उसे जटिलताएं होने का खतरा बहुत कम होता है’ उसकी कार्यकुशलता एवं गतशिीलता में बहुत तेजी से सुधार होता है।
यह सर्जरी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इस तकनीक की कई विशेषताएं हैं। इस तकनीक में नाजुक एवं मुलायम उत्तकों को तथा कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों को कम से कम नुकसान पहुंचाता है। रक्त की कम से कम क्षति होती है जिसके कारण अलग से रक्त् चढाने की जरूरत नहीं पडती है। चीरे के बहुत छोटे निशान रहते हैं। मरीज सर्जरी के बाद तीन घंटे के भीतर ही चलने फिरने लगता है। सर्जरी के दौरान या बाद में दर्द नहीं होता है। इसके अलावा पैरों की लंबाई पहले की तरह ही रहती है। मरीज बहुत जल्द सामान्य कामकाज करने लगता है। ज्यादातर मरीज आलथी–पालथी मारकर बैठ सकते हैं। सर्जरी के बाद चीरे या जख्म का कोई निशान नहीं रहता है।