मधुमेह रोगी कर सकते हैं आस्टियोपोरोसिस से अपना बचाव

डायबिटीज से पीड़ित लोगों (पीपल विद डायबिटीज - पीडब्ल्यूडी) को नियमित व्यायाम करने, हड्डी को स्वस्थ रखने वाले आहार का सेवन करने और गलत जीवनशैली की आदतों से बचने के लिए जल्द कदम उठाने की जरूरत होती है। उन्हें समय-समय पर अपनी आंखों, गुर्दे, दिल और पैरों की जांच करवाने की जरूरत होती है। यदि उनकी उम्र 50 वर्ष से अधिक है, तो इस सूची में हड्डी घनत्व परीक्षण (बोन डेंसिटी टेस्ट) को भी शामिल करना चाहिए।


आस्टियोपोरोसिस और मधुमेह के बीच संबंध पर बात करते हुए, मैक्स हेल्थकेयर, नई दिल्ली के एंडोक्रिनोलाजी एंड डायबिटीज के अध्यक्ष डा. अंबरीश मितल ने कहा, ‘‘आस्टियोपोरोसिस मधुमेह से जुड़ी की एक ऐसी जटिलता है जिसे कमतर आका जाता है। मधुमेह से पीड़ित लोगों को आस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर होने का खतरा अधिक होता है। और यह खतरा उम्र के साथ बढ़ता जाता है। यह मधुमेह की अवधि से भी संबंधित होता है। मधुमेह होने के लगभग पांच साल बाद इसके जोखिम बढ़ने लगते हैं। 50 वर्ष से अधिक आयु होने के बाद मधुमेह के मरीज को अस्थि घनत्व परीक्षण करवाना चाहिए। लेकिन यहां ध्यान देना चाहिए कि टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त मरीजों में हड्डियों का घनत्व थोड़ा अधिक होता है। जिन लोगों को मधुमेह नहीं हैं उनकी तुलना में मधुमेह के मरीजों में बेहतर अस्थि घनत्व होने पर भी फ्रैक्चर होता है। यदि आपका अस्थि घनत्व कम है और आपको ओस्टियोपोरोसिस है, तो आपके मधुमेह रोधी दवाओं के विकल्प में बदलाव लाना पड़ सकता है, इसलिए आप अपने चिकित्सक से परामर्श करें।’’


मधुमेह और अस्थि घनत्व के बारे में दूसरा मुद्दा विटामिन डी को लेकर है, जो बोन हेल्थ का अभिन्न अंग है। डा. मितल ने कहा, ‘‘अगर हमारे शरीर में पर्याप्त विटामिन डी है तो अपनी आंत के माध्यम से कैल्शियम को अच्छी तरह से अवशोषित करते हैं और हमें सूर्य से विटामिन डी मिलता है। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, हम में से कई लोग धूप में नहीं निकलते हैं, खासकर शहरी भारतीय। विटामिन डी का सबसे अच्छा निर्माण सुबह 11 से दोपहर 3 बजे के बीच होता है। यही नहीं, जब हम घर के बाहर निकलते हैं तो पोशाक से पूरी तरह से ढके रहते हैं। यहीं नहीं कई लोग सन स्क्रीन का भी इस्तेमाल करते हैं और इससे विटामिन डी का उत्पादन बाधित होता है।’’


उन्होंने कहा, ‘‘सबसे महत्वपूर्ण यह कि, इन दिनों बढ़ता प्रदूषण स्तर सूर्य की किरणों को हमारी त्वचा तक पहुँचने से रोकता है। इसलिए यदि हम बाहर जाते हैं, तो भी हम अपनेे शरीर में पर्याप्त विटामिन डी नहीं बनाते हैं। यदि आपको मधुमेह है और आस्टियोपोरोसिस होने का खतरा है, तो आपको पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन सुनिश्चित करना चाहिए, खासकर अगर आप धूप में बाहर नहीं जाते हैं तब, खासकर सर्दियों के दौरान। विटामिन डी की खुराक प्रति दिन 1,000 से 2000 आईयू लेना महत्वपूर्ण है। हालांकि, विटामिन डी की अधिकता से भी बचा जाना चाहिए।’’


कुछ उपयोगी सुझाव :



  • पोषण - पर्याप्त कैल्शियम (प्रति दिन 800 से 1000 मिलीग्राम) लें, जो अक्सर भारतीय आहार में से गायब होता है। कैल्शियम का औसत सेवन 400-450 मिलीग्राम है, जबकि हड्डियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और मधुमेह के लिए हमें प्रति दिन 800 या 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है। कैल्शियम के संदर्भ में आईसीएमआर की सिफारिश यह है कि हमें रोजाना कम से कम 600 मिलीग्राम कैल्शियम लेना चाहिए। यदि आप दूध और दूध उत्पादों को पचा नहीं पाते तो आपको कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेने चाहिए।

  • नियमित व्यायाम - हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए रोजाना शारीरिक गतिविधियों में सक्रिय रहें।

  • स्वस्थ जीवन शैली - स्वस्थ और सक्रिय जीवन शैली अपनाएं। धूम्रपान छोड़ें और शराब का सेवन सीमित रखें।

  • नियमित परीक्षण - मधुमेह पर नियंत्रण रखने के लिए नियमित अंतराल पर अस्थि घनत्व और रक्त शर्करा की जांच करएं।


डायबिटीज हालांकि कोविड–19 से ग्रस्त होने के खतरे को नहीं बढाता है लेकिन मधुमेह रोगियों को जाननी चाहिए ये बातें

इस समय जारी कोविड -19 महामारी के दौरान डायबिटीज से पीडित लोगों के लिए कोविड–19 को लेकर जो मुख्य चुनौती है वह यह है कि मधुमेह रोगियों को हालांकि कोविड होने का खतरा अन्य लोगों के समान ही होता है लेकिन अगर यह बीमारी उन्हें हो गई तो उनके लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। भारत में, लगभग 70 मिलियन व्यक्ति मधुमेह के साथ जी रहे हैं, जिससे हम दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मधुमेह आबादी वाला देश हैं। 


डॉ यादव ने कहा, ʺलोगों में यह गलत धारणा है कि डायबिटीज (टाइप 1 और टाइप 2) से पीड़ित लोगों में कोविड संक्रमण का खतरा अधिक होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि डायबिटीज से पीडित लोगों को सामान्य आबादी की तुलना में कोरोनावायरस संक्रमण होने की अधिक संभावना नहीं होती है। हालांकि मधुमेह से पीडित लोगों में मधुमेह रहित लोगों की तुलना में गंभीर जटिलताएं और मृत्यु दर अधिक है - और हम मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति को जितनी अधिक स्वास्थ्य समस्याएं (उदाहरण के लिए, मधुमेह, हृदय या गुर्दे की बीमारी) होती है, किसी भी वायरस के संपर्क में आने पर जटिलताएं होने की संभावना भी उतनी ही अधिक होती है। वृद्ध लोगों को भी अधिक जोखिम रहता है। ”


डॉ यादव ने कहा, “सामान्य तौर पर, मधुमेह से पीडित लोगों में वायरस से संक्रमित होने पर गंभीर लक्षण और जटिलताएं होती हैं। मधुमेह को अच्छी तरह से नियंत्रित नहीं रखने वाले लोगों में कोरोनोवायरस संक्रमण के कारण मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। जब मधुमेह से पीडित लोग अपने मधुमेह को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं करते हैं और उनके रक्त शर्करा में उतार-चढ़ाव होता है, तो उन्हें आम तौर पर  मधुमेह संबंधी कई जटिलताओं के होने का खतरा होता है। मधुमेह के अलावा हृदय रोग या अन्य जटिलताएं होने से कोरोनावायरस संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना बढ़ सकती है, क्योंकि ऐसे मामलों में शरीर की संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। ”


डॉ योगेश यादव ने कहा, “बहुत से मरीज़ मुझसे पूछते हैं कि क्या कोविड संक्रमण के कारण मधुमेह हो सकता है, जिसके बारे में मुझे यह कहना है कि कोरोनावायरस संक्रमण और मधुमेह के बीच संबंध दोतरफा है। एक ओर, मधुमेह गंभीर कोरोनावायरस संक्रमण के खतरे को बढाता है।  दूसरी ओर, कोरोनोवायरस संक्रमण वाले रोगियों में मधुमेह की शुरुआत होने और डायबिटिक कीटोएसिडोसिस और हाइपरोस्मोलेरिटी सहित पहले से मौजूद मधुमेह के गंभीर जटिलताओं को देखा गया है। इन स्थितियों में उपचार के लिए इंसुलिन की असाधारण रूप से उच्च खुराक की आवश्यकता होती है। गंभीर कोरोनोवायरस संक्रमण होने पर अचानक शुरू हुए ग्लूकोज चयापचय में परिवर्तन कोविड संक्रमण के ठीक होने बाद जारी रहने या कम होने के बारे में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। "


यदि आपको मधुमेह है तो आपको क्या करना चाहिए?



  • अपने शुगर के स्तर की नियमित जाँच करें कि वे सामान्य सीमा में हैं या नहीं।

  • अपनी क्षमता के अनुसार नियमित व्यायाम करें। आप योग, प्राणायाम, स्ट्रेचिंग व्यायाम जैसे व्यायाम घर पर भी कर सकते हैं ।

  • अपने आहार और वजन पर नज़र रखें। वजन में वृद्धि होने पर शुगर के स्तर में वृद्धि हो सकती है।


दुर्घटनाओं और गलत जीवन शैली से गर्दन हो रही है जख्मी (Watch Video)


दुघर्टनाओं और गलत जीवन शैली के कारण हमारे देश में गर्दन एवं स्पाइन के क्षतिग्रस्त होने की समस्याएं बढ रही हैं। हमारे देश तकरीबन 15 लाख लोगों को गर्दन अथवा स्पाइनल कार्ड में चोट लगने के कारण विकलांगता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। अनुमानों के अनुसार देश में हर साल स्पाइनल कार्ड में चोट के 20 हजार से अधिक मामले आते हैं।


नौएडा के फोर्टिस हास्पीटल के ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के निदेशक डा. राहुल गुप्ता अनुसार दुर्घटनाओं, उंचाई पर गिरने, खेल -कूद और मार-पीट जैसे कई कारणों से गर्दन क्षतिगस्त हो सकती है और कई बार मौत भी हो सकती है। इसके अलावा गलत तरीके से व्यायाम करने और सोने–उठने–बैठने के गलत तौर तरीकों से भी गर्दन की समस्या हो सकती है।


गर्दन हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।


गर्दन की गतिशीलता की मदद से ही हम आगे - पीछे देखते हैं, कम्प्यूटर आदि पर काम करते हैं या किसी से बात करते हैं। गर्दन में हमारे शरीर का बहुत ही नाजुक अंग है जिसे स्पाइनल कार्ड कहा जाता है जो कई कारणों से चोटिल हो सकता है। दुर्घटनाओं में, खेल-कूद में या मार-पीट में गर्दन में चोट लगती है और स्पाइनल कार्ड गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है। अगर गर्दन में चोट बहुत हल्की हो तो आराम करने या फीजियोथिरेपी से राहत मिल जाती है लेकिन कई लोगों के लिए गर्दन में चोट विकलांगता का भी कारण बन जाता है। ऐसे में जरूरी है कि गर्दन में चोट या गर्दन की किसी भी समस्या की अनदेखी नहीं करें। अगर आरम करने या दवाइयों के सेवन से भी गर्दन दर्द बढ़ता जाए या गर्दन दर्द बांहों और पैरों तक फैल जाए अथवा सिर दर्द, कमजोरी, हाथों और पैरों में सुन्नपन और झुनझुनी आए तो तुरंत न्यूरो एवं स्पाइन विशेषज्ञ से जांच और इलाज कराएं।


डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि ई बार जब गर्दन की हड्डी में ज्यादा कैल्शियम जमा हो जाता है जिससे हड्डी का क्षेत्र कम हो जाता है और स्पाइनल कार्ड के लिए जगह नहीं होती है। ऐसे में हल्की चोट लगने से भी स्पाइनल कार्ड क्षतिग्रस्त हो सकता है। इसके अलावा वहां पर खून की नस - वर्टेव्रल आर्टरी होती है और उसमें भी अगर चोट लगे तो गर्दन में दर्द हो सकता है। सर्वाइकल कार्ड में चोट लगने से गर्दन में दर्द की समस्या बहुत ही आम है और इससे काफी लोग ग्रस्त रहते हैं। लेकिन अगर क्वाड्रिप्लेजिया पैरालाइसिस होने पर मरीज को ताउम्र विकलांग जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। उसे बिस्तर पर ही रहने को मजबूर होना पड़ सकता है, उसे बेड सोर हो सकते हैं और संास लेने में तकलीफ हो सकती है और वह रोजमर्रा के कामकाज एवं दिनचर्या के लिए अपने परिजनों पर ही पूरी तरह से निर्भर हो जाता है। इनल कार्ड में चोट लगने से उसके नीचे का हिस्स सुन्न हो सकता है, मल-मूत्र त्यागने में दिक्कत हो सकती है और कई बार सांस लेने में भी तकलीफ हो सकती है। इसलिए गर्दन एवं सर्वाइकल स्पाइन की सुरक्षा करना बहुत जरूरी है और इसमें चोट लगने या कोई दिक्कत होने पर उसकी अनदेखी नहीं करें। गर्दन को हमें हर तरह की चोट से बचा कर रखना जरूरी है और चोट लगने पर तत्काल स्पाइन विशेषज्ञ से मिलकर इलाज करना जरूरी है। डा. राहुल गुप्ता के अनुसार अगर गर्दन में चोट लगी है और हाथ-पैर तक दर्द या सुन्नपन चला गया है तो तत्काल न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन से परामर्श करना चाहिए। स्पाइन विशेषज्ञ एक्स रे, सीटी स्कैन या एमआरआई कराने की सलाह देते हैं ताकि चोट की सही स्थिति का पता चल सके। एमआरआई से बोन, साफ्ट टिश्यू एवं स्पाइनल कार्ड सबके बारे में विस्तार से पता चलता है। सीटी स्कैन से बोन के बारे में विस्तार से पता चलता है जबकि एक्स रे हड्डी के बारे में आरंभिक जानकारी मिल जाती है जिसके आधार पर आगे की जांच कराने की सलाह दी जाती है।


डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि फांसी लगाने पर भी मुख्य तौर पर स्वाइकल स्पाइन क्षतिग्रसत होती है जिसमें गर्दन की हड्डी टूट कर स्पाइनल कार्ड को दबाती है जिससे दर्दरहित मौत हो जाती है। उंचाई से गिरने पर कई बार मौके पर ही मौत हो जाती है। ऐसे मामलों में ज्यादातर सर्वाइकल स्पाइन में इंज्युरी ही होती है। दुर्घटना के शिकार या उंचाई से गिरने वाले घायल व्यक्ति का तत्काल आपरेशन होना जरूरी है जिसमें उनके गर्दन की हड्डी को सीधा किया जाता है प्लेट लगाकर उसे एलाइमेंट में रखा जाता है। कुछ चिकित्सक स्टेम सेल थिरेपी का उपयोग करते हैं। कुछ प्रयोगों में इसे सफल भी पाया गया लेकिन अभी तक इसे किसी मान्यताप्राप्त चिकित्सा संस्थान या संगठन से मान्यता नहीं मिली है।  जो भी लोग इस तरह का उपचार कर रहे हैं वे एक प्रयोग की तरह इसे कर रहे हैं और हो सकता है कि कुछ लोगों को उससे फायदा हुआ हो लेकिन इससे आम तौर पर नुकसान नहीं होता है।


कोविड-19 की महामारी में ब्रेन और और स्पाइन की इमरजंसी होने पर क्या करें

कोविड-19 की महामारी के दौरान कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए लोग घरों में ही रह रहे हैं और बहुत जरूरी होने पर ही घरों से निकल रहे हैं। ज्यादा समय घर में ही बीता रहे हैं। कई लोग स्वास्थ्य सबंधी दिक्कतें होने पर भी अस्पताल जाने से कतरा रहे हैं। कुछ समय पहले तक हालांकि कई अस्पतालों में उन मरीजों को अस्पतालों को अपना इलाज कराने में दिक्कत हो रही है जिन्हें कोरोनावायरस का संक्रमण नहीं था। हालांकि अब स्थितियों में काफी बदलाव हुआ है और लॉकडाउन की अवधि समाप्त होने के बाद ज्यादातर अस्पतालों में सभी तरह के मरीजों का इलाज होने लगा है और अब पहले की तुलना में अधिक संख्या में मरीज अस्पताल आ रहे हैं। फिर भी ऐसे काफी मरीज हैं जो इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं कि उन्हें अपनी बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल जाना चाहिए या घर पर ही रहकर इलाज कराना चाहिए।



नई दिल्ली स्थित फोर्टिस एस्कार्ट्स हार्ट इंस्टीच्यूट तथा नौएडा स्थित फोर्टिस हास्पीटल के न्यूरोसर्जरी के निदेशक डॉ़ राहुल गुप्ता बता रहे हैं कि ब्रेन एवं स्पाइन के मरीजों को किस स्थिति में अस्पताल जाना चाहिए और किस स्थिति में घर में रहकर टेलीफोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपना इलाज करना चाहिए।


डा़ राहुल गुप्ता बताते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर और ब्रेन हेमरेज जैसी न्यूरो या स्पाइन से संबंधित ऐसी कई ऐसी समस्याएं है जिसके कारण मरीज को आपात स्थिति में किसी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत हो सकती है कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनमें टेलीमेडिसिन की मदद ली जा सकती है।


डा़ राहुल गुप्ता के अनुसार ब्रेन एवं स्पाइन की जिन गंभीर समस्याओं में मरीजों को तत्काल सभी सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी होता है वे इस प्रकार से हैं  ।


अचानक तेज सिरदर्द:


यह ब्रेन हेमरेज का लक्षण हो सकता है। दवाइयों से इसमें फायदा नहीं हो सकता है। इसके होने पर उल्टी,  अंगों में कमजोरी या बेहोशी हो सकती है। यह अक्सर रक्तचाप बढ़ने पर या किसी एक कमजोर रक्त वाहिका के फटने के कारण होता है। अचानक सिर दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं और सही कारण का पता लगाने के लिए एंजियोग्राफी आवश्यक है। अगर रक्त नलिका फट गई हो या मस्तिष्क में रक्त का क्लॉट (हेमेटोमा) बन गया हो तो सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे में समय गवाए बगैर मरीज को आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए।


लगातार सिरदर्द


यह माइग्रेन, तनाव वाले सिरदर्द, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन हेमरेज या मस्तिष्क में संक्रमण के कारण हो सकता है। माइग्रेन में, सिरदर्द आमतौर पर एक तरफ होता है। इसमें मतली और चक्कर आने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। माइग्रेन होने पर उसकी जांच एवं उपचार जरूरी है। तनाव के कारण होने वाला सिरदर्द आमतौर पर शाम को होता है और इसमें एनाल्जेसिक और नींद लेने पर राहत मिलती है। सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर के कारण भी हो सकता है जिसमें उल्टी, देखने या सुनने में दिक्कत, नींद नहीं आने, व्यवहार में बदलाव, अंगों में कमजोरी, चेहरे में सुन्नपन आने जैसी समस्या भी हो सकती है। संक्रमण के कारण होने वाले सिर दर्द में गर्दन में अकड़न, बुखार, अस्वस्थता या  उनींदापन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इन समस्याओं के होने पर आप किसी योग्य  न्यूरो सर्जन से टेलीफोन या वीडियो कांफ्रेंसिग परामर्श लेकर उनके निर्देश के अनुसार आगे का उपचार कर सकते हैं। इसमें एमआर आई, सीटी स्कैन या एंजियोग्राफी की आवश्यकता हो सकती है।


बेहोशी या दौरा पडना


कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र में दौरे या मिर्गी का शिकार हो सकता है। यह बुखार, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन हेमरेज, मस्तिष्क संक्रमण या सिस्टमेटिक बीमारी या किसी अज्ञात कारण से हो सकता है। इसमें रक्त जांच, ईईजी और मस्तिष्क के एमआरआई सहित कई जांच की आवश्यकता होती है। दौरे, बेहोशी या मिर्गी जैसी स्थिति आमतौर पर 10.20 मिनट में खत्म हो जाती है और व्यक्ति सामान्य हो जाता है। दौरा पडने पर मरीज को फर्श पर या बिस्तर पर इस तरह से लिटाना चाहिए कि उसका मुंह नीचे की ओर हो। उसके कपड़े ढीले कर देने चाहिए, आसपास भीड़ नहीं लगानी चाहिए और यह कोशिश करनी चाहिए कि उसे चोट नहीं पहुंचे। हालांकि 99 प्रतिशत मामलों में दौरा अपने आप ठीक हो जाता है। जब व्यक्ति सामान्य हो जाए (आमतौर पर 20.30 मिनट के बाद), तो उसे परामर्श के लिए अस्पताल ले जाया जा सकता है। अगर बार-बार अनियंत्रित दौरे (मिर्गी) पड़ते हों तो तुरंत एम्बुलेंस मंगवाकर मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। कुछ रिफ्रैक्टरी रोग में डाॅक्टर एंटी-एपिलेपटिक स्प्रे का उपयोग करने का सुझाव दे सकते हैं। किसी भी तरह का दौरा हो, डाॅक्टर से परामर्श आवश्यक है।


चेहरे या शरीर के किसी अंग या शरीर के आधे हिस्से में अचानक कमजोरी, या देखने एवं बोलने में बाधा पहुंचना (स्ट्रोक): 


स्ट्रोक मेडिकल इमरजेंसी है और तत्काल चिकित्सकीय सहायता से इसे ठीक किया जा सकता है। आमतौर पर, स्ट्रोक होने पर सिरदर्द, उल्टी या बेहोशी जैसे लक्षण नहीं होते हैं। चलते समय लड़खड़ाकर गिर जाना भी स्ट्रोक के कारण हो सकता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों जैसे प्रिडिस्पोजिंग कारणों से भी यह हो सकता है। रोगी को तुरंत वैसे अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए जहां न्यूरो-कैथलैब में ‘मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी’ की सुविधा हो।


अचानक बेहोशी


यह बड़े पैमाने पर स्ट्रोक या अधिक मस्तिष्क रक्तस्राव के कारण हो सकता है। मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में कमी आने के कारण व्यक्ति अपनी चेतना खो सकता है। यह दौरे, मस्तिष्क के भीतर दवाब के बढ़ने या अचानक मानसिक आघात पड़ने का संकेत हो सकता है। ऐसे में रोगी को आराम से लिटा देना चाहिए, वहां भीड़ जमा नहीं होने देना चाहिए, मरीज के कपड़े को ढीला कर देना चाहिए, उसेे करवट के बल लिटाना चाहिए तथा उसे होश में लाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके साथ ही, रोगी को सुसज्जित अस्पताल में भर्ती कराने के लिए तत्काल एंबुलेंस मंगाना चाहिए।


गंभीर पीठ दर्द:


घर के काम करते समय अचानक झुकना या भारी वस्तु उठाना गंभीर पीठ दर्द का सामान्य कारण है। घर में गिरना, गलत तरीके से बैठकर काम करना, पहले से कमर दर्द या पीठ में कुछ विकृति (पैथोलाॅजिक कारण) से भी गंभीर पीठ दर्द हो सकता है। गंभीर पीठ दर्द में तत्काल राहत पाने के लिए बेड रेस्ट एवं एनाल्जेसिक की मदद ली जा सकती है। इसके अलावा गर्म या ठंडी सिकाई, एनाल्जेसिक जेल या फिजियोथेरेपी आदि की मदद ली जा सकती हैं। आमतौर पर कमर दर्द 2.3 दिनों में कम हो जाता है। यदि दर्द से राहत नहीं मिलती है और साथ ही साथ अंग की कमजोरी, सुन्नपन या पेशाब में समस्या भी हो तो तत्काल चिकित्सक से परामर्श करें। यह दर्द मामूली फ्रैक्चर, तीव्र डिस्क प्रोलैप्स, ट्यूमर, तपेदिक या हड्डी के हट जाने के कारण हो सकता है जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। पीठ दर्द होने पर टेली परामर्श एक अच्छा विकल्प है। कमर दर्द की रोकथाम के लिए उठने-बैठने के सही तौर- तरीके अपनाएं, नियमित रूप से व्यायाम करें तथा स्वस्थ आहार लें।


अंगों में कमजोरी या तंत्रिका संबंधी दिक्कत: अंगों या मूत्राशय में संवेदना में कमी या आंत संबंधी दिक्कतें नर्व या स्पाइनल कार्ड में कम्प्रेशन आने के कारण हो सकती है। यह मेडिकल इमरजेंसी है और मरीज को तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए ताकि मरीज को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई हो सके। तत्काल एमआरआई या सीटी स्कैन कराना चाहिए ताकि अचानक आई कमजोरी के कारण का पता लगाया जा सके। 


डा़ राहुल गुप्ता बताते हैं कि कई मरीज जो पहले से डॉक्टर से इलाज करा रहे हैं लेकिन  कोविड-19 के कारण उन्हें दवाइयां मिलने में दिक्कत हो रही है उनके लिए टेली परामर्श सबसे अच्छा तरीका है। डॉक्टर को आॅनलाइन तरीकों से पिछली पर्ची को जरूर भेजें। इससे डॉक्टर को आपके लिए दवाइयां लिखने में मदद मिलेगी। अ गर आपकी समस्या और गंभीर हो गई है या समस्या बदल गई है, तो वीडियो या टेलीफोन के जरिए परामर्श लें। निर्धारित  जांच रिपोर्टें ई-मेल या व्हाट्सऐप से डाॅक्टर को भेजें। जो दवा सुझाई गई है उसे सही तरीके से लें। इसके बाद भी आपको अगर राहत नहीं मिले तो डॉक्टर से मिलें।


भारत का सबसे बड़ा डिजिटल स्वास्थ्य सेवा मंच बनाने के लिए मेडीबड्डी और डॉक्सऐप ने विलय की घोषणा की 

"संस्था ने डिजिटल हेल्थकेयर और टेलीमेडिसिन क्षेत्र में और क्रांति लाने के लिए मार्की निवेशकों से 20 मिलियन डॉलर       (~ 150 करोड़ रुपये) जुटाए हैं"


नई दिल्ली, 10 जून 2020: उद्योग अग्र-दूत डॉक्सऐप का मेडीबड्डी के डिजिटल उपभोक्ता स्वास्थ्य व्यवसाय से हुआ विलय l डॉक्सऐप, भारत का सबसे बड़ा परामर्श मंच तथा मेडीबड्डी, उधमो के डिजिटल उपभोक्ता स्वास्थ्य के अग्रणी के इस मिलन से यह बन गया है भारत का सबसे बड़ा तथा सबसे व्यापक डिजिटल स्वास्थ्य सेवा मंच l

आज डिजिटल स्वास्थ्य जब एक सामान्य वस्तु बन चुकी है, डॉक्सऐप और मेडीबड्डी का अनुभव लाखों भारतीयों को उच्च स्तरीय स्वस्थ सेवाएं देने में  सक्षम है, अपनी संबंधित शक्तियों को मिलाकर, यह संयुक्त इकाई  24x7 स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाने में  सक्षम है। यह मंच स्वास्थ्य सेवाओं जैसे डॉक्टर परामर्श, प्रयोगशाला परीक्षण, निवारक स्वास्थ्य जांच, दवाओं की डिलीवरी आदि को पूरे भारत तक पहुंचाने में ध्यान केंद्रित करेंगे।

यह संयुक्त इकाई 90,000 डॉक्टरों, 7000 अस्पतालों, 3000 नैदानिक केंद्रों और 2500 फार्मेसी जो भारत के 95% पिन कोड का आवरण करते हैं। कुल मिलाकर यह सयुक्त इकाई 3 करोड़ भारतीयों को स्वास्थ्य सेवा पंहुचा रहे है।  

विलय की घोषणा हेतु प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, विलीन इकाई के सीईओ श्री सतीश कन्नन ने कहा, “यह संयुक्त इकाई हमारे ग्राहकों को एक व्यापक मंच प्रदान करेगी जो एक डिजिटल हेल्थकेयर भविष्य के वादे को पूरा करता है।  प्रथम-प्रस्तावक के होने के नाते , हमें विश्वास है कि हम बाजार नेतृत्व स्थापित करेंगे और प्रत्येक भारतीय को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के अपने मिशन को पूरा करेंगे। ”

मेडी असिस्ट के सीईओ श्री सतीश गिडुगु ने कहा, 'हम बलों में शामिल होने और भारत में डिजिटल हेल्थकेयर इकोसिस्टम के लिए एक साहसिक नई दृष्टि स्थापित करने के लिए उत्साहित हैं।  डॉक्सऐप और मेडीबडी की क्षमताओं का संयोजन एक ऑन-डिमांड हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा जो ग्राहकों और खुदरा उपयोगकर्ताओं दोनों के लिए असाधारण ग्राहक अनुभव प्रदान करेगा। ”

इस समय जब पूरे विश्व में अनिश्चितता और सावधानी प्रचलित है तब इस स्वस्थ सेवा मंच के प्रति रुचि और उत्साह इसमें शामिल निवेशों से प्रकट होती हैं, सीईओ, श्री सतीश कन्नन ने बेसेमर वेंचर पार्टनर्स, फ्यूशियन कैपिटल, मित्सुई सुमितोमो (MSIVC) और बियॉन्ड नेक्स्ट वेंचर्स के नेतृत्व में सीरीज़ बी में $ 20 मिलियन (150 करोड़) की घोषणा की। इस दौर में मौजूदा निवेशकों,  मिलिवेज़ वेंचर्स और रीब्राइट पार्टनर्स भी शामिल थे।

यह संयुक्त इकाई एक अरब लोगों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के अपने मिशन के करीब एक कदम और बढ़ने के लिए तथा अपने डॉक्टर आधार, रोगी पहुंच, उत्पाद और प्रौद्योगिकी को मजबूत करने में धन का उपयोग करेगी।

इस निवेश पर विस्तार करते हुए, बेसमर वेंचर पार्टनर्स के एमडी, विशाल गुप्ता ने कहा, “अपने लक्षित समाधानों और असाधारण  मैट्रिक्स के परिणामस्वरूप, डॉक्सऐप ने एक नेतृत्व की स्थिति हासिल की है।  हम इस विकास यात्रा का हिस्सा बनकर प्रसन्न हैं और मानते हैं कि मेडीबडी के साथ विलय से सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की आवश्यकता है।  अब हम मूल्य श्रृंखला में सेवाएं दे पाएंगे और ग्राहक आधार के मामले में सबसे बड़े खिलाड़ी भी बन जाएंगे।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की चुनौतियाँ

आंगनवाड़ी- यह नाम सुनते ही ज़हन में क्या बात आती है? खिचड़ी स्कूल! जर्जर भवन! या इंजेक्शन, टैबलेट मिलने का स्थान! अलग-अलग स्थानों एवं अलग-अलग व्यक्तियों के लिए आंगनवाड़ी का नाम अलग-अलग हो सकता है परंतु इसकी स्थापना बहुत ही खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुई थी। छोटे बच्चों में भूख एवं कुपोषण की समस्या को दूर करने, महिलाओं एवं बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं को दूर करने एवं शालापूर्व शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 1975 को बांसवाड़ा के गढ़ी नामक स्थान से समेकित बाल विकास सेवाओं (Integrated Child Development Services, ICDS) का शुभारंभ हुआ एवं यहीं से जन्म हुआ आंगनवाड़ी नामक संस्थान का। विगत् 45 वर्षों में आंगनवाड़ी के प्रारूप एवं उद्देश्यों में बदलाव आ गया है। आंगनवाड़ियाँ पहले से ज्यादा संगठित हुई हैं। योजनाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। आज आंगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों एवं महिलाओं के लिए निम्न प्रकार की सेवाओं एवं योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है-



  • शालापूर्व शिक्षा

  • पूरक पोषण योजना

  • पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा

  • टीकाकरण

  • स्वस्थ्य जांच एवं रेफरल सेवाएँ

  • विटामिन, आयरन एवं फॉलिक एसिड टैबलेट का वितरण

  • जल एवंस्वक्षता संबन्धित कार्यक्रम

  • महिला सशक्तिकरण के विभिन्न कार्यक्रम

  • किशोरियों के लिए कार्यक्रम

  • महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम इत्यादि।


उपरोक्त कार्यों के अलावा अन्य छोटे-बड़े कार्य भी आंगनवाड़ी के माध्यम से क्रियान्वित किए जातें हैं। इन कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए एक आंगनवाड़ी में मुख्य रूप से 3 व्यक्तियों को नियुक्त किया गया है- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, एवं आशा (ASHA) सहयोगिनी। इन 3 व्यक्तियों के अलावा ANM भी समयानुसार स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए केंद्र पर आती रहती हैं।कार्यकर्ता आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों को नेतृत्व प्रदान करती है। आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों के अलावा उन्हे पंचायत, ग्राम सभा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होने वाले कार्यक्रमों में भी भाग लेना पड़ता है। कार्य अत्यधिक होने के कारण इन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। आइये जरा हम संक्षेप में इनके चुनौतियों एवं समस्याओं पर नज़र डालें।


आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियाँएवं समस्याएँ निम्नलिखित हैं।


अत्यधिक कार्यभार- कार्यकर्ता के दिनचर्या को समझे तो उनके दैनिक कार्य का बड़ा समय  शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों, आंकड़ो के रखरखाव, समुदाय से संबंधित कार्यों एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए ASHA सहयोगिनीकी सहायता करने में जाता है।बहुत सारे ऐसे कार्य भी होते है जो आकस्मिक भी आते है, जिनको करना अत्यंत आवश्यक होता है।अत्यधिक कार्यभार,कार्य के अलग-अलग प्रारूप एवं कार्यों का समुचित प्रबंधन नहीं होने के कारण कार्यकर्ता को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।यदि कार्य का विभाजन,कार्यों एवं समय का प्रबंधन करने का सतत् प्रशिक्षण दिया जाता है तो कार्यकर्ताओं का काम आसान होगा एवं चुनौतियाँ भी कम होंगी।


अत्यधिक रिकार्ड का रखरखाव:आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को कुल 15-17 प्रकार के रजिस्टरों एवं फार्मों (विभिन्न राज्यों में संख्या कम या ज्यादा हो सकती है) का रख-रखाव सुनिश्चित करना पड़ता है। ये रजिस्टर कुछ इस प्रकार से हैं- सर्वे रजिस्टर, टीकाकरण रजिस्टर, एएनसी रजिस्टर, रेफरलरजिस्टर, डायरीएवं विजिट बुक,स्वयं सहायत समूह रजिस्टर, अभिभावक मीटिंग रजिस्टर,PMMVY का फार्म, ग्रोथ मोनिट्रिंग रजिस्टर आदि।इन रजिस्टरों का रख रखाव चुनौतीपूर्ण हो जाता है, खासकर उन कार्यकर्ताओं के लिए जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है (जो 20-25 साल पुरानी हैं) एवं उनका पर्याप्त क्षमतावर्धन भी नही हुआ है। इस डिजिटलीकरण के दौर में मोबाइल एप्लिकेशन बेस्ड रेकॉर्ड रखने की पदत्ति को अपनाया जाए एवं सभी कार्यकर्ताओं का सतत् क्षमतावर्धन किया जाए तो आंकड़ो का रखरखाव आसान होगा एवं रजिस्टरों की संख्या में कमी आएगी।


अपर्याप्त मानदेय: हम अभी तक कार्यकर्ताओं के कार्यभार की चर्चा कर चुके हैं। आइए हम उनके काम के बदले उन्हें मिलने वाले मानदेय पर भी बात करते हैं। अपर्याप्त मानदेय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं कीएक बहुत बड़ी समस्या है। लगभग सारी कार्यकर्ताएं अधिक मानदेय के लिए शिकायत करती पायी जातीं हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को मानद् कार्यकर्ता के रूप में समझा जाता है इसलिए उन्हें मानदेय दिया जाता हैना की न्यूनतम दैनिक मजदूरी या मासिक वेतन। एक कार्यकर्ता को 3000 से 7000 रुपये (अलग अलग राज्यों में अलग मानदेय दिया जाता है जो कम या ज्यादा हो सकता है)के बीच में मानदेय दिया जाता है जो किसी भी सरकारी कार्यों को करने वाले कर्मचारी से बहुत हीं कम है। वहीं सहायिका एवं आशा सहयोगिनी को 1000 से 2000 रुपये के बीच मानदेय दिया जाता है। उनके कार्यभार को देखते हुए यह धनराशि बहुत ही कम है। कई कार्यकर्ता तो ऐसी भी है जो स्वयं गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आती हैं, इस स्थिति में उनके जीवन यापन के लिए इतना मानदेय पर्याप्त नहीं है। कार्यकर्ता के लिए दिन में न्यूनतम 6 घंटे कार्य करने का प्रावधान है अतः पूरे दिन का समय देने के बदले मानदेय कम से कम इतना तो अवश्य होकी वो परिवार के आय में अपना योगदान दे पाएँ जिससे स्वयं एवं परिवार का जीवनयापन आसान हो पाये। कुछ राज्यों ने सर्राहनिय रूप से मानदेय थोड़ा बढ़ाया है परंतु वो भी अपर्याप्त है।


आंगनवाड़ी संबन्धित सामग्रियों कीअसमयआपूर्ति-


आंगनवाड़ी के विभिन्न गतिविधियों में प्रयोग होने वाली सामग्रियाँ जैसे की- पोषाहार, विटामिन, आयरन, फॉलिक एसिड एवं डीवोर्मिंग की टैबलेट, शिक्षण सामग्री,सूचना प्रदान करने हेतु सामग्रियाँ का समय पर केंद्र पर नहीं पहुँच पाने के कारण कार्यकर्ता को कार्यों को करने में विलंब होता है एवं उन्हे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सामग्रियों की आपूर्ति ऋंखला को दुरुस्त कर के सामग्रियों को नियत समय आंगनवाड़ी केंद्र पर पहुंचाया जा सकता है जिससे कार्य समय पर होंगे एवं कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा।


बुनियादी ढांचे का अभाव-


यदि आंगनवाड़ी केंद्र को ध्यान से देखें तो हम पाते हैं कि अधिकांश केन्द्रों में-



  • भवन जर्जर हालत में हैं, लंबे समय से इसकी मरम्मत नही हुई है और ना रंग-रोगन का कार्य हुआ है।

  • कमरा छोटा है तथा शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों को करने केलिए स्थान पर्याप्त नही है।

  • बिजली एवं पंखा उपलब्ध नहीं है।

  • शौचालय एवं पानी उपलब्ध नहीं है।

  • समान इधर-उधर बिखरे पड़े रहते है एवं साफ-सफाई की कमी है।

  • उपकरण, फ़र्निचर, बैठने की व्यवस्था की कमी है।


उपरोक्त सभी ढांचागत सुविधाएं कार्यस्थल के वातावरण को कार्य करने योग्य बनातीहैं जिससे काम करना हीं आसान नही होता अपितु कार्य की उत्पादकता भी बढ़ती हैं। अतः बुनियादी ढांचे में बदलाव लाकर कार्यकर्ता की चुनौतियों को कम किया जा सकता है एवं केंद्र पर आने वाले बच्चों, अभिभावकों, महिलाओं एवं समुदाय के अन्य लोगों को केंद्र की ओर आकर्षित किया जा सकता है।


शालापूर्व शिक्षा संबन्धित प्रशिक्षण की कमी-


3-6 वर्ष के बच्चों को शालापूर्व शिक्षा प्रदान करना तथा बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, रचनात्मक एवं भाषा विकास को सुनिश्चित करना आंगनवाड़ी (ICDS) का प्रमुख उद्देश्य हैं तथा इस कार्य का सारा उत्तरदायित्व कार्यकर्ता पर है। परंतु अत्यधिक कार्यभार होने एवं शालापूर्व शिक्षा के विभिन्न पहलुओं की कम समझ होने के कारण कार्यकर्ता शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों को पूरे समय नहीं करती या कर पातीं हैं। यदि शालापूर्व शिक्षाके पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर, बुनियादी ढांचे (जैसे- खेलने की सामग्री,रंगीन पुस्तकें, ड्राइंग एवं पेंटिंग की सामग्री आदि) में परिवर्तन लाकर एवं कार्यकर्ताओं मेंसतत् प्रशिक्षण के माध्यम से पाठ्यक्रम की समझ बनाकर नियोजित तरीके से लागू किया जाए तो इससे कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा एवं बच्चों का सर्वांगीण विकास भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।


 अपर्याप्त पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन-


कार्यकर्ताओं की चुनौतियों को कम करने एवं काम में गुणवत्ता लाने के लिए सतत् पर्यवेक्षण एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।पर्यवेक्षकों को चाहिए की वो कार्यों का सही तरीके से निरीक्षण करें एवं कार्यकर्ता को उचित मार्गदर्शन दें एवं उन्हे प्रेरित करें न की उनके कार्यों में कमी निकालें। ऐसा प्रायः देखा गया है की पर्यवेक्षक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के काम में कमी निकालतें है एवं सुधारने के लिए आदेशित करती/करतें है। यदि यही आदेश सहयोग एवं प्रेरणा में बदल जाता है तो काम में गुणवत्ता भी आएगी एवं कार्यकर्ताओं की चुनौतियाँ भी कम होंगी। कार्यकर्ताओं को पर्यवेक्षकोंके स्थान पर मेंटर की आवश्यकता है।


सामुदायिक भागीदारी की कमी-


‘आंगनवाड़ी गाँव एवं समुदाय की संपत्ति है न की सरकार की’- ऐसी भावना समुदाय में स्फुटित हो यह आवश्यक है। ऐसा देखा जाता है की गाँव के लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से बहुत ही कम मतलब होता है। असामाजिक तत्व आंगनवाड़ी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। सामाजिक विकास की योजनाओं में समुदाय की भागीदारी कम होती और लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेते। आंगनवाड़ी संबन्धित समस्या के निवारण के लिए गाँव से लोग मदद के लिए नहीं आते। इन सब का प्रभाव कार्यकर्ता के काम पर भी पड़ता है एवं उनका काम अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता हैं। सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम चलाकरयदि लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से जोड़ा जाए तो सही अर्थ में विकास संभव हो पाएगा। यह आवश्यक है की आंगनवाड़ी को लेकर समुदाय में (खासकर महिलाओं में) अपनत्व की भावना विकसित की जाए एवं इसकी बागडोर उनके हाथ में दे दी जाय। इसके लिए हर आंगनवाड़ी पर विद्यालय प्रबंधन समिति की तरह आंगनवाड़ी प्रबंधन समिति की स्थापना होनी चाहिए।


आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ICDS एवं समुदाय को जोड़ने का कार्य करती है। ये लाभार्थियों के घर तक ICDS की सेवाएँ पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाती हैं परंतु महिला एवं बाल विकास विभाग को चाहिए की वो कार्यकर्ता के मानदेय संबंधी समस्या को दूर करे एवं उनके कार्यों एवं जिम्मेदारियों के संबंध मे सतत् प्रशिक्षण के माध्यम से सटीक ज्ञान प्रदान करें ताकि इनकी चुनौतियाँ कम हो सकें एवं वो अपने काम को प्रभावी तरीके से कर पाएँ।


इस कार्य में गैर सरकारी संस्थान एवं कंपनियों के CSR की मदद ली जा सकती है। कुछ संस्थाओं ने कार्यकर्ताओं, अंगनवाड़ियों, एवं सामुदायिक भागीदारी को सुदृढ़ बनाया है, इस क्षेत्र में नवाचार किया है एवं ICDS की सेवाओं को अच्छे तरीके से धरातल पर उतारा है। परंतु यह बहुत ही सीमित क्षेत्र में है एवं इसका विस्तार सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों तक होना आवश्यक है। महिला एवं बाल विकास विभाग को चाहिए की वो इन क्षेत्रों में होने वाले नवाचारों एवं अच्छे कार्यों को अपनाएं एवं नीतियों में बदलाव लाकर ICDS की कार्य प्रणाली को सुदृढ़ बनाए। जब तक की नीतियों में बदलाव नहीं लाया जाता एवं कार्यकर्ता में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं किया जाता तब तक ICDS की योजनाओं को प्रभावी तरीके से लाभार्थियों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है।


 


कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घर पर स्वस्थ नियम

आयुष मंत्रालय ने निवारक उपायों के रूप में जो सिफारिश की है, वह स्वस्थ आहार नियम का भाग है।


कोविड-19 का प्रकोप, इसके निर्बाध रूप से तेजी से बढ़ते मामले और लॉकडाउन जैसी अप्रत्याशित स्थिति के अचानक उभरने ने सभी को एक स्थान पर लाकर रोक दिया है – और यह स्थान कोई और नहीं हमारे घर हैं। अब, हमारे एक घर में ही सभी चीजें जैसे ऑफिस, क्लासरूम, बेडरूम, रेस्तरां आदि समां गए हैं। अब इंटरनेट के माध्यम से शिखर सम्मेलन और सम्मेलन भी घर से ही हो रहे हैं।


लॉकडाउन में पूरा समय घर में रहना स्वास्थ्य के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा कर रहा है जिसमें आहार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्तमान परिदृश्य में, हमारी शारीरिक गतिविधियां अपेक्षाकृत कम हो गई हैं, जबकि भोजन का सेवन बढ़ गया है, जिससे हमारे आहार की संचालन शक्ति असंतुलित हो गई हैं, जिससे कईं स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। हालांकि, अगर हम उन अवसरों पर नज़र डालें, जो लॉकडाउन के दौरान प्रकृति द्वारा हमारी गलत जीवनशैली को ठीक करने के लिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं, वो प्रचूर हैं। हम जीवन जीने के आयुर्वेदिक तरीके का अनुसरण करके अपने जीवन को अनुशासित कर, अपने शरीर से अनावश्यक भार को समाप्त कर सकते हैं। हमारे लिए यह सही समय है कि हम अपनी आदतों पर गौर करें, अपनी दिनचर्या को बेहतर बनाने के लिए उनमें बदलाव लाएं, जो एक ‘आदर्श स्वास्थ्य’ की ओर ले जा सकती हैं।


एक स्वस्थ आहार नियम का पालन करें, जो भोजन के सही विकल्पों से मिलकर बना हो और इससे भी महत्वपूर्ण है कि हम क्या, कैसे, कब और कहां खाते हैं, हमारी प्रतिरक्षा में सुधार करेगा। इसके विपरीत, गलत आदतें और भोजन के विकल्प, हमारी प्रतिरक्षा को कमज़ोर करते हैं, हमें वायरस के संक्रमण और रोगों का आसान शिकार बना देते हैं। प्रत्येक परिस्थिति में स्वस्थ रहने के लिए, ‘सही आहार’ ‘सही मंत्र’ है।


महर्षि आयुर्वेद के अध्यक्ष, श्री आनंद श्रीवास्तव कहते हैं, आयुर्वेद के अनुसार, आहार हमारे स्वास्थ को सुधारने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रतिरक्षा को मजबूत रखने में भी सहायक है। आहार के महत्व पर ज़ोर देते हुए महर्षि चरक उल्लेख करते हैं, यदि किसी का आहार अच्छा है तो उसे किसी औषधि की आवश्यकता नहीं होगी। उन्होंने आगे उल्लेख किया, यदि किसी का आहार अच्छा नहीं तो उसे भी किसी औषधि की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि उसके लिए कोई औषधि काम नहीं करेगी। वर्तमान लॉकडाउन के परिदृश्य में जब हम अपने घरों में रह रहे हैं, तो हमारे शरीर के प्रकार और पाचन की दृष्टि से भोजन का चयन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी शारीरिक गतिविधियां तुलनात्मक रूप से कम हो रही हैं।


उन्होंने आगे कहा, यह जानने के अलावा कि क्या खाना चाहिए, यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि कितना खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कैसे खाना चाहिए। आयुर्वेद उचित तर्क के साथ बहुत ही वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीके से इनकी व्याख्या करता है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि कोई भी जो कुछ भी खाता है, वह उसके तंत्र में ठीक तरह से पचना और आत्मसात होना चाहिए। ताकि शरीर के उतकों का संतुलित रूप से उत्पादन हो सके, जो शरीर के रख-रखाव, सर्वोत्तम प्रदर्शन और स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।


आहार, प्रतिरक्षा और स्वास्थ के महत्व और उनके अच्छे अंतर्संबंधों को ध्यान में रखते हुए जो कि आयुर्वेद के अनुसार एक ‘आदर्श स्वास्थ्य’ का गठन करते हैं, हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने नागरिकों से आयुष मंत्रालय द्वारा जारी प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने वाले दिशा-निर्देशों का पालन करने का आग्रह किया है, ताकि ये इस लड़ाई का पूरक बन सके। मंत्रालय द्वारा जो दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं, उनकी जड़ें आयुर्वेद विज्ञान में हैं, जो स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए प्रकृति के उपहारों के उपयोग को बढ़ावा देते हैं।


 


डॉ. सौरभ शर्मा बताते हैं, चिकित्सा अधीक्षक, महर्षि आयुर्वेद, अस्पताल “कईं खाद्य पदार्थों के मिश्रण/मेल से हमारा आहार बनता है, और भोजन को औषधि की तरह ही शक्तिशाली माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, ठीक से सेवन करने पर भोजन औषधि है। यदि हम अपने शरीर विज्ञान (शरीर प्रकार) के अनुकूल भोजन करते हैं और पाचन को बढ़ाने वाली सात्विक दिनचर्या का पालन करते हैं, तो हमारे शरीर को लाभ मिलेगा और हमें प्रसन्न और स्वस्थ्य रहने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, संतुलित आहार, उचित नींद भी हमें स्वस्थ्य रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके विपरीत गहरी नींद की कमी से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मधुमेह, मोटापा और हृदय रोग के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।”


 


उन्होंने आगे कहा, “लॉकडाउन के वर्तमान परिदृश्य में, हमें पौष्टिक भोजन और नियमित जीवनशैली दोनों का संतुलन बनाना होगा। जिसमें सही समय पर भोजन करना, उचित नींद, आवश्यक व्यायाम, योग और ध्यान सम्मिलित हैं। लॉकडाउन का दौर खुद को अनुशासित करने का एक अवसर है जो एक स्वस्थ्य जीवन सुनिश्चित करेगा। और यह एक स्वस्थ आहार नियम का पालन करके किया जा सकता है।”


स्वस्थ खाद्य पदार्थों के साथ हमें समग्र स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए कुछ रसायनों (दीर्घायु को बढ़ावा देने का विज्ञान और इष्टतम स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उपयोग किए जाने वाले हर्बल उपचार) को अपने आहार में शामिल करना होगा। इसके साथ ही, रसायन हमारे शरीर और मस्तिष्क में ऊर्जा के संरक्षण, परिवर्तन और कायाकल्प से संबंधित हैं। इसलिए, यदि हम अपने आहार में कुछ विशेष रसनाओं को सम्मिलित करते हैं, तो इससे न केवल हमें हमारे आहार को संतुलित बनाने में सहायता मिलती है बल्कि यह हमारे समग्र स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में भी योगदान देता है। इस तरह के रसयानों में से एक महर्षि अमृत कलश है, जो स्वास्थ, दीर्घायु और संपूर्ण कल्याण को पुनः स्थापित करने के लिए जाना जाता है। इसमें सभी प्राकृतिक और शक्तिशाली जड़ी बूटियों का एक मिश्रण है। - जीवन का यह अमृत हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को बहाल करने में सहायता करेगा, जिससे सभी तरह से एक स्वस्थ जीवन जीना संभव होगा।


रह्यूमेटाॅयड आर्थराइटिस के मरीज अधिक सर्तकता बरतें

कोरोनावायरस (कोविड -19) के मौजूदा प्रकोप के मद्देनजर आर्थोपेडिक चिकित्सा विशेषज्ञों ने रह्युमेटाॅयड आर्थराइटिस (गठिया) के मरीजों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी है क्योंकि गठिया जैसे रह्युमेटिक रोगों से ग्रस्त लोगों में संक्रमण होने और अधिक गंभीर संक्रमण होने का अधिक खतरा होता है। 
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन एवं आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन (एसीएफ) के अध्यक्ष डा. (प्रो.) राजू वैश्य ने आज बताया कि गठिया जैसी रह्यूमेटोलाॅजी से संबंधित बीमारियों के जो मरीज हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन या अन्य स्टेराॅयड, बाॅयोलाॅजिक्स या जैनुस किनासे (जेएके) इनहिबिटर्स जैसी दवाइयां ले रहे हैं उनमें रोग प्रतिरोधक (इम्युन) क्षमता कम हो जाती है। इन दवाइयों का उपयोग जोड़ों में दर्द एवं सूजन को कम करने के लिए होता है। यही नहीं, जिन मरीजों में रह्युमेटाॅयड रोग का समुचित तरीके से नियंत्रण नहीं किया गया है उनमें भी संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम होती है और साथ ही साथ उनमें रह्युमेटाॅयड आर्थराइटिस की सभी तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।



नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन एवं आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन (एसीएफ) के अध्यक्ष डा. (प्रो.) राजू वैश्य ने आज बताया कि  अगर रह्युमेटाॅयड के मरीजों में अचानक ही स्टेराॅयड की खुराक कम कर दी जाए या बंद कर दी जाए तो यह उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में मरीजों को चिकित्सक से समुचित परामर्श करना चाहिए और अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए चिकित्सक की सलाह का पालन करना चाहिए।


Dr. (Prof.) Raju Vaishya


डा. (प्रो.) राजू वैश्य, अध्यक्ष, आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन (एसीएफ) 


अमरीका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केन्द्र (सीडीसी) के अनुसार प्राप्त आकडों के अनुसार अनेक देषों में कोविड - 19 के कारण अस्पताल में भर्ती होेने वाले मरीजों को क्लोरोक्वीन या हाइड्रोसी क्लोरोक्वीन दिया जा रहा है। ब्रिटेन के नेशनल रह्युमेटाॅयड आर्थराइटिस सोसायटी (नार्स) के अनुसार हालांकि क्लोरोक्वीन एवं हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन काफी हद तक सुरक्षित हैं लेकिन लंबे समय इन दवाइयों के सेवन के कारण लीवर एवं किडनी के मरीजों में कार्डिएक विषाक्तता के दुष्प्रभाव तथा रोग प्रतिरक्षण क्षमता में कमी जैसी समस्याएं प्रकट हुई हैं। इसके अलावा अभी तक कोरोनावायरस के संक्रमण भी प्रकट हुए हैं। इसके अलावा अभी तक ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं जिसके आधार पर कोरोनावायरास के संक्रमण के उपचार के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन के उपयोग, उसकी खुराक की मात्रा और अवधि के बारे में कोई दिशा निर्देशा दिया जा सके। इसके अलावा कोविड-19 के उपचार के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन की समुचित खुराक एवं अवधि के बारे में कोई भी वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं है।
गौरतलब है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन एवं क्लोरोक्वीन का उपयोग मलेरिया एवं रह्युमेटाॅयड आर्थराइटिस जैसी सूजन पैदा करने वाली कुछ बीमारियों में होता रहा है। इस समय कोरोना वायरस के इलाज में क्लोरोक्वीन एवं हाइड्राक्सी क्लोरोक्वीन का उपयोग हो रहा है और इन दवाइयों की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी होने की भी खबर है।
डा. (प्रो.) राजू वैश्य ने कहा कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है और इसके कई दुष्प्रभाव होते हैं जिनमें मतली, पेट में एंठन और डायरिया आदि शामिल हैं। इसकेे गंभीर दुष्प्रभावों में आंखों पर प्रभाव (रेटिनोपैथी) और हृदय पर प्रभाव शामिल है। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का दुष्प्रभाव बच्चों पर भी देखा गया है इसलिए मौजूदा समय में कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज एवं रोकथाम के लिए किसी को भी चिकित्सक के परामर्श के बिना हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का उपयोग नहीं करना चाहिए। 


बच्चों को कोरानावायरस के संक्रमण से दूर रखने के लिए स्कूल दे रहे हैं टिप्स


नोवेल कोरोनावायरस के प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन किया गया हैै। प्रधानमंत्री ने लोगों को इस दौरान घर में ही रहने की सलाह दी है। ऐसे में माता—पिता के सामने दोहरी चुनौती है कि उन्हें खुद को बाहर निकलने से रोकना है और साथ ही साथ अपने बच्चों को घर में ही रहने के लिए समझाना है।
स्कूल बंद होने पर बच्चे चाहते हैं कि वे घर के बाहर जाकर दोस्तों के साथ मस्ती करें। उन्हें यह देखकर अजीब लग सकता है कि जब स्कूल बंद है तो उन्हें खेलने के लिए घर से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है या मम्मी – पापा उन्हें लेकर घूमने के लिए बाहर नहीं जा रहे हैं। अगर बच्चे बाहर खेलने जाने की जिद करें और माता-पिता उन्हें बाहर जाने से मना करें तो वे गुस्से में आ जाते हैं। ऐसे में बच्चों को प्यार से समझाना जरूरी है।
माता—पिता इस समस्या का सामना कैसे करें इसके लिए स्थित द विजडम ट्री स्कूल की ओर से माता—पिता को वाट्सअप और सोशल मीडिया के जरिए वीडियो एवं अन्य जानकारियां भेजकर उन्हें समझा रहा है।
इस पहल को शुरू करने वाले स्कूल नौएडा स्थित द विजडम ट्री स्कूल के अध्यक्ष के के श्रीवास्ता ने इस मौके पर कहा कि हालांकि आज सबके सामने खासकर माता—पिता के सामने मुश्किल वक्त है लेकिन इस वक्त का लाभ उठाकर माता—पिता बच्चों को ड्राइंग बनाने, घर के समान से खिलौने और मॉडल बनाने, डांस — म्यूजिक सिखने, अच्छी किताबें पढ़ाने आदि वैसे काम में वयस्त रख सकते हैं जिनसे बच्चों का कुछ सीखें भी और उनका मनोरंजन भी हो।


श्री के के श्रीवास्तव ने उम्मीद जताई की लाकडाउन की अवधि पूरा होने तक देश में सबकुछ सामान्य हो जाएगा। यह धैय और संयम रखने का समय है। 


द विजडम ट्री स्कूल की प्रिसिपल सुनीता ए शाही ने माता—पिता को यह भी सलाह दी है कि बच्चों को घर से बाहर जाने से रोकने के लिए उनके मन में कोरोना वायरस को लेकर अतिरिक्त भय पैदा नहीं करें बल्कि उन्हें सही जानकारी दें। बच्चे को कोरोना वायरस के खतरों के बारे में आसान शब्दों में प्यार से बताएं कि वायरस कैसे फैलता है और इसके खतरे को कैसे कम कर सकते हैं जैसे कि हाथ धोते हुए उन्हें ढेर सारे बुलबुले दिखाएं। कोरोना वायरस के बारे में बच्चे को बताना जब पूरा हो जाए तो उनसे तुरंत किसी ऐसे टॉपिक पर बात शुरू कर दें जो हल्का-फुल्का हो। बच्चों के साथ ये सभी बातें मुस्कुराहट और हंसी.मजाक के साथ करनी चाहिए या जितना हो सके बातचीत को हल्का रखना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को घर पर ही मनोरंजक गतिविधियों एवं घर पर खेले जाने वाले खेलकृकूद में व्यस्त रखें ताकि वे घर से बाहर जाने के बारे में सोचें ही नहीं।


उन्होंने माता-पिता को सलाह दी कि माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को किसी भी संक्रमित व्यक्ति के आस-पास नहीं जाने दें। खांसी-जुकाम और बुखार से पीड़ित लोगों से उन्हें दूर रखें। इसके अलावा माता-पिता को चाहिए कि अपने घर को स्वच्छ रखें और अगर समय हो तो सुबह-शाम पूरे घर को और आसपास की जगह को कीटाणुनाशक से साफ करें। बच्चों के खिलौन भी कीटाणुनाशक से साफ करें। उनके नाखूनों को भी साफ रखें क्योंकि उसमें छिपे वायरस बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बच्चों को साबुन-पानी से लगातार हाथ धोना सिखाएं।


वैज्ञानिकों ने जगायी चीते के पुनरुद्धार की उम्मीद


नई दिल्ली, 25 मार्च, 2020 अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक संयुक्त अध्ययन में भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत से लुप्त हो चुके चीते को दोबारा देश में उसके वन्य आवास में स्थापित करने की संभावनाओं का आकलन किया है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जानने का प्रयास किया है कि अफ्रीकी चीता भारतीय परिस्थितियों में किस हद तक खुद को अनुकूलित कर सकता है। शोधकर्ताओं ने इस आनुवांशिक अध्ययन में एशियाई और अफ्रीकी चीतों के विकास क्रम में भी भारी अंतर का पता लगाया है।


इस अध्ययन में कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने विलुप्त हो चुके भारतीय चीते के स्रोत का पता लगाया है। अध्ययन से पता चलता है कि विकास के क्रम में दक्षिण-पूर्व अफ्रीकी और एशियाई चीता दोनों का उत्तर-पूर्वी अफ्रीकी चीते के बीच विभाजन 100,000-200,000 साल पहले हुआ है। लेकिन दक्षिण-पूर्वी अफ्रीकी और एशियाई चीता एक दूसरे से 50,000-100,000 साल पहले अलग हुए थे।


अध्ययन में शामिल कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के डॉ गाई जैकब्स के अनुसार “यह मौजूदा धारणा के विपरीत है कि एशियाई और अफ्रीकी चीतों के बीच विकासवादी विभाजन मात्र 5,000 वर्षों का ही है।”  हालाँकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में एशियाई और अफ्रीकी प्रजातियों के चीतों के बीच प्रजनन के निर्णय को निर्धारित करने वाले प्रमुख मापदंडों में यह देखना अहम होगा कि चीतों की दोनों आबादी परस्पर रूप से कितनी अलग हैं।


सीसीएमबी के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ के. थंगराज ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “हमने तीन अलग चीता नमूनों का विश्लेषण किया है; पहला नमूना चीते की त्वचा का था, जिसके बारे में माना जाता है कि उसे 19वीं शताब्दी में मध्य प्रदेश में मार दिया गया था, जो कोलकाता के भारतीय प्राणी सर्वेक्षण की स्तनपायी गैलरी से प्राप्त किया गया है। दूसरा नमूना मैसूर प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से प्राप्त 1850-1900 के समय के चीते की हड्डी का नमूना है। जबकि, तीसरा नमूना नेहरू जूलॉजिकल पार्क, हैदराबाद से प्राप्त वर्तमान में पाये जाने वाले एक आधुनिक चीते का रक्त नमूना है। सीसीएमबी की प्राचीन डीएनए सुविधा में दोनों ऐतिहासिक नमूनों (त्वचा और हड्डी) से डीएनए को अलग किया गया है और उसका विश्लेषण किया गया है।”


अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता डॉ नीरज राय ने बताया कि “हमने इन दो नमूनों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और वर्तमान में पाये जाने वाले चीतों के नमूनों को क्रमबद्ध किया है और अफ्रिका व दक्षिण-पश्चिम एशिया के विभिन्न भागों में पाये जाने वाले 118 चीतों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का विश्लेषण किया है। डॉ थंगराज ने बताया कि “भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के संग्रहालय से प्राप्त नमूने एवं नेहरू प्राणी उद्यान के आधुनिक नमूने पूर्वोत्तर अफ्रीकी मादा वंश के हैं, जबकि मैसूर के संग्रहालय से प्राप्त नमूने दक्षिण-पूर्वी अफ्रीकी चीतों के साथ घनिष्ठ संबंध दर्शाते हैं।”


चीता, जो बिल्ली की सबसे बड़ी प्रजाति है, की आबादी में लगातार कमी हो रही है। वर्तमान में इन बिल्लियों की सबसे बड़ी आबादी अफ्रीका में पायी जाती है, जिन्हें अफ्रीकी चीता कहा जाता है। दूसरी ओर, सिर्फ ईरान में मात्र 50 एशियाई चीते बचे हैं। लगभग एक दशक से भी अधिक समय से भारत में इस पर विचार किया जा रहा है कि क्या देश में चीतों को पुन: जंगलों में लाना चाहिए! इस अध्ययन में यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्या अफ्रीकी चीता भारतीय परिस्थितियों में खुद को ढाल सकता है। इस वर्ष के आरंभ में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को देश में दक्षिणी अफ्रीकी चीते को अनुकूल आवास में रखने की अनुमति दी थी।


यह अध्ययन सीसीएमबी के अलावा बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, युनाइटेड किंगडम, जोहान्सबर्ग विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रिका, नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय, सिंगापुर के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। वैज्ञानिकों ने एशियाई और दक्षिण अफ्रिकी चीतों के विकास क्रम के विवरण को गहराई से समझने के लिए माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का विश्लेषण किया है। उन्होंने पाया कि क्रमिक विकास के साथ चीतों की ये दोनों आबादी एक-दूसरे से भिन्न होती गईं। यह अध्ययन हाल ही में शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।


सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश कुमार मिश्र ने कहा है कि यह अध्ययन एशियाई चीतों की आनुवांशिक विशिष्टता स्थापित करने की दिशा में साक्ष्य प्रदान करता है और उनके संरक्षण के लिए प्रयासों में मददगार हो सकता है।


वैज्ञानिकों ने किया मधुमक्खियों के छत्ते में सुधार, मिलेगा गुणवत्ता पूर्ण शहद


पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत शहद उत्पादन और उसके निर्यात के मामले में तेजी से उभरा है। लेकिन, शहद उत्पादन में उपयोग होने वाले छत्तों का रखरखाव एक समस्या है, जिसके कारण शहद की शुद्धता प्रभावित होती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने मधुमक्खी-पालकों के लिए एक ऐसा छत्ता विकसित किया है, जो रखरखाव में आसान होने के साथ-साथ शहद की गुणवत्ता एवं हाइजीन को बनाए रखने में भी मददगार हो सकता है। 


केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ), चंडीगढ़ और हिमालय जैव-संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी), पालमपुर के वैज्ञानिकों ने मिलकर मधुमक्खी पालन में उपयोग होने वाले पारंपरिक छत्ते में सुधार करके इस नये छत्ते को विकसित किया है। इस छत्ते की खासियत यह है कि इसके फ्रेम और मधुमक्खियों से छेड़छाड़ किए बिना शहद को इकट्ठा किया जा सकता है।


नये विकसित छत्ते का भीतरी (बाएं) और बाहरी दृश्य (दाएं)


पारंपरिक रूप से हनी एक्सट्रैक्टर की मदद से छत्ते से शहद प्राप्त किया जाता है, जिससे हाइजीन संबंधी समस्याएँ पैदा होती हैं। इस नये विकसित छत्ते में भरे हुए शहद के फ्रेम पर चाबी को नीचे की तरफ घुमाकर शहद प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा करने से शहद निकालने की पारंपरिक विधि की तुलना में शहद सीधे बोतल पर प्रवाहित होता है। इस तरह, शहद अशुद्धियों के संपर्क में आने से बच जाता है और शुद्ध तथा उच्च गुणवत्ता का शहद प्राप्त होता है।


आईएचबीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस.जी.ईश्वरा रेड्डी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस छत्ते के उपयोग सेबेहतर हाइजीन बनाए रखने के साथ शहद संग्रहित करने की प्रक्रिया में मधुमक्खियों की मृत्यु दर को नियंत्रित कर सकते हैं। इस छत्ते के उपयोग से पारंपरिक विधियों की अपेक्षा श्रम भी कम लगता है। मधुमक्खी-पालक इस छत्ते का उपयोग करते है तो प्रत्येक छत्ते से एक साल में 35 से 40 किलो शहद प्राप्त किया जा सकता है। मकरंद और पराग की उपलब्धता के आधार पर यह उत्पादन कम या ज्यादा हो सकता है। इस लिहाज से देखें तो मधुमक्खी का यह छत्ता किफायती होने के साथ-साथ उपयोग में भी आसान है।”



नये विकसित फ्रेम के कोशों में मधुमक्खियों द्वारा भरा गया शहद, जो मोम (सफेद) से सील है


शहद उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में 8वाँ प्रमुख देश है, जहाँ प्रतिवर्ष 1.05 लाख मीट्रिक टन शहद उत्पादित होता है। राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1,412,659 मधुमक्खी कॉलोनियों के साथ कुल 9,580 पंजीकृत मधुमक्खी-पालक हैं। हालांकि, वास्तविक संख्या बहुत अधिक हो सकती है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2018-19 में 732.16 करोड़ रुपये मूल्य का 61,333.88 टन प्राकृतिक शहद का निर्यात किया था। प्रमुख निर्यात स्थलों में अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मोरक्को और कतर जैसे देश शामिल थे।


आईएचबीटी ने खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग(केवीआईसी) के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन के लिए कलस्टरों की पहचान की है, जहाँ मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देकर किसानों की आमदनी बढ़ायी जा सकती है। आगामी पाँच वर्षों में हिमाचल प्रदेश में केवीआईसी और मधुमक्खी कलस्टरों के साथ मिलकर आईएचबीटी का लक्ष्य 2500 मीट्रिक टन शहद उत्पादन करने काहै।


वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद से संबद्ध आईएचबीटी अरोमा मिशन, फ्लोरीकल्चर मिशन और हनी मिशन के अंतर्गत मधुममक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। इसके तहत प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और मधुमक्खी के छत्ते तथा टूल किट वितरित किए जा रहे हैं, ताकि रोजगार और आमदनी के असवर पैदा किए जा सकें।


बच्चों को कारोना वायरस से डराएं नहीं बल्कि उन्हें जागरूक बनाएं


नौएडा।
कोरोना वायरस के प्रकोप ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है। माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। नौएडा के उदगम प्री स्कूल की चेयरपर्सन दीपा भारद्वाज सिंह ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पिछले कुछ दिनों से स्कूल बंद हैं लेकिन बच्चों को इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए और घर में सुरक्षित रहते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित वे लोग हैं जिनके घर में बच्चे हैं। स्कूल के बंद होने पर बच्चों को घर में रखना आम तौर पर मुश्किल होता है।
सुश्री दीपा भारद्वाज सिंह ने कहा कि कोरोना वायरस की वजह से स्कूल बंद हैं लेकिन बच्चों को घर में रहने को कहा जा रहा है। स्कूल बंद होने पर बच्चे चाहते हैं कि वे घर के बाहर जाकर दोस्तों के साथ मस्ती करें। उन्हें यह देखकर अजीब लग सकता है कि जब स्कूल बंद है तो उन्हें खेलने के लिए घर से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है या मम्मी - पापा उन्हें लेकर घूमने के लिए बाहर नहीं जा रहे हैं। सबलोग घर में रूके हुए हैं। बच्चे अगर बाहर खेलने जाने की जिद करें और माता-पिता उन्हें बाहर जाने से मना करेंगे तो वह चिड़चिड़े हो जाएंगे। ऐसे में उनका साथ देना होगा। ऐसे में बच्चों को प्यार के साथ समझाना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि बच्चों को घर से बाहर जाने से रोकने के लिए कोरोना वायरस को लेकर भय पैदा नहीं करें बल्कि उन्हें सही जानकारी दें। बच्चे को कोरोना वायरस के खतरों के बारे में आसान शब्दों में प्यार से बताएं कि वायरस कैसे फैलता है और इसके खतरे को कैसे कम कर सकते हैं जैसे कि हाथ धोते हुए उन्हें ढेर सारे बुलबुले दिखाएं। कोरोना वायरस के बारे में बच्चे को बताना जब पूरा हो जाए तो उनसे तुरंत किसी ऐसे टॉपिक पर बात शुरू कर दें जो हल्का-फुल्का हो। बच्चों के साथ ये सभी बातें मुस्कुराहट और हंसी.मजाक के साथ करनी चाहिए या जितना हो सके बातचीत को हल्का रखना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को घर पर ही मनोरंजक गतिविधियों एवं घर पर खेले जाने वाले खेलकृकूद में व्यस्त रखें ताकि वे घर से बाहर जाने के बारे में सोचें ही नहीं। उन्हें पढ़ने के लिए वैसी किताबें दी जा सकती है जिससे उनका मनोरंजन भी हो और उनका ज्ञानवर्धन भी हो सके।
उन्होंने माता-पिता को सलाह दी कि माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को किसी भी संक्रमित व्यक्ति के आस-पास नहीं जाने दें। खांसी-जुकाम और बुखार से पीड़ित लोगों से उन्हें दूर रखें। इसके अलावा माता-पिता को चाहिए कि अपने घर को स्वच्छ रखें और अगर समय हो तो सुबह-शाम पूरे घर को और आसपास की जगह को कीटाणुनाशक से साफ करें। बच्चों के खिलौन भी कीटाणुनाशक से साफ करें। उनके नाखूनों को भी साफ रखें क्योंकि उसमें छिपे वायरस बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बच्चों को साबुन-पानी से लगातार हाथ धोना सिखाएं।
उन्होंने उम्मीद जताई की सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों से देश जल्द ही कोरोना वायरस के प्रकोप से मुक्त हो जाएगा और जल्द से जल्द देश में सबकुछ सामान्य हो जाएगा।

कोरोनो वायरस से बचने के क्या है आयुर्वेदिक उपाय

नोवेल कोरोनावायरस (कोविड 19) ने काफी लोगों को संक्रमित किया है। ऐसी स्थिति में, हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे अधिक से अधिक जानकारियां प्राप्त करें और इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतें। 
कोरोनावायरस मुख्य रूप से फेफड़ों और श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। अमलकी या अमाला (इम्बलिका आफिसिनालिस), गुडुची/गिलोय (तिनसपोरा कोर्डिफोलिया), नीम (अजाडिरचता इंडिका), कुटकी (पिक्रोरहिजा कुरोआ), तुलसी (पवित्र तुलसी) कुछ ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ हैं जो प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण और संक्रमण को रोकने में सहायक हैं। 
प्रत्येक नथुने में तिल के तेल की 2-3 बूंदें डालें और नाक के जरिए सांस लें। इससे न केवल नाक और गले के मार्ग लुब्रिकेट होंगे बल्कि भीतरी म्युकस मेम्ब्रेन भी मजबूत होगा और बाहरी चीजों को बाहर रखने में मदद मिलेगी। 
भय और नकारात्मकता से शरीर की रोग प्रतिरक्षण क्षमता कम होती है। अधिक मानसिक तनाव हमारे पाचन को भी प्रभावित करता है और इस तरह ‘‘अमा’’ का निर्माण होता है। यह विषाक्त चीज है जो कई बीमारियों को पैदा करने के लिए जिम्मेदार है।’’



स्वच्छता बनाए रखना वायरस को शरीर में प्रवेश करने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। साबुन और पानी से बार-बार हाथ धोएं, सेनेटाइजर का उपयोग करें, छींकते समय नाक को ढंकें और व्यस्त और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। घर और वातावरण को कीटाणुओं से मुक्त रखने के लिए घर में अग्निहोत्र/यज्ञ करें या हवन समाग्री (जड़ी-बूटियों का मिश्रण) जलाएं। 
शरीर को किसी भी प्रकार के बाहरी चीजों या किसी बीमारी से लड़ने के लिए मजबूत प्रतिरक्षण क्षमता जरूरी है। कोरोना वायरस मुख्य रूप से फेफड़ों और श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। रोजाना एक चम्मच च्यवनप्राश खाने से इम्युनिटी बढ़ती है, खासकर फेफड़े और श्वसन प्रणाली की। अमलकी या अमाला (इम्बलिका आफिसिनालिस), गुडुची/गिलोय (तिनसपोरा कोर्डिफोलिया), नीम (अजाडिरचता इंडिका), कुतकी (पिक्रोरहिजा कुरोआ), तुलसी (पवित्र तुलसी) कुछ ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ हैं जो प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण और संक्रमण को रोकने में सहायक है। 
आयुर्वेद में, एक अच्छा पाचन या मजबूत पाचन क्षमता रोगों से लड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ताजा अदरक खाना और अदरक की चाय, पुदीने की चाय, दालचीनी की चाय और सौंफ की चाय पीना भी अच्छा होता है।
मसालों का पेय बनाएं
आप यह नुस्खा बना सकते हैं। एक लीटर पानी लें और उसमें एक-एक चम्मच - सौंफ, जीरा, धनिया पाउडर और ताजा कसा हुआ अदरक डालें। कुछ मिनट के लिए सब को एक साथ साथ उबालें, उसे छान लें और एक थर्मस में भर कर रख ले। इसे थोड़़ा-थोड़ा करके दिन भर पीते रहें।
नींबू का गर्म शर्बत 
संतरे, अंगूर, नींबू जैसे खट्टे फल विटामिन सी के समृद्ध स्रोत हैं और इनका सेवन करना अच्छा है। एक कप गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़ लें और दिन में दो से तीन बार पिएं। गर्म पानी पीना लाभदायक है। यह आपको हाइड्रेट रखने में मदद करता है। 
आयुर्वेद में, नाक, गले, साइनस और सिर के लिए नास्य चिकित्सीय उपचार है। डॉ. 
नथुने में डालें तिल का तेल
प्रत्येक नथुने में तिल के तेल की 2-3 बूंदें डालें और नाक के जरिए सांस लें। इससे न केवल नाक और गले के मार्ग लुब्रिकेट होंगे बल्कि भीतरी म्युकस मेम्ब्रेन भी मजबूत होगा और बाहरी चीजों को बाहर रखने में मदद मिलेगी। 


स्कूल में बच्चों और प्राधानाध्यापिका के जन्म दिन का जश्न

किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दिन उसका जन्म दिवस होता है। खासकर बच्चों के जन्म दिन तो उनके माता—पिता एवं दोस्तों— रिश्तेदारों के लिए भी खास हो जाता है। नोएडा एक्सटेंशन के द विज़डम ट्री स्कूल हमेशा अपने स्कूल के बच्चों को जन्मदिन का जश्न मनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। द विज़डम ट्री स्कूल ने जन्मदिन के महत्व को बनाए रखने के लिए  शुक्रवार 28 फरवरी को अपने प्री-प्राइमरी विंग के बच्चों के लिए जन्मदिन का आयोजन किया।स्कूल ने सोमवार, 24  फरवरी को  विद्यालय की प्रधानाध्यापिका के जन्मदिन का आयोजन किया। जन्मदिन मनाने के लिए विद्यालय परिवार के अध्यापकगण व  विद्यालय प्रबंधन के सभी सदस्यों को एम. पी. हॉल में एकत्रित किया गया । केक काटने के रस्म के बाद विद्यालय परिवार के सभी सदस्य प्रधानाध्यापिका को मुबारकवाद दिया। विद्यालय के अध्यक्ष श्री के. के. श्रीवास्तव ने जन्मदिन के अवसर पर  प्रधानाध्यापिका के अच्छे स्वास्थ्य और उनकी खुशियों की तथा जीवन की सफलता की कामना की ।


शुक्रवार को बच्चों के जन्म दिवस के समारोह की शुरुआत बड़े धूम-धाम से हुई। जन्मदिन मनाने के लिए प्री-प्राइमरी विंग के सभी बच्चों को एम.पी.हॉल में एकत्रित किया गया। प्री-प्राइमरी के सभी बच्चे रंग-बिरंगें ड्रेस में आए थे। इस समारोह  का मुख्य आकर्षण एक बड़ा-सा चॉकलेट केक था। केक काटने की रस्म के बाद नन्हे बच्चें म्यूजिक की धुन पर थिरकने लगे और सभी ने बहुत मज़े किए।
विद्यालय के अध्यक्ष श्री के. के. श्रीवास्तव और प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुनीता ए. शाही ने जन्मदिन के अवसर पर सभी बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद दिया साथ ही उनकी खुशियों और सफलता की कामना की।


स्वादिष्ट होने के साथ पौ​ष्टिक भी है लिट्टी चोखा : जानिए लिट्टी के गुण

- विनोद कुमार


बिहार में कहावत है जो खाए लिट्टी चोखा, वह कभी ना खाए धोखा। लिट्टी चोखा के गुणों के कारण संभवत ऐसा कहा जाता हो। वैसे तो लिट्टी चोखा बिहारी भोजन है लेकिन आजकल दिल्ली और अन्य शहरों में भी लोकप्रिय हो रहा है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक दिल्ली के राजपथ पर आयोजित हुनर हाट में पहुंच कर बिहारी स्टाइल में लिट्टी चोखा खाए और लिट्टी चोखा खाते हुए अपनी तस्वीरें भी अपने टिव्टर हैंडल से जारी की। जिसके बाद ये तस्बीरें वायरल हो गई और तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर लिट्टी चोखा को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई।


कुछ साल पहले तक लिट्टी चोखा केवल बिहार तक ही सीमित था। सदियों से बिहार में खेतों पर काम करने वाले किसान और मजदूर अपने गमछे में लिट्टी या सत्तू बांध कर ले जाते थे और भूख लगने पर कहीं भी बैठ कर खा लेते थे। धीरे-धीरे यह शहरों में भी लोकप्रिय हुआ और शहरों में भी घरों और होटलों में बनाया जाने लगा। पिछले कुछ सालों के दौरान बिहार के मजदूरों के देश भर में फैलने के साथ धीरे-धीरे यह अन्य राज्यों के शहरों में खास तौर पर दिल्ली और मुंबई में भी लोकप्रिय होने लगे हैं। आज से करीब 35-40 साल पहले दिल्ली में लिट्टी-चोखा मिलना मुश्किल था लेकिन अब यह दिल्ली में खूब दिखने लगा है - खास तौर पर उन इलाकों में जहां बिहार के लोग रहते हैं। लक्ष्मी नगर, आनंद विहार, नौएडा, फरीदाबाद आदि इलाकों में मेट्रो स्टेशनों के पास आप सस्ते में लिट्टी-चोखा का आनंद ले सकते हैं। अपने स्वाद के कारण अब यह गैर-बिहारी लोगों में भी लोकप्रिय हो गया है।



लिट्टी चोखा आसानी से तैयार होने वाला एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है और साथ ही साथ यह सेहत के लिए भी फायेदमंद है। इसका मुख्य घटक सत्तू है जो मुख्य तौर पर बिहार में ही बनाया जाता है और इस कारण से लिट्टी चोखा वर्षों तक बिहार तक ही सीमित रहा। बिहार में भी मगध और भोजपुर क्षेत्र में इसका चलन अधिक है जबकि मिथिला में कम है। माना जाता है कि लिट्टी चोखा का गढ़ मगध (गया, पटना और जहानाबाद वाले इलाके) है।
कहा जाता है कि लिट्टी-चोखा का इतिहास मगध काल से जुड़ा है। मगध के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के दौरान सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी जैसी चीजें खाकर रहते थे। हालांकि इसके ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलते। बाद में यह मगध साम्राज्य से देश के दूसरे हिस्सों में भी फैला। यह अपनी खासियत की वजह से युद्धभूमि के दौरान खाने के लिए प्रचलन में आया। इसे बनाने के लिए किसी बर्तन की जरूरत नहीं है। इसमें पानी भी कम लगता है और ये सुपाच्य और पौष्टिक भी होता है। यह जल्दी खराब भी नहीं होता। एक बार बना लेने के बाद इसे दो-तीन दिन तक खाया जा सकता है। यहीं नहीं इसे कहीं भी खाया जा सकता है। यहां तक कि आप इसे चलते-चलने भी खाया जा सकता है। इसे रखने और खाने के लिए बर्तन की भी जरूरत नहीं होती है।
बाद में मुगल काल के समय लिट्टी को शोरबा और पाया के साथ खाए जाने का प्रचलन शुरू हुआ। लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान इसमें तब्दिली आई। अंग्रेजों ने अपनी पसंदीदा करी के साथ लिट्टी का स्वाद लिया। स्वतंत्रता आंदोलन में लिट्टी चोखा सेनानियों के लिए बनाया जाता था। 1857 के विद्रोह में सैनिकों के लिट्टी चोखा खाने का जिक्र मिलता है। ऐसे उल्लेख भी मिलते हैं कि तात्या टोपे और झाँसी की रानी के सैनिक बाटी या लिट्टी को पसंद करते थे क्योंकि उन्हें पकाना बहुत आसान था और बहुत सामानों की जरूरत नहीं पड़ती थी. 1857 के विद्रोहियों के लिट्टी खाकर लड़ने के किस्से भी मिलते हैं। कुछ पुस्तकों में बताया गया है कि 18 वीं सदी में लंबी तीर्थयात्रा पर निकले लोगों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा और खिचड़ी हुआ करता था। बिहार में आज भी काफी लोग यात्रा पर निकलने पर अपने साथ लिट्टी रख लेते हैं।
हालांकि पक्के तौर पर ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ नहीं कहा जा सकता कि लिट्टी की शुरूआत बिहार में ही हुई थी लेकिन यह अवश्य है कि यह सदियों तक मुख्य तौर पर बिहार में ही प्रचलन में रहा। आज वक्त बदलने के साथ-साथ लिट्टी चोखा को बनाने और खाने के अंदाज भी बदल गए है। इसे आग पर सेंकने की कई विधियां देश भर में चलन में रही हैं। कई जगह इसे बाटी की तरह बनाया जाता है जिसे मेवाड़ और मालवा इलाकों में दाल और चूरमा के साथ खाया जाता है। लिट्टी दुनिया के सबसे आसानी से तैयार होने वाले खानों में से एक है, इसे बनाने के लिए न तो ढेर सारे बर्तन चाहिए, न ही बहुत सारे मसाले और तेल, यहां तक कि पानी भी बहुत कम लगता है। इसकी एक खासियत यह भी है कि यह कई दिनों तक खराब नहीं होता, लेकिन लोग इसे ताजा और गर्मागर्म खाना ही पसंद करते हैं. आम तौर पर सर्दी के दिनों में लोग अलाव सेंकते हुए घर के बाहर ही रात के खाने का इंतजाम भी कर लेते हैं।
गूंथे हुए आटे की लोई को गोला बनाकर उसे चपटा कर दिया जाता है और फिर उसमें सत्तू भरा जाता है। सत्तू में पहले से ही नमक-मिर्च, लहसून अदि डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है। इसके बाद इसे कोयले या लकड़ी या गोबल के उपल के अलाव में पकाया जाता है। इसेे देसी घी में डुबोकर बैंगन के चोखे के साथ खाया जाता है। चाहे तो बिना घी में डुबोये ही खा सकते हैं। यह न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि काफी पौष्टिक होता है। यह पचने में भी आसान होता है। लिट्टी-चोखा आप सुविधा और उपलब्ध सामग्री के हिसाब से जैसे चाहे वैसे बना सकते हैं और जैसे चाहे वैसे खा सकते हैं।


आपदाओं की स्थिति में स्कूल में सुरक्षा तैयारी का जायजा लेने के लिए माॅक ड्रिल 

बच्चे देश के भविष्य हैं और देश के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि उनका वर्तमान सुरक्षित हो। बच्चों का वर्तमान सुरक्षित रहे इसके लिए ऐसा माहौल बनाना जरूरी है ताकि वे बिना किसी डर के स्कलू जाएं, स्कलू में पूरी तरह सुरक्षित रहें और पूरी तरह से सुरक्षित घर लौट सकें। स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि स्कूलों में आपदाताओं को रोकने के पक्के उपाय हों तथा आपदा होने पर बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने की व्यवस्था हो। इसके लिए सुरक्षा संबंधी प्रशिक्षण एवं जागरूकता भी जरूरी है। 
स्कूलों में आपदा होने पर बचाव इंतजामों की जांच के लिए नौएडा एक्स में 'मॉक फायर ड्रिल' का आयोजन किया गया जिसमें स्कूल इमरजेंसी प्लान की पूरी प्रक्रिया को ध्यान में रखा गया। बच्चों को आग लगने की स्थिति में बचने के उपायों के बारे में जागरूक किया गया। बच्चों को तत्काल निर्णय लेने, तत्काल प्रतिक्रिया करने तथा जीवन सुरक्षा के सभी पहलुओं के बारे में अवगत कराया गया। 
मॉक ड्रिल का उद्देश्य किसी भी आपात स्थिति में स्कूल की तत्परता की जाँच करना और साथ ही छात्रों और कर्मचारियों को बचाव कार्यों के बारे में जागरूक कराना था।
स्कूल के चेयर मैन श्री के के् श्रीवास्तव एवं प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुनीता ए शाही ने छात्रों से आपदा की स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया करने की जरूरत के बारे में बताया तथा मानसिक रूप से शांत रह कर निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने पर जोर दिया ।


भारी बटुआ युवकों को बना रहा है दर्दनाक बीमारी का शिकार

- विनोद कुमार
नई दिल्ली। जींस या पैंट की पिछली जेब में भारी बटुआ रखने की प्रवृति युवाओं को कमर और पैरों की गंभीर बीमारी का शिकार बना रही है। जींस या पैंट की पीछे वाली जेब में भारी वाॅलेट रखने से “पियरी फोर्मिस सिंड्रोम अथवा वाॅलेट न्यूरोपैथी नाम की बीमारी हो सकती है जिसमें कमर से लेकर पैरों की उंगलियों तक सुई चुभने जैसा दर्द होने लगता है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा. राजू वैश्य ने बताया कि इस इस बीमारी के शिकार वे लोग ज्यादा होते हैं जो पैंट या जींस की पिछली जेब में मोटा वाॅलेट रखकर घंटों कम्प्यूटर पर काम करते रहते हैं। आज के समय में इस बीमारी के सबसे ज्यादा शिकार युवा हो रहे है। कंप्यूटर इंजीनियरों को इस बीमारी का खतरा अधिक होता है। इस बीमारी का समय रहते उपचार नहीं होने पर सर्जरी करवानी पड़ती है।
डा. वैश्य ने बताया कि जब हम पैंट में पीछे लगी जेब में मोटा बटुआ रखते हैं तो वहां की पायरी फोर्मिस मांसपेशियां दब जाती है। इन मांसपेशियों का संबंध सायटिक नर्व से होता है, जो पैरों तक पहुंचता है। पैंट की पिछली जेब में मोटा बटुआ रखकर अधिक देर तक बैठकर काम करने के कारण इन मांसपेशियों पर अधिक दवाब पड़ता हे। ऐसी स्थिति बार-बार हो तो “पियरी फोर्मिस सिंड्रोम अथवा वाॅलेट न्यूरोपैथी नाम की बीमारी हो सकती है, जिससे मरीज को अहसनीय दर्द होता है। जब सायटिक नस काम करना बंद कर देती है तो पैरों में बहुत तेज दर्द होने लगता है। इससे जांघ से लेकर पंजे तक काफी दर्द होने लगता है। पैरों की अंगुली में सुई सी चुभने लगती है।
फोर्टिस एस्कार्ट हार्ट इंस्टीच्यूट के न्यूरो सर्जरी विभाग के निदेशक डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि मोटे पर्स को पिछली जेब में रखकर बैठने पर कमर पर भी दबाव पड़ता है। चूंकि कमर से ही कूल्हे की सियाटिक नस गुजरती है इसलिए इस दबाव के कारण आपके कूल्हे और कमर में दर्द हो सकता है। साथ ही कूल्हे की जोड़ों में पियरी फोर्मिस मांसपेशियों पर भी दबाव पड़ता है। इसके अलावा रक्त संचार के भी रूकने का खतरा होता है। हमारे शरीर में नसों का जाल है जो एक अंग से दूसरे अंग को जोड़ती हैं। कई नसें ऐसी भी होती हैं जो दिल की धमनियों से होते हुए कमर और फिर कूल्हे के रास्ते से पैरों तक पहुंचती हैं। जेब की पिछली पॉकेट में पर्स रखकर लगातार बैठने से इन नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे कई बार खून का प्रवाह रुक जाता है। ऐसी स्थिति लंबे समय तक बने रहने से नसों में सूजन भी बढ़ सकती है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डा. अभिषेक वैश बताते हैं कि पैंट या जींस की पीछे की जेब में मोटा पर्स रखने से शरीर के निचले हिस्से का संतुलन भी बिगड़ जाता है जिससे कई तरह की शारिरिक परेशानियां हो सकती हैं। पिछली जेब में मोटा वॉलेट होने की वजह से शरीर का बैलेंस ठीक नहीं बनता है और व्यक्ति सीधा नहीं बैठ पाता है। इस कारण ऐसे बैठने से रीढ़ की हड्डी भी झुकती है। इस वजह से स्पाइनल जॉइंट्स, मसल्स और डिस्क आदि में दर्द होता है। ये ठीक से काम नहीं करते हैं। इतना ही नहीं ये धीरे-धीरे इन्हें डैमेज भी करने लगते हैं।
डा. अभिषेक वैश का सुझाव है कि जहां तक हो सके घंटो तक बैठे रहने की स्थिति में पेंट की पिछली जेब से पर्स को निकालकर कहीं और रखें। नियमित रूप से व्यायाम करे। पेट के बल लेटकर पैरों को उठाने वाले व्यायाम करें। जिन्हें यह बीमारी है वे अधिक देर तक कुर्सी पर नहीं बैठे। कुर्सी पर बैठने से पहले ध्यान रखे कि बटुआ जेब में न हो। ड्राइविंग करते समय भी अधिक देर तक नहीं बैठना चाहिए। कोशिश करे छोटे से छोटे पर्स का उपयोग करे या अपना पर्स आगे की जेब में रखे। अगर आपको कमर में दर्द हो रहा हो तो चिकित्सक से मिलें। अगर यह बीमारी आरंभिक अवस्था में है तो व्यायाम से भी लाभ मिल सकता है। बीमारी के बढ़ने पर सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है जो काफी महंगी होती है।


गणतंत्र दिवस पर बच्चों ने बिखेरे देशभक्ति के रंग  

भारत ने 26 जनवरी को अपना 71 वां गणतंत्र दिवस मनाया। गणतंत्र दिवस का मुख्य आयोजन इंडिया गेट पर हुआ। साथ ही राजधानी दिल्ली समेत विभिन्न राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों में समारोह आयोजित हुए। इसके अलावा स्कूलों में बच्चों ने देशभक्ति गीत गायक एवं नृत्य नाटिकाएं प्रस्तुत करके देशभक्ति के रंग को भरा।
नौएडा एक्सटेंशन के विज़डम ट्री स्कूल में गणतंत्र दिवस के के मौके पर रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें बच्चों ने बच्चों ने “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं”, “ताकत वतन की हम से हैं”, “पुकारती है ये जमीं” और “देश मेरा प्यारा” जैसे देशभक्ति गीतों पर मन मोहक नृत्य पेश करके पूरे माहौल में देश भक्ति का रंग भर दिया। इसके अलावा बच्चों ने एकता के महत्व, देश के प्रति जिम्मेदारियां, अनुशासन, लोकतंत्र और संविधान जैसे विषयों पर बच्चों ने अपने- अपने विचार प्रस्तुत किए ।
साथ ही इस मौके पर स्कूल के छात्र-छात्राओं के बीच राष्ट्रीय चिह्न तथा देशभक्ति पर आधारित चित्रकला प्रतियोगिता तथा स्लोगन लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । कबड्डी, खो – खो और म्यूजिकल चेयर खेल में भी छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। दिन-भर के आयोजित कार्यक्रम में विद्यालय का उद्देश्य बच्चों के मन में देशप्रेम व गणतंत्र दिवस का महत्व समझाने का प्रयास करना था।
देशभक्ति के रंग में रंगे इस पूरे कार्यक्रम में विद्यालय के चेयरमैन श्री के. के. श्रीवास्तव तथा प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुनिता ए. शाही अग्रवाल उपस्थित थे । उन्होंने अपने संबोधन में युवा शक्ति पर जोर दिया और छात्र-छात्राओं को नए, बेहतर और मज़बूत भारत के निर्माण के लिए व सामाजिक बदलाव के लिए आगे आने के लिए प्रेरित किया ।
देश की एकता अखण्डता के राष्ट्रीय पर्व के तौर पर देशभर में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। दिल्ली में राजपथ पर आयोजित विशेष समारोह में देश की बढ़ती हुई सैन्य शक्ति, बहुमूल्य सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक-आर्थिक प्रगति का भव्य प्रदर्शन किया गया। इस दौरान राजपथ पर लंबी-लंबी झाकियां, परेड और आकाश में करतब दिखाते वायुसेना के विमान देखकर लोगों के मन में देशभक्ति की भावना एवं रोमांच भर गया। इस साल गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर मेसियस बोलसोनारो थे।