भारत में हर साल स्ट्रोक के 15 से 20 लाख नये मामले दर्ज किये जा रहे हैं और स्ट्रोक भारत में नयी महामारी के रूप में उभर रहा है। हर साल देश के विभिन्न इलाकों में स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि इसकी वास्तविक संख्या अधिक होने की संभावना है क्योंकि स्ट्रोक से पीड़ित कई रोगी कभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक नहीं पहुंच पाते हैं। भारत में हर दिन लगभग 3000-4000 स्ट्रोक होते हैं और 2-3 प्रतिशत से अधिक स्ट्रोक का इलाज नहीं किया जाता है। दुनिया भर में हर साल एक लाख की आबादी में स्ट्रोक के 60-100 मामले होते हैं जबकि भारत में हर साल एक लाख की आबादी में स्ट्रोक के करीब 145 मामले होते हैं। भारत में स्ट्रोक के बढ़ते मामलों का कारण यहां लोगों में बीमारी के बारे में जागरूकता और रोकथाम के तरीकों के बारे में जानकारी की कमी है।
डॉ. विवेक गुप्ता ने कहा कि स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं: इस्केमिक और हेमोरेजिक। इस्केमिक स्ट्रोक में क्लाॅट के कारण मस्तिष्क के एक हिस्से में रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है। यह दिल के दौरे के समान है जिसमें हृदय के एक हिस्से में रक्त की आपूर्ति अवरुद्ध हो जाती है और इसीलिए इसे ब्रेन अटैक कहा जाता है। दूसरे प्रकार का स्ट्रोक हेमोरेजिक होता है जिसमें मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है।
भारत में हर साल स्ट्रोक के 15 लाख से 20 लाख नये मामले सामने आते हैं
स्ट्रोक भारत में अकाल मृत्यु और विकलांगता का एक महत्वपूर्ण कारण बनता जा रहा है
दुनिया भर में हर साल स्ट्रोक से 2 करोड़ लोग पीड़ित होते हैं, जिनमें से 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है और अन्य 50 लाख लोग अपाहिज हो जाते हैं
स्ट्रोक के 90 प्रतिषत मामलों का संबंध 10 ऐसे खतरों से होता है जिनसे बचना संभव है
इस्केमिक स्ट्रोक के इलाज के तहत दवा का इंट्रावेनस इंजेक्शन द्वारा किया जाता है जिससे थक्के घुल सकते हैं। हालांकि यह एक उत्कृष्ट उपचार है, लेकिन यह केवल तभी प्रभावी होता है जब थक्का छोटा हो और स्ट्रोक होने के साढ़े चार घंटे के भीतर दिया जाए। पहले, स्ट्रोक होने के 4-5 घंटे के बाद पहुंचने वाले रोगियों के इलाज के कोई निश्चित विकल्प नहीं थे और उन्हें सहायक देखभाल से परंपरागत रूप से प्रबंधित किया जाता था।
“मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी” नामक एक नई तकनीक के कारण, इन रोगियों का इलाज स्ट्रोक होने के 6 घंटे तक और चुनिंदा मामलों में 24 घंटे तक किया जा सकता है। इस तकनीक में मस्तिश्क को खोले बिना क्लॉट को या सोख लिया जाता है या स्टेंट की मदद से मस्तिष्क से बाहर निकाल लिया जाता है। हाल ही में अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन ने भी अपने दिशानिर्देशों में संशोधन किया है और स्ट्रोक के रोगियों के लिए मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी उपचार की सिफारिश की है। इस प्रकार, उन अस्पतालों के बारे में जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण है जहां ये उपचार उपलब्ध हो सकते हैं। लेकिन स्ट्रोक होने पर केवल अस्पतालों तक पहुंचना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि स्ट्रोक के इलाज की सुविधाओं से युक्त वैसे हाॅस्पिटल तक पहुंचने की आवश्यकता है जहां पहुंचते ही मरीज का तत्काल इलाज षुरू हो जाए।
दूसरे प्रकार के स्ट्रोक में रक्तचाप बढ़ने के कारण या सेरेब्रल एन्युरिज्म के कारण रक्तस्राव हो सकता है, जिसमें मस्तिष्क की धमनी कमजोर होकर गुब्बारे की तरह उभर आती है और अंततः फट जाती है। ऐसे रोगियों में से एक तिहाई रोगियों की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है, और जो रोगी समय पर पहुंचते हैं उनमें से आधे गंभीर विकलांगता से बचे रहते हैं।
वर्षों से एन्यूरिज्म स्ट्रोक का एकमात्र उपचार मस्तिष्क की ओपन सर्जरी थी। लेकिन अब नयी तकनीकों के इजाद होने से हम मस्तिष्क को खोले बिना ही मिनिमली इंवैसिव तरीके से एन्यूरिज्म का इलाज करते हैं। पूरा इलाज पैर में एक छोटे से 3 मिमी छेद के जरिये किया जाता है जिसमें बिल्कुल नहीं या बहुत कम रक्त की हानि होती है। सामान्य शब्दों में यह पद्धति एन्यूरिज्म की “काॅइलिंग“ के रूप में जानी जाती है क्योंकि इसमें एन्यूरिज्म के इलाज के लिए प्लैटिनम कॉइल / तारों का उपयोग किया जाता है।
डाॅ. अजय बिष्ट ने कहा, ''भारत जैसे विकासशील देशों को संचारी और गैर संचारी रोगों के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है। स्ट्रोक भारत में मौत और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। किसी व्यक्ति के चेहरे, हाथ, आवाज और समय (एफएएसटी) में परिवर्तन होने पर उस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है क्योंकि उस व्यक्ति को जल्द ही किसी भी समय स्ट्रोक हो सकता है। चेहरे का असामान्य होना जैसे, मुंह का लटकना, एक हाथ का नीचे लटकना और अस्पश्ट आवाज स्ट्रोक के कुछ सामान्य लक्षण हैं। स्ट्रोक के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात समय का सदुपयोग है। एक स्ट्रोक के बाद, हर दूसरे स्ट्रोक में 32,000 मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इसलिए स्ट्रोक होने पर रोगियों को निकटतम स्ट्रोक उपचार केंद्र में जल्द से जल्द ले जाया जाना चाहिए और समय पर उपचार होने पर इसे होने से रोकने में मदद मिल सकती है। कई बार, हीमैटोमा बन जाने के बाद, जो मस्तिष्क में दबाव को बढ़ा देता है या स्ट्रोक के काफी बड़ा होने पर हमें मरीज की जान बचाने के लिए मस्तिश्क के दबाव को हटाने के लिए या मस्तिश्क के मृत भाग को निकालने के लिए न्यूरो सर्जरी करनी पड़ती है। स्ट्रोक के इलाज के लिए अस्पताल में स्ट्रोक की व्यापक देखभाल की सुविधा, आपातकालीन चिकित्सकों, न्यूरोलॉजिस्ट, इंटरवेंशनल न्यूरो-रेडियोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जनों, एनेस्थेटिस्ट और क्रिटिकल केयर चिकित्सकों की बहु-विषयक टीम होनी चाहिए। इसके अलावा समर्पित और प्रशिक्षित नर्सिंग देखभाल और फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, अस्पताल में स्ट्रोक के इलाज के लिए स्ट्रोक का निदान करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली इनडोर सीटी / एमआरआई मशीनें होनी चाहिए और विंडो पीरियड के भीतर ही उचित इलाज करने में सक्षम होना चाहिए।
वर्तमान में, भारत के कई शहरों में, स्ट्रोक रोगियों में से सिर्फ तीन प्रतिषत रोगियों को ही थक्के को हटाने के लिए थ्रोम्बो एम्बोलाइटिक दवाइयां मिल पा रही हंै क्योंकि उन्हें समय पर अस्पताल लाया जाता है। बाकी रोगियों को देर से सुपर स्पेषलिटी हाॅस्पिटल लाने और इसके कारण थक्के को घोलने वाली दवा नहीं मिल पाने के कारण वे लकवा से ग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए हमें इन रोगों, इनके सही इलाज और इनके रोकथाम के उपायों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एक सचेत प्रयास करने की जरूरत है जिससे लोगों को इन समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी।