वर्तमान समय में स्तन कैंसर के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और इसका मुख्य कारण है जीवन शैली में बदलाव। आज के समय में देर से षादी करना, बच्चों को दूध नहीं पिलाना, व्यायाम नहीं करना, षराब सेवन एवं धूम्रपान करना तथा फास्ट फुड खाने जैसे चलन तेजी से बढ़ रहे हैं और ये सभी स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।
हालांकि स्तन कैंसर के ऐसे कई कारण हैं जिन पर हमारा काबू नहीं है लेकिन ऐसे कई कारण हैं और खान-पान तथा रहन सहन की ऐसी कई आदते हैं जिनमें बदलाव लाकर स्तन कैंसर से बचा जा सकता है।
नई दिल्ली स्थित ओंकोप्लस कैंसर केयर सेंटर में वरिश्ठ स्त्री रोग विषेशज्ञ डा. बी. डी. हसिजा कहती हैं कि स्तन कैसर के खतरे को बढ़ाने वाले वैसे अनेक कारण हैं जिनको बदलना हमारे हाथ में हैं। उन्हें अनुसार स्तन कैंसर के वे जोखिम कारण, जिन्हें आप बदल सकते हैं इस प्रकार हैं:
शराब का सेवन: एक दिन में 1-2 गिलास शराब पीने से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
बच्चे नहीं पैदा करना या देर से बच्चे पैदा करना: कभी बच्चा पैदा नहीं करने वाली या 30 साल की उम्र के बाद बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है जबकि एक से अधिक बार गर्भधारण करने और कम उम्र में बच्चे पैदा करने पर स्तन कैंसर का खतरा कम होता है।
स्तनपान नहीं कराना: जो महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान नहीं कराती हैं उन्हें स्तन कैंसर का खतरा अधिक होता है।
एचआरटी और डीईएस: कुछ सालों तक एचआरटी लेने या गर्भस्राव की रोकथाम के लिए डीईएस (डाई एथाइल स्टाइलबेस्ट्रोल) लेने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
मोटापा: मोटापा का भी स्तन कैंसर से संबंध है। मोटी महिलाओं में अधिक एस्ट्रोजन उत्पन्न होते हैं जो स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
विकिरण: 30 वर्ष की आयु से पहले छाती के विकिरण के संपर्क में आने पर स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। विषेशकर स्तन के विकास के दौरान रेडियेषन देने पर इसका खतरा बढ़ जाता है।
षारीरिक श्रम नहीं करना: शारीरिक श्रम में कमी से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता है और साथ ही मोटापा और अधिक वजन के कारण इसका खतरा और बढ़ जाता है।
खराब आहार का सेवन: चीनी के अधिक सेवन से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है और फेफड़ों तक फैल जाता है।
ओंकोप्लस कैंसर केयर सेंटर के मेडिकल आॅंकोलाॅजिस्ट डा. सुमंत गुप्ता का सुझाव है कि कुछ उपाय बरत कर स्तन कैंसर से बचा जा सकता है। उनके अनुसार स्तन कैंसर से बचने के लिए महिलाओं को एचआरटी और गर्भ निरोधक गोलियों से परहेज करना चाहिए और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा सप्ताह में कम से कम 5 दिन व्यायाम करना चाहिए। आहार में फाइबर और ओमेगा 3 फैटी एसिड लेना चाहिए तथा शर्करा युक्त आहार के सेवन से बचना चाहिए। उन्हें पर्याप्त नींद लेनी चाहिए, आषावादी सोच एवं सकारात्मक दृष्टिकोण और भावनाएं रखनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से स्तन कैंसर का खतरा कम होता है।
नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में वरिश्ठ स्त्री रोग एवं प्रसूति विषेशज्ञ रह चुकी डाॅ. बी. डी. हसिजा कहती हैं कि महिलाओं को अपने स्तन का नियमित रूप से स्वयं परीक्षण करना चाहिए और स्तन या छाती में दर्द और असुविधा, स्तन में खुजली, पीठ के ऊपरी हिस्से, कंधे और गर्दन में दर्द, स्तन के आकार में परिवर्तन, स्तन में गांठ, निप्पल के आकार में परिवर्तन या संवेदनशीलता, स्तन में लाली या सूजन, कांख में सूजन या गांठ आदि स्तन कैंसर के संकेत हो सकते हैं और इसलिए अगर ऐसे लक्षण प्रकट हों तो तत्काल कैंसर विषेशज्ञ से जांच करानी चाहिए।
स्तन कैंसर से कैसे बचें
~ ~
खराब सड़कें दे रही हैं कमर दर्द: स्पाइन विशेषज्ञ
गड्ढोां से भरी सड़कों के कारण यात्रियों, विशेषकर बाइक सवारों को पीठ में दर्द और रीढ़ की हड्डी की समस्याएं हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बरसात के मौसम के आते ही, आर्थोपेडिक और स्पाइन डॉक्टरों के पास आने वाले पीठ और कमर की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो गई है।
डाॅ. निपुन बजाज कहते हैं, ''हर दिन मेरे पास इलाज के लिए आने वाले रोगियों में कम से कम 20 प्रतिशत पीठ और कमर दर्द के रोगी होती है क्योंकि उन्हें गड्ढे से भरे सड़कों पर लंबे समय तक यात्रा करनी पड़ती है।'' वह ग्रेटर फरीदाबाद में सेक्टर 86 में समर पाम्स के निवासियों को आज एक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, क्यूआरजी के रोगी शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला के तहत संबोधित कर रहे थे।
यात्रा करते समय अचानक झटका लगने पर वर्टिब्रल काॅलम में डिस्क के जोड़ों पर दबाव पड़ता है। अगर ऐसा बार-बार होता है, तो डिस्क खराब होना षुरू हो जाती है और इसके कारण कई समस्याएं हो सकती हैं। डॉ. बजाज ने कहा, ''अचानक झटके लगने से वर्टिब्रा के कोलैप्स होने का खतरा रहता है जिसके कारण कम्प्रेशन फ्रैक्चर हो सकता है। समय पर इसका इलाज नहीं कराने पर, लम्बर और सरवाइकल स्पाइन पर स्ट्रेस लगातार जारी रहता है और व्यक्ति को स्पोंडिलोसिस हो सकता है। लोगों को अपनी पीठ को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए और उचित पोष्चर में ही बैठना चाहिए।
विषेशज्ञों के अनुसार खराब सड़कों का पीठ और कमर पर सीधा प्रभाव पड़ता है और इसके कारण पीठ और कमर दर्द और इंजुरी हो सकती है। ट्रैफिक जाम होने का मुख्य कारण खराब सड़कें हैं, जो उच्च रक्तचाप, हाइपर एसिडिटी, तनाव, बेचैनी और चिड़चिड़ाहट पैदा कर सकती हैं।
डाॅ. बजाज ने कहा, ''हमारे पास पीठ और कमर दर्द का इलाज के लिए आने वाले रोगियों को हम व्यापक स्पाइनल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम में षामिल करते हैं। इस प्रोग्राम में कमर दर्द से राहत तथा रीढ़ की स्थिरता पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। जुलाई और अगस्त ऐसे महीने हैं जब कमर दर्द से संबंधित समस्याओं में इजाफा होता है। जब दर्द सहने लायक होता है तो लोग घर पर ही दर्द निवारक दवाइयां खाकर दर्द से राहत पाने की कोषिष करते हैं लेकिन चिकित्सकों के पास नहीं आते हैं लेकिन स्थिति गंभीर होने पर जब वे चिकित्सकों के पास आते हैं तक उन्हें उच्च उपचार की जरूरत पड़ती है।
~ ~
हर तीन मिनट में ब्रेन स्ट्रोक से होती है किसी न किसी की मौत
आज देश में हर साल ब्रेन स्ट्रोक के लगभग 15 लाख नए मामले दर्ज किये जाते हैं। स्ट्रोक भारत में समयपूर्व मौत और विकलांगता का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। दुनिया भर में हर साल स्ट्रोक से 2 करोड़ लोग पीड़ित होते हैं, जिनमें से 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है और अन्य 50 लाख लोग अपाहिज हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि 55 वर्ष की आयु के बाद 5 मंे से एक महिला को और 6 में से एक पुरुष को स्ट्रोक का खतरा रहता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) के एक अध्ययन के अनुसार हमारे देश में हर तीन सेकेंड में किसी न किसी व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है और हर तीन मिनट में ब्रेन स्ट्रोक के कारण किसी न किसी व्यक्ति की मौत होती है।''
न्यूरोलाॅजिस्ट डाॅ. ज्योति बाला शर्मा ने कहा, ''ब्रेन अटैक के नाम से भी जाना जाने वाला ब्रेन स्ट्रोक भारत में कैंसर के बाद मौत का दूसरा प्रमुख कारण है। मस्तिष्क के किसी हिस्से में रक्त की आपूर्ति बाधित होने या गंभीर रूप से कम होने के कारण स्ट्रोक होता है। मस्तिश्क के ऊतकों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी होने पर, कुछ ही मिनटों में, मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं जिसके कारण मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो सकती है।
डाॅ. राहुल गुप्ता ने कहा, ''किसी व्यक्ति के चेहरे, हाथ, आवाज और समय (एफएएसटी) में परिवर्तन होने पर उस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है क्योंकि उस व्यक्ति को जल्द ही किसी भी समय स्ट्रोक हो सकता है। चेहरे का असामान्य होना जैसे, मुंह का लटकना, एक हाथ का नीचे लटकना और अस्पष्ट आवाज स्ट्रोक के कुछ सामान्य लक्षण हैं और समय पर उपचार होने पर इसे होने से रोकने में मदद मिल सकती है। लेकिन स्ट्रोक की पहचान करने और रोगी को अस्पताल लाने में अक्सर ज्यादा समय लग जाता है। स्ट्रोक के रोगी को हमेशा न्यूरोलाॅजी एवं न्यूरो सर्जरी की सुविधा वाले, और जहां एमआरआई, सीटी स्कैन, ब्लड बैंक और अच्छा न्यूरो आईसीयू टीम हो, वैसे केंद्र में ले जाया जाना चाहिए।''
डाॅ. ज्योति बाला शर्मा ने कहा, ''इलाज में देरी होने पर लाखों न्यूरॉन्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मस्तिष्क के अधिकतर कार्य प्रभावित होते हैं। इसलिए, रोगी को समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करना महत्वपूर्ण है क्योंकि स्ट्रोक होने पर शीघ्र बहुआयामी उपचार की आवश्यकता होती है।''
डाॅ. राहुल गुप्ता ने कहा, ''स्ट्रोक के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात समय का सदुपयोग है। एक स्ट्रोक के बाद, हर दूसरे स्ट्रोक में 32,000 मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इसलिए स्ट्रोक होने पर रोगियों को निकटतम स्ट्रोक उपचार केंद्र में जल्द से जल्द ले जाया जाना चाहिए। मुख्य तौर पर दो तरह के स्ट्रोक होते हैं। अगर मस्तिश्क की किसी धमनी में अवरोध होने के कारण स्ट्रोक होता है तो यह इस्कीमिक स्ट्रोक का कारण बनता है। रक्त धमनी के फटने के कारण होने वाले रक्तस्राव के कारण होने वाली गड़बड़ी हेमोरेजिक स्ट्रोक का कारण बनती है।
~ ~
सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए क्या करें महिलाएं
आज बदलते समय में महिलाओं को कुछ साल पहले की तुलना में स्वस्थ और फिट रहने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना पड़ता है क्योंकि अब उन्हें अपने घरों और कार्यस्थल के प्रबंधन की दोहरी जिम्मेदारियों की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
स्वास्थ्य देखभाल
1. प्रजनन उम्र वाली महिलाओं (18 से 50 वर्ष के बीच उम्र वाली महिलाएं) को नियमित रूप से अपना पैप स्मीयर टेस्ट कराना चाहिए। इसमें डॉक्टर ओपीडी में गर्भ के मुंह से कुछ कोशिकाओं को निकालता है और कैसर पूर्व और कैंसर कोषिकाआंे का पता लगाने के लिए इसे प्रयोगशाला में भेजता है।
2. अब सर्वाइकल कैंसर का टीका उपलब्ध है और सर्विक्स (गर्भाशय का मुंह) के कैंसर से बचने के लिए इसे लगा लेना चाहिए।
3. महिलाओं को रोजाना व्यायाम करना चाहिए और कम तेल वाले स्वस्थ और अच्छी तरह से संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा यदि उनके स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान विटामिन डी और कैल्शियम की कमी का पता चलता है तो विटामिन डी और कैल्सियम सप्लिमेंट भी लेना चाहिए।
4. 40 साल की उम्र के बाद महिलाओं को स्तन कैंसर को रोकने और इसकी जल्द पहचान में मदद करने के लिए नियमित रूप से मैमोग्राफी कराना चाहिए। इसके अलावा उन्हें नियमित स्व-स्तन परीक्षण भी करना चाहिए।
5. रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को हड्डियों की ताकत की जांच करने के लिए नियमित रूप से बीएमडी (बोन मिनरल डेंसिटी) ख्हड्डी खनिज घनत्व} कराना चाहिए और हड्डियों के कमजोर पाये जाने पर डाॅक्टर इसके लिए मुंह से खाने वाली दवा दे सकता है।
6. सभी महिलाओं को रोजाना विषेशकर प्रसव के बाद योनि की मांसपेषियों को मजबूत करने के लिए केगल्स व्यायाम करना चाहिए इससे गर्भाशय को नीचे आने से रोकने और मूत्र के रिसाव को रोकने में मदद मिलती है।
~ ~
गर्भाशय से अगर अनियमित रक्तस्राव हो तो क्या करें
अनियमित या देर से पीरियड आने या एक चक्र का गायब होना पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन रोग) का संकेत हो सकता है। पीसीओडी में महिला का पीरियड अनियमित हो जाता है, मोटापा हो जाता है और गर्भ धारण करने में कठिनाई होती है और मुंहासे के साथ- साथ उसके चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों में अत्यधिक बाल की वृद्धि हो सकती है। इस स्थिति का डॉक्टर के द्वारा आसानी से इलाज कराया जा सकता है।
गर्भाशय से कम रक्तस्राव यूटेरिन टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) का भी लक्षण हो सकता है जिसमें गर्भाशय की दीवारें एक साथ चिपक जाती है और यहां तक कि फैलोपियन ट्यूब भी अवरुद्ध हो जाती है जिसके कारण इनफर्टिलिटी हो सकती है। इस स्थिति को एशेरमैन्स सिंड्रोम कहा जाता है और यह उन महिलाओं में कई बार देखा जाता है जिनकी एमटीपी (पूर्व में गर्भावस्था को चिकित्सीय रूप से समाप्त किया जाना) की गई हो। 'हिस्टोरोस्कोपी' के द्वारा इस स्थिति का आसानी से इलाज किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के तहत, गर्भाशय में बहुत छोटे कैंची डालकर हिस्टोरोस्कोप (एक छोटे पेन के आकार का उपकरण जिसे योनि के माध्यम से गर्भाशय के अंदर रखा जाता है) की निगरानी में चिपकी हुई दीवारों को एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है।
इसके अलावा यदि महिला अपने दो पीरियड के दौरान (इंटरमेनस्ट्रृअल ब्लीडिंग) रक्तस्राव होता हो स्पॉटिंग हो रही हो तो यह गर्भाशय के अंदर पॉलिप का लक्षण हो सकता है। इसे हिस्टोरोस्कोपी के द्वारा आसानी से हटाया जा सकता है। इंटरमेनस्ट्रृअल ब्लीडिंग या यौन संबंध बनाने के बाद रक्तस्राव को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए क्योंकि वे गर्भाशय ग्रीवा (गर्भ का मुंह) का पहला लक्षण हो सकते हैं !!!
इंटरमेनस्ट्रूअल ब्लीडिंग सीएसडी (सीजेरियन स्कार डिफेक्ट) के कारण भी हो सकता है। इसमंे कमजोर सीजेरियन निशान की जगह पर एक छोटी विकृति हो सकती है या पाउच बन सकता है और इसके कारण सेकंडी इनफर्टिलिटी और असामान्य स्पॉटिंग हो सकती है। अगर गर्भावस्था में यह विकृति होती है तो इसके कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं और यहां तक कि जीवन के लिए घात भी हो सकता है। इस विकृति को अनुभवी गाइनेकोलाॅजी लैप्रोस्कोपिस्ट के द्वारा लैप्रोस्कोपी या हिस्टोरोस्कोपी के द्वारा आसानी से ठीक किया जा सकता है।
~ ~
गर्भाशय से असामान्य रक्तस्राव का लैपरोस्कोपी से इलाज
यदि महिला को पीरियड के दौरान अधिक रक्तस्राव होता हो और रक्त का थक्का भी आता हो तो ऐसा फाइब्रॉइड या एडेनोमायोसिस पाॅलिप की उपस्थिति के कारण हो सकती है या यह गर्भाषय के कैंसर का लक्षण भी हो सकता है।
एयूबी (एबनार्मल यूटेरिन ब्लीडिंग) के कारण एनीमिया हो सकता है और यह जीवन की खराब गुणवत्ता का कारण भी बन सकती है। इसके कारण महिला हर समय कमजोर और थकी- थकी सी रहती है। कभी-कभी यह एयूबी हाइपोथायरायडिज्म (थायराइड हार्मोन की कमी) जैसी हार्मोनल समस्याओं के कारण भी हो सकती है। लेकिन दवाओं द्वारा आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है। फाइब्रॉएड या एडेनोमायोसिस जैसी समस्याआंे का 'लैप्रोस्कोपी' द्वारा आसानी से इलाज किया जा सकता है। लैप्रोस्कोपी से सभी फाइब्रॉएड और एडेनोमायोसिस को हटाया जा सकता है और यदि आवश्यक हो लैप्रोस्कोपी द्वारा गर्भाशय को भी हटा दिया जाता है।
पेट को खोलकर सर्जरी करने की पुरानी विधि की तुलना में लैप्रोस्कोपी सर्जरी के कई फायदे हैं। लैप्रोस्कोपी सर्जरी में बहुत कम दर्द होता है, रक्त का बहुत कम नुकसान होता है, सर्जरी के बाद रोगी अस्पताल से एक दिन बाद ही घर जा सकता है और चूंकि इसमें रक्त का बहुत कम नुकसान होता है इसलिए लैप्रोस्कोपी के बाद अधिकतर रोगी को रक्त चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि ओपन सर्जरी के दौरान रोगी को बहुत दर्द होता है और रक्त का भी काफी नुकसान होता है जिसके कारण ओपन सर्जरी के बाद अक्सर रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। कई लोगों में लैप्रोस्कोपी को लेकर आम मिथक है कि बहुत बड़े फाइब्रॉएड को लैप्रोस्कोपी द्वारा हटाया नहीं जा सकता है। लेकिन यह पूरी तरह से गलत है क्योंकि हमारे सेंटर में हमारी टीम ने 6.5 किलोग्राम के फाइब्रॉएड को लैप्रोस्कोपिक से निकाला है (गर्भाशय को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया था और केवल फाइब्रॉएड को हटाया गया था)। यह फाइब्राॅएड दुनिया में लैप्रोस्कोपिक से निकालने वाला सबसे बड़े आकार का फाइब्रॉएड था। एक और आम मिथक यह है कि लैप्रोस्कोपी से फाइब्राॅएड को निकालने पर इसका कुछ हिस्सा छुट जाएगा। यह फिर से पूरी तरह से गलत है क्योंकि आजकल लैप्रोस्कोपी के द्वारा कैंसर सर्जरी भी की जाने लगती है जिसमें यहां तक कि कैंसर के 0.5 सेमी ऊतक को भी नहीं छोड़ा जा सकता है और इसलिए हर रोगग्रस्त ऊतक को लैप्रोस्कोपी द्वारा पूरी तरह से हटा दिया जाता है। हमारे सेंटर में गर्भाषय और अंडाषय कैंसर का लैप्रोस्कोपी से इलाज नियमित रूप से किया जाता है। इसलिए किसी भी असामान्य रक्तस्राव को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह कैंसर का लक्षण हो सकता है !!
~ ~
सजावटी मछलियों का भारत का पहला टेक पार्क चेन्नई में
चेन्नई में भारत का पहला एक्वेटिक रेनबो टेक्नोलॉजी पार्क (एआरटीपी) बन गया है। यह बहु-प्रजाति हैचरी और लाइव फीड कल्चर यूनिट से सुसज्जित सजावटी मछली के लिए विषेश सुविधाओं वाला एक अत्यााधुनिक पार्क है। यह अधिक मूल्य वाली एक्वेरियम मछलियों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उद्योग की प्रमुख आवश्यकता को पूरी करता है।
यह पार्क तमिलनाडु में फिशरीज कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफसीआरआई), पोननेरी द्वारा विकसित किया गया है, जो सजावटी मछली का पश्चिम बंगाल के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की नोडल एजेंसी, मरीन प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमपीईडीए) इस परियोजना की संचालन समिति का एक हिस्सा रही है।
एमपीडा के अध्यक्ष डॉ. जयतिलक ने तीन दिवसीय एक्वा एक्लेरिया इंडिया (एएआई) 2017 के दौरान कहा कि 10 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस पार्क के लिए राज्य सरकार के तमिलनाडु अभिनव प्रयासों के तहत वित्तीय मदद प्रदान की गई है। यह स्वदेशी और विदेशी दोनों प्रकार की उच्च मूल्य वाली सजावटी मछली प्रजातियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उन्नत बुनियादी ढांचे और तकनीकी विशेषज्ञता से सुसज्जित होगा।
यह उच्च मूल्य वाली स्वदेशी सजावटी मछली प्रजातियों के लिए प्रजनन तकनीक विकसित करेगा और थोक मात्रा में गुणवत्ता वाली मछलियों को सुनिश्चित करेगा।
इस परियोजना के अन्य प्रमुख क्षेत्रों में निरंतर लाइव फीड्स और बीमारी का विकसित निदान और उपचार प्रक्रियाएं उपलब्ध कराने के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाना षामिल है।
इसके अलावा, एआरटीपी में एक संगरोध प्रयोगशाला होगी जहां अन्य देशों से आयातित विभिन्न प्रकार की विदेशी मछलियों का बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण के लिए इलाज किया जाएगा। ये सारी सुविधाएं चेन्नई, विशेषकर कोलाथुर में और उसके आसपास के मछली उत्पादकों को प्रदान की जाएगी ताकि उन्हें बीमारी के प्रकोपों को संभालने पर विशेषज्ञता हासिल हो सके।
डॉ. जयतिलक ने कहा कि एमपीडा ताजे पानी और समुद्री अलंकरण के क्षेत्र में विभिन्न राज्यों के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी विशेषज्ञता का भी विस्तार कर रही है। 2015-16 के दौरान, एजेंसी ने 23.79 लाख रुपये की वित्तीय भागीदारी कर हिमाचल प्रदेश में चार इकाइयां स्थापित करने में सहायता की।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप जैसे राज्यों और संघ षासित्र प्रदेषोें ने हाई- टेक सजावटी मछली हैचरी पर योजनाएं भी तैयार की हैं। उन्होंने कहा, ''एमपीडा इन राज्यों को पूरी तकनीकी सहायता प्रदान करके अपनी योजनाओं के निष्पादन में सहायता कर सकती है।''
इस बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि राजस्थान की एक अधिकारिक टीम ने टोंक जिले के बिसालपुर में भारत के पहले सेंटर आॅफ एक्सेलेंस फाॅर ब्रीडिंग आॅर्नमेंटल फिषेज की स्थापना के संबंध में इस साल के षुरूआत में एमपीडा और इसके सहायक सजावटी मछली प्रजनन इकाइयों का दौरा किया। केंद्र ने हाल ही में राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के तहत सजावटी मत्स्य पालन पर एक पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया है, जिसमें 61.89 करोड रुपये का खर्च आएगा। इसने इस परियोजना के लिए आठ राज्यों - असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की पहचान की है।
डॉ. जयतिलक ने कहा कि एमपीडा एनएफडीबी के साथ मिलकर काम करेगा। उन्होंने कहा, ''हम जहां भी आवश्यकता हो, तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।''
~ ~
अस्थमा की रोकथाम और चिकित्सा कैसे करें
डाॅ. मानव मनचंदा, वरिष्ठ पल्मोनोलाॅजिस्ट, एशियन इंस्टीच्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेस, फरीदाबाद
मानसून षहर के लोगों के लिए राहत लेकर आया है लेकिन इसने साथ ही साथ कई बीमारियों के विशाणुओं एवं जीवाणुओं को भी पनपने का मौका दिया है। मानसून के आगमन के बाद से ही षहर के अस्पतालों में क्रोनिक आॅब्स्ट्रक्टिव एयरवेज डिजीज (सीओएडी) तथा अस्थमा को बढ़ाने वाली एलर्जी से ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मानसून में उमस भरा मौसम दमा के मरीजों के लिए सबसे बुरा समय होता है।
मानसून में होने वाला अस्थमा एक तरह का एलर्जिक अस्थमा होता है, जो नमी के साथ- साथ वातावरण में मौजूद परागकण और फफूंद जैसे एलर्गन की उपस्थिति के कारण होता है। एलर्जी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया होती है। जब किसी व्यक्ति को पौधों के पराग कण, फफंूद या पशु बाल जैसे हानिरहित पदार्थों से एलर्जी हो और जब वह इनके सम्पर्क में आता है तो षरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया करती है। हालांकि प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य रूप से शरीर के रक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है। एलर्जी से पीड़ित लोगों में, प्रतिरक्षा प्रणाली 'एलर्गन' नामक इन पदार्थों के साथ हानिकारक पदार्थ के रूप में व्यवहार करती है और अस्थमा के अटैक सहित विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं करती है। साँस के माध्यम से अंदर जाने वाले एलर्गन में पशु के रोएं (बाल), धूल के कण, फफूंद और परागकण शामिल हैं।
मानसून के मौसम में जब हवा में घास के परागकण की मात्रा बढ़ जाती है और अधिकतर कवक फलने-फूलने लगते हैं तो ये लोगों विषेशकर कम प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों और बुजुर्गों को प्रभावित करने लगते हैं। धूल से एलर्जी वाले और अस्थमा से पीड़ित लोगों में सीओएडी होने की संभावना अधिक होती है।
मानसून के दौरान हवा में काफी मात्रा में वायरस तैरने लगते हैं। एलर्जी पैदा करने वाले परागकण और धूल शरीर में प्रवेष कर श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। एंटीबॉडी की कमी वाले लोगों, बच्चों और स्टेरॉयड का सेवन करने वाले लोगों में इसका खतरा अधिक होता है। इसलिए बरसात के मौसम में मास्क पहनने और उबला हुआ पानी पीने की सलाह दी जाती है।
मानसून के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर जैसे विषैले पर्यावरण गैसों की मौजूदगी बढ़ जाती है जिसके कारण अस्थमा पीड़ितों में अस्थमा का प्रकोप और गंभीरता बढ़ जाती है। मानसून के दौरान वायरल संक्रमण के मामलों में वृद्धि के कारण भी अस्थमा के हमले बढ़ जाते हैं।
बरसात के मौसम में अस्थमा का प्रबंधन
— नियमित रूप से दवा का सेवन करें: अस्थमा के रोगियों को चिकित्सक के द्वारा लिखी गयी दवा का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए और दवा की एक भी खुराक नहीं छोड़ना चाहिए। कुछ रोगियों को उनके चिकित्सक के द्वारा इनहेलर लेने की सलाह दी जाती है। अस्थमा के मरीजों को अपने एयरवेज खुला रखने के लिए नियमित रूप से इनहेलर लेना चाहिए। कुछ रोगियों में लापरवाही से इनहेलर को रोकने और शुरू करने की आदत होती है। यह प्रवृत्ति बहुत हानिकारक है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए।
— घर में पालतू जानवरों को न रखें। यदि घर में पहले से ही पालतू जानवर हैं तो उन्हें रोगी के कमरे में नहीं जाने देना चाहिए क्योंकि पालतू जानवर के कमरे से जाने के बाद भी बालों की रूसी बेडरूम में रह सकते हैं।
— जहां तक संभव हो घर में एयर कंडीशनर वाले कमरे में रहें।
— बाथरूम जैसे नम स्थानों की नियमित रूप से ब्लीच और डिटर्जेंट और कीटाणुनाशक से सफाई कर मोल्ड से मुक्त रखें।
— परागकणों के संपर्क में रहने से बचने के लिए बेडरूम में पौधों को न रखें।
— जब तेज हवा चल रही हो तो परागकणों के संपर्क से बचने के लिए घर से बाहर नहीं निकलें। बरसात के मौसम में वातावरण में काफी मात्रा में परागकण पाये जाते हैं।
— जहां तक संभव हो, कालीन का प्रयोग नहीं करें क्योंकि कालीन में बहुत सूक्ष्म धूल कण, पशु के रोएं चिपक जाते हैं और इन्हें आसानी से हटाया नहीं जा सकता है।
— सप्ताह में एक बार सभी तकिया कवर, चादरें आदि को गर्म पानी से धोएं।
~ ~
भारत में रोबोटिक सर्जरी की संभावनाएं
भारत में रोबोटिक सर्जरी अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है। भारत में अभी करीब आठ रोबोट स्थापित किये गये हैं, जिनमें से नई दिल्ली में पांच, चेन्नई में एक, नाडियाड में एक और पुणे में एक रोबोट स्थापित किये गये हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भारत में रोबोट क्रांति के मामले में सबसे आगे रहा हैभारत में पहली रोबोटिक प्रोस्टेटक्टॉमी जुलाई, 2006 में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में की गई थी। तब से रोबोट की मदद से 200 से अधिक लैप्रोस्कोपिक रैडिकल प्रोस्टेटक्टॉमी सफलतापूर्वक की गई है। इंडियन जर्नल आफ यूरोलॉजी में रोबोटिक प्रोस्टेटक्टॉमी के पहले 190 मामलों के परिणाम के विश्लेषण प्रकाशित हुए और इन विश्लेषणों में इनकी उत्कृष्टता, सफलता दर, परिणाम आदि समकालीन पश्चिमी देशों के बराबर पाये गये।
भारत में रोबोटिक सर्जरी की भावी संभावना के बारे में नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. राजू वैश्य कहते हैं कि हालांकि विकसित देशों में पिछले कुछ दशकों से रोबोट शल्य क्रियाओं में सर्जन की मदद कर रहे हैं लेकिन भारत के केवल कुछ अस्पतालों में ही रोबोटिक सर्जरी का सीमित इस्तेमाल शुरू हुआ है और मुख्य तौर पर इनका इस्तेमाल मूत्र रोग विशेषज्ञों, जनरल सर्जनों और स्त्री रोग सर्जनों द्वारा मुख्य तौर पर पेट की सर्जरी के लिया किया जा रहा है। हालांकि अब आर्थोपेडिक सर्जन भी जोड़ों को बदलने (ज्वाइंट रिप्लेसमेंट) के ऑपरेशनों में इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। ज्यादातर अस्पतालों में सामान्य चिकित्सा कार्यों में रोबोट का सीमित इस्तेमाल होने का कारण इसका अधिक मंहगा होना हैअगर सरकार कुछ सब्सिडी या कर संबंधी छूट प्रदान करे तो अधिक अस्पतालों के लिए रोबोटिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करना संभव हो सकेगा। इसके अलावा भारत की कंपनियों को भी रोबोटिक प्रणालियां बनाने में आगे आना चाहिए।
लैपरोस्कोपी सर्जरी के लिए रोबोटिक प्रणाली का इस्तेमाल करने वाले इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के मिनिमली एक्सेस सर्जरी एवं रोबोटिक, बैरिएट्रिक एवं थोरोस्कोपी सर्जरी के वरिष्ठ सर्जन डॉ. अरूण प्रसाद कहते हैं कि रोबोट समर्थित सर्जरी के भारत के ज्यादातर हिस्सों में इस्तेमाल शरू होने में समय लगेगा क्योंकि यह मंहगी प्रौद्योगिकी है और साथ ही साथ इसका संचालन एवं प्रबंधन का खर्च भी बहुत अधिक है। ऐसे में इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से बहुत बड़े सरकारी एवं निजी अस्पतालों में ही होगा। हालांकि रोबोटिक सर्जरी के क्षेत्र में काफी अधिक अनुसंधान हो रहा है और उम्मीद है कि भारत के इंजीनियर भी सस्ती रोबोटिक प्रणालियां विकसित करने की चुनौती को स्वीकार करेंगे
डॉ. अरूण प्रसाद के अनुसार पूरे भारत में कुल मिलाकर करीब 30 चिकित्सा केन्द्र रोबोट समर्थित सर्जरी की सुविधा दे रहे हैं। गैस्ट्रोइंटेराइटिस की जटिल सर्जरी, बैरिएट्रिक सर्जरी, प्रोस्टेट कैंसर, वयस्कों और बच्चों में यूरोलॉजी सर्जरी, हिस्टेरेक्टोमी तथा कैंसर सर्जरी में इसका उपयोग हो रहा है।
यूरोलॉजी चिकित्सा में रोबोटिक सर्जरी
एम्स के वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. पी एन डोगरा के अनुसार मूत्र विज्ञान के क्षेत्र में रैडिकल सिस्टेक्टॉमी, एंटेरियर पेल्विक एक्सेंटेरेशन, रैडिकल नेफेक्टॉमी, एड्रिनलेक्टॉमी और इलियो इंगुइनल लिम्फ नोड डिसेक्शन जैसी एक्सटिरपैटिव ओंकोलॉजिकल सर्जरी रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी की मदद से की जा रही है। पायलोप्लास्टी, वेसिकोवेजाइनल और यूरेटेरोवेजाइनल फिस्टुली रिपेयर्स जैसी रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी और पायलोलिथोटोमी और यूरेटेरोलिथोटॉमी जैसी स्टोन सर्जरी में भी इनका व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने लगा है। अन्य विशेषज्ञताओं में भी इसके इस्तेमाल की व्यापक संभावनाएं हैंस्त्री रोग विशेषज्ञ भी अब रोबोटिक प्रणाली का इस्तेमाल कर रैडिकल हिस्टेरेक्टॉमी और मायोमेक्टॉमी करने लगी हैं। ईएनटी सर्जन भी परंपरागत ओपन सर्जरी की तुलना में बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए बिनाइन और मैलिग्नेंट लेशन के लिए नैजोफैरिंग्स और ओरो/हाइपोफैरिंक्स में रोबोट–असिस्टेट सर्जरी कर रहे हैं। कई प्रकार की गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रक्रियाएं भी रोबोट की मदद से की जा रही हैं। इनमें कोलोरेक्टल सर्जरी, इसोफेगल फंडोप्लिकेशन, पैंक्रियेटिकोड्योडेनल प्रक्रियाएं और बैरिएट्रिक सर्जरी शामिल हैं। कार्डियोथोरेसिक क्षेत्र में टोटली इंडोस्कोपिक कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग, माइट्रल वाल्व की मरम्मत, फेफड़ों का रिसेक्शन, ईसोफेगेक्टॉमी और थाइमेक्टॉमी अब आम हो गए हैं।
~ ~
स्टेंट की कीमतों के लेकर ज्यादा जागरूक हो गए हैं मरीज
भारत सरकार द्वारा स्टेंट की कीमतों में कटौती करने के निर्णय के बाद, बेहतर चिकित्सा सेवाएं चाहने वाले कोरोनरी धमनी रोग से पीड़ित लोगों को गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराया जाना संभव होने लगा है।
भारत में स्टेंट की कीमतों में कटौती के बाद हृदय रोग के प्रबंधन के बारे में हृदय रोगियों से पूछताछ की गई। इन मरीजों पर तीन महीने तक अवलोकन किया गया और इसके आधार पर यह पाया गया कि 10 में से 8 रोगियों ने वैसे स्टेंट की उपलब्धता के बारे में चिकित्सकों से सवाल किये जिसकी अधिकतम क्षमता होने और न्यूनतम जटिलता दर होने के आंकड़े उपलब्ध हों और जिसकी पुष्टि की गई हो।
यह अवलोकन विश्लेषण, 280 रोगियों और हृदय रोग विशेषज्ञों के साथ बातचीत के आधार पर किया गया। इसे मार्च, 2017 से मई 2017 तक होली हार्ट हाॅस्पिटल में किया गया था।
इस विष्लेशण के परिणाम की घोषणा करते हुए डॉ. आदित्य बत्रा ने कहा कि मरीजों से सवाल- जवाब के 80 प्रतिशत मामलों में स्टेंट के बारे में सवाल किये गए। स्टेंट के मूल्य मंे कटौती होने से पहले ज्यादातर मरीज स्टेंट की कीमतों और उस पर छूट को लेकर सवाल करते थे लेकिन अब वे स्टेंट के प्रदर्षन से संबंधित सवाल पूछ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मरीज अब अधिक जानकार की तरह व्यवहार कर रहे हैं। रोगियों के व्यवहार संबंधी विश्लेषण से पता चलता है कि अब वे स्टेंट की गुणवत्ता से संबंधी पहलुओं को समझने पर अधिक ध्यान देते हैं।
उन्होंने कहा कि ''स्टेंट के गुणवत्ता मानकों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ने के कारण एंजियोप्लास्टी के बाद हृदय रोगियों के समग्र स्वास्थ्य देखभाल पर बड़े पैमाने पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। इससे इलाज की क्षमता को उच्चतम स्तर पर बढ़ाने के साथ- साथ कम संभावित जटिलताओं को रोकने में भी मदद मिल सकती है।''
उन्होंने कहा कि हृदय रोग शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में तेजी से फैल रहा है। यह भारत में कुल मौतों में से 25 प्रतिषत मौत के लिए जिम्मेदार है। दिल का दौरा पड़ने के बाद जीवन को बचाने के लिए किए गए कोरोनरी हस्तक्षेपों की आवश्यकता में वर्ष 2014-2015 में 51 प्रतिषत की वृद्धि हुई। वर्ष 2015 में करीब 475000 स्टेंटों का इस्तेमाल किया गया था। स्टेंट की बढ़ती जरूरत ने कई स्टेंट कंपनियों को भारत में खुद को लॉन्च करने के लिए प्रेरित किया लेकिन लोगों को स्टेंट की गुणवत्ता के पहलुओं पर जानकारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ''हम होली हार्ट हॉस्पिटल में मरीजों के लिए गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने के लिए समर्पित हैं। हमारा सिस्टम रोगी को जानकारी प्रदान करने के लिए साक्ष्य का इस्तेमाल करता है।''
एक सार्वजनिक सलाहकार के रूप में, हम यह कहना चाहते हैं कि अब चूंकि सभी स्टेंट समान कीमत पर उपलब्ध हैं, इसलिए रोगियों को सूचित निर्णय लेना चाहिए और वैसे स्टेंट ही लगवाना चाहिए जिसके बेहतर होने के साक्ष्य उपलब्ध हों।
उन्होंने आगे कहा कि एंजियोप्लास्टी के लिए कुल उपचार खर्च के बारे में लोगों के भ्रम को दूर करना महत्वपूर्ण है। नई पॉलिसी के बाद सभी, यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले स्टेंट, अब करीब 32,000 रुपये मेें रोगियों के लिए उपलब्ध हैं। लेकिन इसमें प्रक्रिया और अन्य शुल्क शामिल नहीं हैं, जिन्हें मरीजों को स्टेंट के खर्च के अलावा भुगतान करने की आवश्यकता होती है।
~ ~
SEARCH
LATEST
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
कॉस्मेटिक उपचार के बारे में मन में अक्सर कई विरोधाभाश और सवाल उठते रहते हैं लेकिन अब इनके जवाब अनुत्तरित रह नहीं रह गये हैं। यहां यह उल्लेख ...
-
– विनाेद कुमार संगोष्ठी के दौरान डा़ रामदास तोंडे की पुस्तक ʺसाहित्य और सिनेमाʺ का लोकार्पण तेजी से बदलते युग में ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय प...
-
चालीस-पचास साल की उम्र जीवन के ढलान की शुरूआत अवश्य है लेकिन इस उम्र में अपने जीवन के सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा व्यक्ति पार्किंसन जैसे स्नायु...
Featured Post
24th ICSI National Awards for Excellence in Corporate Governance
24th ICSI National Awards for Excellence in Corporate Governance Shri Basavaraj Bommai, Member of Parliament, Lok Sabha and Former Chief Min...