रक्त चाप को अक्सर हृदय रोगों से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन अगर कम उम्र में रक्त चाप बढ़ने की समस्या हो तो यह किडनी में खराबी का संकेत हो सकता है और ऐसी अवस्था में किडनी की जांच कराकर समुचित इलाज कराना चाहिये अन्यथा किडनी प्रत्यारोपण की नौबत आ सकती है।
किडनी विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च रक्त चाप किडनी फेल्योर का प्रमख कारण है। इसे चिकित्सकीय भाषा में अंतिम स्थित का गुर्दा रोग अथवा इंड स्टेज रीनल डिजिज (इएसआरडी) कहा जाता है जिसके मरीज को या तो नियमित रूप से डायलिसिस करानी पड़ती है या किडनी प्रत्यारोपण कराना पड़ता है।
नेफ्रोलॉजिस्ट डा. जितेन्द्र कुमार का कहना है कि हमारे देश में मधुमेह का प्रकोप बढ़ने के साथ किडनी में खराबी की समस्या तेजी से बढ़ रही है और पिछले 15 वर्शों में किडनी की खराबी से ग्रस्त मरीजों की संख्या दोगुनी हो गयी है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के डा. सुरेश चन्द्र दास और संजय कुमार अग्रवाल के अनुसार गंभीर किडनी रोग विश्व भर में खतरनाक बीमारी है लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों के लिये यह और गंभीर समस्या है क्योंकि इसका उपचार बहुत मंहगा है और यह जीवन भर चलता है। दुनिया भर में करीब दस लाख किडनी मरीजों को जीवित रहने के लिये डायलिसिस या प्रत्यारोपण करना पड़ता है।
डा. जितेन्द्र कुमार बताते हैं कि हर साल डेढ़ से दो लाख लोग पूरे भारत में किडनी में खराबी की अंतिम अवस्था से ग्रस्त (एडवांस किडनी फेल्योर) होने के मामले आते हैं। उन्होंने कहा कि 20 से 30 प्रतिषत मधुमेह के मरीजों को किडनी समस्या होने की आषंका होती है। एक अनुमान के अनुसार 2030 में भारत में सबसे अधिक मधुमेह के मरीज होंगे और ऐसे में किडनी फेल्योर के मरीजों की संख्या में कई गुना इजाफा होगा।
डा. जितेन्द्र कुमार ने बताया कि रक्त चाप को सही रखने में किडनी की मुख्य भूमिका होती है। दूसरी तरफ रक्त चाप मेंं गड़बड़ी होने पर किडनी पर असर पड़ता है। बढ़ा हुआ रक्त चाप किडनी को नुकसान पहुंचाता है और यह गंभीर किडनी रोग का कारण बनता है। रक्त चाप बढ़ने से किडनी सहित पूरे षरीर की रक्त नलिकाओं को नुकसान पहुंचता है। किडनी की रक्त नलिकाओं के नुकसान पहुंचने से शरीर से अतिरिक्त तरल एवं फालतू पदार्थों का निकलना बंद हो सकता है। इससे रक्त चाप और बढ़ जाता है। इस तरह से यह खतरनाक चक्र चलता रहता है।
उन्होंने बताया कि खास तौर पर 15-20 साल की उम्र में रक्त चाप के बढ़ने की समस्या किडनी में गड़बड़ी के कारण होती है लेकिन अक्सर लोग जानकारी के अभाव में इसकी अनदेखी करते है लेकिन अगर किडनी में खराबी के कारण रक्त चाप बढ़ रहा हो तब अगर तीन से चार महीने तक समुचित इलाज नहीं कराना घातक साबित हो सकता है। उन्हांंने कहा कि इलाज कराने में तीन से चार महीने का विलंब होने से किडनी स्थायी रूप से खराब हो सकती है और ऐसी स्थिति में डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण ही विकल्प होता है जबकि शुरूआती अवस्था में इलाज कराने पर कुछ कुछ हजार रुपये खर्च कर किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है।
किडनी की बीमारी खामोश बीमारी है जिसके अक्सर कोई खास लक्षण नहीं होते हैं या ऐसे लक्षण होते हैं जिससे भ्रम पैदा हो जाता है। जैसे पैरों में हल्का-हल्का सूजन आना। ऐसे में लोग सोच लेते हैं कि पैर लटकाने के कारण या ज्यादा चलने के कारण पैर में सूजन आ गया है। इसके अलावा पेशाब में प्रोटीन के आने के लक्षण की तरफ भी लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते। पेशाब रुक-रुक कर होने या पेशाब में जलन होने या रात में बार-बार पेशाब के लिए उठने जैसे लक्षण को भी ज्यादा उम्र का प्रभाव समझ कर टाल दिया जाता है। देते हैं। इसके अलावा गैस या खाना हजम करने में दिक्कत जैसी समस्या को भी पेट की खराबी समझ कर टाल दिया जाता है।
बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर किडनी खराब कर सकता है
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मधुमेह लील सकता है आंखों की रौशनी
मधुमेह का आंखों पर कई तरह से दुष्प्रभाव पड़ता हैं। बढ़े हुये रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के कारण आंखों के विभिन्न अंग संकट में घिर जाते हैं। मधुमेह के करीब 80 प्रतिशत मरीजों को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर डायबेटिक रेटिनोपैथी, मोतियाबिंद और काला मोतिया जैसी समस्यायें होने के खतरे बहुत अधिक होते हैं। मधुमेह के मरीज नियमित रूप से आंखों की जांच कराकर तथा आंखों में होने वाली दिक्कतों का इलाज समय से आरंभ करके अपनी अनमोल नेत्र ज्योति की हिफाजत कर सकते हैं।
बार-बार चश्में का बदलना
मधुमेह होने पर आंखों के लेंस की फोकस करने की क्षमता बिगड़ जाती है और मरीजों को अपने चश्में का नम्बर बार-बार बदलना पड़ता है। चश्में का नम्बर बार-बार बदलना मधुमेह का एक प्रमुख लक्षण है और कई बार इसी लक्षण के आधार पर मधुमेह की पहचान होती है।
मधुमेह एवं मोतियाबिंद
मधुमेह के मरीजों को कम उम्र में ही मोतियाबिंद हो सकता है। जिन मरीजों में रक्त शुगर में अधिक उतार-चढ़ाव होता है उनमें उतना ही जल्द मोतियाबिंद होता है।
मधुमेह के कुछ मरीजों को डायबेटिक केटरेक्ट होता है जिससे उनकी आंखों की लेंस की पारदर्शिता चली जाती है। उनकी आंखों के लेंस में हिमवृष्टि जैसी आकृतियां उभर आती हंै। इसमें ऐसा लगता है मानों लेंस पर बर्फ के फाये जम गये हों।
मधुमेह के मरीजों में होने वाले सामान्य मोतियाबिंद और डायबेटिक केटरेक्ट के इलाज के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता है। यह आपरेशन बिना टांकों के हो सकता है। इसे फेको-इमल्शिफिकेशन कहा जाता है। फेको-इमल्शिफिकेशन का ईजाद इस शताब्दि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चिकित्सकीय उपलब्धियों में से एक है। इस तकनीक के तहत काॅर्निया के बाहरी हिस्से में बहुत सूक्ष्म (तीन मिलीमीटर का) चीरा लगाकर एक अत्यंत महीन एवं अत्यंत छोटा अल्ट्रासोनिक औजार को प्रवेश कराया जाता है। यह औजार अल्ट्रासोनिक तरंग पैदा कर मातियाबिंद को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है। इन टुकड़ों को आंखों से आसानी से निकाल दिया जाता है। मोतियाबिंद की परम्परागत सर्जरी की तुलना में फेको-इमल्शिफिकेशन सर्जरी में अत्यंत छोटा चीरा लगाए जाने के कारण घाव जल्दी भर जाते हैं। इसमें आपरेशन के बाद टांके लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। इस आॅपरेशन में एनेस्थेटिक सूई का इस्तेमाल नहीं किया जाता है बल्कि आंखों में एनेस्थिसिया की सिर्फ कुछ बुंदें डाली जाती हैं। इस आपरेशन में बहुत कम समय लगता है, आॅपरेशन के बाद मरीज को बहुत कम दवाईयां लेनी होती है, बहुत कम सावधानियां बरतनी होती है और मरीज की आंखें जल्द ठीक हो जाती हैं इसलिए इस आपरेशन से मरीज को अधिक संतुष्टि मिलती है।
मधुमेह और काला मोतिया
मधुमेह के मरीजों में काला मोतिया (ग्लूकोमा) होने की आशंका सामान्य लोगों की तुलना में आठ गुना अधिक होती है। काला मोतिया में आंख के भीतर का दाब बढ़ जाता है जिससे पर्दे पर जोर पड़ता है और नजर कमजोर हो जाती है। इसलिये मधुमेह के मरीजों को इसके प्रति हमेशा सावधान रहना चाहिये। मधुमेह के पुराना होने पर पुतली के आसपास नयी धमनियां पनपने से भी आंख का दाब बढ़ सकता है। इसे सेकेंडरी ग्लूकोमा कहा जाता है।
काला मोतिया का इलाज उसकी स्थिति एवं उसके प्रकार पर निर्भर करता है। इसके इलाज आम तौर पर दवाईयों, लेजर सर्जरी और सामान्य सर्जरी से होते हैं। दवाईयों का सेवन लगातार करना पड़ता है। अधिकतर मरीजों में काला मोतिया दवाईयों से ही नियंत्रण में रहता है। लेकिन एक स्थिति ऐसी आती है जब दवा बेअसर होने लगती है। ऐसे में लेजर सर्जरी से काला मोतिया को ठीक किया जाता है। इसमें न तो चीर-फाड़ करनी पड़ती है और न ही मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। लेजर सर्जरी के दौरान मरीज की आंखों को थोड़ी देर के लिए सुन्न किया जाता है और मरीज का लेजर से इलाज किया जाता है। अलग-अलग किस्म के काला मोतिया के लिए भिन्न-भिन्न लेजर का इस्तेमाल किया जाता हैै। आर्गन लेजर से सेकेंडरी ग्लूकोमा ठीक किया जाता है तो याग लेजर से एंगल क्लोजर ग्लूकोमा को ठीक किया जाता है। जब मरीज लेजर से ठीक होने के काबिल नहीं होते तो उसकी सामान्य सर्जरी करनी पड़ती है। काला मोतिया के मरीजों को सर्जरी के बाद अपनी आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए, आंखों को मलना या रगड़ना नहीं चाहिए तथा आंखों पर किसी तरह का दबाव नहीं पड़ने देना चाहिए।
डायबेटिक रेटिनोपैथी
मधुमेह के मरीजों को होने वाली आंखों की सबसे प्रमुख समस्या डायबेटिक रेटिनोपैथी है जिसमें आंखों के पर्दे को नुकसान पहुंचता है। इस बीमारी में आंखों के पर्दे की सूक्ष्म रक्त वाहिकायें फूल जाती हैं, शिरायें बेतरतीब हो जाती हैं और उनमें फैलाव आ जाता है, पर्दे पर जगह-जगह खून के गोलाकार धब्बे उभर आते हैं तथा पीला एवं साफ पानी जम जाता है। जब तक ये परिवर्तन पर्दे के बाहरी हिस्से तक सीमित रहते हैं तब तक कोई लक्षण प्रकट नहीं होता है लेकिन जब मैक्यूला नामक पर्दे का सबसे संवेदनशील हिस्सा इसकी चपेट में आता है तब आंखों से दिखना बहुत कम हो जाता है।
कुछ रोगियों में कुछ ही समय बाद पर्दे पर नई रक्त वाहिकायें पनपने लगती हैं। ये नयी रक्त वाहिकायें कमजोर होती हैं तथा इनमें जगह-जगह दरारें आ जाती हैं। इससे पर्दे पर खून उतर आता है और नजर धुंधली हो जाती है। धमनियों से बहे खून के पर्दे के ठीक आगे विट्रियस में भी पहुंचने की आशंका होती है। बार-बार रक्तस्राव होने से आंख का आंतरिक दाब भी बढ़ सकता है। इसे प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी कहा जाता है। इसमें कभी भी अंधता उत्पन्न हो सकती है। मधुमेह जितना पुराना होता है डायबेटिक रेटिनोपैथी की आशंका उतनी ही अधिक होती है।
औद्योगिक देशों में डायबेटिक रेटिनोपैथी नेत्रअंधता का प्रमुख कारण है। एक अनुमान के अनुसार मधुमेह की पहचान के 20 साल बाद टाइप एक किस्म के मधुमेह के सभी मरीजों को तथा टाइप दो किस्म के मधुमेह से ग्रस्त 60 प्रतिशत मरीजों को किसी न किसी किस्म की डायबेटिक रेटिनोपैथी हो सकती है।
रेटिनोपैथी की आरंभिक अवस्था में पहचान हो जाने पर इसका इलाज हो सकता है। डायबेटिक रेटिनोपैथी में दवाईयों से बहुत अधिक लाभ नहीं मिलता है। इसके उपचार का एकमात्र कारगर तरीका लेजर उपचार है। फोटोकोएगुलेशन नामक लेजर आधारित तकनीक के तहत जेनोन आर्क या लेजर की शक्तिशाली किरणों की मदद से पर्दे की कमजोर हुयी रक्त वाहिनियों को बंद कर दिया जाता है ताकि उनसे आगे खून नहीं बहे और नयी वाहिनियां नहीं पनपे। लेजर उपचार नेत्र ज्योति को बरकरार रखने तथा रोग को बढ़ने नहीं देने में मददगार साबित हुआ है।
रेटिनल डिटैचमेंट
आंखों में उतरने वाले खून के तीन-चार महीनों में उसके खुद साफ होने की संभावना होती है लेकिन ऐसा नहीं होने पर वह पर्दे को अपनी तरफ खींच कर रेटिना में डिटैचमेंट ला सकता है। रेटिनल डिटैचमेंट की आरंभिक अवस्था में इलाज करना आसान होता है लेकिन लापरवाही बरतने पर बाद में नेत्र अंधता उत्पन्न हो सकती है। रेटिना में छेद का समय पर पता लग जाने पर उसका इलाज किया जा सकता है। लेकिन रेटिना के फट जाने पर आपरेशन करना आवश्यक हो जाता है। रेटिना में छेद होने या रेटिना फटने के बाद इलाज में जितना अधिक विलंब होता है इलाज उतना ही मुश्किल एवं जटिल हो जाता है और नेत्र अंधता की आशंका उतना ही अधिक होती है।
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डायबिटीज में भी लें फलों का मजा
वैसे तो डायबिटीज में भी आप एक आम स्वस्थ इंसान की तरह अलग-अलग प्रकर के फलों का सेवन कर सकते हैं। लेकिन डायबिटीज के मरीजों को केले, अंगूर, आम, लीची और सेब जैसे फलों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। ऐसा इन फलों में मौजूद कार्बोहाइड्रेट यानी फ्रुक्टोज और सुक्रोज के कारण ब्लड में शुगर के स्तर में इजाफा के कारण होता हैं। लेकिन फल शरीर में जरूरी विटामिन, मिनरल, एंटी-ऑक्सीडेंट और फाइबर की आपूर्ति करते हैं। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को नियमित रूप से कम से कम फल को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए।
एक सेब रोज खायें और स्वस्थ जीवन पायें
सेब को एक नकारात्मक कैलोरी आहार माना जाता है क्योंकि इसके पाचन में अधिक मात्रा में कैलोरी की आवश्यकता होती है। सेब में पेक्टिन की मात्रा अधिक होती है, जो कि डायबिटीज के मरीज के लिए डिटाक्सफाइ की तरह काम करता है। इसके अलावा सेब में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
चेरीज और बेरीज
यह मधुमेह रोगियों के लिये बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक माना जाता है। इस मीठे और खट्टे फलों में विशेष प्रकार का केमिकल एन्थोसाइनिन पाया जाता है। यह केमिकल ना सिर्फ चेरी को गहरा रंग प्रदान करता है बल्कि शरीर में इन्सुलिन की मात्रा को नियंत्रित रखता है और हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को भी कम करता है। दिन में एक बार चेरी खाने से डायबिटीज निंयत्रित रहती है।
ग्रेपफ्रूट यानी स्वाद और फिटनेस साथ-साथ
ग्रेपफ्रूट एक खट्टा फल है जो सम्पूर्ण पोषण के लिए बहुत अच्छा होता है। यह खट्टा फल आपके शरीर में वसा को बढ़ाने वाली इंसुलिन के स्तर को कम करता हैं। इनमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में होता है। जो लोग बचपन से ही ग्रेप फ्रूट का सेवन करते हैं उनमें डायबिटीज का खतरा बहुत कम हो जाता है।
फाइबर युक्त फल स्ट्रॉबेरी
घुलनशील फाइबर युक्त फल स्ट्रॉबेरी जल्दी पचने के कारण आंतों में आसानी से अवशोषित हो जाते हैं। फाइबर युक्त फल आंत को साफ रखने का काम करते हैं। स्ट्रॉबेरी में मौजूद तत्व शरीर में 'एनआरएफ 2' नाम के प्रोटीन को सकारात्मक रूप से सक्रिय कर देता है। यह प्रोटीन शरीर में एंटी-ऑक्सीडेंट और अन्य सुरक्षा गतिविधियों को बढ़ा देता है।
शुगर की मात्रा को संतुलित करे जामुन
डायबिटीज रोगियों के लिए यह फल बहुत ही लाभकारी है। डायबिटीज के मरीज अगर जामुन के बीज को पीसकर एक गिलास पानी में डालकर पीयें तो इससे यूरीन में शुगर की मात्रा संतुलित रहती है। जामुन स्टार्च को शुगर में परिवर्तित नहीं होने देता और रक्त में ग्लूकोज के स्तर को भी संतुलित रखता है।
विटामिन सी से भरपूर कीवी
इस फल में विटामिन सी की मात्रा अधिक होने के कारण ये शरीर को कई रोगों से निजात दिलवाने में मदद करता है। यह जितना अंदर से गुणकारी है उतना ही इसके छिलके में भी बहुत से गुण होते है। डायबिटीज से परेशान लोगों के लिए कीवी काफी फायदेमंद होती है। कीवी खाने से ब्लड शुगर के स्तर को कम किया जा सकता है।
खरबूजे का सेवन
डायबिटीज रोगियों के लिए खरबूजा एक औषधि की तरह काम करता है। यह ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा इसमें ग्लाइसिमिक इंडेक्स ज्यादा होने के बावजूद भी फाइबर बहुत अधिक मात्रा में होता है, इसलिए यदि इसे सही मात्रा में खाया जाए तो अच्छा होता है।
अनानास
अनानास में विटामिन और मिनरल की भरपूर मात्रा होती है। जैसे विटामिन ए और सी, कैल्शियम, पोटेशियम और फास्फोरस भी इसमें मौजूद होता हैं। फाइबर युक्त और फैट व कोलेस्ट्रॉल बहुत कम होने के कारण सेहत के लिए इसे फायदेमंद माना जाता है। यह पैनक्रियाज में बनने वाले रस को नियंत्रित करता हैं जो पाचन क्रिया में आगे मददगार होते हैं। पैनक्रियाज में नियंत्रण के कारण हम डायबिटीज जैसी बीमारी से भी सुरक्षित रह सकते हैं।
औषधि है नाशपाती
नाशपाती में सेब की तरह औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसमें विटामिन, एंजाइम और पानी में घुलनशील फाइबर समृद्ध मात्रा में पाए जाते हैं। नाशपाती में बहुत अधिक मात्रा में फाइबर और विटामिन की मौजूदगी के कारण यह डायबिटीज रोगियों के लिए औषधि की तरह काम करता है। इससे मीठा खाने की तलब नहीं लगती है।
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गर्भावस्था के दौरान हो सकता है जेस्टेशनल डायबिटीज
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं में से जेस्टेशनल डायबिटीज भी एक है। स्वयं पर थोड़ा ध्यान देकर आप ना केवल गर्भावस्था की जटिलताओं से बच सकती हैं बल्कि स्वस्थ शिशु को भी जन्म दे सकती हैं।
आपकी आहार योजना और शिशु का स्वास्थ्य
गर्भावस्था के दौरान आपका आहार ही आपके शिशु का स्वास्थ्य निर्धारित करता है। ऐसे में जेस्टेशनल डायबिटीज की स्थिति में आहार योजना के बारे में आहार विशेषज्ञ से सम्पर्क करना आवश्यक हो जाता है। हो सके तो चिकित्सक से अपने आहार की सूची बना लें और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा और अपने वजन को नियंत्रित करने का हर सम्भव प्रयास करें।
नियंत्रण खोने ना पाये
आहार का समय, मात्रा और प्रकार रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को प्रभावित करता है। समय पर सही आहार का सेवन करें और कुछ समय के लिए आहार की योजना का सख्ती से पालन करें। मिठाइयों से तौबा कर लें और दिन में एक से दो बार स्नैक्स लें। फाइबर का सेवन फलों, सब्जियों और ब्रेड के रूप में करें।
शारीरिक श्रम के कई फायदे
प्रतिदिन कम से कम 2 घंटे तक सामान्य व्यायाम करें और लगभग 30 मिनट तक कार्यरत रहें। सामान्य व्यायाम करने पर आपका शरीर इन्सुलिन का सही प्रयोग कर रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करेगा। गर्भवती महिलाओं के लिए तैराकी और टहलना अच्छा व्यायाम है।
मानिटरिंग ही बचाव है
जेस्टेशनल डायबिटीज की चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण भाग है रक्त में शुगर की जांच। प्रतिदिन एक से दो बार घर बैठे रक्त में शुगर की मात्रा की जांच करें और इस विषय में चिकित्सक से परामर्श लें।
भ्रूण विकास और स्वास्थ्य जांच
चिकित्सक आपको फीटल किक की गिनती करने की भी सलाह देगा जिससे यह पता चल सके कि आपका शिशु सामान्य गति से क्रिया कर रहा है या नहीं। शिशु के विकास के परीक्षण के लिए अल्ट्रासाउंड कराना भी एक अच्छा विकल्प है। अगर आपका बच्चा सामान्य से बड़ा है तो आपको इन्सुलिन शाट्स लेने की आवश्यकता है।
फिटनेस चाहिए तो चेक अप है जरूरी
अगर आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है तो समय-समय पर चिकित्सक से सम्पर्क करना आपके और होने वाले शिशु के लिए बहुत आवश्यक है। रक्त में शुगर की मात्रा को देखते हुए आप अपने आहार और वजन नियंत्रण करने के विषय में भी चिकित्सक से सम्पर्क कर सकते हैं। ग्लूकोजमीटर के प्रयोग से रक्त में शुगर की मात्रा की जांच करें।
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टाइप 2 मधुमेह के बारे में जरूरी जानकारी
टाइप 2 मधुमेह क्यों होता है
टाइप-2 डायबिटीज, डायबिटीज का ही एक प्रकार है। लगभग 90 से 95 प्रतिशत लोगों में टाइप 2 डायबिटीज पाया जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज के लक्षण ऐसे लोगों में पाए जाते है जिनके परिवार में पहले से किसी को डायबिटीज या गर्भावधि मधुमेह हुआ हो। इसके साथ ही खानपान की गलत आदतें, मोटापा, व्यायाम की कमी, धूम्रपान और तनाव जैसी बुरी आदतें भी इसका कारण होती हैं।
टाइप 2 मधुमेह कब होता है
टाइप-2 मधुमेह उस समय होता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा मे इंसुलिन नहीं बनता। अथवा जब कोशिकाओं में इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। उस स्थिति को इन्सुलिन प्रतिरोध शक्ति कहा जाता है। इसका परिणाम टाइप-1 डायबिटीज की तरह रक्त में ग्लूकोज का बनना और शरीर का उसको सही रूप में प्रयोग ना कर पाना है।
टाइप 2 डायबिटीज का नियंत्रित कैसे रखें
अपने आहार में सुधार करें
चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट भोजन में वजन बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं जिनकी वजह से मधुमेह हो सकता है। आपको चीनी की मात्रा बिल्कुल कम कर देनी चाहिए, जिससे रक्त में शर्करा का स्तर बिल्कुल नियंत्रण में रहे। ज्यादा मीठी चीजें और मीठे पेय पदार्थों का सेवन इंसुलिन के स्तर को बढा सकता है।
फाइबर का सेवन
फाइबर युक्त आहार का सेवन करें। फाइबर ब्लड में से शुगर को सोखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसलिये आपको गेहूं, ब्राउन राइस या वीट ब्रेड आदि खाना चाहिये जिससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रहे और टाइप-2 मधुमेह का खतरा कम हो।
धूम्रपान ना करें
लम्बे समय तक धूम्रपान करने से हृदय रोग और हार्मोन प्रभावित होने शुरू हो जाते है। धूम्रपान की आदत छोड़ देने से आपका स्वास्थ्य तो अच्छा रहेगा ही साथ ही डायबिटीज भी नियंत्रित रहेगी।
वजन नियंत्रित करें
अकसर देखा गया है कि मधुमेह से पीड़ित अधिकांश लोग अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त होते हैं। ऐसे लोग व्यायाम से वजन घटा सकते है और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार कर सकते हैं। नियमित शारीरिक गतिविधि रक्त शर्करा को कम करने और जटिलताओं का खतरा कम करने का एक प्रभावी तरीका है। इसके साथ ही दिन में 30 मिनट तेज गति से चलना, टाइप 2 मधुमेह को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावी होता है।
थोड़े-थोड़ेे अन्तराल में आहार लें
जितनी भूख हो उतना ही खाएं, भूख से अधिक खाने के कारण भी डायबिटीज-2 के बढ़ने का खतरा रहता है। आप ऐसा भी कर सकते हैं कि एक साथ खाने के स्थान पर थोड़े-थोड़े अन्तराल में भोजन लें। थोड़े-थोड़े अन्तराल में भोजन करने से पोषक तत्व ज्यादा अवशोषित होते हैं और वसा कम जमा होती है। जिससे इन्सुलिन सामान्य रहता है।
नियमित चेकअप कराएं
नियमित रूप से ब्लड शुगर की जांच करें। ब्लड ग्लूकोस मॉनिटर खरीदकर घर पर रक्त शर्करा की नियमित जांच करते रहें। इसमें आपके रक्त की कुछ बूंदे चाहिए होती है जिससे आप यह जान सकते है कि आपका ब्लड शुगर सामान्य है या नहीं।
विटामिन 'डी'
विटामिन-डी की कमी से टाइप 2 डायबिटीज की चपेट में आने का खतरा हो सकता है। विटामिन-डी की कमी से लोगों में इंसुलिन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन डी अंडे के पीले भाग, मछली के तेल, मक्खन, दूध और धूप सेंकने से प्राप्त किया जा सकता है।
नमक का कम सेवन करें
नमक की सही मात्रा आपकी डायबिटीज को नियंत्रित करने मे मदद करती हैं। ज्यादा नमक लेने से शरीर में हार्मोनल डिस्टर्बेंस का खतरा पैदा हो जाता है। इसके यह अलावा यह टाइप 2 डायबिटीज को भी बढा सकता है।
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डायबिटीज से कैसे बचें
डायबिटीज आधुनिक जीवनशैली की देन कहा जा सकता है। इस बीमारी से पीछा छुड़ाना लगभग नामुममिन है। लेकिन, समय रहते अगर सतर्क हो जाएं, तो इस बीमारी के दुष्प्रभावों को जरूर कम कर सकते हैं। इससे हमारे लिए सामान्य जीवन जीना आसान हो जाता है। अच्छा तो यही है कि नियमित रूप से संतुलित आहार के सेवन और व्यायाम के जरिए इस बीमारी को होने से रोका जाए। लेकिन, फिर भी यह बीमारी हो जाए तो आपको अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
खानपान की आदत में सुधार करें
अपनी खानपान की आदतों में सुधार करके डायबिटीज के असर को कम किया जा सकता है। मधुमेह के रोगी को खानपान सम्बन्धी अपनी आदतों को लेकर सतर्कता बरतनी पड़ती है। उसे न सिर्फ अपने भोजन अपितु उसकी मात्रा को लेकर भी सजग रहना पड़ता है। मधुमेह रोगी को चाहिए कि वह अपने भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दे। प्रोटीन का काम शरीर की मरम्मत करना होता है और मधुमेह रोगी के लिए यह बेहद जरूरी पोषक तत्व होता है। इसके साथ ही अपने भोजन में कॉर्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम कर देनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कॉर्बोहाइड्रेट शुगर में परिवर्तित हो जाती है और यही शुगर आपको नुकसान पहुंचाती है।
वजन पर रखें काबू रखें
अगर आपका वजन बढ़ा हुआ है तो सबसे पहले उसे नियंत्रित करें। अधिक वजन और मोटापा डायबिटीज का सबसे बड़ा दुश्मन है। रोजाना सुबह की आधे घंटे की वॉक, साइक्लिंग, सीढ़ियों का प्रयोग, योग और एरोबिक्स आदि डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक है। इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें। बिस्क-वाक नियमित करें ताकि आपकी मांसपेशियां इंसुलिन पैदा कर सकें और ग्लूकोस को पूरा अवषोशित कर सकें।
तनाव से दूर रहें
रक्त में शर्करा की मात्रा का संतुलन गड़बड़ाने में तनाव की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। तनाव से न सिर्फ वजन बढ़ता है, बल्कि साथ ही इससे शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध की भी बड़ी वजह बनता है। तो इसलिए जरूरी है कि तनाव से दूर रहा जाए। इसके लिए योग, हॉट बाथ, कसरत और मसाज आदि जैसे राहत उपायों का सहारा लिया जा सकता है।
विटामिन-के का सेवन करें
विटामिन-के लेने से शरीर में इंसुलिन की प्रक्रिया में मदद मिलती है जो रक्त में ग्लूकोज के स्तर को ठीक रखता है। डायबिटीज रोग में शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ने से इंसुलिन अणु व उनके कार्य प्रभावी होते हैं। इसलिए आपके आहार में विटामिन-के की मात्रा संतुलित होना भी जरूरी है। हरी पत्तेदार सब्जियां लंे। पालक व ब्रोकली जैसे खाद्य पदार्थों में यह विटामिन प्रचुर मात्रा में मिलता है। पुरुषों को 12 माइक्रोग्राम व महिलाओं को 90 माइक्रोग्राम विटामिन-के रोजाना लेना चाहिए।
धूम्रपान छोड़ें
धूम्रपान करने वाले मधुमेह रोगियों में हृदयाघात की आशंका 50 फीसदी अधिक होती है। धूम्रपान हमारी रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
अधिक पानी पीएं
पानी सिर्फ प्यास बुझाने के ही काम नहीं आता, बल्कि कई रोगों के इलाज में भी मददगार होता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी पानी काफी अच्छा होता है। इसलिए अगर आप मधुमेह में भी स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं तो अधिक मात्रा में पानी पिएं।
डायबिटीज में क्या खाएं, क्या न खाएं
डायबिटीज रोगी को अपनी सेहत के लिए स्वस्थ आहार लेना जरूरी होता है। यदि डायबिटीज रोगी अनुचित आहार लेंगे तो उन्हें स्वास्थ्य बिगड़ने के साथ-साथ कई अन्य बीमारियां होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। लेकिन इसके साथ ही यह जरूरी है कि डायबिटीज रोगी को पता हो कि उन्हें आहार में क्या कुछ लेना चाहिए यानी उनके लिए अनुचित आहार क्या है और उचित क्या।
क्या खाना चाहिए
हरी पत्तेदार सब्जियां
हरी पत्तेदार सब्जियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं अन्य खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ये आपकी धमनियों को मजबूत एवं साफ करते हैं। ये खनिज पदार्थ अग्न्याशय यानी पैनक्रियाज को भी स्वस्थ रखते हैं। इससे शरीर में इंसुलिन कि गड़बड़ी पैदा नहीं होने पाती और आप डायबिटीज से बचे रहते हैं।
फल
आम धारणा है कि डायबिटीज मतलब मीठा नहीं खाओ। यही सोचकर लोगों ने यह भी फैसला कर लिया कि डायबिटीज के मरीजों को मीठा फल भी नहीं खाना चाहिए, जबकि फलों की मिठास से डायबिटीज के मरीजों को कोई नुकसान नहीं हो सकता बल्कि ये डायबिटीज मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद हैं। फलों में पाया जाने वाला फाइबर और विटामिन डायबिटीज मरीज के इम्यून सिस्टम को काफी मजबूत बनाता है।
जैतून का तेल
जैतून का तेल सर्वाधिक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य तेल है। इस तेल के उपयोग से हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से रक्षा हो सकती है। मधुमेह रोगियों के लिए यह काफी लाभदायक है। शरीर में शुगर की मात्रा को संतुलित बनाए रखने में इसकी खास भूमिका है। विशेषज्ञों के मुताबिक भूमध्य सागरीय देशों में हृदय रोगियों और मधुमेह रोगियों की कम तादाद होने की प्रमुख वजह यह है कि जैतून का तेल वहां नियमित खाद्य तेल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अन्य देशों की तुलना में इन देशों के लोगों की औसत उम्र भी अधिक होती है।
दालचीनी
दालचीनी एक मसाला ही नहीं, बल्कि एक औषधि भी है। दालचीनी कैल्शियम और फाइबर का एक बहुत अच्छा स्रोत है। दालचीनी मधुमेह को सन्तुलित करने के लिए एक प्रभावी औषधि है, इसलिए इसे गरीब आदमी का इंसुलिन भी कहते हैं। दालचीनी ना सिर्फ खाने का जायका बढ़ाती है, बल्कि यह शरीर में रक्त शर्करा को भी नियंत्रण में रखती है। जिन लोगों को मधुमेह नहीं है वे इसका सेवन करके मधुमेह से बच सकते हैं। और जो मधुमेह के मरीज हैं वे इसके सेवन से ब्लड शुगर को कम कर सकते हैं।
अलसी
डायबिटीज के रोगियों के लिए अलसी अमृत के समान है। चिकित्सक डायबिटीज रोगियों को शुगर की मात्रा कम और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा न के बराबर और फाइबर भरपूर मात्रा में होता है। अलसी ब्लड शुगर को नियंत्रित रखती है, और डायबिटीज से शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं।
नारियल का तेल
नारियल तेल का नियमित सेवन करना डायबिटीज रोगियों के लिए बहुत अच्छा होता है। वास्तव में डायबिटीज के रोगी इंसुलिन को ग्रहण न करने के कारण ग्लूकोज या शर्करा को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाते। नारियल का तेल आपकी कोशिकाओं को बिना इंसुलिन की मदद के आहार प्रदान करता है एवं आपकी कोशिकाओं को आहार मिलता रहता है। इसके अलावा नारियल का तेल पैनक्रियाज को भी स्वस्थ रखता है और इंसुलिन निर्माण के लिए प्रेरित करता है।
मछली
मछली का सेवन करना डायबिटीज रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। डायबिटीज में मैकरेल, सामन, सार्डिन्स और पिलकार्ड्स मछली सबसे ज्यादा लाभकारी होती है। इनमें पाया जाने वाला ओमेगा 3 फैटी एसिड रक्त में मौजूद वसा को कम करता है।
क्या न खाएं
चॉकलेट, कैंडी और कुकीज
मधुमेह रोगियों को चीनी और चीनी से बने खाद्य-पदार्थों से परहेज करना चाहिए। ज्यादा चीनी वाले आहार जैसे - चॉकलेट, कैंडी और कुकीज में पोषक तत्व नही होते हैं और इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है जिससे यह रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा चीनी खाने से मोटापा बढ़ता है जो कि डायबिटीज के लिए खतरनाक है।
सफेद ब्रेड
सफेद आटा खाने के बाद डाइजेस्ट होते वक्त चीनी की तरह काम करता है। इसलिए मधुमेह रोगियों को सफेद ब्रेड खाने से परहेज करना चाहिए। सफेद ब्रेड रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ा सकता है जो कि मधुमेह में घातक है।
केक और पेस्ट्री
मधुमेह रोगियों को केक और पेस्ट्री भी नही खाना चाहिए। क्योंकि केक को बनाते वक्त सोडियम, चीनी आदि का प्रयोग किया जाता है जो कि रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ाता है। यह इंसुलिन के क्रियाकलापों को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा केक और पेस्ट्री दिल की बीमारियों को भी बढ़ाता है।
डेयरी उत्पाद
मधुमेह रोगियों को डेयरी उत्पाद नही खाना चाहिए। डेयरी उत्पादों में संतृप्त वसा होती है, जो कि शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है और इंसुलिन के स्तर को कम करता है। इसलिए डायबिटीज रोगियों को दूध, दही, पनीर आदि डेयरी उत्पादों से बचना चाहिए।
जंक फूड
जंक फूड का सेवन करने से मोटापा बढ़ता है। मधुमेह रोगियों को मोटापा नियंत्रित रखना चाहिए। जंक फूड, फ्राइड आलू, फ्रेच फ्राइज आदि नही खाना चाहिए। इनको खाने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढता है और यह मोटापा का कारण बनता है।
सोडा
इसमें भारी मात्रा में चीनी होती है, जो आपके लिए अच्छी नहीं होती। इससे हड्डियों में कमजोरी, पोटेशियम की कमी, वजन बढ़ना, दांतों को नुकसान, गुर्दे की पथरी, उच्च रक्तचाप, और अन्य कई बीमारियां हो सकती हैं। साथ ही डाइट सोडा में पाई जाने वाली कृत्रिम मिठास को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन लेना पड़ सकता है।
चावल
अगर आप रोज एक बड़ी कटोरी सफेद चावल खाते हैं, तो आपको टाइप-2 मधुमेह होने का खतरा सामान्य से 11 प्रतिशत ज्यादा होता है। चावल के पकाने के तरीके पर ही उसका नफा या नुकसान निर्भर करता है। अगर चावल की बिरयानी बनाई जाए या चावल को मांस या सोयाबीन के साथ खाया जाए, तो डाइबिटीज होने का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि इससे रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा पहुंच जाती है।
फ्रेंच फ्राइज
तेल में फ्राई होने के कारण फ्रेंच फ्राइज मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा नही होता। फ्रेंच फ्राइज का मतलब है हाई ब्लड शुगर जो मधुमेह रोगी के लिए बहुत अधिक नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे खाद्य पदार्थों से दूर रहना ही आपके लिए अच्छा रहेगा।
इन सब्जियों और फलों से बचें
डायबिटीज रोगियों को आलू, अरबी, कटहल, जिमिकंद, शकरकंद, चुकंदर जैसी सब्जियों और चीकू, केला, आम, अंगूर जैसे फलों को खाने से बचना चाहिए। क्योंकि इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट बहुत अधिक मात्रा में होता है, जो शुगर के स्तर को बढ़ा सकता हैं।
रेड मीट से बचें
रेड मीट में पाया जाने वाला फोलिफेनोल्स नामक तत्व रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा देता है। जिससे इंसुलिन की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके अलावा रेड मीट में पाया जाने वाला जटिल प्रोटीन बहुत धीमी गति से पचता है और आपकी चयापचय को धीमा करता है।
स्टार्च युक्त सब्जियों और फल
डायबिटीज रोगियों को आलू, अरबी, कटहल, जिमिकंद, शकरकंद, चुकंदर जैसी सब्जियों और चीकू, केला, आम, अंगूर जैसे फलों को खाने से बचना चाहिए। क्योंकि इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट बहुत अधिक मात्रा में होता है, जो शुगर के स्तर को बढ़ा सकता हैं।
रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट
डायबिटीज के कारण शरीर कार्बोहाइड्रेट को पचा नहीं पाता, जिससे शुगर आपके शरीर में तेजी से जमा होने लगता है। इसलिए अगर आप डायबिटीज को नियंत्रित करना चाहते हैं तो, सफेद चावल, पास्ता, पॉपकॉर्न और वाइट फ्लौर से बचें।
ट्रांस फैट
डायबिटीज के रोगियों को ट्रांस फैट से दूर रहना चाहिए। ट्रांस फैट शरीर में प्रोटीन को ग्रहण करने की क्षमता को कम कर देता है। इससे शरीर में इंसुलिन की कमी होने लगती है और शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
सॉफ्ट ड्रिंक
सॉफ्ट ड्रिंक में शुगर की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है, इसलिए इसके सेवन से ब्लड में शुगर का स्तर बढ़ जाता है। डायबिटीज रोगियों को सॉफ्टड्रिंक से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इसके अलावा इसमें कैलोरी की मात्रा भी बहुत होती है जो डायबिटीज रोगियों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
कृत्रिम स्वीटनर
बहुत से लोगों को लगता है कि डायबिटीज में कृत्रिम स्वीटनर हानिरहित और बहुत अच्छा विकल्प है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, कृत्रिम मिठास चयापचय को धीमा और वसा के जमाव को बढ़ा देता है, जिससे डायबिटीज का खतरा लगभग 67 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
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आंखों के लिए नुकसानदेह है डायबिटीज
डायबिटीज हमेशा बने रहने वाला रोग है। डायबिटीज से किडनी, ब्लड प्रेशर व शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अनेक लोग अवगत हैं, लेकिन इस रोग से आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। डायबिटीज के मरीजों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह मधुमेह रेटिनोपैथी के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी क्या है
डायबिटीक रेटिनोपैथी तब होती है जब हाई ब्लड शुगर आंख के पिछले भाग यानी रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं। डायबिटीज वाले सभी लोगों में यह समस्या होने का जोखिम होता है। डायबिटीक रेटिनोपैथी एक ऐसा रोग है, जिसमें आंख की रेटिना पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की अनदेखी करने पर रोगी की आंख की रोशनी तक जा सकती है। इसका प्रभाव एक या दोनों आंखों पर भी हो सकता है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रभाव
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रतिकूल प्रभाव से रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाएं कमजोर हो जाती हैं और इनके मूल स्वरूप में बदलाव आ जाता है। रक्त वाहिकाओं में सूजन आ सकती है, रक्तवाहिकाओं से रक्तस्राव होने लगता है या फिर इन रक्त वाहिकाओं में ब्रश की तरह की कई शाखाएं विकसित हो जाती हैं। इस स्थिति में रेटिना को स्वस्थ रखने के लिए ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में बाधा पड़ती है। नई रक्त वाहिनियों के बढ़ने पर वे भी रिसाव करती हैं और रोगी की दृष्टि में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रकार
डायबिटीक रेटीनोपैथी दो प्रकार की होती है, बैकग्राउंड डायबिटिक रेटीनोपैथी और मैक्यूलोपैथी। बैकग्राउंड डायबिटीक रेटीनोपैथी आम तौर पर उन लोगों में पाई जाती है, जिन्हें बहुत लंबे समय से डायबिटीज हो। इस स्तर पर रेटिना की रक्त वाहिकाएं बहुत हल्के तौर पर प्रभावित होती हैं। वे थोड़ी फूल सकती है और उनमें से रक्त निकल सकता है। दूसरी मैक्यूलोपैथी उन लोगों को होती है जिनको बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या लंबे समय तक रहती हैं। ऐसा होने पर देखने की क्षमता प्रभावित होती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी कब होती है
गर्भावस्था में डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या बढ़ जाती है। हाई ब्लड प्रेशर इस रोग की स्थिति को गंभीर बना देता है। बचपन या किशोरावस्था में डायबिटीज से ग्रस्त होने वाले बच्चों व किशोरों में यह मर्ज युवावस्था में भी हो सकता है। यह सब स्थितियों में यह ज्यादा पायी जाती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण
शुरुआती दौर में डाइबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण सामान्य तौर पर प्रकट नहीं होते, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, वैसे-वैसे दृष्टि में धुंधलापन आने लगता है। परन्तु इसके लक्षणों में तैरते धब्बे नजर आना, धुंधली दृष्टि, अवरुद्ध, अस्पष्ट दृष्टि आदि शामिल हैं।
डायबिटीक रेटिनोपैथी का इलाज
डायबिटीक रेटिनोपैथी का अगर समुचित इलाज नहीं किया जाए, तो अचानक से आंख की रोशनी चली जाती हैं। डायबिटीज रेटिनोपैथी का इलाज दो विधियों से किया जाता है, लेजर से या वीट्रेक्टॅमी से। लेजर ट्रीटमेंट को 'लेजर फोटोकोएगुलेशन' भी कहते हैं, जिसका ज्यादातर मामलों में इस्तेमाल किया जाता है। डायबिटीज से ग्रस्त जिन रोगियों की आंखों की रोशनी के जाने या उनकी दृष्टि के क्षीण होने का जोखिम होता है, उनमें इस उपचार प्रकार की विधि का प्रयोग किया जाता है।
लेजर ट्रीटमेंट
लेजर ट्रीटमेंट का मुख्य उद्देश्य दृष्टि के मौजूदा स्तर को बरकरार रखकर उसे सुरक्षित रखना है, दृष्टि को बेहतर बनाना नहीं। रक्त वाहिकाओं में लीकेज होने से रेटिना में सूजन आ जाती है। इस लीकेज को बंद करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। यदि आंखों में नई रक्त वाहिकाएं विकसित होने लगती हैं, तो उस स्थिति में पैन रेटिनल फोटोकोएगुलेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही लेजर तकनीक से सामान्य तौर पर कारगर लाभ मिलने में तीन से चार महीने का वक्त लगता है।
वीट्रेक्टॅमी ट्रीटमेंट
कभी-कभी नई रक्त वाहिकाओं से आंख के मध्य भाग में जेली की तरह रक्त स्राव होने लगता है। इस स्थिति को 'वीट्रीऑस हेमरेज' कहते हैं, जिसके कारण दृष्टि को अचानक नुकसान पहुंचता है। अगर 'वीट्रीऑस हेमरेज' बना रहता है, तब वीट्रेक्टॅमी की प्रक्रिया की जाती है। यह सूक्ष्म सर्जिकल प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से आंख के मध्य से रक्त और दागदार ऊतकों को हटाया जाता है।
कब बढ़ता है खतरा
जैसे-जैसे डायबिटीज की अवधि बढ़ती है इस रोग के होने की आशंका बढ़ती जाती हैं। और अक्सर ऐसा देखा गया है कि लगभग पिछले 15 सालों में 80 फीसदी लोग जो डायबिटीज से पीड़ित हैं, उनके रेटिना की रक्त वाहिकाओं में कोई न कोई समस्या आ ही जाती है।
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डायबिटीज का पता लगाने वाले टेस्ट
डायबिटीज ऐसा रोग है जिसमें ब्लड ग्लूकोज का स्तर सामान्य से ज्यादा हो जाता है। जिससे डायबिटीज रोगी को भोजन को ऊर्जा में बदलने में परेशानी होती है। सामान्यतः भोजन के बाद शरीर भोजन को ग्लूकोज में बदलता है जो रक्त कोशिकाओं के जरिये पूरे शरीर में जाता है। कोशिकाएं इंसुलिन का उपयोग करती है। यह एक हार्मोन है जो पेनक्रियाज में बनता है और ब्लड ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करता है। आमतौर पर इसका पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि इसके लक्षण सामान्यतः स्वास्थ्य समस्याओं की तरह ही होते हैं। इसलिए, डायबिटीज का पता लगाना के लिए परीक्षण करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
डायबिटीज का पता लगाने के लिए किये जाने वाले टेस्ट
ग्लूकोज फास्टिंग टेस्ट
ग्लूकोज फास्टिंग टेस्ट को फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (एफपीजी) भी कहते है। यह टेस्ट बिना कुछ खाये-पिये सुबह के वक्त किया जाता है। टेस्ट से पहले फास्टिंग से ब्लड शुगर का सही स्तर पता करने में मदद मिलती है। यह टेस्ट बहुत ही सटीक, सस्ता और सुविधाजनक होता है। ग्लूकोज फास्टिंग टेस्ट प्री डायबिटीज और डायबिटीज का पता लगाने का सबसे लोकप्रिय टेस्ट है।
ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट
ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट को ओजीटीटी के नाम से भी जाना जाता है। इस टेस्ट से पहले करीब 2 घंटे पहले करीब 75 ग्राम एनहाइड्रस ग्लुकोज को पानी में मिला कर पीना होता है तभी शुगर के सही स्तर की जांच की जा सकती है। यह टेस्ट ऐसे व्यक्ति को कराने के लिए कहा जाता है जिसको डायबिटीज का संदेह तो होता है परन्तु उसका एफपीजी टेस्ट ब्लड शुगर के स्तर को नॉर्मल दर्शाता है। ओजीटीटी टेस्ट करने के लिए कम से कम 8 से 12 घंटे पहले कुछ नही खाना होता है।
ए 1 सी टेस्ट
ए 1 सी टेस्ट डायबिटीज के दैनिक उतार-चढ़ाव न दिखाकर, पिछले दो से तीन महीनों के अन्दर होने वाले ब्लड शुगर की औसत राशि के बारे में बताता है। यह हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ी ग्लूकोज की मात्रा को भी नापता है। आमतौर पर टाइप 1 मधुमेह या गर्भावधि मधुमेह के लिए ए 1 सी टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, प्री डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज का पता लगाने के लिए इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्रेडिशनल ग्लूकोज टेस्ट की तुलना में रोगियों के लिए अधिक सुविधाजनक होता है क्योंकि इसमें फास्टिंग की जरूरत नही होती है। इस टेस्ट को दिन में किसी भी समय किया जा सकता है।
रैंडम प्लाज्मा ग्लूकोज
रैंडम प्लाज्मा ग्लूकोज (आरपीजी) टेस्ट का प्रयोग कभी कभी एक नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान पूर्व मधुमेह या मधुमेह का निदान करने के लिए किया जाता है। अगर आरपीजी 200 लिटर का दशमांश प्रति माइक्रोग्राम या उससे ऊपर दिखाता है और व्यक्ति में मधुमेह के लक्षणों का पता चलता है, तो चिकित्सक डायबिटीज का पता लगाने के लिए अन्य टेस्ट करता है।
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ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के उपाय
ब्लड शुगर एक खतरनाक बीमारी है। इसकी अगर सही समय पर रोकथाम नहीं की गई तो यह जानलेवा भी हो सकती है। आज यह बीमारी गलत खानपान, मानसिक तनाव, मोटापा और शारीरिक श्रम की कमी के कारण आम हो गई है। बुजुर्गों के साथ ही युवा भी इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं। यह बीमारी शरीर में अग्नाशय द्वारा इन्सुलिन का स्राव कम होने के कारण होती है। कुछ उचित तरीकों को अपनाकर ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है।
फाइबर युक्त आहार
खाद्य पदार्थो में फाइबर की भरपूर मात्रा ब्लड शुगर के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है। फाइबर युक्त आहार ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है, दिल की बीमारियों के खतरे को कम करता है और इससे वजन कम करने में मदद मिलती है। अवशोषित फाइबर रक्त में शुगर की अधिक मात्रा को अवषोशित कर लेता है और इन्सुलिन को सामान्य करके ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। अनाज, सब्जियां, फल, बीन्स, नट्स आदि में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
हरी सब्जियों का सेवन
ताजी हरी सब्जियों में आयरन, जिंक, पोटेशियम, कैल्शियम और अन्य कई पोषक तत्व पाये जाते हैं जो कि हमारे शरीर के लिए आवश्यक हैं और इन्हीं से हमारा हृदय और नर्वस सिस्टम भी स्वस्थ रहता है। इससे शरीर इन्सुलिन की जरूरी मात्रा का उत्पादन करता है। ब्लड शुगर में लाल मांस का सेवन भी नहीं करना चाहिए। लाल मांस में फोलिफेनोल्स पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा देता है और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।
धूम्रपान न करें
धूम्रपान से रक्त नलिकाएं सिकुड़ती हैं और रक्त में वसा का स्तर बढ़ जाता है। लम्बे समय तक धूम्रपान करने से हृदय रोग और हार्मोन प्रभावित होना शुरू हो जाते हैं। धूम्रपान छोड़ने से हृदय रोग और स्ट्रोक होने की आशंका कम हो जाती है। इससे आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और ब्लड शुगर भी नियंत्रित रहेगा।
शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाएं
ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है कि शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाया जाये। इससे आपका वजन नियंत्रित रहने के साथ ही ब्लड शुगर का स्तर भी नियंत्रण में रहेगा। इससे आप पर इन्सुलिन का असर अधिक प्रभावी होगा। इसके साथ ही एक्सरसाइज को भी अपनी दिनचर्या में शामिल करें। व्यायाम आपको स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है। प्रतिदिन व्यायाम करने से हमारा मेटाबोलिज्म भी अच्छा रहता है और ब्लड शुगर के खतरे को भी कम किया जा सकता है।
वजन पर नियंत्रण
अधिक वजन भी एक समस्या है, जो कि अन्य कई समस्याओं को जन्म देता है। वजन का जरूरत से ज्यादा होना ब्लड शुगर की आशंका को बढ़ा देता है। ब्लड शुगर और मोटापे में सीधा संबंध है। इसलिए ऐसे लोगों को वजन नियंत्रित करने की ज्यादा जरूरत होती है। वजन को नियंत्रित करने के लिए स्वस्थ आहार, व्यायाम और समय- समय पर वजन की जांच कराना बहुत जरूरी है।
नियमित जांच करवाएं
ब्लड शुगर वालों को अपनी जांच नियमित रुप से करवानी चाहिए। रोगियों को ब्लड ग्लूकोज मॉनिटर खरीद लेना चाहिए, जिससे वे घर पर भी आसानी से ब्लड ग्लूकोज की जांच कर सकते हैं। इसका प्रयोग काफी आसान होता है। इसमें जांच के लिए आपको रक्त की कुछ बूंदें लेनी होती है, जिससे आप यह जान सकते हैं कि आपका ब्लड शुगर सामान्य है या नहीं।
थोड़े-थोड़े अन्तराल में भोजन
ब्लड शुगर से पीड़ित व्यक्ति को हमेशा अपने साथ कोई मीठी चीज जैसे ग्लूकोज, शक्कर, चॉकलेट, मीठे बिस्किट रखना चाहिए। यदि हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण दिखें तो तुरंत इनका सेवन करना चाहिए। एक सामान्य डायबिटिक व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि वे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाते रहें। दो या ढाई घंटे में कुछ खाएं। एक समय पर बहुत सारा खाना न खाएं। थोड़े-थोड़े अन्तराल में भोजन करने से पोषक तत्व ज्यादा अवषोशित होते हैं और शरीर में वसा कम जमा होता है। इससे इन्सुलिन सामान्य हो जाती है।
ट्रांस फैट से दूर रहें
ब्लड शुगर वालों को ट्रांस फैट से दूर रहना चाहिए। इससे हमारा शरीर प्रोटीन की सही मात्रा ग्रहण नहीं कर पाता। इसके चलते शरीर में इन्सुलिन की कमी हो जाती है और हमारे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। ब्लड शुगर में केक, पेस्ट्री, चिप्स और फास्ट फूड का सेवन न करें क्योंकि इनमें ट्रांस फैट का इस्तेमाल होता है।
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कहीं आपको डायबिटीज तो नहीं
डायबिटीज एक क्रोनिक डिजीज है और इसके लक्षण छोटी बीमारियों की तरह आम होते है। इससे संबंधित लक्षण दिखाई देने पर भी यह कहना मुश्किल है कि आपको डायबिटीज है। डायबिटीज के लक्षणों का पर्याप्त ज्ञान आपको मधुमेह के बारे में सटीक जानकारी दे सकता हैं।
डायबिटीज टाइप 2 के कुछ सामान्य लक्षण
अत्यधिक प्यास लगना
थोड़ी-थोड़ी देर में प्यास लगना हाई ब्लड शुगर के स्तर का एक आम प्रकार है। हाई ग्लूकोस स्तर वाले लोगों को अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा प्यास लगती है। हालांकि यह प्रमुख लक्षण नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से मधुमेह की तरफ इशारा कर सकता है।
बार-बार पेशाब आना
मधुमेह में बार-बार पेशाब आने की समस्या होती है। जब शरीर में ज्यादा मात्रा में शुगर इकट्ठा हो जाता है तो यह पेशाब के रास्ते से बाहर निकलता है। इसी कारण मधुमेह रोगी को बार-बार पेशाब की शिकायत शुरू हो जाती है। रात में बार-बार पेशाब जाना भी हाई ग्लूकोज स्तर का अन्य लक्षण है। अगर आप लगातार कई दिनों तक रात में उठकर बार-बार पेशाब जाते हैं तो आपको चिकित्सक की सलाह के साथ ही ब्लड शुगर की जांच करानी चाहिए।
अचानक वजन कम होना
मधुमेह का आम लक्षण अचानक वजन का कम होना है। डायबिटीज की शुरूआत में अचानक वजन तेजी से कम होने लगता है। हालांकि वजन किसी और कारण से भी कम हो सकता है। जरूरी नहीं कि आपको डायबिटीज की समस्या हो। फिर भी यदि आपके साथ ऐसा हो तो इसे गंभीरता से लें।
थकान महसूस होना
डायबिटीज के शुरूआती दिनों में रोगी को पूरे दिन थकान महसूस होती है। भरपूर नींद लेने पर भी सुबह उठने पर ऐसा लगता है कि नींद पूरी नहीं हुई है और थकान महसूस होती है। इससे यह साफ होता है कि ब्लड में शुगर का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण
टाइप 1 डायबिटीज में टाइप 2 के मुकाबले शरीर द्वारा इन्सुलिन का खराब उत्पादन होता है। टाइप 1 डायबिटीज में टाइप 2 डायबिटीज के लक्षणों के साथ और भी कुछ लक्षण होते हैं। इन लक्षणों से आपको यह पता करने में आसानी होती हैं कि आपको डायबिटीज है या नहीं।
संक्रमण
योनि या लिंग के आसपास खुजली या नियमित बाउट, संभवतः मधुमेह के कारण हो सकती है। इन समस्याओं से गुजर रहे व्यक्ति को जल्द ही चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
धुंधला दिखाई देना
मधुमेह दूरदृष्टि के कारण रेटिना में कोशिकाओं को प्रभावित करता है। यह लक्षण लगभग उन सभी लोगों में होते हैं जिनमें हाई ब्लड शुगर की पुष्टि हो जाती है। डायबिटीज अपनी शुरूआत से ही आंखों पर असर डालना शुरू कर देती है। डायबिटीज के शुरू होने पर इसके रोगी की आंखों की रोशनी कम होने लगती है और धुंधला दिखाई देने लगता है। किसी भी वस्तु को देखने के लिए उसे आंखों पर अपेक्षाकृत ज्यादा जोर डालना पड़ता है।
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डायबिटीज की समस्याओं से कैसे बचें
डायबिटीज वह अवस्था है जब रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। ऐसी परिस्थिति तब होती है, जब शरीर द्वारा इंसुलिन का अप्रभावी उत्पादन या उपयोग होता है। आम तौर पर डायबिटीज के लक्षण मामूली स्वास्थ्य समस्याओं की तरह होते हैं इसलिए इनको पहचानना जरा मुश्किल होता है। लेकिन जरा सी सावधानी बरतकर आप इस बीमारी की जटिलताओं से बच सकते हैं।
ब्लड शुगर के स्तर पर नियंत्रण रखें
डायबिटीज की जटिलताओं से बचने के लिए नियमित रूप से ब्लड शुगर की जांच करवाते रहना चाहिए। ब्लड शुगर को नियंत्रित रख कर डायबिटीज की जटिलता के जोखिम को कम किया जा सकता है। अगर आप उच्च रक्तचाप या मोटापे से ग्रस्त हैं तो आपको शुगर के स्तर की जांच जल्दी-जल्दी करवानी चाहिए।
अधिक प्रोटीन वाले आहार का सेवन करें
डायबिटीज के शिकार लोगों को अपने आहार में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थो को शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए जिनमें कार्बोहाइड्रेट और वसा की अधिकता हो। प्रोटीन, चयापचय दर को बढ़ाकर ऊर्जा के स्तर को बनाये रख सकता है।
रक्तचाप पर नियंत्रण रखें
उच्च रक्तचाप का असर दिल, किडनी और आंखों पर पड़ता है। डायबिटीज रोगियों में उच्च रक्तचाप बहुत ही आम होता है। साथ ही ऐसे लोगों में स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा भी अधिक रहता है। रक्तचाप पर नियंत्रण कर कोई भी डायबिटीज के जोखिम से आसानी से बच सकता है।
पैरों की दैनिक जांच करें
डायबिटीज में पैरों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है, जिससे पैरों में अल्सर और संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। कई बार इसके कारण अंग विच्छेदन की जरूरत भी पड़ सकती है। डायबिटीज रोगियों को यह सलाह दी जाती हैं कि वह दैनिक आधार पर अपने पैरों के घाव और दरारों की जांच करें। और किसी भी तरह का घाव या दरार दिखाई देने पर तुरंत इलाज के लिए डाक्टर से परामर्श लें।
आंखों की देखभाल करें
लंबेे समय तक डायबिटीज के कारण छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है। यह मधुमेह रेटिनोपैथी की बड़ी वजह होती है। यह अंधेपन के प्रमुख कारणों में से भी एक है। इसलिए डायबिटीज रोगियों को प्रतिवर्ष एक बार अपनी आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए। डायबिटीज की जटिलताओं से बचने के लिए आंखों में किसी भी प्रकार की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
व्यायाम करें
व्यायाम करने से शरीर में खून का दौरा सही रहता है और खून में शक्कर की मात्रा भी नियंत्रण में रहती है। इस वजह से हाई मेटाबॉलिज्म और मधुमेह का कम खतरा रहता है। इसलिए, यदि आपको डायबिटीज की समस्या है तो उसे नियंत्रण में रखने के लिए व्यायाम से आपको काफी मदद मिल सकती है।
फाइबर युक्त आहार का सेवन करें
खून में से शुगर को सोखने में फाइबर का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिये आपको गेहूं, ब्राउन राइस या वीट ब्रेड आदि खाना चाहिये जिससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रहेगा, जिससे डायबिटीज का खतरा कम होगा। इसके अलावा कई सब्जियों में भी उच्च मात्रा में फाइबर पाया जाता है।
ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें
फलों में प्राकृतिक चीनी का मिश्रण होता है और यह शरीर को हर तरह का पोषण देते हैं। ताजे फलों में विटामिन ए और सी होता है जो कि खून और हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाये रखता है। इसके अलावा इनमें जिंक, पोटैशियम, आयरन का भी अच्छा मेल पाया जाता है। इनमें कैलोरी कम और विटामिन सी, बीटा कैरोटीन और मैगनीशियम ज्यादा होती हैं, जिससे मधुमेह ठीक होता है।
फास्ट फूड से परहेज करें
फास्ट फूड में न केवल खूब सारा नमक होता है बल्कि शक्कर और कार्बोहाइड्रेट तेल के रूप में होता है। यह सब आपके ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ाते हैं।
तनाव कम करें
ऑक्सीटोसिन और सेरोटिन दोनों ही नसों की कार्यक्षमता पर असर डालते हैं। तनाव के समय जब एड्रानलिन का रिसाव होता है तब यह बाधित हो जाता है, जिससे डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
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ब्लड शुगर: मिथक बनाम तथ्य
ब्लड शुगर को लेकर लोगों में कई तरह के भ्रम हैं। हालांकि इसके कुछ कारण निश्चित हैं लेकिन इनको ब्लड शुगर होने का मुख्य कारण नहीं कहा जा सकता है। कुछ लोगों को यह भ्रम होता है कि शुगर डायबिटीज यानी ब्लड शुगर का प्रमुख कारण है, जबकि यह सच्चाई नहीं है।
डायबिटीज से संबंधित कुछ मिथक और उनके तथ्य
मिथक: ब्लड शुगर का असली कारण शुगर है।
तथ्य: ब्लड शुगर का प्रमुख कारण शुगर को माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। टाइप-1 डायबिटीज इंसुलिन बनाने वाली 90 प्रतिशत से अधिक कोशिकाओं के समाप्त होने से होती है जो पैंक्रियाज में मौजूद होती है। इसका संबंध सीधे शुगर से नहीं होता है। जबकि टाइप 2 डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन बनाता है जो कभी-कभार सामान्य स्तर से भी अधिक मात्रा में होता है लेकिन, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के कारण इसका शरीर पर बुरा असर नहीं पडता है।
मिथक: किसी मित्र या पड़ोसी के डायबिटीक होने पर आपको भी यह बीमारी हो सकती है।
तथ्य: ब्लड शुगर कोल्ड या फ्लू की तरह संक्रामक बीमारी नहीं है। कई शोधों से ब्लड शुगर होने के कुछ आनुवांशिक कारणों का तो पता चला है और साथ ही ऐसा यह भी पाया गया है कि जीवनशैली में बदलाव भी इसका प्रमुख कारण है।
मिथक: ब्लड शुगर से पीड़ित मीठा नहीं खा सकते हैं।
तथ्य: ब्लड शुगर रोगियों में सबसे बडा डर मिठाई को लेकर होता है। मधुमेह के रोगी कुछ हद तक अपने संतुलित भोजन के हिस्से के तौर पर मीठा खा सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी खुराक में कार्बोहाइड्रेट की कुल मात्रा को नियंत्रित करना होगा। मिठाई से सिर्फ कैलोरी मिलती है कोई पोषण नहीं। इसलिए मीठे को सीमित मात्रा में लीजिए, लेकिन उससे बिल्कुल परहेज न करें।
मिथक: ब्लड शुगर रोगियों को आराम करना चाहिए।
तथ्य: पुराने समय में यह मान्यता थी कि ब्लड शुगर के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए। जबकि नए शोध के अनुसार, ब्लड शुगर के मरीज को सक्रिय रहना चाहिए और दिन में कम से कम 30 से 40 मिनट तक एक्सरसाइज करना चाहिए। एक्सरसाइज करने से वजन नियंत्रित रहता है और ग्लूकोज पर नियंत्रण रहता है।
मिथक: ब्लड शुगर का उपचार दवाइयों से हो सकता है।
तथ्य: ब्लड शुगर जीवन भर का रोग है क्योंकि अभी तक इसका स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं हो पाया है। हालांकि, दवाईयों और इंसुलिन के इंजेक्शन से इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। उचित तरीके से रहन-सहन और खान-पान से ब्लड शुगर के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
मिथक: मोटापे के कारण होता है ब्लड शुगर।
तथ्य: आम धारणा है कि मोटापा के कारण ब्लड शुगर होता है। जबकि, हर मोटे लोग ब्लड शुगर से ग्रस्त नही होते हैं। लेकिन मोटे लोगों को ब्लड शुगर की चपेट में आने की संभावना ज्यादा होती है। वजन को सामान्य रखने से कुछ हद तक ब्लड शुगर से बचाव किया जा सकता है।
मिथक: ब्लड शुगर एक निश्चित आयु में होता है।
तथ्य: कुछ लोगों को यह मानना है कि ब्लड शुगर की समस्या 40 वर्श के बाद ही होता है। बच्चों और युवाओं को यह नहीं होता। जबकि, बचपन में होने वाला रोग वयस्कों से अलग होता है। बच्चों को जब ब्लड शुगर होता है तो उनका शारीरिक विकास नहीं हो पाता है जिसके कारण बच्चे दुबले होते हैं।
मिथक: यूरीन में ग्लूकोज न आने पर रोग समाप्त हो जाता है।
तथ्य: ब्लड शुगर के कुछ मरीजों को लगता है कि पेशाब में ग्लूकोज न आने का मतलब है कि ब्लड शुगर समाप्त हो गया। जबकि, ब्लड शुगर पर नियंत्रण होने का मतलब खून में ग्लूकोज की कमी होना है ना कि पेशाब में। इसलिए नियमित रूप से ग्लूकोज के स्तर की जांच कराते रहना चाहिए।
मिथक: प्रतिदिन के तनाव का ब्लड शुगर से कोई संबंध नहीं होता।
तथ्य: तनाव की स्थिति में रक्त में शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। ब्लड शुगर के मरीजों को आराम करने और तनाव की स्थिति को नियंत्रित करने की सलाह दी जाती है।
मिथक: ब्लड शुगर से पीड़ित महिला को गर्भ धारण नहीं करना चाहिए।
तथ्य: ब्लड शुगर से पीड़ित महिलाओं को गर्भ धारण के प्रति दृष्टिकोण अब काफी बदल गया है। ब्लड षुगर से पीड़ित महिलाएं गर्भ धारण कर सकती हैं लेकिन उन्हें इस दौरान अपने रक्त शर्करा पर पूरी तरह से नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।
मिथक: ब्लड शुगर से पीड़ित सभी लोगों को इंसुलिन लेने की जरूरत होती है।
तथ्य: टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त सभी लोगों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है क्योंकि उनका पैनक्रियाज इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। लेकिन टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त कुछ लोगों को ही अपने रक्त शर्करा के स्तर का प्रबंधन करने के लिए गोलियों के साथ इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है।
मिथक: एक बार ब्लड शुगर होने पर यह हमेशा रहता है।
तथ्य: ब्लड शुगर के लक्षणों को खत्म करना संभव है। मोटापे से ग्रस्त लोग अपना वजन कम कर समुचित आहार का सेवन कर ब्लड शुगर के लक्षणों को खत्म कर सकते हैं।
मिथक: मधुमेह होने पर चीनी बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए।
तथ्य: मधुमेह होने पर चीनी बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए, यह हम सभी के दिमाग में बैठा हुआ है। लेकिन स्वस्थ आहार का सेवन कर अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों का आनंद ले सकते हैं। मिठाई को खुद से बिल्कुल दूर रखने की जरूरत नहीं है जब तक आप स्वस्थ आहार का सेवन करते हैं या व्यायाम करते हैं।
मिथक: हाई प्रोटीन आहार सबसे अच्छा होता है।
तथ्य: बहुत ज्यादा प्रोटीन, विशेष रूप से पशु प्रोटीन, खाना इंसुलिन प्रतिरोध का कारण बन सकता है। जो वास्तव में मधुमेह का एक महत्वपूर्ण कारक है। संतुलित आहार एक कुंजी है। स्वस्थ आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा शामिल होता है। हमारे शरीर को ठीक ढ़ंग से काम करने के लिए तीनों की जरूरत होती है।
मिथक: मधुमेह रोगियों को कार्बोहाइड्रेट में कटौती करना चाहिए।
तथ्य: संतुलित आहार खाना सेहत की कुंजी होती है। सर्विंग का साइज और कार्बोहाइड्रेट का प्रकार विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता हैं। इसलिए साबुत अनाज वाले कार्बोहाइड्रेट पर ध्यान दें क्योंकि यह फाइबर का अच्छा स्रोत होता है, आसानी से पच जाता है और रक्त में शुगर के स्तर को सही रखता है।
मिथक: मधुमेह रोगियों को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
तथ्य: दूध कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का सही संयोजन होता है और यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। दैनिक आहार में दो गिलास दूध पीना एक अच्छा विकल्प है।
मिथक: आहार में फाइबर वाली सब्जियांे को षामिल नहीं करना चाहिए।
तथ्य: अपने आहार में उच्च फाइबर सब्जियां जैसे मटर, सेम, ब्रोकोली, पालक और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें। इसके अलावा दालें भी एक स्वस्थ विकल्प हैं और इसे अपने आहार का हिस्सा बनाएं।
मिथक: फाइबर वाले फल का सेवन नहीं करना चाहिए।
तथ्य: फाइबर से भरपूर फल जैसे पपीता, सेब, संतरा, नाशपाती और अमरूद का सेवन करना चाहिए। आम, केले और अंगूर में शुगर की अधिक मात्रा होने के कारण इन फलों को सेवन कम करना चाहिए।
मिथक: मधुमेह रोगी कृत्रिम स्वीटनर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तथ्य: कृत्रिम स्वीटनर मूल रूप से शुगर से मिलने वाली कैलोरी को कम करता है। लेकिन इन गोलियों का सेवन एक दिन में 6 गोलियों से कम होना चाहिए क्योंकि ज्यादा लेने से इसके दुश्प्रभाव होने लगते है।
मिथक: यदि दवा से शुगर नियंत्रण में हो तो वजन कम करने की जरूरत नहीं है।
तथ्य: यदि आप मोटे हैं, तो मधुमेह की रोकथाम वजन घटाने पर निर्भर हो सकती है। वजन का हर एक किलो कम करना आपके स्वास्थ्य में आष्चर्यजनक रूप से सुधार कर सकता है। कम कार्बोहाइड्रेट वाले आहार और आहार योजना से आपको वजन कम करने में मदद मिल सकती है।
मिथक: मधुमेह के नियंत्रण में विटामिन डी की कोई भूमिका नहीं है।
तथ्य: ज्यादातर लोग विटामिन डी को महत्वपूर्ण नहीं समझते हैं। लेकिन यह मधुमेह से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसलिए विटामिन डी के स्तर की जांच की जानी चाहिए। कम विटामिन डी मधुमेह का कारण भी हो सकता है। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत धूप सेंकना है।
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यौवनावस्था में होने वाले परिवर्तनों से घबराएं नहीं
यौवनावस्था में शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं। लड़कियों के लिए यौवन 8 से 13 साल की उम्र के बीच कभी भी शुरू हो सकता है (और कभी-कभी पहले या बाद में) लेकिन पहला परिवर्तन अक्सर 10 या 11 साल के आसपास होता है।
लड़कों के लिए पहला परिवर्तन लड़कियों की तुलना में थोड़ा देर से होता है। उनमें यह परिवर्तन 10 से 15 साल के बीच कभी भी शुरू हो सकता है। अधिकतर लड़कों में पहला परिवर्तन तब षुरू होता है जब वे 11 या 12 साल के आसपास होते हैं।
जैसा कि हम सभी लोग अलग-अलग है इसलिए हम यौवनावस्था में अलग-अलग समय पर और अलग-अलग दर पर जा सकते हैं। कुछ लोगों में सभी परिवर्तन आसानी से दिखने लगते हैं तो कुछ लोगों को कुछ समस्याएं हो सकती है।
आपके शरीर में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
कुछ परिवर्तन लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए एक समान होते हैं।
होने वाले परिवर्तन
लंबा होना (और पांव का बड़ा होना)
आकार में परिवर्तन होना
''मूडी'' महसूस करना
हाथ और पैरों पर अधिक बाल होना और कांख और प्रजनन क्षेत्र में नये बाल का उगना- इसकी षु्रुआत पतले बालों से होती है और जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं ये बाल अधिक मोटे और गहरे हो जाते हैं।
अधिक पसीना आना और उसमें कुछ गंध होना
त्वचा का तैलीय होना और अक्सर कुछ मुंहासे निकलना
यौन इच्छा महसूस करना
भावनात्मक परिवर्तन
लड़के और लड़कियां दोनों हीं यौवनावस्था में कई प्रकार के भावनात्मक परिवर्तन से गुजरते हैं
यह हर कोई जानता है कि लड़कियों में जब हार्मोन परिवर्तन होता है और मासिक धर्म शुरू होता है तो वे भावुक हो सकती हैं, लेकिन लड़कों को भी हार्मोन परिवर्तन का सामना करना पड़ता है, हालांकि उनमें यह परिवर्तन लड़कियों की तुलना में आम तौर पर दो साल देर से होता है और वे कभी-कभी भूल जाते हैं।
यौवन कई परिवर्तन का समय है। यह बहुत रोमांचक समय हो सकता है और बहुत ही चिंताजनक समय भी हो सकता है। याद रखें, हर वयस्क यौवन से गुजरता है और उनके पास कुछ ऐसे विचार हो सकते हैं जो आपको परेशान कर सकते हैं। यदि आप किसी चीज को लेकर परेषान हैं तो अपने माता-पिता, शिक्षक या विश्ससनीय वयस्क से बात करें।
कभी-कभी दूसरे बच्चे कुछ पूछने के लिए हमेशा सही साबित नहीं होते हैं क्योंकि उनके पास आपकी जरूरत के अनुसार सही जानकारी नहीं हो सकती है या वे चीजों को सही तरीके से नहीं समझ सकते हैं।
याद रखें हर कोई यौवन से गुजरता है और हर किसी का अनुभव अलग-अलग हो सकता है, इसलिए यदि आप वास्तव में कुछ चीज को लेकर चिंतित हैं तो पूछें। यदि आपको कहीं से भी सही जवाब नहीं मिल सकता है या उन प्रकार के सवालों को पूछने में सहज महसूस नहीं करते हैं तो अपने चिकित्सक के पास जाएं।
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टाइप टू डायबिटीज के लक्षणों को पहचानें
टाइप टू मधुमेह की शुरुआत में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन अक्सर लोगों को इन लक्षणों की जानकारी नहीं होती जिसके कारण वे इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। असल में यह गंभीर समस्या के संकेत होते हैं।
टाइप टू मधुमेह की शुरुआत में दिखने वाले लक्षण
यूरीन की समस्या
अगर आपको हर थोड़ी-थोड़ी देर में बाथरुम जाने की जरूरत महसूस हो तो यह सामान्य नहीं है। खासकर रात में जब आपको नींद के बीच में बार-बार बाथरुम जाने की जरूरत पड़े। ऐसा तब होता है जब आप मधुमेह की चपेट में हों। ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ने से इसकी ओस्मोलालिटी बढ़ जाती है, जिससे रक्तप्रवाह में तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। इससे किडनी पर ज्यादा दबाव पड़ता है, जिससे ज्यादा यूरीन बनता है।
ज्यादा प्यास लगना
अगर आपको बार-बार प्यास लगती है तो यह सामान्य नहीं है। शरीर से ज्यादा मात्रा में पानी निकलने के कारण ज्यादा पानी की जरूरत होती है और बार-बार प्यास का एहसास होता है। ज्यादा प्यास लगने और ज्यादा पेशाब लगने को एक साथ मिलाकर मधुमेह की पहचान अच्छे से की जा सकती है।
धुंधला दिखाई देना
मधुमेह के रोगी को देखने में भी परेशानी होती है। शरीर में ग्लूकोज की अधिक मात्रा रक्त और उतकों के साथ आंख के उतकों से भी तरल पदार्थ खींच लेता है। इससे आंख के देखने की क्षमता प्रभावित होती है। अगर मधुमेह का इलाज न करवाया जाए तो आंख की रोशनी पूरी तरह से भी जा सकती है।
तेजी से वजन घटना
टाइप-2 मधुमेह का यह सबसे सामान्य लक्षण वजन में तेजी से कमी आना है। जैसै-जैसे शरीर में मधुमेह का स्तर बढ़ने लगता है शरीर ऊर्जा के लिए उतकों को तोड़ता है, जिससे कोशिकाओं को पर्याप्त ग्लूकोज नहीं मिलता है। परिणामस्वरुप दो या तीन महीने में दो या तीन किलो वजन कम होने लगता है।
थकान महसूस करना
जब टाइप टू डायबिटीज की समस्या बढ़ जाती है तो रोगी को थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है क्योंकि शरीर शुगर का उपयोग ऊर्जा के लिए नहीं कर पाता है। ऐसे में कोशिकाएं इंसुलिन के बिना रक्तप्रवाह में मौजूद ग्लूकोज को अवशोषित नहीं कर पाती हैं, जिससे ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है।
झनझनाहट होना
अगर आपके हाथ और पैरों में झनझनाहट या अकड़न रहती है तो यह मधुमेह का लक्षण भी हो सकता है। दरअसल खून में शुगर की ज्यादा मात्रा होने से नर्वस सिस्टम पर असर होता है। अगर यह समस्या कुछ दिनों में ठीक ना हो तो डॉक्टर को दिखा कर मधुमेह जांच अवश्य करवाएं।
चोट ठीक ना होना
अगर शरीर के किसी हिस्से में चोट लगी है और उसे ठीक होने में सामान्य से अधिक समय लगता है तो इस हल्के में ना लें। रक्त में शुगर की ज्यादा मात्रा से इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है जिससे ऊतकों में पानी संतुलन बिगड़ जाता है जिससे जख्म देरी से भरते हैं।
त्वचा की समस्या
त्वचा में कालापन, खुजली और रुखेपन की समस्या होना मधुमेह का लक्षण हो सकता है। पेरीफेरल न्यूरोपेथी के कारण पसीने वाली ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती है जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं शुरु हो जाती हैं।
ज्यादा भूख लगना
अगर आप खाने की ठीक खुराक ले रहे हैं और कुछ खास शारीरिक मेहनत भी नहीं कर रहें हैं फिर भी आपको बार-बार भूख का एहसास हो रहा है तो यह एक संकेत है कि आप अपना मधुमेह परीक्षण करा लें।
मसूड़ों की समस्या
मधुमेह में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिससे बैकेटेरिया का हमला बढ़ जाता है। ज्यादातर बैक्टेरिया मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे मसूड़े की समस्या सहित कई तरह की समस्याएं पैदा हो जाती है।
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टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए एक्सरसाइज है जरूरी
टाइप टू डायबिटीज से पीड़ित ज्यादातर लोगों को इसकी जटिलताओं से बचने के लिए एक्सरसाइज करने की सलाह दी जाती है। आहार और दवा के साथ, एक्सरसाइज ब्लड शुगर के स्तर और वजन को कम करने में मदद करती है।
धीमी गति से शुरुआत करें
हालांकि, नियमित एक्सरसाइज की बात कई लोगों को डरावनी लग सकती हैं। लेकिन अगर आपको अभी-अभी टाइप 2 डायबिटीज हुआ है, तो आपके लिए कभी-कभी एक्सरसाइज करने का कोई लाभ नहीं होगा। आप नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और धीमी गति से इसकी शुरूआत करें।
एक्सरसाइज करने का प्रयास करें
अगर आप हर दिन 30 मिनट के लिए एक्सरसाइज करते हैं तो आप इस दौरान कई संक्षिप्त वर्कआउट कर सकते हैं। 30 मिनट नियमित रूप से एक्सरसाइज जिसमें स्ट्रेच शामिल हो आपके लिए सही होता हैं।
दिन-भर की गतिविधियों पर ध्यान दें
एक्यसरसाइज का एक विशेष प्रकार अपनाने के साथ-साथ अपनी सामान्य गातिविधियों को भी बढ़ाये, जैसे चलना, सीढ़ियां चढ़ना आदि। हालांकि बहुत से लोगों को एकमात्र अभ्यास के रूप में घर के कामकाज या अन्य दैनिक गतिविधियों पर भरोसा नहीं होता है। लेकिन इस तरह की गतिविधियां भी एक्सरसाइज की तरह कैलोरी को जलाती है।
पेडोमीटर का इस्तेमाल करें
पेडोमीटर का इस्तेमाल शारीरिक गतिविधि के लिए आदर्ष हो सकता है। पेडोमीटर पर एक दिन में 10,000 कदम का लक्ष्य रखना सही रहता है। भले ही आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाये। पेडोमीटर के इस्तेमाल से वजन कम करने में मदद मिलती है और रक्तचाप नियंत्रित रहता है। जो लोग पेडोमीटर का इस्तेमाल नहीं करते उन्हें प्रतिदिन 2500 से ज्यादा कदम चलना चाहिए।
दोस्तों के साथ एक्सरसाइज करें
दोस्तों के साथ एक्सरसाइज करने पर बोरियत नहीं होती है। इसलिए विशेष रूप से 60 वर्श से अधिक उम्र के लोगों को दोस्तों के साथ ही एक्सरसाइज करना चाहिए।
लक्ष्य निर्धारित करें
अपने एक्सरसाइज के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करना बहुत जरूरी होता है। उदाहरण के लिए आप प्रत्येक सोमवार, बुधवार और शनिवार को 10 मिनट वॉकिंग का एक लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। ऐसा करने से आप अपने लक्ष्यों को पाने की कोशिश करेंगे और आपको अधिक एक्यसरसाइज करने की प्रेरणा मिलेगी।
स्वयं को पुरस्कृत करें
एक्सरसाइज न करने पर क्या बुरा हो सकता है, इस बारे में सोचने की बजाय लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए स्वयं को पुरस्कृत करें। आप स्वयं को कह सकते हैं कि अगर मैं सप्ताह में तीन बार 10 मिनट एक्सरसाइज करता हूं तो अगले तीन सप्ताह के लिए मैं सप्ताह में पांच बार व्यायाम करूंगा। साथ ही अन्य लाभ जैसे वॉक के दौरान अधिक एनर्जी या आनंद को भी महसूस करें।
संकेतों का सहारा लें
कई बार कई प्रकार के संकेतों से भी हम एक्सरसाइज के लिए स्वयं को उकसाते हैं। जैसे अपने फ्रिज पर एक नोट रखकर या टहलने के लिए जाने के लिए एक चेतावनी के रूप में पीछे के दरवाजे के बगल में अपने वॉंकिंग जूतों को रखने से एक्सरसाइज की संभावना ज्यादा होती है।
रिकॉर्ड बनायें
अपने लक्ष्यों के बारे में लिखें, इसमें विस्तृत जानकारी इकट्ठी करें और हर समय की गई एक्सरसाइज के बारे में रिकॉर्ड लिखें। जैसे आपने हर दिन 10 या 15 मिनट या अधिक एक्सरसाइज की हैं, इसके बारे में अपने कैलेंडर पर रिकॉर्ड रखें। इससे आपको अधिक एक्सरसाइज करने की प्रेरणा मिलेगी।
एक्सरसाइज क्लास का हिस्सा बनें
अगर आप घर में एक्सरसाइज नहीं करना चाहते तो एक्सरसाइज क्लास ज्वाइन कर सकते हैं। इस तरह से आपमें नियमितता आएगी, आप इंस्ट्रक्टर की निगरानी में एक्सरसाइज करेगें और आपात मदद के लिए किसी की सहायता भी ले पायेगें। साथ ही इंस्ट्रक्टर की मदद से एक्सरसाइज करने से आपको पता चलता है कि आपका शरीर कैसे प्रतिक्रिया करता है और बाद में आप स्वयं भी अधिक आत्मविश्वास के साथ इन एक्सरसाइज को कर सकते हैं।
ऊंचा लक्ष्य निर्धारित न करें
अपने लिये कम लक्ष्य निर्धारित करना और इसे सफल बनाना बेहतर होता है। इससे आत्मविश्वास की भावना बढ़ जाती है। एक बार कम लक्ष्य को पाने के बाद अगली बार अपने लक्ष्य को थोड़ा सा बढ़ा दें। छोटे लक्ष्यों से शुरुआत करने से सफल होने की संभावना अधिक रहती है। आसानी से लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ धीरे-धीरे उनमें वृद्धि करें।
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टीनऐज में हार्मोन में होने वाले परिवर्तन का कैसे करें सामना
आज के युवा लोग, हमारे बच्चे दुनिया के इतिहास में सबसे होनहार पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे उम्र के शिखर पर खड़े हैं। किशोर का लालन-पालन एक चुनौती है जो कभी-कभी माता-पिता का सर्वश्रेष्ठ बाहर लाता है और उन्हें बेहतर इंसान बनाता है। हालांकि यह वह अवस्था भी है जो माता-पिता पर सबसे अधिक दबाव डालता है। यदि उन्हें सही तरीके से नहीं संभाला गया तो बच्चों के दिमाग पर यह एक निशान छोड़ जाता है जो उनके माता-पिता के प्रति उनके व्यवहार को उनकी पूरी जिंदगी प्रभावित करता है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि माता-पिता सही दिषा में सभी आवष्यक कदम उठाएं।
घबराएं नहीं!
हर कोई इस अवस्था से गुजरता है, यहां तक कि आपके माता-पिता भी इस अवस्था से गुजरे हैं!
यौवन क्या है?
करीब दो साल पहले आपने किसी भी प्रकार का परिवर्तन महसूस किया है, आपका दिमाग कार्य करना शुरू करता है जो आपको अंततः एक बच्चे से एक वयस्क बना देगा। मस्तिष्क के दो भाग हाइपोथैलेमस और पिट्युटरी ग्रंथि ग्रोथ हार्मोन, एल एच और एफ एस एच (फॉलिकल को प्रेरित करने वाले हार्मोन) सहित कुछ हार्मोन को अधिक मात्रा में बनाना शुरू कर देते हैं। ये हार्मोन आपके शरीर के अन्य भागों में परिवर्तन लाने के लिए कार्य करते हैं।
हार्मोन कैसे काम करते हैं
लड़के और लड़कियां दोनों में ये हार्मोन होते हैं लेकिन ये उनके शरीर के विभिन्न भागों पर कार्य करते हैं।
हार्मोन रसायन होते हैं जो आपके शरीर के एक भाग (एक ग्रंथि) के द्वारा हड्डियों जैसे विभिन्न भाग पर कार्य करने के लिए बनते हैं। उदाहरण के लिए आपके मस्तिश्क में एक ग्रंथि ग्रोथ हार्मोन बनाती है, और यह आपके पैर, पांव और बाहों की हड्डियों को अधिक लंबा करने का कार्य करता है। आपके शरीर में कई हार्मोन है जो विभिन्न प्रकार के कार्य करने के लिए रक्तप्रवाह में घूमते रहते हैं।
लड़कों के लिए एल एच और एफ एस एच टेस्टोस्टेरॉन जैसे एंड्रोजेन्स (सेक्स हार्मोन) बनाने के लिए उनके वृशण और एड्रिनल ग्रंथियों (गुर्दे के पास की ग्रंथि) पर कार्य करते हैं। वे वृषण पर भी कार्य करते हैं जिससे वे शुक्राणु बनाना षुरू कर देते हैं।
लड़कियों के लिए ये हार्मोन उनके अंडाशय (जहां पहले से ही उनके पैदा होने से पहले से ही सभी अंडे जमा होते हैं) पर कार्य करते हैं, साथ ही उनकी एड्रिनल ग्रंथियों पर भी कार्य करते हैं जिससे वे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन जैसे मादा सेक्स हार्मोन अधिक मात्रा में बना सकें।
लड़कों और लड़कियों दोनों में इन हार्मोनों की कुछ मात्रा होती है लेकिन लड़कों में एंड्रोजन की अधिक मात्रा और लड़कियों में एस्ट्रोजेन की अधिक मात्रा होती है और इन हार्मोन का विभिन्न स्तर उनके शरीर में अंतर पैदा करता है। इन हार्मोन के कार्य की बदौलत ही आपका शरीर वयस्क जिंदगी के लिए तैयार होता है जिसे हम यौवन कहते हैं।
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डायबिटीज में अंगों को कटने से कैसे बचाएं
दुनिया भर में मधुमेह अंग-विच्छेदन के प्रमुख कारणों में से एक है। अगर आप मधुमेह रोगी है तो आप निम्न उपायों पर अमल कर अंग विच्छेदन के जोखिम को कम कर सकते हैं।
फुट अल्सर की रोकथाम
मधुमेह तंत्रिकाओं को नष्ट कर सकता है ब्ल्ड सर्कुलेशन में कमी ला सकता है जिससे मधुमेह रोगियों में पैर और फुट अल्सर और अन्य समस्याओं के विकसित होने की संभावना अधिक रहती है। इन्हें अनियंत्रित छोड़ने पर कुछ जटिलताएं पैदा हो सकती है जो अंग-विच्छेदन की नौबत ला सकती है। लेकिन निम्न तरीकों के माध्यम से उचित देखभाल से आप अंग-विच्छेदन की समस्या से आसानी से बच सकते हैं।
अपने पैरों को स्वच्छ और सुरक्षित रखना चाहिए। रोज रात में सोने के पहले पैरों को हल्के गर्म यानी गुनगुने पानी में थोड़ी देर रखें और पैरों को साफ करें। फिर टॉवल से अच्छी तरह पैरों को सुखाएं, खासतौर पर अंगूठे और उंगलियों के बीच के हिस्से को। पैरों की त्वचा को मॉइस्चराइजिंग क्रीम की मदद से मुलायम रखें।
नियमित रूप से पैरों की जांच करें
मधुमेह के मरीजों के लिए रोजाना पैरों का परीक्षण किया जाना जरूरी होता है। अल्सर, दरारें, कट, लालिमा, सूजन और घाव होने के किसी भी लक्षण पर पूरी नजर रखी जानी चाहिए। कुछ भी नोटिस होने पर अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
नंगे पांव ना चलें
नंगे पांव चलने से पैर घायल हो सकते हैं। डायबिटीज की समस्या होने पर आपको अपने पैरों की सुरक्षा करने की जरूरत है। जमीन पर खड़ा होने के लिए जूते या चप्पल की एक आरामदायक जोड़ी रखें।
स्वयं इलाज न करें
कॉन्र्स के रूप में होने वाली पैरों की समस्या को अनदेखा न करें। इसके लिए अपने डॉक्टर से जांच करवायें क्योंकि ऐसी जटिलताओं को स्वयं संभालने से पैरों को अधिक नुकसान हो जाता है।
सावधानी से काटें नाखून
पैरों के नाखून काटते वक्त सबसे ज्यादा कट लगने की संभावना होती है इसलिए नाखून काटते वक्त पैरों का खास ध्यान रखें। नाखूनों को बहुच छोटा न काटें और काटते वक्त पहले साइड से काटें और फिर बीच में नाखून काटें। नाखूनों के अलावा त्वचा को नुकसान से बचाने के लिए नाखून काटते समय जल्दबाजी न करें।
प्रतिदिन अपने मोजे बदलें
हर सुबह धुले हुए मोजे पहनें। पहने हुए मोजे कभी न पहनें और हर मोजे के इस्तेमाल के बाद उन्हें ठीक से धोना न भूलें। सूती मोजे पहनें और नायलॉन के बने मोजों से बचें। इसके अलावा इलास्टिक बैंड वाले मोजे से बचें क्योंकि इससे ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है।
धूम्रपान से बचें
धूम्रपान ब्लड सर्कुलेशन और रक्त में ऑक्सीजन की कमी सहित कई स्वास्थ्य समस्या का कारण बनता है। इस तरह की समस्याएं घाव को और खराब करती हैं और उपचार में बाधा पहुंचाती हैं। इसलिए अंग विच्छेदन को रोकने के लिए धूम्रपान न करें।
अपने जूतों को चुनाव ध्यान से करें
जूते आरामदेह और फिट होने चाहिए। उसमें आपके पैरों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ना चाहिए। अपने पास कम से कम दो जोड़ी जूते अवश्य रखें ताकि आपको रोजाना एक ही जोड़ी जूते न पहनने पड़ें। अपने पैरों के लिए आप विशेष रूप से डिजाइन किये गये आरामदेह आर्थोपेडिक जूते भी ले सकते हैं।
चोटों से बचें
अपने पैरों को चोट से बचायें। ऐसी चीजों से बचने की कोशिश करें जो आपके पैरों में चोट का कारण बन सकती है। चोटों से बचाव करने पर आपके अंग विच्छेदन का जोखिम कम हो सकता है। पैरों में अल्सर की समस्या के कुछ दिन के भीतर ठीक न होने पर अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
डॉक्टर से संपर्क करें
नियमित रूप से तंत्रिका क्षति, परिसंचरण की कमी या अन्य पैर की समस्याओं के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर अपने पैरों की उचित निरीक्षण के लिए अपने डॉक्टर से मिले। आपका डॉक्टर विच्छेदन से बचने में आपकी मदद करेगा।
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गर्भावस्था के दौरान आपका आहार कैसा होना चाहिए
गर्भावस्था किसी भी महिला के जीवन का वह समय होता है जब उसे अपने स्वास्थ्य, ग्रहण करने वाले भोजन के प्रकार और मात्रा को लेकर अधिक सावधान और सतर्क रहना पड़ता है। ऐसी सावधानी की जरूरत न सिर्फ गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान होती है, बल्कि गर्भावस्था से पहले और प्रसव के बाद भी होती है। इस समय ली जाने वाली सावधानी उसके और उसके बच्चे के स्वास्थ्य की पूरी जिंदगी को निर्धारित करता है।
गर्भावस्था के पूर्व के मानदंड
महिलाओं में गर्भ धारण करने से पहले अपने स्वास्थ्य को लेकर विशेष रूप से सजग और सतर्क रहने की प्रवृत्ति नहीं होती हैं। लेकिन गर्भावस्था के पूर्व के स्वास्थ्य के प्रति बरती यह प्रवृत्ति गलत है और इसका असर गर्भावस्था के दौरान महिला के फिटनेस और उसके गर्भ धारण पर भी पड़ता है। गर्भ धारण करने से पहले महिला को पौष्टिक भोजन लेना चाहिए और भोजन का आनंद लेना चाहिए लेकिन उसे नियमित व्यायाम से अपने वजन को नियंत्रित रखना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान दिषानिर्देश
गर्भवती महिलाओं के लिए सलाह
दो लोगों के लिए भोजन न करें।
संतुलित आहार के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
जंक फूड से परहेज करें।
सड़क किनारे मिलने वाले भोजन से परहेज करें।
साबुत अनाज और कम वसा युक्त दुग्ध उत्पादों का भी सेवन करें।
मितली के बावजूद भोजन करना न छोड़े।
चाय, कॉफी और शीतल पेय से परहेज करें।
जब आप गर्भ धारण करने की योजना बना रही हों तो आपके चिकित्सक आपको स्वास्थ्य संबंधित सलाह दे सकते हैं। इस अवस्था में प्रसव पूर्व फोलिक एसिड सप्लिमेंट और फोलेट युक्त खाद्य पदार्थों को लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि ये पोशक तत्व बच्चे के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के सही विकास के लिए जरूरी है और ये न्यूरल ट्यूब में विकृति आने से रोकते हैं। पौश्टिक आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, साबुत गेहूं और कम वसा युक्त दुग्ध उत्पाद षामिल हैं जो आपको गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद इन खाद्य पदार्थों का अभ्यस्त बना देगा।
चाय, कॉफी और शीतल पेय का सेवन कम कर दें क्योंकि कैफीन का सेवन कम करने पर गर्भ धारण करने की संभावना बढ़ जाती है। धूम्रपान और षराब से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए। दूध, दही, कैल्शियम युक्त जूस, ब्रोकोली और तिल के बीज जैसे कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान क्या करें
जब आपने गर्भ धारण कर लिया हो तो आपको अपने खान-पान की आदतों को लेकर अधिक सतर्क होना चाहिए और इन सभी आवष्यक पोशक तत्वों के साथ अपने आहार को लेकर एक योजना बनानी चाहिए। आप गर्भवती हैं इसलिए आपको दो व्यक्ति के बराबर भोजन करना चाहिए, इस अवधारणा को पालन करने की कोई जरूरत नहीं है। इस दौरान बच्चे के लिए आपको सिर्फ कुछ सौ अधिक कैलौरी लेने की जरूरत है। भोजन की मात्रा को दोगुना करने की बजाय, इडली, उपमा, वसा रहित दूध, नट्स, अंकुरित अनाज और साबुत अनाज जैसे स्वास्थ्य वर्द्धक आहार लें।
हर समय घर में पकाया हुआ ताजा भोजन लें। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकिन बार-बार भोजन करें। इससे आपको एसिडिटी और पाचन संबंधित अन्य समस्याएं नहीं होंगी। विटामिन, खनिज पदार्थ और प्रोटीन सहित अच्छा पोशण बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हरी पत्तेदार सब्जियां, चुकंदर, संतरा और पौश्टिक अनाजों के सेवन को बढ़ा दें। मक्खन और कूकिंग ऑयल की बजाय जैतून के तेल, कैनोला के तेल और संसाधित सरसों के तेल जैसे पौधों से प्राप्त तेल में पकाया हुआ भोजन करें क्योंकि मक्खन और कूकिंग ऑयल में संतृप्त वसा अधिक होते हैं।
पानी को अपना सबसे पसंदीदा पेय बनाएं और रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी पीने का नियम बना लें। प्राकृतिक पेय और अधिक फाइबर वाले आहार आपको गर्भावस्था से संबंधित कब्ज से निजात दिलाने में मदद कर सकते है। कुछ अध्ययनों में कैफीन और गर्भपात के बीच संबंध पाया गया है। इसलिए सबसे अच्छा है कि आप चाय, कॉफी और षीतल पेय से परहेज करें। आप पानी के अलावा, नींबू- पानी, नारियल पानी और छाछ से अपनी प्यास बुझा सकती हैं और निर्जलीकरण से बच सकती हैं।
घूमना और योग जैसे नियमित व्यायाम करना और सक्रिय जीवनशैली गर्भावस्था के हर अवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ऐसा करने से आप अतिरिक्त वजन प्राप्त करने से बच जाएंगी। विटामिन डी प्राप्त करने के लिए हल्की धूप में भी कुछ समय रहना जरूरी है।
कामकाजी महिलाओं के लिए, गर्भावस्था और प्रसव के बाद का समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है इसलिए उनके लिए सही भोजन करना अत्यंत जरूरी है। आपको अपने और अपने बच्चे के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी। काम पर जाते समय रोजाना फल, नट्स और दही जैसे स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य पदार्थों से भरा हुआ थैला ले जाएं। वहां समय पर खाने और टहलने का समय निर्धारित कर लें।
प्रसव के बाद क्या करें
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इंसुलिन देने का क्या है सही तरीका
अगर डायबिटीज के कारण आपकी स्थिति गंभीर हो गयी है तो आपको प्रतिदिन इन्सुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है।
इन्सुलिन की जरूरत टाइप 1 डायबिटीज में पड़ती है। इसके अलावा टाइप 2 डायबिटीज में शुगर का स्तर जब किसी भी दवा से नियंत्रित नहीं होता, उन महिलाओं को जिन्हें गेस्टशनल डायबिटीज है और जो सही भोजन और व्यायाम नहीं करती उन्हें अपने ब्लड शुगर के स्तर को कम करने के लिए इन्सुलिन की जरूरत होती है।
इन्सुलिन को सीरीन्ज में डालना और उसे लगाना काफी आसान है। इस इन्जेक्शन को लगाने से न तो ज्यादा दर्द होता है और ना ही इसके दर्द का असर ज्यादा देर तक रहता हैं।
इन्सुलिन को त्वचा के मोटे हिस्से में अंदर की और डाले, अगर निडील नसों में जाती है तो इसका असर जल्दी होगा। यह खून के साथ जल्द मिल जाएगा। आपको शरीर के जिस हिस्से में इन्सुलिन लगाना है वह है पेट और हाथ का उपरी हिस्सा। आप कूल्हे के किसी भी हिस्से में इन्सुलिन लगा सकते हैं।
इन्सुलिन इन्जेक्शन लगाने की विधि
इन्जेक्शन लगाने के हिस्से का चुनाव करें। इन्जेक्शन लगाने वाले जगह को साबुन पानी से धो लें। अपनी उगंलियों से उस जगह को चिकोटी काट कर देखें। त्वचा को दूसरे हाथ से 90 डिग्री के ऐंगल से पकड़े। पतले लोगों एवं बच्चों के लिए 45 डिग्री के एगल से पकड़े। निडील को त्वचा के मोटे हिस्से में अंदर की और डाले, और उस त्वचा को छोड़ दें। धीरे से इन्जेक्शन को दबाएं जब तक कि वह पूरी तरह से अंदर न चला जाए। इन्जेक्शन को उसी एंगल में त्वचा से धीरे से निकाल लें जिस एंगल में डाला था और उस जगह को दबा दें। इन्जेक्शन का एक बार ही इस्तेमाल करें और इन्जेक्शन का कन्टेनर बंद कर दें और फेंक दें।
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घर पर कैसे करें ब्लड शुगर की जांच
आप अपने घर पर ही ब्लड शुगर का स्तर जान सकते हैं। इससे आपको आपकी नियमित देखभाल में फायदा होता है और आप उसी हिसाब से अपनी देखभाल कर सकते हैं। घर पर ब्लड शुगर की जांच करने से आप ब्लड शुगर के स्तर को जांच सकते हैं। घर पर ब्लड शुगर की जांच करने के तरीके को आसानी से सीखा जा सकता है।
घर पर ब्लड शुगर की जांच के तरीके
ब्लड शुगर जांच के लिए एक अच्छी मशीन लेकर इन चरणों को अपनाएं।
सबसे पहले गर्म पानी से अपने हाथ को धोकर साफ तौलिए या काॅटन से पोंछ लें। अपनी उंगली से खून की एक बूंद निकालकर सूई को उसके डिवाइस में रख दें। उसके बाद जांच के लिए एक कांच की पट्टी बोतल से लें। पट्टी में खून की बूंद का नमूना डालने के बाद तुरंत बोतल को बंद कर लें ताकि कोई अन्य टेस्टिंग स्ट्रिप या नमी उससे नहीं मिले।
टेस्टिंग डिवाइस के लेवेल पर लगे निर्देशों को पढकर ब्लड शुगर मीटर को तैयार रखें। रूई के साफ टुकडे को लेकर लैंसेट (खून निकालने के लिए एक प्रकार की निडिल) को उंगली में चुभोएं। खून निकालने के बाद यह निश्चित कर लें कि खून जांच करने के बिंदु पर ही डाला गया है या नहीं। उसके बाद अच्छी तरह से परीक्षण करने वाले क्षेत्र को कवर कर दें। उंगली के जिस भाग से आपका खून निकला है, वहां रूई लगाएं जिससे ज्यादा खून न निकले।
ब्लड शुगर का परिणाम जानने के लिए कुछ वक्त तक इंतजार करें। मीटर कुछ सेकेंड में ही परिणाम दे देता है।
नए मीटर से आप उंगली के अलावा शरीर के अन्य स्थानों से खून लेकर जांच कर सकते हैं। इसके लिए बांह, अंगूठा और जांघ से खून के नमूने लिए जा सकते हैं। हालांकि यह हो सकता है कि शरीर के अन्य भाग जांच के दौरान ब्लड शुगर के स्तर का परिणाम उंगली से अलग दे सकते हैं। शरीर के अन्य जगहों की अपेक्षा उंगली पर ब्लड शुगर का स्तर ज्यादा संवेदनशील होता है।
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स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पौष्टिक आहार लेना जरूरी है
स्तनपान कराने वाली माता को अपने बच्चे को आवष्यक पोशक तत्व प्रदान करने के लिए यह जरूरी है कि वे पौष्टिक एवं संतुलित आहार लें। उन्हें अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है जो अक्सर गर्भावस्था के दौरान जमा चर्बी और नियमित लिये जाने वाले भोजन से मिल जाती है। ऐसी महिलाओं को साबुत अनाज युक्त आहार लेना चाहिए।
स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सलाह
- साबुत अनाज का सेवन जारी रखें।
- अधिक कैलोरी वाले भोजन, घी और मिठाइयों से परहेज करें।
- काफी मात्रा में पानी पीएं।
- दुग्ध उत्पादों का कम से कम चार बार सेवन करें।
- कैफीन युक्त पेय से परहेज करें।
- नियमित रूप से टहलें।
- पर्याप्त आराम करें।
आपके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित बुजुर्ग घी में बने हुए पराठा और मीठा भोजन लेने के लिए आप पर जोर डाल सकते हैं, लेकिन उनके दवाब और प्रलोभन में आने की बजाय अपने वजन को बढ़ाने से बचने के लिए इनका कम मात्रा में सेवन करें।
आप गर्भावस्था में बढ़ा हुआ अतिरिक्त वजन को भी जल्द से जल्द कम करने की कोषिष करें। लेकिन इसके लिए जब तक आप बच्चे का पालन-पोशण कर रही हैं, डायटिंग की षुरुआत न करें।
भरपेट भोजन करें लेकिन तले हुए भोजन, मिठाई और षीतल पेय से परहेज करें। नियमित व्यायाम करने और सक्रिय रहने से आपको वजन कम करने में मदद मिलेगी। तरल पदार्थ का अधिक सेवन करें क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे दूध में वृद्धि होती है। चाय और कॉफी से परहेज करें या कम सेवन करें।
बच्चे को जन्म देने का पूरी तरह से आनंद तभी लिया जा सकता है जब प्रसव के बाद माता और बच्चा दोनों का स्वास्थ्य अच्छा हो। खाने की खराब आदतों को छोड़ना और अच्छी आदतों को अपनाना जरूरी है लेकिन ऐसा खुद पर अधिक सख्ती बरते बगैर ही करें।
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ग्लूकोज मानीटर से घर में करें ग्लूकोज की जांच
डायबिटीज की स्थिति को समझने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। खून में ग्लूकोज के स्तर को समझने के लिए ग्लूकोज मॉनीटर का प्रयोग किया जाता है। ग्लूकोज मॉनीटर से आसानी से घर में ही खून में ग्लूकोज मॉनीटर का प्रयोग करके ग्लूकोज के स्तर का पता किया जा सकता है। यदि हाई ग्लूकोज लेवेल होगा तो हाई ब्लड प्रेशर से जुडी समस्याएं जैसे - दिल की बीमारियां, किडनी की समस्याएं और तंत्रिका तंत्र को नुकसान होने लगता है। अगर आपके शरीर में ब्लड ग्लूकोज लेवेल कम होगा, तो भी कई प्रकार की समस्याएं होती हैं।
ग्लूकोज मानीटर के प्रयोग का तरीका
सबसे पहले अपने हाथ और उंगलियों की सफाई अच्छे से कीजिए। कांच की पट्टी में खून का नमूना लेने के लिए लैसेट (खून निकालने की सूई) को उंगली में चुभोइए।
कांच की पट्टी पर ग्लूकोज मानीटर को रख दीजिए। उसके बाद मॉनीटर की स्क्रीन पर ग्लूकोज का स्तर कुछ ही समय में निकल जाएगा।
उंगली में लैंसेट चुभोने से अगर ज्यादा खून निकल रहा है तो खून को रोकने के लिए साफ रूई का इस्तेमाल कीजिए।
ग्लूकोज मानीटर कैसे करता है काम
ग्लूकोज मानीटर से ग्लूकोज के स्तर का पता करने के लिए टेस्टिंग स्ट्रिप (कांच की पट्टी जिसका एक बार प्रयोग हो सकता है) और मानीटर होना चाहिए।
टेस्टिंग स्ट्रिप, कांच की पट्टी या प्लास्टिक से बनी होती है और इस पर कुछ केमिकल्स लगे होते है, जो कि खून में मौजूद ग्लूकोज के साथ प्रतिक्रिया करते है।
इस पट्टी में केमिकल्स की तीन परतें मौजूद होती हैं। इसकी पहली परत में एंजाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज, दूसरी परत में पोटैशियम फेरीसाइनाइड और तीसरी परत में इलेक्ट्रोड्स होता है।
जब खून का नमूना इन केमिकल्स के संपर्क में आता है तब ग्लूकोज मानीटर के द्वारा ग्लूकोज के वास्तविक स्तर का पता चलता है।
ग्लूकोज मानीटर प्रयोग करने के फायदे
ग्लूजकोज मॉनीटर का प्रयोग करके हर रोज घर पर ही खून में ग्लूकोज स्तर की जांच आप आसानी से कर सकते हैं। ग्लूकोज मानीटर डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है। क्योंकि हर रोज जांच के लिए डॉक्टर के पास जाने में परेषानी आ सकती है। लेकिन ग्लूकोज मॉनीटर से मधुमेह रोगी अपनी नियमित देखभाल कर सकते हैं। डायबिटीज के मरीजों को नियमित देखभाल से यह फायदा होता है कि वे अपनी दिनचर्या खुद बनाते हैं।
ग्लूकोज मानीटर मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद उपकरण है। इसका प्रयोग करके मरीजों को हर रोज डॉक्टर के पास जाने से राहत मिलती है। मधुमेह रोगी ग्लूकोज मानीटर का प्रयोग करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरूर ले लें।
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मधुमेह रोगियों में जरूर है नियमित जांच
मधुमेह रोगियों को स्वस्थ रहने और लंबी उम्र पाने के लिए नियमित जांच जरूर कराना चाहिए। रोगियों को शरीर में शुगर के स्तर की समय-समय पर जांच कराते रहना चाहिए और जैसे ही ग्लूकोज का स्तर बढ़े तुरंत डॉक्टर से संपंर्क करना चाहिए। मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए आहार के साथ साथ नियमित जांच भी जरूरी होती है। शरीर में ग्लूकोज का स्तर पता करने के लिए रोगी घर पर ही ग्लूकोज मीटर रख सकते हैं जिससे वे आसानी से घर पर जांच कर सकते हैं।
मधुमेह रोगियों में सबसे ज्यादा खतरा आंख, पैरों व किडनी को होता है। नियमित जांच से रोगी इन खतरों से बच सकते हैं। शुरुआती अवस्था में मधुमेह होने पर थोड़ी सी सावधानी व नियमित जांच से आप इसे ठीक भी कर सकते हैं।
मधुमेह रोगी में होने वाले जांच
ग्लूकोज की जांच
मधुमेह रोगियों को रक्त में ग्लूकोज के स्तर की जांच नियमित रुप से करना चाहिए। ग्लूकोज का स्तर बढ़ना रोगी के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके साथ ही खून की जांच भी मधुमेह रोगियों के लिए जरूरी है इससे पता चलता है कि किडनी ठीक ढंग से काम कर रही हैं या नहीं। मधुमेह में किडनी पर काफी प्रभाव पड़ता है। नियमित जांच से रोगी किडनी की समस्या से दूर रह सकता है।
कोलेस्ट्रोल की जांच
मधुमेह में रोगियों को कोलेस्ट्रोल की जांच जरूर करानी चाहिए क्योंकि मधुमेह रोगियों में कोलेस्ट्रोल बढ़ने पर हृदय रोग का खतरा दुगुना हो जाता है। रक्त में ग्लूकोज की मात्रा खराब कोलेस्ट्रोल (एलडीएल) की गति को धीमा कर सकती है जिसकी वजह से वह चिपचिपा हो जाता है और यही कारण है जिससे कोलेस्ट्रोल तेजी से बनने लगता है। खराब कोलेस्ट्रोल रक्त की धमनियों में जम जाता है और हृदय से जुड़ी समस्याएं पैदा करता है।
ब्लड प्रेशर की जांच
हाई ब्लड प्रेशर 'साइलेंट किलर' के समान है। मधुमेह रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर काफी घातक साबित हो सकता है। मधुमेह में हाई ब्लड प्रेशर होने से हृदय रोग, हृदयघात, किडनी व आंखों की समस्या भी हो सकती है। इन सबसे बचने के लिए जरूरी है कि आप ब्लड प्रेशर की नियमित जांच करवाएं।
पैरों की जांच
मधुमेह में रोगियों को पैरों की समस्या हो सकती है। मधुमेह में पैरों की कोई भी समस्या होने पर इसे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि इसमें पैरों की संवेदनशीलता धीरे धीरे कम होने लगती है। इसलिए पैरों में लगने वाली छोटी से छोटी चोट, संक्रमण रोगियों के लिए खतरनाक हो सकती है।
आंखों की जांच
जब रक्त में ग्लूकोज का स्तर लंबे समय तक बढ़ा हुआ रहता है तो इसका सीधी असर रेटिना पर पड़ता है। इसे रेटिनोपेथी कहते हैं। आंखों को होने वाले नुकसान का आसानी से नहीं पता चलता है इसके लिए रोगी को नियमित जांच करना जरूरी है। अगर रेटिनोपेथी का जल्द इलाज नहीं किया गया तो रोगी अंधा भी हो सकता है। कई बार मधुमेह रोगी को धुंधला दिखाई देता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपंर्क करें।
मधुमेह से ग्रस्त लोगों को नियिमित रुप से ये जांच करवानी चाहिए। इसकी मदद से वे मधुमेह के साथ भी स्वस्थ जीवन बिता सकते हैं।
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डायबिटीज रोगियों को इंजेक्शन के दर्द से निजात दिलाता है इंसुलिन पंप
डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन के इंजेक्शन के दर्द से निजात दिलाने के लिए अब बाजार में इंसुलिन पंप मौजूद हैं। दुनिया भर में इस बीमारी के मरीजों की तादाद सबसे ज्यादा है और हर रोज इनमें से कई रोगियों को इंसुलिन इंजेक्शन के दर्द से दो-चार होना पड़ता है। इन मरीजों के लिए इंसुलिन पंप के जरिए दवाई इंजेक्ट करना एक बेहद आसान तरीका है। यह रोज इंसुलिन इंजेक्शन लेने से मुक्ति दिलाता है।
इंसुलिन पंप क्या है
इंसुलिन पंप असल में एक छोटा मैकेनिकल डिवाइस है, जो देखने में पेजर की तरह दिखता है। इसे शरीर के बाहरी हिस्से में पॉकेट या बेल्ट पर लगाया जाता है। इंसुलिन पंप में इंसुलिन के लिए एक जलीय क्षेत्र, एक छोटी सी बैटरी और एक पंप होता है। इस डिवाइस में इन्फ्यूजन सेट के माध्यम से इंसुलिन पहुंचता है। इन्फ्यूजन सेट प्लास्टिक की एक बारीक नली होती है, जिसका एक सिरा प्लास्टिक के बने लचीले कैन्युला या सूई में होता है। इस इंसर्सन डिवाइस की मदद से सुई को आसानी से त्वचा के अंदर डाल दिया जाता है। इसके बाद मरीज खुद इंफ्लूजन सेट में इंसुलिन भर सकते हैं और हर दो तीन दिन पर सेट बदल सकते हैं।
पंप को लगाने का तरीका
पहले 10 से 12 दिन तक मरीज की डायबिटीज की जांच की जाती है। उसके बाद यह पंप लगाया जाता है। साथ ही, रोगी को इसे लगाना भी सिखाया जाता है। दरअसल, हर तीसरे दिन इस पंप की नीडल बदली जाती है, जिसे रोगी खुद बदल सकता हैं।
इंसुलिन पंप के फायदे
इंसुलिन पंप, रक्त शर्करा नियंत्रण करने में मदद कर सकता है। इंसुलिन लेने से रक्त में बार-बार शर्करा के उच्च स्तर और निम्न स्तर होने से बचाने में मदद मिलती है। इंसुलिन पंप किसी भी प्रकार के डायबिटीज के मरीजों में शर्करा की मात्रा को सामान्य बनाए रखने, यौन क्षमता को बेहतर बनाने और न्यूरोपैथी की वेदना से छुटकारा दिलाने में कारगर हैं। इंसुलिन पंप थेरेपी खासकर डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 के मरीजों के लिए फायदेमंद है। रोगी को एक महीने में पंप से सिर्फ 6 से 8 बार इंजेक्शन लेना होगा, जबकि इंजेक्शन से इंसुलिन के लिए रोगी को 90 से 120 बार इंजेक्शन लेना पड़ता है।
बच्चों के लिए भी वरदान है इंसुलिन पंप
बच्चों के लिए तो यह बहुत बढ़िया है। इसे लगाकर बच्चे कुछ भी खा सकते हैं, बल्कि अपने पसंदीदा आउटडोर गेम्स का भी मजा उठा सकते हैं। इंसुलिन पंप पद्धति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसकी मदद से बच्चों को रोजाना लगने वाले इंसुलिन के इंजेक्शनों से छुटकारा मिल सकता है। भारत में लाखों बच्चे टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं, और उन्हें इंसुलिन के इंजेक्शन का दर्द भी सहन करना पड़ता है। लेकिन अब इंसुलिन पंप के आ जाने से उन्हें दर्द से छुटकारा मिल जाएगा।
इंसुलिन पंप की कीमत
इस पंप की कीमत 1 लाख रुपये से साढ़े तीन लाख रुपये के बीच है। जबकि, इंसुलिन पर हर महीने करीब साढ़े 4 हजार रुपये खर्च होते हैं।
हालांकि इंसुलिन पंपों के इस्तेमाल में कुछ सावधानियां बरतने की भी आवश्यकता है। क्योंकि इंसुलिन पंप एक मकैनिकल डिवाइस है। और ऐसे में पंप की कोई भी गड़बड़ी मरीज पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में जानकार से मशीन की जांच करानी चाहिए।
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मधुमेह रोगी मानसून में करें पैरों की विशेष देखभाल
मानसून के मौसम में हमें पैरों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। और अगर किसी को डायबिटीज है तो उसे और भी अधिक एहतियात बरतनी चाहिए। डायबिटीज में डायबिटिक फुट की समस्याएं इस मौसम में बढ़ जाती हैं। पैरों की परेशानियों को नजरअंदाज करना आगे चलकर अल्सर तक को न्योता दे सकता है। ध्यान रखें कि पैरों पर ही शरीर का पूरा ढांचा खड़ा होता है। लगभग सभी डायबिटीज के मरीजों को डायबिटिक पैरों से संबंधी परेशानियां रहती हैं।
मानसून में कैसे करें डायबिटीज के मरीज अपने पैरों की देखभाल
- सूती मोजे नमी को आसानी से सोख लेते हैं। इसलिए मानसून में मधुमेह रोगियों को नॉयलॉन के मोजों की जगह कॉटन के मोजे पहनने चाहिए। अपने मोजों को रोजाना बदलिए और गीले मोजों को बदलने में देरी ना करें।
- डायबिटिक फुट के मरीजों के लिए नंगे पांव चलना अच्छा नहीं होता क्योंकि ऐसे में घावों के होने की अधिक संभावना रहती है और कीटाणुओं और सूक्ष्मजीवों को बढ़ने का मौका मिलता है। यहां तक कि जब आप अपने घर में हैं तब भी जूते या चप्पल पहनें।
- गीले पैरों को ठीक प्रकार से साफ करने के बाद उन्हें सुखाने के बाद ही जूते पहनें। ऐसे मौसम में आसानी से सूखने वाले खुले जूते चप्पलें पहनें।
- हफ्ते में एक दिन जूतों को कुछ देर धूप में रखें, जिससे उसमें मौजूद सूक्ष्मजीवी या फफूंद नष्ट हो जायें।
- घाव, कटे-फटे और कॉन्र्स की नियमित रूप से जांच करते रहे। यदि आप की पैरो की त्वचा रूखी है या फिर उसमें खुजली है, तो डॉक्टर से परामर्श करें।
- पैरों की सफाई का भी खास ख्याल रखें। पैरों को गुनगुने पानी और नरम साबुन के साथ डिटाॅल डालकर नियमित रूप से धोएं। उसके बाद साफ तौलिये से अच्छे से पोंछकर ही जूते पहनें। ध्यान रखें कि उंगलियों के बीच भी पानी नही रहना चाहिए।
- जूते को आरामदायक और फिट होना चाहिए जिससे आपके पैरों पर दबाव ना पड़े। आपके लिए टेनिस के जूते अच्छे हैं और इनसे पैरों में होने वाली परेशानी काफी हद तक कम होती है।
- अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो हमेशा ऐसी सलाह दी जाती है कि अच्छी क्वालिटी का माॅइश्चराइजिंग लोशन और क्रीम लगायें।
बारिश में घर से निकलते वक्त हमेशा अपने साथ जूतों का एक और जोड़ा रखें। ताकि एक जूता गीला हो जाने पर दूसरा पहन सकें।
- अपने पैरों का ख्याल रखें और अपने डायबेटॉलाजिस्ट से अपनी चिकित्सा से सम्बन्धी बातें करें।
- ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रखें और इसकी नियमित जांच कराते रहें।
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डायबिटीज टाइप 1 में इंसुलिन थेरेपी होती है कारगर
डायबिटीज के मरीज के खून में शर्करा की मात्रा अधिक बढ़ जाती है जिन्हें नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन थेरेपी दी जाती है। डायबिटीज 1 आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को अधिक होता है।
डायबिटीज 1 में इंसुलिन थेरेपी कितनी कारगर
डायबिटीज 1 में इंसुलिन थेरेपी कारगर मानी जाती है क्योंकि आमतौर पर डायबिटीज 1 के मरीजों में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है जिससे इस थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि आजकल इंसुलिन थेरेपी का विकसित रूप जीन थेरेपी आ गया है। जो कि डायबिटीज 1 में बंद होने वाले इंसुलिन को प्रभावशाली रूप में प्रभावित करता है।
जीन थेरेपी के द्वारा यदि डायबिटीज के रोगी के शरीर में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाओं से बदल दिया जाये तो यह कारगर सिद्ध हो सकता है।
दरअसल, हर इंसान के शरीर में एक ऐसा हॉर्मोन बनता है जो खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित करता है लेकिन डायबिटीज के मरीजों के शरीर में ये हार्मोन काफी मात्रा में नहीं बन पाता, जिससे उन्हें काफी तकलीफ होने लगती है और उसका प्रभाव शरीर के कई हिस्सों में दिखलाई पड़ने लगता है।
व्यक्ति के शरीर में डायबिटीज के दौरान कम होने हार्मोंस को इंसुलिन थेरेपी द्वारा संतुलित किया जाता है।
दरअसल, इंसुलिन थेरेपी में एक ऐसा इंजेक्शन होता है जो कोशिकाओं को प्रभावित करता है। टाइप 1 डायबिटीज के अधिकतर मरीजों को इंसुलिन थेरेपी लंबे समय तक लेने की सलाह दी जाती है।
डायबिटीज के मरीज अपनी जीवनशैली सही करके और अपने खान-पान को संतुलित करके नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह पर इंसुलिन थेरेपी लेकर अपनी सेहत का ख्याल रख सकते हैं।
हालांकि डॉक्टर इंसुलिन थेरेपी और जीन थेरेपी को आपातकालीन स्थितियों में ही उपयोग में लाते हैं। ऐसे में डायबिटीज 1 और लो ब्लड शुगर वाले मरीजों को चाहिए कि वे अपने खान-पान पर विशेष ध्यान दें जिससे आने वाले खतरे को आसानी से टाला जा सकें।
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दहशत कहीं जान पर न बन जाये
अचानक मैं बिना किसी कारण डर के मारे सिहर उठी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, मेरी छाती तेजी से चलने लगी और मुझे सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। मुझे लगा कि मेरी मौत निकट आ गयी है।'' पसीने से तर-बतर मिनाक्षी जैन ने एक ग्लास पानी पीने के बाद पूरे वाकये के बारे में बताया - कल जब वह पास के एक शॉपिंग मॉल में गयी थीं तब उनके साथ कुछ ऐसा ही हुआ जिसके तुरंत बाद उन्हें निकट के एक अस्पताल में ले जाया गया जहां उनकी ईसीजी की गयी। ईसीजी से पता चला कि हृदय की धड़कन में असामान्यता है लेकिन एंजियोग्राफी करने पर उनकी रक्त धमनियों में किसी रुकावट का पता नहीं चला।
डा. पुरूषोत्तम लाल पैनिक अटैक के प्रकोप के बारे में कहते हैं, ''छाती में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में आने वाले 25 प्रतिशतत मरीज दरअसल ''पैनिक अटैक'' से ग्रस्त होते हैं। ''पैनिक अटैक'' के दौरान मरीज को जो परेशानियां होती हैं या उसे जो लक्षण उभरते हैं उनसे यह समझ लिया जाता है कि उन्हें या तो दिल का दौरा पड़ा है या उन्हें कोई और जानलेवा बीमारी है। जिन मरीजों में इस तरह के लक्षण होते हैं उन्हें कई खर्चीले चिकित्सकीय परीक्षण कराने पड़ते हैं और तब जाकर पता चलता है कि उन्हें कोई अन्य बीमारी नहीं है।
पैनिक अटैक होने पर अचानक डर, चिंता और घबराहट जैसे लक्षणों एवं अन्य तरह के कश्टों के अलावा कुछ और लक्षण उभर सकते हैं। यह दौरा कुछ नियमित समय के अंतराल पर पड़ सकता है अथवा चिंता, घबराहट, सामाजिक कारणों से होने वाले तनाव या भय के साथ भी यह दौरा पड़ सकता है। ''पैनिक अटैक'' कई मिनट तक जारी रह सकता है और इसमें मरीज को अत्यधिक कश्ट होते हैं। इसके लक्षण दिल के दौरे की तरह होते हैं। रात में पड़ने वाले ''पैनिक अटैक'' 10 मिनट से कम होते हैं लेकिन कुछ लोगों को बिल्कुल सामान्य होने में अधिक लंबा समय लग सकता है।
48 वर्षीय श्रीमती मिनाक्षी जैन का यह मामला बोस्टन के मैसाच्युसेट्स जनरल हास्पीटल के एक ताजे अध्ययन के निष्कर्षों की पुष्टि करता है जिसमें यह पाया गया कि जिस उम्रदराज महिला को कम से कम एक बार पूर्ण ''पैनिक अटैक'' का दौरा पड़ा हो उसे दिल का दौरा पड़ने या स्ट्रोक की आशंका अधिक होती है और उन्हें अगले पांच वर्षों में असामयिक मौत का खतरा अधिक होता है।
डा. लाल कहते हैं, ''पैनिक अटैक हाइपरटेंशन जैसे हृदयवाहिक रोगों के जोखिम कारकों के साथ जुड़े हो सकते हैं। चिंता या घबड़ाहट हृदय एवं हृदय रक्त वाहिका प्रणाली पर बुरे प्रभाव डाल सकती है जैसे कि दिल की धमनियों में सिकुड़न, रक्त के जमा होने की प्रवृति बढ़ने और हृदय धड़कन की ताल में गड़बड़ी।''
आम तौर पर चिकित्सक पैनिक अटैक से ग्रस्त मरीजों को आश्वस्त करते हैं कि उन्हें कोई गंभीर खतरा नहीं है। लेकिन इस तरह के आष्वासन मरीजों की परेशानियां और बढ़ा सकते हैं। अगर डॉक्टर मरीज से ''कुछ गंभीर नहीं है'', ''जो कुछ भी है आपका वहम है'' और ''चिंता की कोई बात नहीं है'' जैसी बातें कह कर सांत्वना दे तो मरीज के मन में यह गलत धारणा बैठ सकती है कि उसे दरअसल कोई दिक्कत नहीं और इसका इलाज या तो संभव नहीं है या इलाज कराना जरूरी नहीं है। वास्तविकता यह है कि पैनिक अटैक निश्चित ही गंभीर स्थिति है, हालांकि यह हृदय के लिये घातक नहीं है।
दहशत से भरी श्रीमती जैन कहती हैं, ''उस घटना के बाद से मैं इतनी डरी हुई हूं कि जब मैं बाहर जाने लगती हूं तो हर समय मेरे पेट में दर्द होने लगता है और मुझे लगता है कि कोई और पैनिक अटैक पड़ने वाला है अथवा मेरे साथ कुछ अनहोनी होने वाली है।'' श्रीमती जैन अब ज्यादातर घर में ही रहती हैं और घर में रहकर ही चिकित्सक की सलाह लेती हैं।
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महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अधिक हो सकते हैं पैनिक अटैक
पैनिक अटैक युवा अवस्था में ही शुरू हो जाता है लेकिन कुछ लोगों में इसके लक्षण बाद में उभर सकते हैं। लगातार पैनिक अटैक के कारण उत्पन्न जटिलताओं या लक्षणों में कुछ खास तरह के डर (फोबिया), खास तौर पर घर छोड़ने पर होने वाले डर (एगोरफोबिया), सामाजिक गतिविधियों से दूर रहने की इच्छा, उदासी, काम-काज में दिक्कत, स्कूल में पढ़ाई में दिक्कत, आत्महत्या की सोच या प्रवृत्ति, वित्तीय दिक्कत, शराब या अन्य मादक पदार्थों का सेवन आदि शामिल हैं। पैनिक डिसआर्डर के कारण मरीज में दिल की बीमारियों के खतरे बढ़ते है।
क्यों होता है पैनिक अटैक
पैनिक डिसआर्डर के एक सिद्धांत के मुताबिक, कई शारीरिक एवं मानसिक तंत्र से निर्मित शरीर की प्राकृतिक ''अलार्म प्रणाली'' किसी तरह के खतरे होने पर सक्रिय हो जाती है और व्यक्ति को सतर्क करती है। लेकिन यह कई बार उस समय भी अनावश्यक तौर पर बज उठती है जब कोई खतरा नहीं होता है। वैज्ञानिक अभी इस बात पर निश्चित नहीं हैं कि ऐसा क्यों होता है अथवा क्यों अन्य लोगों की तुलना में कुछ लोगों को इस तरह की समस्या अधिक होती है। पैनिक डिसआर्डर की समस्या परिवार दर परिवार चलती रहती है। इसका मतलब यह है कि इसके पीछे आनुवांशिक (जीन की) भूमिका भी है जो यह निर्धारित करती है कि किसे यह समस्या अधिक होगी। हालांकि जिन लोगों के परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास नहीं रहा हो उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। पहला पैनिक अटैक अक्सर शारीरिक बीमारी, जीवन से जुड़े किसी बड़े तनाव या कुछ दवाइयों के सेवन के कारण भी हो सकता है। कुछ दवाइयां भय संबंधी प्रतिक्रियाओं से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से की सक्रियता को बढाती हैं। कुछ महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान पैनिक अटैक होने की दर में बढ़ोतरी देखी जाती है।
क्या होगा अगर इलाज न कराएं
पैनिक डिसआर्डर का समय पर उपचार नहीं होने पर एंग्जाइटी उस हद तक बढ़ सकती है कि पैनिक अटैक होने अथवा उससे बचने या उसे छिपाने के कारण किसी व्यक्ति का जीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। इसके कारण कई लोगों को दोस्तों अथवा परिवार के सदस्यों के साथ दिक्कत हो सकती है, कई लोग स्कूल की परीक्षाओं में फेल हो सकते हैं और कई लोगों की नौकरी छूट सकती है। हालांकि कई बार पैनिक अटैक की समस्या समय के साथ कम होती जाती है लेकिन आम तौर पर यह समस्या अपने आप ठीक नहीं होती और इसके लिये विशिष्ट उपचार जरूरी होता है।
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गर्म नहीं होंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
लैपटॉप और कम्प्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर ये अक्सर गर्म हो जाते हैं और इनकी गर्मी को कम करने के लिए इन्हें कुछ समय के लिए बंद करना पड़ता है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ग्राफिन से आइसोटोपिकली इंजीनियर्ड ग्राफिन का विकास किया है जो लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अधिक गर्म होने से बचा सकता है।
कैलिफोर्निया विष्वविद्यालय के षोधकर्ताओं के द्वारा विकसित अद्वितीय ऑप्टिकल अवशोषण सहित अद्वितीय गुणों वाले एक एकल परमाणु जितने मोटे इस कार्बन क्रिस्टल ग्राफिन का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक्स से फोटोवोल्टिक सोलर सेल्स और रडार तक हर चीज में गर्मी के क्षय के प्रबंधन के लिए थर्मल कंडक्टर के रूप में किया जा सकेगा।
यही नहीं, कुछ सालों में कम्प्यूटर चिप में तारों को आपस में संबद्ध करने के लिए या हीट स्प्रेडर्स के लिए सिलिकॉन के साथ भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह उच्च आवृत्ति वाले ट्रांजिस्टर सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों के लिए लाभदायक हो सकता है जिसका इस्तेमाल बेतार संचार, रडार, सुरक्षा प्रणालियों और इमेजिंग में किया जा सकता है।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी रिवरसाइड बार्नस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर अलेक्जेंडर बालनदीन और उनके सहयोगियों ने ग्राफिन के प्राकृतिक अवस्था की तुलना में इस आइयोटोपिकली इंजीनियर्ड ग्राफिन के तापीय गुणों को बेहतर पाया है। इस अनुसंधान में उन्होंने तापीय चालकता मापन तकनीक ऑप्टोथर्मल रमन विधि का इस्तेमाल किया गया है जिसका विकास बालनदीन ने 2008 में किया था।
बालनदीन के अनुसार ग्राफिन सहित कार्बन पदार्थ प्राकृतिक रूप से दो स्थिर आइसोटोप के बने होते हैं जिनमें 99 प्रतिषत कार्बन 12 और एक प्रतिषत कार्बन 13 होते हैं। आइसोटोप के बीच का अंतर कार्बन परमाणुओं के परमाणु मास पर निर्भर करता है। सिर्फ एक प्रतिशत कार्बन 13 को निकाल देना आइसोटोपिक शुद्धिकरण कहलाता है जो स्टल जाली के गतिशील गुणों को संशोधित करता है और उनके तापीय चालकता को प्रभावित करता है। बालनदीन कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इलेक्ट्रिकल, ऑप्टिकल और अन्य भौतिक गुणों में पर्याप्त परिवर्तन के बिना आइसोटोपिकली शुद्ध ग्राफिन के थर्मल कंडक्षन गुणों में मजबूत वृद्धि की जा सकती है जिससे आइसोटोपिकली शुद्ध ग्राफिन कई व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए एक उत्कृश्ट पसंद बन सकता है।
बालनदीन के अनुसार इस अनुसंधान के महत्व को उच्च तापीय चालकता वाले पदार्थों की व्यावहारिक जरूरतों से समझा जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों के दिनोंदिन छोटे होते जाने के कारण इनकी गर्मी को कम करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। इसलिए अगली पीढ़ी की एकीकृत सर्किट और तीन आयामी इलेक्ट्रॉनिक्स की डिजाइन के लिए गर्मी को अच्छी तरह से कंडक्ट करने वाले पदार्थों की खोज आवश्यक हो गयी। ऐसे में इस ग्राफिन का विकास काफी महत्वपूर्ण है। बालनदीन का मानना है कि प्रारंभ में इसे फोटोवोल्टिक सोलर सेल्स या लचीले यंत्रों में चिप पैकेजिंग या पारदर्शी इलेक्ट्रोड्स के लिए थर्मल इंटरफेस पदार्थों जैसे कुछ महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में इस्तेमाल किया जाएगा। बाद में ग्राफिन को धीरे-धीरे विभिन्न यंत्रों में शामिल किया जाएगा।
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स्तन कैंसरी की मरीजों ने अपने अनुभव साझा किए
तमाम कष्टों और तकलीफों को झेलते हुये इस घातक बीमारी को मात देने वाली 65 महिलाओं ने नई दिल्ली में आयोजित एक संगोष्ठी में अपने- अपने अनुभवों को साझा किया।
वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ डा. कपिल कुमार ने कहा कि उत्तरजीविता ताउम्र चलने वाली प्रक्रिया है। उपचार के उपरांत भी देखभाल करने के अपने मिषन के तहत राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र स्तन कैंसर की जीवित मरीजों के समक्ष चुनौती पेश करने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता कायम करना तथा इन मुद्दों का समाधान करने के लिये उन्हें शिक्षित करना अपनी मुख्य जिम्मेदारी समझता है।
यह संगोष्ठी मरीजों को कैंसर विषेशज्ञों के साथ सलाह-मशविरा करने, उनके साथ गहरे मानवीय रिश्ते बनाने तथा उपचार के बाद अपनी देखभाल में काम आने वाली जानकारियों को हासिल करने का मंच उपलब्ध कराता है। इस संगोष्ठी में वजन पर नियंत्रण रखने के लिये आहार एवं खान-पान के तौर-तरीकों, लिम्फेडेमा से मुकाबला करने के तरीकों, विग्स एवं प्रोस्थेसिस के बारे में व्यापक जानकारियां दी गयी।
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मोटापे का हमला आपके घुटने पर भी
मोटापे को मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्त चाप जैसे अनेक रोगों की जननी माना जाता है लेकिन आपने शायद ही सोचा होगा कि यह आपके मजबूत घुटने को भी बेकार कर सकता है। आज विलासितापूर्ण जीवन शैली तथा वसायुक्त एवं डिब्बाबंद आहार के बढ़ते प्रचलन के कारण लोगों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
बैरिएट्रिक सर्जरी विशेषज्ञ पारितोष एस. गुप्ता बताते हैं कि मामूली मोटापे को तो डायटिंग, नियमित व्यायाम और दवाइयों की मदद से घटाया जा सकता है लेकिन अत्यधिक मोटापे (मोर्बिड ओबेसिटी) को घटाने के लिये अतिरिक्त उपाय की जरूरत होती है। मौजूदा समय में मोटापे घटाने की सर्जरी अथवा बैरिएट्रिक सर्जरी चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित एक ऐसी विधि है जिसकी मदद से काफी हद तक मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है। लैपरोस्कोपी आधारित बैरिएट्रिक सर्जरी नामक यह शल्य चिकित्सा 100 किलोग्राम से अधिक वजन वाले लोगों के लिए कारगर विकल्प साबित हो रही है।
ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डा. रमनीक महाजन बताते हैं कि मोटापे का असर हमारे घुटने पर भी पड़ता है जो शरीर के भारी वजन को सहते-सहते इस कदर घिस सकते हैं कि घुटने बदलवाने की नौबत आ सकती है। घुटने के घिसने के कारण मरीज को असहनीय पीड़ा का सामना पड़ता है और कई स्थितियों में चारपाई पर जीवन गुजारना पड़ता है। आरंभिक अवस्था में हालांकि दवाइयों और फिजियोथिरेपी से थोड़ी राहत मिलती है लेकिन इस अभिशाप से स्थायी तौर पर छुटकारा घुटने बदलवाने के बाद ही मिलता है।
डा. महाजन बताते हैं कि घुटना बदलवाने का ऑपरेशन केवल मरीज को दर्द से मुक्ति दिलाकर सामान्य एवं सक्रिय जीवन जीने लायक ही नहीं बनाता बल्कि मरीज को कई बीमारियों एवं परेशानियों के खतरे से भी बचाता है। आम तौर पर देखा गया है कि घुटने की तकलीफ से ग्रस्त मरीज बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं जिससे उन्हें एसिडिटी, उच्च रक्त चाप, मधुमेह और अन्य बीमारियां हो जाती हैं लेकिन घुटना बदलवाने के बाद मरीज चलने-फिरने और व्यायाम करने लगता है जिससे वह इन संभावित बीमारियों से बचा रहता है।
डा. महाजन के अनुसार नियमित व्यायाम नहीं करने तथा आहार पर नियंत्रण नहीं रखने के कारण शरीर का वजन बढ़ जाता है जिससे घुटने के भीतर की कच्ची हड्डी (कार्टिलेज) पर दबाव पड़ता है। इस दबाव के कारण घुटने के कार्टिलेज घिस या फट जाती है। इससे घुटने के ऊपर और नीचे की हड्डी आपस में रगड़ खाने लगती है जिससे मरीज को भयानक दर्द का सामना करना पड़ता है। कार्टिलेज घुटने के लिये शॉक आब्जर्बर का भी काम करती है। कार्टिलेज सही- सलामत एवं स्वस्थ होती है तब घुटने सुगमतापूर्वक गतिशील होते हैं। मोटापा के अलावा उम्र बढ़ने तथा ओस्टियो आर्थराइटिस जैसी बीमारियां होने पर भी कार्टिलेज घिसने लगती है और एक स्थिति में फट भी जाती है। इसके कारण घुटने में जकड़न और सूजन आती है तथा चलने - फिरने के समय दर्द होता है।
डा. महाजन के अनुसार शरीर का वजन एक किलोग्राम बढ़ने पर घुटने पर 10 किलोग्राम के बराबर का वजन पड़ता है। शारीरिक वजन में केवल साढ़े चार किलोग्राम की वृद्वि होने पर हर कदम पर प्रत्येक घुटने पर 15 से 30 किलोग्राम का दबाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यह अनुमान लगाया गया है कि चलने के समय किसी व्यक्ति के शारीरिक वजन का तकरीबन तीन से छह गुना भार घुटने पर पड़ता है।
घुटने को बचाने और मोटापे से बचने के लिये नियमित व्यायाम करना चाहिये क्योंकि इससे घुटने की मांसपेशियां मजबूत हो जाती है और साथ ही साथ शारीरिक वजन पर भी अंकुश लगता है। इससे घुटने पर कम दबाव पड़ता है। कुछ समय पूर्व घुटने में दर्द की समस्या आम तौर पर बुजुर्गों में पायी जाती थी लेकिन आजकल यह समस्या कम उम्र के लोगों में भी होने लगी है।
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