आंत का कैंसर कोलोरेक्टल कैंसर के नाम से भी जाना जाता है। आंत का कैंसर तब होता है जब बड़ी आंत की दीवार में असामान्य कोशिकाएं अनियंत्रित ढंग से विकसित होने लगती हैं।
बड़ी आंत शरीर की पाचन प्रणाली का हिस्सा होता है। इसमें मलाशय, गुदा और मलनाली शामिल होते है।
आंत के कैंसर के प्रकार
माना जाता है कि, अधिकतर आंत कैंसर आंत की दीवार के परत पर मौजूद गैर-नुकसानदेह सूजन से विकसित होते हैं। इन गैर-नुकसानदेह सूजनों को एडेनोमास या पाॅलिप कहा जाता है।
आंत के कैंसर के सबसे आम प्रकार को एडीनोकार्सिनोमा कहा जाता है, यह नाम आंत की परत में मौजूद उन ग्रंथि कोशिकाओं पर रखा गया है जिनमें सबसे पहले कैंसर विकसित होता है। अन्य दुर्लभ प्रकारों में स्कवैमस कोशिका कैंसर (जो आंत के परत में त्वचा समान कोशिकाओं में आरंभ होता है), कार्सिनॉयड ट्यूमर, सेक्रोमास और लिम्फोमास शामिल है।
आंत के कैंसर के लक्षण
आंत का कैंसर आमतौर पर धीरे-धीरे विकसित होने वाला कैंसर है। रोग के आरंभिक चरणों में अक्सर कोई लक्षण नहीं होते हैं। आंत कैंसर के सबसे आम लक्षण निम्न हैं:
— गुदा से रक्तस्राव
— एनीमिया के लक्षण
— आंत के प्रवृत्ति में परिवर्तन (दस्त या कब्ज)
— पेट में दर्द या मरोड़ें उठना
— सूजन
— वजन में कमी
— ऐसी थकावट या सुस्ती जिसका कोई स्पष्ट कारण ना हो
न सिर्फ आंत के कैंसर बल्कि ऐसी अनेक स्थितियाँ हो सकती हैं जिनके कारण ये लक्षण हो सकते हैं। यदि आपको इनमें से किसी एक लक्षण का अनुभव हुआ है, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप डॉक्टर के साथ इसकी चर्चा करें।
बड़ी आंत के कैंसर
बड़ी आंत के कैंसर (कोलोरेक्टल कैंसर) के मामले ज्यादा आम है। कोलन व रेक्टम हमारे पाचन तंत्र के सबसे निचले हिस्से में पाए जाते है।
बड़ी आंत का कैंसर आम तौर पर 50 साल की उम्र के बाद देखा जाता है। पिछले कई सालों में कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में काफी सुधार हुआ है, लेकिन बेहतर इलाज के लिए इसका जल्द पता चलना जरूरी है।
बड़ी आंत के कैंसर का खतरा किसे हो सकता है?
- 50 साल की उम्र के बाद
- ज्यादा कैलोरी व कम रेशे (फायबर) वाला भोजन करने वालों को
- अगर पोलिप हों। पोलिप बड़ी आंत की अंदरूनी दीवार पर विकसित होते हैं, लेकिन ये कैंसरग्रस्त नहीं होते। कोलोरेक्टल कैंसर की जांच करवाने के बाद आपको पॉलिप होने की जानकारी मिलती है।
- जिन महिलाओं को स्तन, अंडाशय (ओवरी) या गर्भाशय (यूटेरस) का कैंसर है।
- जिन्हें पहले भी कोलोरेक्टल कैंसर हुआ हो।
- माता पिता, भाई बहन या बच्चे को कोलोरेक्टल कैंसर हो।
- कोलन में जलन (अल्सरेटिव कोलन)
बड़ी आंत के कैंसर के लक्षण
- शरीर के निचले हिस्से में जलन, सिकुड़न, सूजन होना
- डायरिया होना, मल की रुकावट, पेट पूरी तरह से साफ ना होना
- मल से खून निकलना
- नियमित स्वरुप से मल ना निकलना
- वजन कम होना
- हर वक्त थकान महसूस होना
- उल्टी होना
उपर बताए गए लक्षण सिर्फ कैंसर के नही है, लेकिन कैंसर की संभावना बताते है, इसलिए अपने डॉक्टर से जरूर जांच करवाएं।
छोटी आंत के कैंसर
छोटी आंत आमाशय के पीछे व उदरगुहा के अधिकांश भाग को घेरे हुए, लगभग 6 मीटर लम्बी व 2.5 सेमी मोटी और अत्यधिक कुण्डलित नलिका होती है। इसमें आगे से पीछे की ओर तीन भाग होते हैं-
ग्रहणी
ग्रहणी छोटी आंत का लगभग 25 सेमी लम्बा अपेक्षाकृत कुछ मोटा और अकुण्डलित प्रारम्भिक भाग होता है। यह आमाशय के पाइलोरस से प्रारम्भ होकर 'सी' की आकृति बनाता हुआ बाईं ओर को मुड़ा रहता है। इसकी भुजाओं के बीच में मीसेन्ट्री द्वारा सधा हुआ गुलाबी-सा अग्न्याशय होता है। यकृत से पित्तवाहिनी तथा अग्न्याशय में अग्न्याशिक वाहिनी ग्रहणी के निचले भाग में आकर खुलती है। ये क्रमशः पित्तरस तथा अग्न्याशिक रस लाकर ग्रहणी में डालती हैं। पीछे की ओर ग्रहणी मध्यान्त्र में खुलती है।
मध्यान्त्र तथा शेषान्त्र
छोटी आन्त्र का शेष भाग अत्यधिक कुण्डलित तथा लगभग 2.5 मीटर लम्बी मध्यान्त्र और 3.5 मीटर लम्बी शेषान्त्र में विभेदित होता है। इस भाग के चारों ओर बड़ी आन्त्र होती है। मध्यान्त्र व शेषान्त्र की पतली भित्ति में ब्रूनर ग्रन्थियाँ तथा आन्त्रीय ग्रन्थियाँ होती हैं। जिनसे आन्त्र रस निकलकर भोजन में मिलता रहता है। इसके अतिरिक्त इसकी भित्ति में अनेक अंगुली के आकार के छोटेदृछोटे रसांकुर होते हैं। ये पचे हुए भोजन का अवशोषण करते हैं और अवशोषण तल को बढ़ाते हैं।
छोटी आंत के कैंसर के प्रकार
कार्सिनाॅयड ट्यूमर, सार्कोमा, एडेनोकार्सिनोमा और लिम्फोमा।
एडेनोकार्सिनोमा ट्यूमर - यह आमतौर पर ग्रहणी में, आंत्र म्यूकोसा में होता है। यह अधिक बार होता है।
सार्काेमा- ये कई प्रकार के होते हैं। लीमोसार्कोमा आमतौर पर लघ्वान्त्र में विकसित होता है और ज्यादातर मामलों में, यह छोटी आंत की मांसपेशियों की दीवार को प्रभावित करता है। सार्कोमा शरीर के किसी भी भाग में दिखाई दे सकते हैं। नियोएंडोक्राइन ट्यूमर (कार्सिनॉयड) - यह छोटी आंत के भीतर हार्मोन का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं में विकसित होता है।
लिंफोमा - यहछोटी आंत के लिंफोइड ऊतक को प्रभावित करता है।
छोटी आंत के कैंसर के कारण और जोखिम कारक
ज्यादातर मामलों में इसके कारण अज्ञात होते हैं। छोटी आंत के कैंसर के जोखिम कारकों में क्रोहन रोग, सीलिएक रोग, पीट्ज एवं जेघर्स सिंड्रोम शामिल हैं।
छोटी आंत के कैंसर के लक्षण
- छोटी आंत में खून बहने के कारण काले रंग का मल
- पेट में दर्द और ऐंठन
- एनीमिया (खून की कमी)
- वजन घटना
- दस्त
बड़ी और छोटी आंत के कैंसर का निदान
बड़ी और छोटी आंत के कैंसर का पता एंडोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी जांच के द्वारा लगाया जाता है। ये उपकरण किसी भी असामान्य क्षेत्र की पहचान कर लेते हैं। यदि आवश्यक हो, तो ये परीक्षण करते समय ही ऊतक का एक छोटा सा नमूना आगे के परीक्षण के लिए निकाल लिया जाता है। इनके अलावा कैप्सूल एंडोस्कोपी का भी सहारा लिया जा सकता है। इसके तहत मरीज को एक बड़े आकार के कैप्सूल निगलने को दी जाती है। इसके अंदर एक कैमरा, बैटरी, प्रकाश और ट्रांसमीटर होता है। कैमरा आठ घंटे तक प्रति सेकंड दो तस्वीरें भेजता है। ये तस्वीरें रोगी की कमर के चारों ओर एक बेल्ट से जुड़ी एक छोटी सी रिकॉर्डिंग उपकरण को भेजी जाती है और इन तस्वीरों को डाॅक्टर अपने कंप्यूटर पर अपलोड कर लेते हैं। यह कैप्सूल डिस्पोजेबल होता है और आमतौर पर प्राकृतिक रूप से शरीर से उत्सर्जित हो जाता है। लेकिन अगर यह अपने आप नहीं निकलता है तो इसे हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। इनके अलावा रोगी के आंत की बेरियम एक्स-रे भी की जा सकती है। यह क्लिनिक के एक्स-रे विभाग में किया जाता है। इस परीक्षण के लिए, आंतों का खाली होना महत्वपूर्ण होता है। इसके तहत रोगी को तरल बेरियम पिलाकर एक्स-रे ली जाती है। इससे बाद में कब्ज हो सकता है और रोगी को हल्के जुलाब के सेवन आवश्यकता हो सकती है। कैंसर के निदान के लिए छोटी आंत की एमआरआई भी ली जा सकती है। इससे ट्यूमर के होने का पता चलता है। यह प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लगाता है। लेकिन इससे कभी-कभी आंत के कैंसर का स्पष्ट चित्र प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
आंत के कैंसर के उपचार
सर्जरी - यह आंत के कैंसर के लिए मुख्य इलाज है। इसके तहत आंत के कैंसरग्रस्त हिस्सों को निकाल दिया जाता है। रायह रोगग्रस्त आंत के वर्गों, साथ ही बाधा दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
रेडियोथेरेपी एवं कीमोथेरेपी- सर्जरी के बाद भी कुछ कैंसरग्रस्त कोशिकाएं रह जाती है जिन्हें नष्ट करने के लिए रेडियोथेरेपी दी जाती है। विकिरण चिकित्सा सर्जरी के बाद या कीमोथेरेपी के साथ दी जाती है।