देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण इस समय सभी के लिए जहां चिंता का विषय है वहीं एक बड़ी चुनौती भी है। प्रदूषण को लेकर जहां दिल्ली एनसीआर में रहने वाले लोग भयभीत हैं वहीं राजनी. तिक पार्टियों को भी बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल गया है। लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता प्रदूषण की चिंता कम बल्कि एक दूसरे को दोषी बताकर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं जो शायद उचित नहींबढ़ते प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कौन है और इसके लिए किसकी जवाबदेही है निश्चित ही विचारणीय है लेकिन इसके लिए यह समय उचित नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम नियंत्रण प्राधिकरण के अनुसार दिल्ली एनसीआर में शुक्रवार को प्रदूषण इस वर्ष के सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गया प्रदूषण को लेकर चिंतित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम नियंत्रण प्राधिकरण ने दिल्ली एनसीआर के लिए हैल्थ इमरजेंसी लागू कर दी है। स्कूलों में छुट्टी और निर्माण कार्यों पर रोक समेत कई पाबंदियां भी लगा दी गई है। आपात स्थिति के मद्देजर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तत्काल टॉक्स फोर्स की बैठक बुलाकर 5 नवम्बर तक स्कूलों में छुट्टी एवं सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। ठंड का मौसम खत्म होने तक आतिशबाजी पर भी पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। प्रदूषण से राजधानी में बिगड़े हालात के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को विचार करेगा तथा ईपीसीए की रिपोर्ट पर गौर करेगा जिसमें कचरा जलाने, फैक्ट्रियों के जहरीले पदार्थ बहाने और निर्माण स्थलों पर धूल की रोकथाम के कदम उठाने का निर्देश देने का मांग की गई है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी में बढ़े प्रदूषण के लिए पड़ोसी राज्यों हरियाणा तथा राजस्थान को जिम्मेदार बतया है जहां पराली जलाने से धुआं आ रहा है। दिल्ली सरकार का दावा है कि पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली 46 फीसदी जहर घोल रही है जो गलत नहीं है। बीते 24 घंटों में पराली जलाने के 3178 मामले सामने हैं जो इस सीजन में सबसे अधिक बताए जाते हैं राजधानी में प्रदूषण की चिंता करते हुए दिल्ली सरकार ने 5 नवम्बर तक के लिए निजी एवं सरकारी सभी स्कूल बंदकर दिए हैं। इसके साथ ही राजधानी में 4 से 15 नवम्बर तक ऑड ईवन स्कीम लागू करने की घोषणा की गई है। अब सवाल इस बात का है कि पानी सिर से ऊपर निकल जाने के बाद ही प्रदूषण की चिंता क्यों हुई है। चाहे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की बात हो अथवा दिल्ली में अवैध निर्माण कोई नई बात नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण लगाने की कोशिश नहीं की गई। दिल्ली में आज प्रदूषण पिछली हमारी भूल का ही परिणाम हैअगर इस पर पहले से चिंता की गई होती तो शायद जो चिंता आज हो रही है वह नहीं होती। अभी भी समय है। प्रदूषण से हमें सबक लेने की जरूरत है जलाने, फैक्ट्रियों के जहरीले पदार्थ बहाने और निर्माण स्थलों पर धूल की रोकथाम के कदम उठाने का निर्देश देने का मांग की गई हैदिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी में बढ़े प्रदूषण के लिए पड़ोसी राज्यों हरियाणा तथा राजस्थान को जिम्मेदार बतया है जहां पराली जलाने से धुआं आ रहा हैदिल्ली सरकासर का दावा है कि पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली 46 फीसदी जहर घोल रही है जो गलत नहीं है। बीते 24 घंटों में पराली जलाने के 3178 मामले सामने हैं जो इस सीजन में सबसे अधिक बताए जाते हैं राजधानी में प्रदूषण की चिंता करते हुए दिल्ली सरकार ने 5 नवम्बर तक के लिए निजी एवं सरकारी सभी स्कूल बंदकर दिए हैं। इसके साथ ही राजधानी में 4 से 15 नवम्बर तक ऑड ईवन स्कीम लागू करने की घोषणा की गई है। अब सवाल इस बात का है कि पानी सिर से ऊपर निकल जाने के बाद ही प्रदूषण की चिंता क्यों हुई है। चाहे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की बात हो अथवा दिल्ली में अवैध निर्माण कोई नई बात नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण लगाने की कोशिश नहीं की गई। दिल्ली में आज प्रदूषण पिछली हमारी भूल का ही परिणाम हैअगर इस पर पहले से चिंता की गई होती तो शायद जो चिंता आज हो रही है वह नहीं होती। अभी भी समय है। प्रदूषण से हमें सबक लेने की जरूरत है और भविष्य में इसका सामना न करना पड़े इस तरह के प्रयास होने चाहिएं।
दिल्ली में प्रदूषण बना भयानक
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प्रदूषण को लेकर हम चिंतित क्यों नहीं होते?
किसी शहर को रहने लायक बनाए रखने की पूरी जिम्मेदारी सरकार की ही नहीं होती, जनता को भी आगे आना पड़ता है। फिर बात बढ़ते प्रदूषण की हो तो जनता की जवाबदेही कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। मगर दिल्ली की जनता को यह समझ में न आया है और शायद न आएगा। पटाखों पर बैन और ग्रीन दिवाली के लिए सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी राजधानी दिल्ली व एनसीआर में जमकर पटाखे फोड़े गए। इसका असर यह हुआ कि हवा जहरीली हो चली है। सोमवार सुबह दिल्ली समेत पूरे एनसीआर की हवा की सेहत गंभीर हो चुकी है। बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में सिर्फ ग्रीन पटाखे चलाने की छूट थी, लेकिन लोग सामान्य पटाखे चलाते भी देखे गए। इसके साथ ही देश के बाकी शहरों में भी दिवाली पर खूब पटाखे चले। कुछ जगह लोगों ने बच्चों को पटाखों से जरूर दूर रखा, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या गिनी-चुनी ही रही। राजधानी दिल्ली में सोमवार को एयर क्वॉलिटी इंडेक्स में पीएम 2.5 का लेवल 500 पार तक पहुंच गया। यानी दिल्ली की हवा दिवाली के बाद खतरनाक हो चुकी है। आंकड़े के मुताबिक, दिल्ली में लोधी गार्डन में पीएम 2.5 का स्तर 500 था। बता दें कि एक्यूआई 0 से 50 के बीच होने पर 'अच्छा' होता है, 51 से 100 के बीच होने पर संतोषजनक', 101 से 200 के बीच 'मध्यम', 201 से 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 और 500 के बीच होने पर उसे 'गंभीर' समझा जाता है। दिल्ली और एनसीआर में दिवाली से पहले तक पटाखों का शोर ज्यादा नहीं था। लेकिन आठ बजे के बाद इन्हें जमकर फोडा गया। रात की बात करें तो नोएडा और दिल्ली का पीएम 2.5 का लेवल 301 बना हुआ था। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के चलते सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ग्रीन पटाखे चलाने की इजाजत दी थी। इसके अलावा पटाखे फोडने के लिए रात आठ से 10 बजे तक का वक्त तय था। ग्रीन पटाखों को लेकर कन्यूजन के चलते दिल्ली में सिर्फ 20 से 22 दुकानदारों ने इन पटाखों का लाइसेंस लिया था। मांग के हिसाब से मार्केट में पटाखे भी बहुत कम थे। बावजूद इसके इतने पटाखे दिल्ली में फूटे तो मतलब साफ है कि ये पटाखे दिल्ली से बाहर आसपास के इलाकों से खरीदे गए थे। विशेषज्ञ पहले ही ऐसी स्थिति का पूर्वानुमान लगा चुके थे। कहा गया था कि अगर दिल्ली में पहले के मुकाबले आधे पटाखे भी जले को दिल्ली का दम घुटेगा। प्रदूषण को कुछ कम करने के लिए दिल्ली में प्रयास भी शुरू हो चुके हैं। इसके लिए विभिन्न इलाकों में पानी का छिड़काव किया जा रहा है। दिल्ली के बनिस्पत मुंबई में दिवाली के दिन सबसे साफ हवा दर्ज की गई है।
पिछले पांच सालों से ही मुंबई की हवा की रीयल टाइम मॉनिटरिंग हो रही है। मुंबई के बाद पुणे सबसे साफ रहा है। दिवाली के दौरान दिल्ली में वायु सबसे दिखाई खराब स्तर पर और अहमदाबाद में मध्यम स्तर पर दर्ज की गई। वायु प्रदूषण लंबे समय से दिल्ली की बड़ी समस्या बना हुआ है, लेकिन अक्टूबर-नवंबर के महीने में यह समस्या उस वक्त ज्यादा गंभीर रूप धारण कर लेती है जब पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के खेतों में पराली जलाने से होने वाला धुआं दिल्ली के आसमान पर परत बन कर छा जाता है। यह हर साल की समस्या है। इससे दिल्ली की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सांस और फेफड़े की बीमारियों का शिकार होता है और लोग अस्पतालों की ओर भागने को मजबूर होते हैं। लेकिन इतना सब कुछ होने और झेलने के बाद भी अगर पराली जलाने पर रोक नहीं लग पा रही है तो यह केंद्र और राज्य सरकारों की
असफलता ही मानी जाएगी। पराली जलाने के मसले पर पिछले तीन साल में सुप्रीम कोर्ट तक ने कड़े निर्देश दिए, पर्यावरण मंत्रालय की निगरानी में टीमें बनाईं जो पराली जलाने के विकल्प खोजे और सरकारों को पराली जलाने वाले किसानों पर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए, मगर इन सबका कोई ठोस नतीजा अब तक सामने आया नहीं है। चिंता की बात तो यह है कि इस बार पराली जलाने की घटनाएं कम होने के बजाय और बढ़ी हैं। हालांकि केंद्र और पंजाब सरकार की ओर से दावे किए जा रहे हैं कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आ रही है। हाल में अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा ने पंजाब के खेतों में जलती पराली की तस्वीरें जारी की थीं। हालांकि पंजाब सरकार का तर्क यह है कि धुआं सिर्फ पराली का नहीं है, इसमें कचराघरों और श्मशानों से उठने वाला धुआं शामिल है। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण रोकने के लिए थोड़े-बहुत जो प्रयास हुए हैं उनका कुछ असर दिखा भी है। लेकिन व्यापक स्तर पर जिस तरह की कवायद की जरूरत है वह दिखाई नहीं देती। सबसे बड़ी समस्या सड़कों पर अभी भी पंद्रह साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों का दौडना है। आज भी ऐसे वाहनों की संख्या लाखों में है। लेकिन सरकार ऐसे वाहनों पर रोक लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। इसके अलावा दिल्ली के कुछ खास इलाकों को छोड़ दें तो अनेक जगहों पर कचरा जलते देखा जा सकता है। सरकार अपने स्तर पर कदम तो उठा रही है, लेकिन लोगों को जागरूक करना ज्यादा बड़ी चुनौती साबित हो रही है। अमूमन हर साल इन महीनों के दौरान दिल्ली की हवा इस कदर प्रदूषित होती है कि लोगों के लिए सांस लेना तक सहज नहीं रह जाता। इसके अलावा, कई बीमारियों के जोर पकड़ लेने के मामले आम हैं। पिछले कई सालों से लगातार एक प्रयास हुए हैं उनका कुछ असर दिखा भी है। लेकिन व्यापक स्तर पर जिस तरह की कवायद की जरूरत है वह दिखाई नहीं देती। सबसे बड़ी समस्या सड़कों पर अभी भी पंद्रह साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों का दौडना है। आज भी ऐसे वाहनों की संख्या लाखों में है। लेकिन सरकार ऐसे वाहनों पर रोक लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। इसके अलावा दिल्ली के कुछ खास इलाकों को छोड़ दें तो अनेक जगहों पर कचरा जलते देखा जा सकता है। सरकार अपने स्तर पर कदम तो उठा रही है, लेकिन लोगों को जागरूक करना ज्यादा बड़ी चुनौती साबित हो रही है। अमूमन हर साल इन महीनों के दौरान दिल्ली की हवा इस कदर प्रदूषित होती है कि लोगों के लिए सांस लेना तक सहज नहीं रह जाता। इसके अलावा, कई बीमारियों के जोर पकड़ लेने के मामले आम हैं। पिछले कई सालों से लगातार एक ही स्थिति कायम रहने के बावजूद हालत के लिए जिम्मेदार कारकों पर गौर करके समस्या से निपटने के इंतजाम करना सरकारों की प्राथमिकता सूची में लिहाज से आशंकाओं से भरा होता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण की मार झेलते इस शहर में इस सवाल की अनदेखी ने आम जनजीवन के सामने कैसा संकट खड़ा कर दिया है। यह स्थिति तब है, जब अभी ज्यादा ठंड नहीं है और हवा घनीभूत नहीं हुई है। वरना पिछले कुछ सालों के दौरान कई बार हालत यह हो गई थी कि प्रदूषित हवा को ऊपर उठने और निकल जाने के रास्ते ही नहीं मिल रहे थे और लोगों के सामने एक तरह से गैस चैंबर में जद्दा. 'जहद करने जैसी हालत पैदा हो गई थी।
हर साल लोगों के लिए ठंड के दो-तीन महीने का वक्त सेहत के लिहाज से आशंकाओं से भरा होता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण की मार झेलते इस शहर में इस सवाल की अनदेखी ने आम जनजीवन के सामने कैसा संकट खड़ा कर दिया है। यह स्थिति तब है, जब अभी ज्यादा ठंड नहीं है और हवा घनीभूत नहीं हुई है। वरना पिछले कुछ सालों के दौरान कई बार हालत यह हो गई थी कि प्रदूषित हवा को ऊपर उठने और निकल जाने के रास्ते ही नहीं मिल रहे थे और लोगों के सामने एक तरह से गैस चैंबर में जद्दा. 'जहद करने जैसी हालत पैदा हो गई थी। फिलहाल दिल्ली में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक शक्ल अख्तियार कर रहा है, तो नोएडा की हवा में जहरीली गैसों का स्तर बढ़ने की खबर भी आ चुकी है। यह समझना मुश्किल है कि इस तरह की चिंताजनक स्थितियों के बावजूद सरकारों की ओर से कोई ठोस पहलकदमी क्यों नहीं की जाती है, ताकि लोगों के सामने कोई चुनौती नहीं खड़ी हो। लेकिन यहा सिर्फ सरकारों को दोष देकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। अगर सरकार ने पटाखों को कम जलाने की बात की थी तो उसे क्यों नहीं माना गया। पटाखे तो एक दिन की बात हैं, मगर उन कारकों पर भी हम ध्यान नहीं दे रहे जो हवा में जहर घोल रहे हैं।
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दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब व हरियाणा को दोष देना उचित नहीं: जावेडकर
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली में लगातार गहराते वायु प्रदूषण के कारण हवा की गुणवत्ता में खराबी के लिये पंजाब और हरियाणा पर दोष मढ़ने को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आलोचना करते हुये कहा कि प्रदूषण के मुद्दे पर राजनीति करना उचित नहीं है। जावड़ेकर ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में विभागीय कामकाज के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआत करते हुये कहा, "दिल्ली के मुख्यमंत्री प्रदूषण के विषय पर राजनीति कर रहे हैं। वह आरोप प्रत्यारोप में लगे हैं। दिल्ली के प्रदूषण के लिये पंजाब और हरियाणा को दोष देना ठीक नहीं है।" । उल्लेखनीय है कि केजरीवाल ने दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंचने के लिये पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को मुख्य वजह बताई है। केजरीवाल ने दिल्ली के बच्चों से पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर पराली जलाने पर रोक लगाने की अपील की है।
ताकि दिल्ली को दूषित हवा की चपेट से बाहर निकाला जा सके। जावड़ेकर ने केजरीवाल के इस आरोप को गलत बताते हुये कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये पड़ोसी राज्यों को दोषी ठहरा रहे हैं। जावड़ेकर ने दलील दी कि दिल्ली में वाहन जनित वायु प्रदूषण हवा की गुणवत्ता को बिगाड़ने की प्रमुख वजह थी। इस पर नियंत्रण के लिये मोदी सरकार ने पेरीफेरल एक्सप्रेस वे' का निर्माणकार्य पांच साल में पूरा कराया जिसके कारण दिल्ली से होकर दूसरे राज्यों को जाने वाले वाहनों की संख्या में प्रतिदिन लगभग 60 हजार की कमी आई है।
उन्होंने कहा, "दिल्ली के मुख्यमंत्री प्रदूषण के विषय पर राजनीति कर रहे हैं। मैं इस स्तर पर बात नहीं करना चाहता हूं, लेकिन यह जरूर बताना चाहूंगा कि आखिर ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस वे के लिये 3500 करोड़ रुपये राज्य सरकार को देने थे, वह उन्होंने दिये नहीं। आखिर में अदालत ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि वह इस काम के लिये एक हजार करोड़ रूपये दे। ईस्टर्न दिल्ली के 80 हजार टैक्सी चालकों पेरीफेरल एक्सप्रेस वे की वजह से दिल्ली का वाहन जनित प्रदूषण सीधे तौर पर कम होने वाला था।" जावड़ेकर ने पंजाब और हरियाणा को प्रदूषण के लिये दोष देने के बजाय प्रदूषण के खिलाफ पांचों प्रभावित राज्यों के संयुक्त प्रयास तेज करने की मोदी सरकार की नीति का पालन सुनिश्चित करने की अपील की।
उन्होंने कहा, “प्रदूषण कैसे कम हो, इसकी चिंता करने के बजाय आपस में दोषारोपण करने लगेंगे तो कच्ची चिट्ठियां बहुत मिल जायेंगी, लेकिन जनता को प्रदूषण से राहत देना हम सभी का सामूहिक दायित्व है, और इस दायित्व की पूर्ति नहीं हो पायेगी।" जावड़ेकर ने इस काम में जनता, सरकारों, उद्योगों और किसानों सहित सभी पक्षकारों से सहयोग की अपील करते हुये कहा कि सामूहिक प्रयास ही कारगर साबित होंगे।
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हाथीपांव रोग के उन्मलन का उचित समयः डॉ. हर्ष वर्धन
नई दिल्ली। योजना, प्रतिबद्धता, सोच, समाज की भागीदारी और अतीत के अनुभव से हमें देश में 2021 तक लिम्फेटिक फिलेरियेसिस के उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी" केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने लिम्फेटिक फिलेरियेसिस हाथीपांव के उन्मूलन के लिए मिलकर काम करने के विषय पर आयोजित राष्ट्रीय गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा।
इस अवसर पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि यह वर्ष भारत में स्वास्थ्य के लिए उल्लेखनीय रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में इस वर्ष में हमने देखा कि किस तरह साहसपूर्ण वचनबद्धताओं के साथ-साथ सकारात्मक कार्रवाई से वांछित परिणाम मिलने लगे हैं। डॉ. हर्षवर्धन ने यह भी कहा, मैं आपका ध्यान उपेक्षित उष्ण कटिबंधीय रोगों (एनटीडी) की ओर आकर्षित करना चाहता हूं जो दुर्बल संक्रामक रोगों का समूह है और इनका दुष्प्रभाव विश्व में 1 अरब 50 करोड़ लोगों पर पड़ता है और इस कारण गरीब लोग अपनी पूर्ण क्षमता प्राप्त नहीं कर सकते। दो उपेक्षित उष्ण कटिबंधीय रोगों लिम्फेटिक फिलेरियेसिस हाथीपांव और विस्केरल लीश्मेनियेसिस-कालाजार हैं जिनका भारत उन्मूलन करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि अत्यंत जोखिम वाले बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके।"
डॉ. हर्षवर्धन ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी भागीदारों और पक्षों को एनटीडी बीमारियों पर काबू पाने के लिए सक्रिय रूप से सभी क्षेत्रों के साथ सहयोग कर सच्ची सहयोग कर सच्ची भागीदारी की भावना से काम करना होगा।
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विज्ञान उत्सव में होगी चार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की कोशिश
कोलकाता में 5 से 8 नवंबर तक चलने वाले 5वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय विज्ञान उत्सव (आईआईएसएफ)-2019 में चार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का प्रयास किया जाएगा।
इस चार दिवसीय आयोजन के पहले दिन खगोल भौतिकी और दूसरे दिन इलेक्ट्रॉनिक्स का सबसे बड़ा शिक्षण कार्यक्रम होगा। खगोल भौतिकी के शिक्षण कार्यक्रम में 1,750 और इलेक्ट्रॉनिक्स शिक्षण कार्यक्रम में 950 से ज्यादा छात्र शामिल हो रहे हैं। विज्ञान उत्सव के तीसरे दिन एक साथ सबसे अधिक लोगों द्वारा रेडियो किट असेंबलिंग का रिकॉर्ड बनाने का प्रयास किया जाएगा, जिसमें 400 छात्र शामिल होंगे। आठ नवंबर को मानव गुणसूत्र का सबसे बड़ा मानवीय चित्र बनाने का प्रयास किया जाएगा, जिसमें 400 विद्यार्थी हिस्सा लेंगे।
इस दौरान खगोलविद स्पेक्ट्रोस्कोप के उपयोग से पृथ्वी से लाखों प्रकाश वर्ष दूर स्थित खगोलीय पिण्डों के तापमान और रासायनिक संरचना को जानने का प्रयास करेंगे। स्पेक्ट्रोस्कोप का एक छोटा मॉडल आसानी से किसी भी कार्डबोर्ड से बने बॉक्स का उपयोग करके बनाया जा सकता है, जिसमें स्पेक्ट्रोस्कोप में प्रकाश जाने के लिए बेहद संकरी खिड़की होती है। इसमें विसरण नामक वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा प्रकाश को विभाजित करने के लिए कॉम्पैक्ट डिस्क के एक छोटे टुकड़े का उपयोग किया जाता है। विज्ञान उत्सव में आयोजित की जाने वाली ये गतिविधियां खगोलविज्ञानी मेघनाथ साहा और भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त सी.वी. रमन जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की याद में आयोजित की जा रही हैं।
गिनीज बुक रिकॉर्ड करने की कड़ी में एक ही स्थान पर सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक्स प्रशिक्षण और ऑप्टिकल मीडिया संचार इकाइयों का जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। इन्फ्रारेड संकेतों के माध्यम से स्थापित संचार लिंक स्थापित करने का प्रयास भी इस पहल में शामिल होगा। विज्ञान उत्सव में आयोजित किया जाने वाला यह प्रयास चंद्रशेखर वेंकटरमन और सत्येंद्र नाथ बोस को समर्पित है।
रेडियो किट असेंबलिंग भी इस कार्यक्रम में आकर्षण का केंद्र बनने जा रहा है। अन्य विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह, रेडियो तरंगें निर्वात में प्रकाश की गति से यात्रा करती हैं। वे तेजी से गुजरने वाले विद्युत आवेशों से उत्पन्न होती हैं। रेडियो तरंगों को ट्रांसमीटरों द्वारा कृत्रिम रूप से उत्पन्न किया जाता है और रेडियो रिसीवर द्वारा एंटेना के उपयोग से प्राप्त किया जाता है। यह प्रयास मशहूर भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस को समर्पित है।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की कोशिश में मानव गुणसूत्र का सबसे बड़ा मानव चित्र बनाने का प्रयास विज्ञान उत्सव का प्रमुख घटक है। प्रत्येक कोशिका के नाभिक में डीएनए अणु क्रोमोसोम की धागे जैसी संरचना में पैक रहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र डीएनए से बना होता है, जो हिस्टोन्स नामक प्रोटीन के आसपास जमा रहता है और इसकी संरचना को सपोर्ट करता है। इस संरचना को यहां मानव चित्र के रूप में उकेरने का प्रयास किया जाएगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए युवाओं में रुचि पैदा करना और उनको प्रेरित करना इस पहल का प्रमुख उद्देश्य है।
5वें आईआईएसएफ का मेजबान शहर कोलकाता उन प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्थानों का घर है, जो भारत में विज्ञान को आकार देने वाले अग्रणी वैज्ञानिकों का कार्यस्थल रहे हैं। वर्ष 2015 में अपनी स्थापना के बाद से यह आईआईएसफ का पांचवा संस्करण है। पहला और दूसरा आईआईएसएफ नई दिल्ली में आयोजित किया गया था, तीसरा चेन्नई और चौथा आईआईएसएफ लखनऊ में आयोजित किया गया था।
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550वां प्रकाश पर्व ; सहज पाठ के साथ की जायेगी गुरूपर्व समागमों की शुरूआत
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