अधिक फैशन कहीं आपकी कमर के लिए कहर न बन जाए

 


 



डा. (प्रो.) राजू वैश्य ,,अध्यक्ष, आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन,,तथा वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन,,अपोलो हास्पीटल

महिलायें आम तौर पर पुरुषों की तुलना में कमर दर्द से अधिक पीड़ित रहती हैं जिसके लिए बढ़ता फैशन भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। आज आधुनिक एवं पढ़ी-लिखी महिलायें अपने को छरहरा एवं खूबसूरत दिखाने के लिये ऊंची एड़ी की चप्पल-जूतियों का अंधाधुंध प्रयोग करती हैं। लेकिन उन्हें शायद ही पता है कि उनका यह दिखावापन उनकी नाजुक कमर के लिये कहर साबित होता है। ऊंची एड़ी के जूते-चप्पलों का प्रयोग महिलाओं में कमर दर्द का प्रमुख कारण है। ऊंची एड़ी के जूते-चप्पल पहनने वाली महिलाओं के कमर दर्द से अधिक पीड़ित होने का कारण यह है कि ऐसे जूते-चप्पल पहनने से शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे कमर में खिंचाव पैदा होता है। इसके अलावा इससे रीढ़ पर भी अधिक दबाव पड़ता है। गर्भवती महिलाओं के आखिरी महीनों में होने वाले पीठ एवं कमर दर्द का भी कारण यही है। गर्भावस्था में भू्रण का भार कटि-क्षेत्र को आगे की ओर झुका देता है जिससे पीठ एवं कमर पर अधिक दबाव पड़ता है। महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान स्पाइनल एनेस्थिसिया देने से भी लंबे समय तक कमर दर्द होता है। महिलाओं में अधिक कमर दर्द के लिए उनकी शारीरिक संरचना एवं काम-काज की प्रकृति के अलावा जैविक कारण भी जिम्मेदार हैं।
महिलाओं में कमर दर्द का प्रकोप
अध्ययनों के अनुसार लगभग 41 प्रतिशत से ज्यादा महिलायें कमर दर्द से पीड़ित हैं। करीब एक करोड़ महिलायें हर साल कमर दर्द से ग्रस्त होती हैं। लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं का कमर दर्द एक साल से पुराना होता है। सभी आयु वर्ग की महिलायें कमर दर्द से प्रभावित हैं लेकिन 16-24 वर्ष के आयु वर्ग की हर तीसरी महिला और 45 से 64 आयु वर्ग की हर दूसरी महिला कमर दर्द से पीड़ित होती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कमर दर्द अधिक समय तक बना रहता है। पुरुषों को छोटे समयांतराल के लिए और तेज दर्द होता है। महिलाओं में कमर दर्द का एक प्रमुख कारण मासिक धर्म है। गर्मावस्था और बच्चे की देखभाल भी महिलाओं को कमर दर्द का शिकार होने का खतरा बढ़ा देता है। अमेरिकी अध्ययन के अनुसार 40 से 60 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कमर दर्द का शिकार होती हैं।
कमर दर्द का उपचार


कमर दर्द के इलाज के लिये सबसे पहले इसके कारणों का पता लगाया जाता है। कमर दर्द के कारणों की सही-सही और सबसे अधिक जानकारी मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई.) से मिलती है। इससे यह पता चल जाता है कि किस नस पर कितना दबाव पड़ रहा है। आरंभिक स्थिति में कमर दर्द के इलाज के तौर पर चिकित्सक मरीज को आराम करने तथा व्यायाम करने की सलाह देते हैं। कई चिकित्सक मरीज को टै्रक्शन लगाने की भी सलाह देते हैं। लेकिन मरीज को कमजोरी, सुन्नपन और पेशाब करने में दिक्कत होने पर आपात स्थिति में ऑपरेशन करने की जरुरत पड़ सकती है। कमर दर्द के कारगर एवं कष्टरहित इलाज की खोज के लिये दुनिया भर में अध्ययन-अनुसंधान चल रहे हैं। इनकी बदौलत कमर दर्द के इलाज की अनेक कारगर एवं कष्टरहित विधियां एवं तकनीकें उपलब्ध हो गयी हैं।
कमर दर्द से कैसे बचें
आपके खड़े होने, बैठने, चलने-फिरने, चीजों को उठाने और ले जाने के तरीकों का आपकी कमर पर खासा प्रभाव पड़ता है। रोजमर्रे के जीवन में काम काज के दौरान कुछ सावधानियां बरत कर कमर दर्द से बचा जा सकता है। भारी वजन उठाते समय हमेशा अपने घुटनों को मोड़ें। लगातार बैठ कर काम करने से बचें। हर 15 मिनट पर खड़े हो जाएं और थोड़ा टहल लें। अपने लिए उचित तरीके से डिजाइन की गई कुर्सियां का ही इस्तेमाल करें। टेलीविजन देखते समय कुर्सी पर आराम से सीधे बैठकर और सही दूरी से टेलीविजन देखें। वाहन चलाते समय अपनी सीट को पीछे की तरफ सरका लें ताकि पैरों को ज्यादा जगह मिल सके। वाहन चलाते समय अपनी सीट में कमर के पीछे एक तकिया या कुशन रखने से कमर को सहारा और आराम मिलेगा। नियमित व्यायाम कमर की कमजोर मांसपेशियों की परेशानियों से दूर रखेगा। तैरना, थोड़ा एरोबिक्स और टहलने जैसे व्यायाम कमर की मांसपेशियों को मजबूत बनाते हैं। व्यायाम से दोहरा लाभ मिलता है। इससे न केवल कमर दर्द से राहत मिलती है, बल्कि कमर दर्द से बचाव भी होता है। धूम्रपान से परहेज करें। स्थूल जीवनशैली के साथ-साथ मोटापा कमर दर्द का कारण है। मोटापा से बचने के अलावा शरीर की चुस्ती-तंदुरूस्ती भी कमर दर्द से बचाव के लिये आवश्यक है। कमर दर्द से बचने के लिये खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिये। हमारे आहार में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये, क्योंकि इससे ऊतकों का निर्माण तेजी से होता है। इसके अलावा आहार में ताजे फल एवं सब्जियां भी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिये, क्योंकि इनसे शरीर को विटामिन मिलती है।

मानसिक रोगियों को इलाज के लिए 50 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है


  • केवल 49 प्रतिशत मरीजों को उनके घर के 20 किलोमीटर के दायरे में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती है।

  • भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर हुए अब तक के सबसे बड़े स्वतंत्र सर्वेक्षण से हुआ बड़ा खुलासा।

  • विश्व मानसिक स्वास्थ्य फेडरेशन (डब्ल्यूएफएमएच) के सहयोग से नई दिल्ली स्थित कासमोस इंस्टीच्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइंसेस (सीआईएमबीएस) की ओर से किया गया यह सर्वेक्षण।

  • सात राज्यों में 10,233 हजार लोगों पर सर्वेक्षण किया गया।


नई दिल्ली: मौजूदा समय में मानसिक बीमारियां महामारी का रूप ले रही है लेकिन हमारे देश में मानसिक बीमारियों से ग्रस्त ज्यादातर लोगों के लिए इलाज की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। इस सर्वेक्षण से पता चला कि हमारे देश में कई क्षेत्रों में मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए मरीजों को 50 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।  

विश्व मानसिक स्वास्थ्य फेडरेशन (डब्ल्यूएफएमएच) के सहयोग से नई दिल्ली स्थित कासमोस इंस्टीच्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइंसेस (सीआईएमबीएस) की ओर से देश के सात राज्यों में 10 हजार लोगों पर किए गए एक व्यापक अध्ययन से यह निष्कर्ष सामने आया है। इस अध्ययन की रिपोर्ट विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर आज यहां आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में जारी किया गया। 

इस अध्ध्यन में शामिल 43 लोगों ने कहा कि उनके परिवार या दोस्तों में मानसिक रोगी हैं लेकिन इनमें से करीब 20 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर के 50 किलोमीटर के दायरे में कोई मानसिक चिकित्सा केन्द्र या क्लिनिक नहीं है। हमारे देश में केवल 49 प्रतिशत मरीजों को उनके घर के 20 किलोमीटर के दायरे में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाती है। 

इसी तरह से 48 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे जानते हैं कि उनके परिवार या दोस्तों में कोई व्यक्ति नशे की लत का शिकार है लेकिन इनमें से 59 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर के आसपास नशा मुक्ति केन्द्र नहीं है। 

इस अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए सीआईएमबीएस के निदेशक डॉ. सुनील मित्तल ने कहा कि ''मानसिक बीमारियां न केवल मरीजों के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए अत्यंत दुखदाई और तकलीफदेह होती है और यह आज के समय की बहुत बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। हालांकि इन बीमारियों का इलाज पूरी तरह से संभव है लेकिन हमारे देश में मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों में से ज्यादातर को इलाज नहीं मिल पाता है। इसका कारण मानसिक बीमारियों को लेकर समाज में कायम गलत धारणाएं, इन बीमारियों को लेकर जागरूकता का अभाव तथा मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का सुलभ नहीं हो पाना है।

यह अध्ययन भारत में मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता, मानसिक बीमारियों के प्रति लोगों के व्यवहार एवं इन बीमारियों के उपचार की सुलभता की स्थिति का पता लगाने के लिए किया गया जो इस विषय पर भारत में किया गया सबसे बड़ा स्वंतत्र सर्वेक्षण है। इस सर्वेक्षण से भारत में मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता, मानसिक बीमारियों के प्रति लोगों के व्यवहार एवं इन बीमारियों के उपचार की सुलभता के बारे में बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी मिली है। इस सर्वेक्षण को वल्र्ड डिग्निटी प्रोजेक्ट के तहत सहायता प्रदान की गई।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे (एनएमएचएस), 2015-16 के अनुसार हमारे देश में मानसिक बीमारियों का प्रकोप 13.7 प्रतिशत है जबकि मानसिक बीमारियों के कारण आत्महत्या करने का खतरा 6.4 प्रतिशत है। इस सर्वे में मानसिक बीमारियों के प्रकोप तथा इन बीमारियों के लिए उपचार सुविधाओं की उपलब्धता में भारी अंतर का पता चला। 

सीआईएमबीएस की क्लिनिकल साइकोलाजिस्ट सृष्टि जाजू ने कहा कि हमारे देश में चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है और आज के समय में टेक्नोलाजी जैसे, मोबाइल फोन, एप्स और टेली मेडिसीन इस दिशा में काफी मददगार साबित हो सकते हैं। 

इस अध्ययन से एक चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि इस सर्वेक्षण में शामिल 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके पास या तो स्वास्थ्य बीमा नहीं है या वे यह नहीं जानते कि मानसिक बीमारियों का उपचार स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आता है। सीआईएमबीएस की साइकिएट्रिस्ट डॉ. शोभना मित्तल ने कहा कि इस सर्वेक्षण में देखा गया कि केवल आठ प्रतिशत लोगों को यह पता था कि मानसिक बीमारियों का इलाज चिकित्सा बीमा के दायरे में आता है तथा केवल 26 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सरकार मानसिक रोगियों के इलाज की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराती है।

डॉ. शोभना मित्तल ने कहा कि इस सर्वेक्षण के आधार पर कहा जा सकता है कि लोगों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के बारे में जानकारी बहुत कम है जिसमें चिकित्सा बीमा कंपनियों को शारीरिक बीमारियों के इलाज की तरह ही मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए बीमा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है लेकिन इस बारे में जागरूकता की कमी के कारण काफी मरीज मानसिक बीमारियों का इलाज नहीं करा पाते या बीमे का लाभ नहीं ले पाते। 

डॉ. सुनील मित्तल ने कहा कि इस सर्वेक्षण के आधार पर मानसिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के लिए तीन प्रमुख सुझाव सामने आए हैं। करीब 37 प्रतिशत लोगों ने अधिक से अधिक संख्या में मानसिक चिकित्सा केन्द्र खोलने का सुझाव दिया, 28 लोगों ने कहा कि मानसिक रोगियों की सेवा - सुश्रुशा करने वाले लोगों के लिए प्रक्रिया को आसान बनाया जाए ताकि वे मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों का इलाज सुगमता से करा सकें तथा 24 प्रतिशत लोगों ने लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने का सुझाव दिया। 

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए सक्रिय रूप से शामिल सुप्रीम कोर्ट के वकील मृणाल कंवर ने कहा, ''राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को अपर्याप्त मेंटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को संबोधित करने के लिए 1982 में शुरू किया गया था और 1996 में हर जिले में एक मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र शुरू करने की योजना बनाई गई थी। लेकिन, दशकों बाद भी, इसके इंफ्रास्टक्चर में पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है।''

मृणाल कंवर ने कहा कि इसका मुख्य कारण अधिकारों के बारे में जागरूकता का अभाव है। नया कानून व्यक्तियों को कई अधिकार प्रदान करता है, लेकिन व्यक्ति इनका लाभ तब तक नहीं उठा पाते हैं जब तक कि उन्हें जागरूक और तैयार नहीं किया जाता है।''

सीआईएमबीएस की मनोचिकित्सक डॉ. दीपाली बंसल ने कहा कि 55 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारियों वाले लोगों को खतरनाक मानते हैं। लेकिन यह एक गलत धारणा है। मानसिक बीमारी वाले लोग दूसरों के लिए तो खतरनाक साबित नहीं होते हैं लेकिन उनके दूसरों के द्वारा दुव्र्यवहार या पीड़ित होने की अधिक संभावना होती है। लोगों में ऐसी धारणा को सिनेमा जैसे मनोरंजन के लोकप्रिय माध्यम ने अधिक बढ़ावा दिया है।

मिताली श्रीवास्तव ने कहा, ''सर्वेक्षण में एक दिलचस्प बात पायी गयी कि केवल 43 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि मानसिक समस्या से पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल ले जाने की नौबत आ सकती है, जबकि 44 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि व्यक्ति को परिवार के सदस्यों द्वारा काउंसलिंग की जा सकती है या स्थानीय चिकित्सक या बाबा / तांत्रिक के पास ले जाया जा सकता है।''

 

प्रदूषण की मार से कहीं आपकी सेहत ना हो जाए बेकार


- डा. अनिता सिंगला, विजिटिंग कंसल्टेंट, आब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी , फोर्टिस हाॅस्पीटल एवं जेपी हास्पीटल, नौएडा
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पिछले कई दिनों से नौएडा, ग्रेटर नौएडा सहित दिल्ली -एनसीआर में प्रदूषण काफी बढ़ गया है। सर्दी के आगमन के साथ ही आसमान पर स्मॉग की चादर तनने लगी है। दिवाली में वैसे भी आतिशबाजी के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। प्रदूषण न केवल घर के बाहर बल्कि घर के भीतर भी होता है। अक्सर घरों में बेहतर वेंटिलेशन सिस्टम की कमी होती है। लेकिन जब बाहर भी प्रदूषण होता है तो दरवाजों और खिड़कियों को भी बंद रखना पड़ता है। इसके कारण घर का प्रदूषण बाहर नहीं निकल पाता। दिल्ली-नौएडा सहित एनसीआर में घरों के अंदर कई हानिकारक गैसों की मात्रा सुरक्षित सीमा से बहुत अधिक पाई गई है। घरों में किचन से निकलने वाली गैसें, वाशरूम से निकलने वाली गंध, केमिकल क्लीनिंग सोल्युशन, ऐडहीसिव, ऑयल डिफ्यूजर, डियोड्रेंट, परफ्यूम, मॉस्किटो रिपेलेंट, कारपेट, पेंट, लकड़ी के फर्नीचर और घर के अन्य सामानों से निकलने वाले हानिकारक गैसें और गंध कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती हैं।
महिलाओं पर प्रदूषण का असर
घर और बाहर के प्रदूषण से कई बीमारियां होती हैं जिनमें श्वास संबंधी बीमारियां, हाइपरटेंशनए कैंसर और हृदय रोग प्रमुख है। जिन्हें सांस और साइनस है उन्हें अधिक हो सकता है। यही नहीं प्रदूषण से महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है और समयपूर्व प्रसव एवं गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है। प्रदूषण से गर्भवती महिलाएं ही नहीं बल्कि अजन्मे बच्चे भी प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, वायु प्रदूषण से खतरनाक और काफी महीन कण नाक और मुंह के रास्ते फेफड़ों तक पहुंचते हैं। ये सांस की नली में सूजन बढ़ा देते हैं।
ये हानिकारक कण गर्भवती महिलाओं के अलावा बुजुर्गों और खास तौर पर सांस के मरीजों के लिए ज्यादा नुकसानदेह होते हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
दिवाली में गर्भवती महिलाएं खास ख्याल रखें
दिवाली के दौरान बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के धुएं और शोर से बचकर रहना चाहिए। इस धुएं के कारण बच्चों को सांस की समस्या हो सकती हैं। इसके अलावा पटाखों में खतरनाक केमिकल होता है जिसके कारण बच्चों में भी टॉक्सिन्स का लेवल बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है। इसके साथ ही इस धुएं के कारण गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए पटाखों से दूरी बना कर रहें। जितना हो सके घर के अंदर ही रहे, धुएं और पटाखों के संपर्क में आने से बचें।
बच्चों और बुजुर्गों का भी रखें ख्याल
महिलाओं को अपने से अधिक परिवार के अन्य सदस्यों का ध्यान रखना पड़ता है। उन्हें छोटे बच्चों और बुजुर्गों का दिवाली मौके पर खास ख्याल रखना होगा। क्योंकि इनके फेफड़े बहुत ही ज्यादा कमजोर होते है। इतना ही नहीं कई बार बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति पटाखों के शोर के कारण दिल के दौरे का शिकार हो जाते हैं।
प्रदूषण से कैसे करें बचाव
— प्रदूषण अधिक होने पर मास्क का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन माॅस्क अच्छी क्वालिटी की हो। एन 95 मास्क ही प्रदूषण से रोकथाम में सबसे कारगर होते हैं। गर्भवती महिलाएं घर में भी मास्क पहनें।
— एलर्जी होने पर गर्म पेय पदार्थ ज्यादा पिएं। अस्थमा या एलर्जी वाले लोग दिक्कत होने पर चिकित्सक से संपर्क करें। एलर्जी से बचने के लिए अपने मुंह पर रूमाल या फिर कपड़ा बांधे।
— सुबह और शाम के समय दिक्कत लगे तो रुमाल से नाक-मुंह ढक लें।
— कोशिश करें कि पटाखे न जलाएं और घर के अन्य लोगों को भी आतिषबाजी से दूर रहने को प्रेरित करें क्योंकि इससे निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
अगर आप दमा की मरीज हैं तो हमेशा अपने साथ इन्हेलर रखें ताकि सांस की समस्या होने पर तुरंत यूज कर सके।
— दिवाली की रात घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद करके रखें। जिससे पटाखों का धुंआ अंदर प्रवेश न कर पाए।
— अगर आप खर्च वहन कर सकती हैं तो झाडू की जगह वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।
— अपने घर में और आसपास की जगहों पर ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं जो हवा को साफ रखने का काम करते हैं।
— सांसों से शरीर में पहुंचे जहर को बाहर निकालने के लिए पानी बहुत जरूरी है। दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं। घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं।
— खाने में जितना हो सके विटामिन-सी, ओमेगा-3 को प्रयोग में लाएं. शहद, लहसुन, अदरक का खाने में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
— सुबह के वक्त प्रदूषण का स्तर ज्यादा होता है इसलिए मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाएं।


पोर्टेबल नेविगेशन तकनीक से मिलेगा बेहतर परिणाम

प्रौद्योगिकी विकास और सर्जिकल उपलब्धियों वाली नई आपरेटिंग तकनीकें गाजियाबाद के वैशाली स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हास्पीटल के आर्थोपेडिक एवं ज्वांइट रिप्लेसमेंट विभाग में उपलब्ध हैं जिनके कारण सर्जरी के परिणाम में सुधार होता है तथा मरीज कम समय में स्वास्थ्य लाभ करते हैं। ऐसा ही एक तकनीकी विकास है आर्थोएलाइन जिससे घुटना बदलवाने का आपरेशन कराने वाले लोग जल्दी ठीक होते हैं तथा मरीज जल्द से जल्द बिना किसी कष्ट के चलने-फिरने में सक्षम होते हैं। इस नवीनतम तकनीक की मदद से परम्परागत मैकेनिकल गाइड्स तथा परम्परागत कम्प्यूटर एक्सेस सर्जरी प्रणालियों की तुलना में एलाइनमेंट में उल्लेखनीय सुधार होता है।
गाजियाबाद के वैशाली के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हास्पीटल में आर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिलेसमेंट सर्जरी विभाग के निदेशक एवं विभाग प्रमुख डाॅ. बी. एस. मूर्ति बताते हैं, ''यह आसानी से संचालित होने वाला हथेली के आकार का उपकरण है जिससे आपरेशन के परिणाम में सुधार आता है, घुटने की स्थिरता को बढ़ावा देता है, आपरेशन का समय कम करता है और इसके कारण मरीज को कम समय तक अस्पताल में रहना पड़ता है। डाॅ. मूर्ति आपरेशन की सटीकता एवं उसमें लगने वाले समय में कमी लाने के लिए सर्जरी के साथ तकनीकों के एकीकरण के लिए जाने जाते हैं। आर्थोएलाइन के उपयोग ने इस तथ्य को साबित किया है।
आर्थोएलाइन हाथों से पकड़ कर संचालित किया जाने वाला नैविगेशन उपकरण है जो ऑपरेटिंग थियेटर में रखी जाने वाली मंहगी मशीन के जटिल उपयोग को कम करता है। यह एकल-उपयोग प्रणाली है और इसके कारण आपरेषन थियेटर में उपयोग हो सकने वाली महंगी नैविगेशन मशीनें खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका उपयोग कहीं भी किया जा सकता है। पारंपरिक कंप्यूटर आधारित सर्जरी में सर्जन को एक बड़े से कंसोल में देखना पड़ता है जबकि यह नई तकनीक बहुत ही सुविधाजनक एवं उपयोगी है और सर्जरी को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए सर्जन को रियल टाइम फीडबैक प्रदान करती है।
डाॅ. मूर्ति ने यह जानकारी देते हुए बताया, ''यह तकनीक सर्जन को बिल्कुल सटीक एवं सही जानकारी देती है। इस नई तकनीक की मदद से घुटने को सही तरीके से संतुलित किया जा सकता है। इसकी मदद से इम्प्लांट लंबे समय तक काम करते हैं तथा स्वस्थ क्षेत्र को नुकसान पहुंचने से बचाते हैं।''
आर्थोएलाइन मौजूदा आपरेशन थियेटर में जगह की कमी को दूर करने का सम्पूर्ण समाधान है और जिसके कारण मरीज को संक्रमण होने की आशंका कम होती है। इसकी बेहतरीन एलाइनमेंट विशेषता के कारण जोड़ के गलत तरीके से जुड़ने तथा उसमें विकृति रह जाने की आशंका नहीं होती है और इस कारण मरीज को दोबारा सर्जरी कराने के खर्च एवं कष्ट से बचाव होता है। 


दिवाली में कैसे रखें सही खान-पान

दीवाली खुशियों, मौज-मस्ती और लजीज पकवानों का त्यौहार है लेकिन इस दौरान खाने-पीने में सावधानी रखें अन्यथा हो सकता है कि जब लोग खुशियां मना रहे हों तो आप पकवान खाने के बजाए दवाइयां खा रहे हो और खुशियां मनाने के बजाए डाक्टरों के चक्कर काट रहे हों।
दिवाली में स्वादिष्ट व्यंजनों और मिठाइयों का लुत्फ उठाएं लेकिन सावधानी के साथ। खास तौर पर डायबटिज के मरीज। कई लोग इतना पकवान, घी की मिठाइयों, नमकीन और ड्राईफ्रूट्स खा लेते हैं उनका शुगर लैवल और ब्लड प्रैशर बहुत अधिक बढ़ जाता है। यह देखा गया है कि कई लोग त्यौहार के दौरान अपना वजन 20 प्रतिशत तक बढ़ा लेते हैं।
दिवाली के दौरान आपको बाजार से खरीदी गई मिठाइयों से परहेज करना चाहिए। ऐसी मिठाइयों में मिलावट हो सकती है जिनके खाने से आप बीमारियों का शिकार बन सकते हैं। बाजार में त्यौहार से कई दिनों पहले से मिठाइयां बननी शुरू हो जाती हैं और आपके घर पहुंचते - पहुंचते खराब और बासी हो जाती हैं। मिठाइयां हमेशा अच्छी दुकानों से खरीदें। बेहतर तो यही है कि मिठाइयां घर में ही बनाएं।
इसके अलावा आप फल और सब्जियों का सेवन अधिक करें। उनमें से अधिकांश में एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं और इस प्रकार हमारे शरीर को हानिकारक फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
व्यायाम भी है जरूरी
दिवाली में जो अतिरिक्त कैलोरी ग्रहण करते हैं उन्हें बर्न करने के लिए एक्सरसाइज करना नहीं भूलें। त्यौहारों की तैयारी में अक्सर महिलाएं व्यायाम करना भूल जाती हैं। लेकिन उन्हें व्यायाम के लिए समय निकालना चाहिए। नियमित एक्सासाइज से कैलोरी बर्न होगी तथा शुगर लेवल नियंत्रित रखेगा। अगर आप किसी भी बीमारी से पीडि़त नहीं हैं, तो प्रति दिन आधे घंटे तेज चलें, अन्यथा अपने डॉक्टर द्वारा बताए गए फिजिकल एक्सररसाइज का पालन करें।
हाइड्रेशन का रखें ध्यान
दीवाली के अवसर पर मौसम में भी काफी हद तक बदलाव आ जाता है, जिसके कारण जल्दी से या बहुत अधिक प्यास नहीं लगती। लेकिन त्योहार के दौरान शरीर के हाइड्रेजन के स्तर को सही रखे। पानी के अलावा नींबू पानी, नारियल पानी व छाछ आदि भी लें। शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप बहुत सारा पानी पीएं, नियमित व्यायाम करें तथा विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट से समृद्ध एक संतुलित आहार लें। दिवाली के दौरान अतिरिक्त खाने की भरपाई करने के लिए अगले कुछ दिनों के खाने के बारे में सावधान रहें।
डायबिटिज के मरीज क्या सावधानी रखें
अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो मीठी चीजों और हाई कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों से परहेज करना चाहिए। हालांकि जो लोग इंसुलिन पर निर्भर नहीं है, वे सीमित मात्रा में मिठाई को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। एहतियातन उन्हें त्योहार के दौरान समय-समय पर अपना ब्लड शुगर चेक करते रहना चाहिए, ताकि खतरे की सीमा रेखा पार न की जाए। डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए बाजार में मौजूद कई ब्रांड, शुगर फ्री मिठाई लेकर आते हैं। ऐसे में आपको अच्छी गुणवत्ता वाले शुगर फ्री मिठाई का सेवन करना चाहिए। डायबिटिज या अन्य रोगों के मरीज दिवाली की मौज-मस्ती में अपनी दवाईयों को बिल्कुल न भूलें। सही समय पर दवाएं लें। कोई भी दिक्कत हो तो तत्काल डाक्टर से परामर्श करें।

- डा. अजय अग्रवाल, निदेशक एवं विभाग प्रमुख, इंटरनल मेडिसीन, फोर्टिस हास्पीटल, नौएडा

दिवाली के पूर्व साफ-सफाई के दौरान एलर्जी से बचकर रहें

घरों की साफ-सफाई और रंग-रौगन दिवाली की तैयारी का जरूरी हिस्सा हे। इन दिनों महिलाएं दीपावली के स्वागत के लिए घरों की साफ-सफाई में व्यस्त होती हैं। धूल, मिट्टी, पेंट आदि से कई महिलाओं को एलर्जी होती है। ऐसे में उन्हें नाक व श्वास संबंधी कई दिक्कतें होती हैं। इनमें सर्दी, खांसी, जुकाम, कफ, नेजल ब्लाकेज, सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा, फेफड़ों में संक्रमण आदि शामिल है। अक्सर धूल, पेंट, डिटर्जेट आदि एलर्जी पैदा करते हैं और इनसे श्वास संबंधी समस्याओं एवं त्वचा में एलर्जी होने का खतरा होता है। यह देखा जाता है कि साफ-सफाई करते समय महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतती हैं।
क्या है एलर्जी
जब हमारा शरीर किसी बाहरी चीज को लेकर अत्यधिक प्रतिक्रिया करता है तो उसे एलर्जी कहते हैं। एलर्जी किसी खाने की चीज, पालतू जानवर, मौसम में बदलाव, कोई फूल-फल-सब्जी के सेवन, खुशबू, धूल, धुआं, दवा यानी किसी भी चीज से हो सकती है। इन चीजों को एलर्जन कहते हैं। हमारा इम्यून सिस्टम एलर्जी पैदा करने वाली चीजों /एलर्जन/ को स्वीकार नहीं कर पाता और नतीजा ऐसी प्रतिक्रिया होती है जिससे हमें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होती है जैसे शरीर पर लाल-लाल चकत्ते निकलना, नाक और आंखों से पानी बहना, जी मितलाना, उलटी होना, सांस लेने में दिक्कत होना, सांस तेज चलना और बुखार आदि शामिल है। आमतौर पर ज्यादातर एलर्जी खतरनाक नहीं होतीं, लेकिन कभी-कभार समस्या गंभीर भी हो सकती है।
दिवाली के दौरान होने वाली एलर्जी
वैसे तो अलग-अलग प्रकार की एलर्जी अलग-अलग लोगों में होती है, लेकिन दिवाली की सफाई करते वक्त जो आमतौर पर एलर्जी की शिकायतें मिलती हैं, वह होती हैं श्वास संबंधी एलर्जी की। इस तरह की एलर्जी गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन समय पर सावधानी बरत कर इससे बचा जा सकता है।
कई महिलाओं को धूल से एलर्जी होती है। दिवाली के समय आमतौर पर महिलाएं कोने-कोने से धूल, मिट्टी, जाला आदि निकालती हैं। काफी पुरानी धूल में फंगस हो जाता है। इसके बैक्टीरिया महिलाओं के नाक पर अटैक करते हुए सीधे श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंचाते
पेंट्स में मौजूद कुछ रसायन भी श्वसनन प्रणाली में दिक्कत पैदा कर सकते हैं। पेंटिंग के रंगों में बेंजीन नामक केमिकल एलर्जिक लोगों के लिए नुकसानदायक है। इससे बचने के लिए जहां कलर हो रहा हो वहां जाने से बचें।
कई महिलाओं को  जिन्हें सर्फ, वॉशिंग सोडा, विम पाउडर क्लीनिंग लिक्विड्स, फिनाइल की गंध आदि से एलर्जी होती है। किसी को इनकी गंध नहीं भाती तो किसी को इनसे खुजली हो जाती है। इनके संपर्क में आने पर त्वचा संबंधी एलर्जी होती है। त्वचा में खुजली हो सकती है। हालांकि इस तरह की एलर्जी कुछ समय बाद ठीक हो जाती है।
दीपावली में पटाखों से निकलने वाला धुआं न केवल वायु-प्रदूषण को बढ़ाता है बल्कि कई लोगों की परेशानी का सबब भी बन जाता है। इन पटाखों में विस्फोटकों का इस्तेमाल होता है। इससे निकलने वाले धुएं से कई लोगों को एलर्जी होती है।
कैसे बचें
जिन महिलाओं को धूल-मिट्टी से एलर्जी है तो कोशिश करें कि वे इनसे दूर रहें। हो सके तो दूसरों से सफाई करवाएं। जिस कोने की सफाई हो रही हो वहां न जाएं। साफ होने के कम से कम दो दिन तक उस जगह से दूरी बनाएं रखें। बहुत जरूरी है तो नाक पर गीला कपड़ा बांधकर सफाई करें, इससे डस्ट पार्टिकल्स कपड़े पर चिपकेंगे।
एक के बाद एक एक करके घर के कमरों, किचन आदि का रंगरोगन करवाएं। जिस कोने में पेंटिंग का काम जारी है वहां जाने से बचें। आजकल केमिकल रहित पेंट्स बाजार में उपलब्ध हैं, उनका इस्तेमाल करवाएं। कम से कम डिटरजेंट का इस्तेमाल करें। ग्लव्ज पहनकर डिटर्जेट से सफाई करें। यह ध्यान रखें कि अगर आप इनहेलर या फिर कोई दवाई ले रही हों उसे समय पर लेती रहें। अगर दिक्कत अधिक हो या जल्दी ठीक नहीं हो रही हो तो चिकित्सक से परामर्श करें।


डा. राकेश कुमार, वरिष्ठ इंटरनल मेडिसीन विशेषज्ञ, इंद्रप्रस्थ अपोलो हास्पीटल, नई दिल्ली


अब हृदय को खोले बिना बदले जा सकते हैं दिल के वाल्व

मानव हृदय में चार वाल्व होते हैं जो हृदय की लय के साथ तालमेल बिठाते हुए खुलते और बंद होते हैं। हृदय के भीतर और बाहर रक्त प्रवाह के सही दिशा में बहाव को सुनिश्चित करने में हृदय के वाल्व अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ताकि मानव शरीर में समुचित रक्त की आपूर्ति हो सके। जब कोई हृदय वाल्व ठीक से काम नहीं करता है, तो रोगी के सीने में दर्द, धड़कन का तीव्र होना, सांस की तकलीफ, थकान, कमजोरी, नियमित गतिविधि के स्तर को बनाए रखने में असमर्थता, या यहां तक कि चक्कर आने जैसे विशिष्ट लक्षण प्रकट हो। सकते हैं। इस रोग की पहचान के लिए हृदय रोग विशषज्ञ मुख्य रूप से इकोकार्डियोग्राम (इको), सीटी एजियोग्राम आर कुछ अन्य पराक्षणा का अध्ययन करते हैं। इसक इलाज क तार पर रक्त का पप करने की हृदय की क्षमता बढ़ाने के लिए दवाए दी जा सकती है जो ठीक से काम नहीं कर रहे वाल्य को ठीक से काम करने में मदद कर सकता हा हालांकि, रोगग्रस्त हृदय वाल्व एक यांत्रिक समस्या है जिसे मात्र दवा से ठीक नहीं किया जा सकता है, और क्षतिग्रस्त वाल्व को ठीक करने या बदलने के लिए अक्सर सर्जरी की आवश्यकता होती है। सबसे पहले जब यह निर्धारित कर लिया जाता है कि रोगग्रस्त हृदय वाल्व को इलाज की आवश्यकता है, तो इसके इलाज के उपलब्ध विकल्प वाल्व की मरम्मत या वाल्व प्रतिस्थापन में से किसी एक का चुनाव किया जाता है। वाल्व प्रतिस्थापन ज्यादातर ओपन हार्ट सर्जरी के माध्यम से किया जाता है जिसमें रोगग्रस्त वाल्व के स्थान पर नया टिश्यू नया टिश्यू मेकैनिकल प्रोस्थेटिक वाल्य लगाया जाता है। एशियन अस्पताल ने इस नई तकनीक के माध्यम से फरीदाबाद में एक 68 वर्षाय माहला का पहला ट्रास कथटर एओर्टिक हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट 17 (टीएवीआर) किया। इस तकनीक का इस्तेमाल कर - उनके दिल के क्षतिग्रस्त वाल्व को बटल दिया गया। टीएवीआर तकनीक से यह पहला वाल्व प्रतिस्थापन प्रक्रिया डॉ ऋषि गप्ता और डॉ. सब्रत अखौरी ने किया। इस टीम में डॉ. सिम्मी मनोचा डॉ. उमेश कोहली और डॉ. कमल गुप्ता भी शामिल थे। थोपन हार्ट सर्जरी एक इनवेसिव - प्रक्रिया है और इसमें रिकवरी में लंबा समय लगता है। यह रोगियों (65 वर्ष से अधिक आयु) के लिए एक चुनौती है। जबकि ट्रांस कैथेटर एओर्टिक हाट वाल्व रिलासन (टापार) तकनीक वैसे लोगों के लिए एक नई उपचार तकनीक है जो ओपन हार्ट सर्जरी के लिए तैयार नहीं होते हैं या ओपन हार्ट सर्जरी के खतरों को झेलने के लिए फिट नहीं होते हैं। इस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया में रोगी की जांघ में बड़ी धमनी (पेट और जांघ के बीच में बड़ी धमनी) के । माध्यम से नए वाल्व लगाए जाते हैं। - इन प्रक्रियाओं को छोटे छिद्रों (1 सेमी) के माध्यम से किया जा सकता है और इसलिए इस प्रक्रिया के बाद रोगी की रिकवरी जल्द होती है। मेरिल एओर्टिक हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट थेरेपी उपलब्ध कराने वाली पहली भारतीय कंपनी है, जिसने देश भर में 100 से अधिक रोगियों को एओर्टिक हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट उपलब्ध कराया है। दिसंबर 2018 में, भारत सरकार ने रोगियों के इलाज के लिए इस वाल्व को मान्यता दे दी। मेरिल दनिया भर के 100 से अधिक देशों में काम करने वाली एक वैश्विक चिकित्सा उपकरण कंपनी है। टांस कैथेटर एओर्टिक हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) के लाभ यह ऐसे रोगियों में किया जाता है . जिन्हें अधिक उम्र के कारण ओपन हार्ट सर्जरी से खतरा होता है। • जिनका वजन अधिक है। • जिनमें किसी अन्य बीमारियों के कारण ओपन हार्ट सर्जरी संभव नहीं है।


डॉ. ऋषि गुप्ता अध्यक्ष इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी एशियन डार्ट सेंटर rishi.gupta@aimsindia.com