भारत में नैनोफार्मास्युटिकल के मूल्यांकन के लिए दिशा.निर्देश जारी

नई दिल्ली, 24 अक्तूबर। केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकीए पृथ्वी विज्ञान तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने नई दिल्ली में एक समारोह में आज भारत में नैनोफार्मास्युटिकल के मूल्यांकन के लिए दिशा.निर्देश जारी किए। 
डॉ. हर्ष वर्धन ने बताया कि ये दिशा—निर्देश नवीन नैनोफार्माक्युलेशन की गुणवत्ताए सुरक्षा और कुशलता के मूल्यांकन को निरुपित करने के अत्यंत महत्वपूर्ण कदमों में से एक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन दिशा.निर्देशों का उद्देश्य भारत में नोफार्मास्युटिकल के लिए पारदर्शीए सतत और संभावित नियामक मार्ग दिखाना है। 
नैनोकैरियन आधारित दवा पहुंचाना एक उभरता हुआ क्षेत्र है और यह बाजार में नैनोफार्मास्युटिकल के बाजार में प्रचलन से संबंधित है। नैनोफार्मुलेशन अधिक दक्षताए कम नशीला है और ये पारंपरिक दवाओं से अधिक सुरक्षित है। इससे भारतीय अनुसंधानकर्ताओं को नियामक दिशा.निर्देशों के अनुरूप अनुसंधान करने में सहायता मिलेगी और आशा है कि यह उद्योग अनुसंधान की श्रृंखला शुरू करने से लेकर उत्पाद विकास और वाणिज्यीकरण तक की यात्रा में इसमें शामिल रहेगा। इसके अलावाए नियामक प्रणाली को इन दिशा.निर्देशों से मजबूती मिलने के कारण निजी निवेश भी आकर्षित किया जाएगा। 
इन दिशा.निर्देशों से नियामक आवश्यकताओं के साथ अनुवाद अनुसंधान की श्रृंखला शुरू करने में भी सहायता मिलेगी। इनसे नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित नए उत्पादों की स्वीकृति देने के समय नियामक को निर्णय लेने में आसानी होगी और इसी तरह अनुसंधाकर्ता भी अपने उत्पाद को बाजार में शुरू करने के लिए स्वीकृति ले सकेंगे। इनसे उत्पादों का उपयोग करने वालों को भी फायदा होगा क्योंकि उन्हें दिशा.निर्देशों के अनुरूप बाजार में गुणवत्ता आश्वस्त उत्पाद मिल सकेंगे। इन दिशा.निर्देशों से कृषि उत्पादोंए सौंदर्य प्रसाधनोंए नैनो टैक्नोलॉजी के माध्यम से प्रत्यर्पित किए जाने वाले उपकरणों जैसे क्षेत्रों में भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। ये दिशा.निर्देश अतिउन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से सभी के लिए वाजिब स्वास्थ्य देख.रेख के मिशन में योगदान देने हेतु भी मार्ग प्रशस्त करेंगे।
इन दिशा.निर्देशों को जैव प्रौद्योगिकी विभागए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और केन्द्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन ने मिलकर विकसित किया है और इसके लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग को अंतर.मंत्रालय प्रयासों के बीच सहयोग और समन्वय करना पड़ा है। 


प्रथम ग्लोबल बॉयो इंडिया की शिखर बैठक अगले माह नई दिल्ली में होगी। 

नई दिल्ली, 24 अक्तूबर। भारत में पहली बार नई दिल्ली में जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित पक्षों का विशाल सम्मलेन.ग्लोबल बायो इंडियाए 2019 का आयोजन 21.23 नवंबरए 2019 के बीच किया जा रहा है। इस शिखर बैठक के कर्टेन रेजर कार्यक्रम में केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकीए पृथ्वी विज्ञान तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्ष वर्धन ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि भारत पहली बार जैव प्रौद्योगिकी से संबधित समुदाय के लिए विशाल आयोजन की मेजबानी कर रहा है ताकि निवेशए हमारी स्वदेशी शक्ति का प्रदर्शन और स्वदेशी प्रतिभा पूल की आकांक्षाओं और आशाओं के प्रेरक फ्यूल को आकर्षित किया जा सके। 


इस अवसर पर डा. हर्ष वर्धन ने वैज्ञानिक अनुसंधानए इसके रूपांतर और वाणिज्यीकरण के प्रति भारत की वचनबद्धता जारी रखने की बात कही और इस विशाल आयोजन से किस प्रकार भारत की शक्ति का प्रदर्शन किया जा सकेगा और नई भागीदारियों का विकास होगा और निवेश के अवसर बढ़ सकेंगेए इन सभी बिन्दुओं पर विचार व्यक्त किए।


जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डा. रेणु स्वरूप ने इसी प्रकार की भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि मेक इन इंडिया 2ण्0 में जैव प्रौद्योगिकी चयनित प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। इस आयोजन के माध्यम से इस क्षेत्र की हमारी क्षमता और शक्ति का प्रदर्शन करने की इच्छा है और हम चाहते हैं कि समूचा विश्व यह जान जाए कि निवेश के लिए भारत उत्तम विकल्प है। 


इस अवसर पर कर्टेन रेजर के दौरान ग्लोबल बायो इंडिया.2019 की पुस्तिका जारी की गई। 


भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमोंए जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद के साथ मिलकर इस शिखर बैठक का आयोजन कर रहा है। 


इस शिखर बैठक में 30 देशों से संबंधित पक्ष, 250 स्टार्ट.अपए 200 प्रदर्शनी आयोजक केन्द्र और राज्य सरकार के मंत्रालयए नियमाक संस्थाएंए निवेशक यानी सब मिलकर 3500 लोग शामिल होंगे। 


आशा है कि इससे स्वदेशी अनुसंधान क्षमताओंए जैव उद्यमशीलताए निवेश तथा समूचे ग्रामीण भारत और दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों तक अंतिम गंतव्य तक प्रौद्योगिकी पंहुचाने को बढ़ावा मिलेगा। 


यह उल्लेखनीय है कि जैव प्रौद्योगिकी भारत की 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने में प्रमुख प्रेरक का काम करेगी और यह देश की सकल घरेलू उत्पाद को गति देने के लिए आवश्यक क्षेत्रों में से एक मानी जा रही है। भारत को आज लगभग 51 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था माना जा रहा है और इसे 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर की दिशा में आगे बढ़ना है। 


यह शिखर बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पहली बार विश्वभर से जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े पक्षों का विशाल समागम दिखाई देगा। 


कैसा है फैशन का आपके मानसिक स्वास्थ्य पर असर


 


आज हर तरफ भागमभाग और प्रतियोगी बनकर सब लोग दौड़ रहे हैं। हर किसी को शॉटकर्ट तरीके से आगे निकलना है। संयुक्त परिवार से अलग होकर छोटे-छोटे घरों में लोग शिफ्ट हो रहे हैं। बच्चे शिक्षा और युवा रोजगार के लिए दूर जा रहे हैं। परिवार में संस्कार परंपरा बंधन की डोर शिथिल हो गई है। महिलाओं, बड़े बुजुर्गों के प्रति आदर भाव कम हो रहा है और सबसे बड़ी बात यह है कि लोग इंसानियत को भूलकर स्वार्थप्रवृत्ति के हो रहे हैं।


हम सब सुबह सुबह दिन के लिए तैयार होते हैं। दिन के लिए कपड़े बदलने का काम कोई यूं ही तो कोई ज्यादा सोच समझ कर करता है। लेकिन जाने अनजाने जैसे भी आप ये करते हैं - होता ये है कि आपके कपड़े आपके बारे में बाहर की दुनिया से बिना बोले कुछ बता रहे होते हैं फैिशन को खुद को व्यक्त करने का एक तरीका माना जाता है। कई बार इससे हमारी पहचान जुड़ जाती है तो कई बार उससे हमारा मूड भी प्रभावित होता है। हर दिन हम जो कपड़े पहनते हैं वे दिखाते हैं कि हम खुद को कैसे देखते हैं और बाकी लोगों को अपनी कैसी छवि दिखाना चाहते हैं। इससे भी बढ़कर पाया तो ये गया है कि कपड़े हमारे ज्ञान संबंधी कौशल पर भी असर डालते हैं। सन 2012 में अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पाया कि कुछ खास चीजें पहनने से पहनने वाले के सोच और प्रदर्शन पर असर पड़ता है। रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि कपड़ों का अपना एक सांकेतिक अर्थ होता है। जब हम एक खास अर्थ वाले कपड़ों को पहनते हैं तो उससे हमारी मनोदशा पर भी असर पड़ता है। इसे 'एनक्लोद्ड कॉग्निशन' कहा गया। उदाहरण के तौर पर, एक लैब कोट को बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़ कर देखा जाता है। अपने रिसर्च में उन्होंने पाया कि जब कोई इंसान किसी विशेष काम को करने से पहले ऐसा लैब कोट पहनता है तो कोट से जुड़े ये मूल्य पहनने वाले के प्रदर्शन पर सकारात्मक असर दिखाते हैं। स्टडी में पाया गया कि जो कपड़ों से जुड़े ऐसे मानसिक असर को मापा भी जा सकता है। सुबह सुबह कपड़े चुनना कभी कभी बड़ी चुनौती जैसा लग सकता है।


लंदन कॉलेज ऑफ फैशन से एप्लाइड साइकोलॉजी में मास्टर्स डिग्री ले चुकी कैमी एब्राहम बताती हैं, 'यह प्रयोग दिखाता है कि कपड़े कैसे हमारी एकाग्रता, दक्षता और अपने बारे में हमारी सोच को प्रभावित करते है।' जाहिर है कि अगर इसका अच्छा असर पड़ता है तो बुरा भी पड़ता होगा। इस बारे में एब्राहम कहती हैं, 'अगर किसी खास कपड़े को नकारात्मक चीजों से जोड़ कर देखा जाता है तो आपकी मानसिक दशा पर भी उनका वैसा ही असर पड़ेगा।' इस तरह 'एनक्लोद्ड कॉग्निशन' असल में दोनों तरह से काम करती है। जिन दिनों हम अंदर से अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं उन दिनों सही कपड़े हमें बेहतर महसूस करवा सकते हैं और एक कवच की तरह काम आ सकते हैं। लेकिन कई बार ऐसी मानसिक स्थिति में लोगों के लिए सही कपड़ों के बारे में सोचना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कुछ लोग किसी दूसरे व्यक्ति की स्टाइल की नकल करने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर काफी असहज महसूस करने लगते हैं। फैशन के बारे में लिखने वाली पत्रकार एब्राहम बताती हैं कि ऐसा 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' और फैशन के बीच के संबंध के कारण होता 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' का मतलब है ऐसी मानसिक प्रक्रिया 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' का मतलब है ऐसी मानसिक प्रक्रिया जहां हमारे अपने मूल्यों के साथ मेल ना खाने वाला कोई काम करने से मानसिक परेशानी महसूस होती है। इससे उबरने के लिए या तो हम ऐसा कोई काम करना बंद कर सकते हैं या फिर अपने आपको ये समझा सकते हैं कि भले ही वह निजी मूल्यों से मेल ना खाता हो हम करना वही चाहते हैं। कपड़ों से जुड़े मामले में या तो जो आपको सूट नहीं कर रहा वह आप कभी नहीं पहनेंगे या फिर निर्णय लेंगे कि वही पहनना है। एब्राहम बताती हैं, 'जब आपको समझ आता है कि कोई स्टाइल आपके विचारों, मूल्यों और आस्थाओं से मेल नहीं खाते तो मानसिक रूप से आप बेचैन हो जाते हैं और अपनी स्टाइल बदल कर वो बेचैनी दूर करने की कोशिश करते हैं। इसीलिए आप जिन कपड़ों में आर । म महसूस करते हैं - बार बार वही पहनना चाहते या फिर, खुद को मना लेते हैं कि जिस अलग अंदाज के कपड़ों को आपने पहना है असल में उनकी मदद से आप अपने व्यक्तित्व के किसी नए पहलू को सामने लाना चाहते हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या आपको वैसे कपड़े पहनने चाहिए जैसा आप महसूस कर रहे हैं या फिर वैसे कपड़े जैसा आप महसूस करना चाहते हैं? इस विषय की एक्सपर्ट एब्राहम बताती हैं, 'मेरे हिसाब से आपको वैसे कपड़े पहनने चाहिए जैसा आप महसूस करना चाहते हैं। ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि आप इस पर फोकस करें कि आप कैसा महसूस करना चाहेंगे।' ऐसा करने से बाहरी दुनिया को आपके बारे में पॉजिटिव संदेश जाता है।


सोशल मीडिया के तनावों से छुटकारा दिलाएगा योग

खजुराहो में आयोजित होगा सफलता एवं टेक्नो स्ट्रेस प्रबंधन में योग पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन

नई दिल्ली, 24 अक्तूबर। आधुनिकता और भागदौड़ से भरे जीवन में सोशल मीडिया और टेक्नोलाॅजी के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण उत्पन्न तनाव से मुक्ति पाने में क्या भारत की प्राचीन विद्या योग कारगर साबित हो सकती है। इस विषय पर विचार—विमर्श के लिए खजुराहो में अगले महीने एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है जिसमें दुनिया भर के 10 देशों के योग विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। यह सम्मेलन खजुराहो के होटल रामांदा में 16 से 18 नवम्बर तक होगा।
''सफलता एवं तकनीकी तनाव प्रबंधन के लिए योग'' विषय पर अंतराष्टीय सम्मेलन के संयोजक एवं स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय के योग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष गगन सिंह ठाकुर ने आज नई दिल्ली के कंस्टीचयूशन क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी देते हुए बताया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ''फिट इंडिया मूवमेंट'' की प्रेरणा से आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में राजनीति, समाज सेवा और चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों के अलावा बालीवुड हस्तियां भी हिस्सा लेंगी। इस सम्मेलन में केन्द्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाइक ने अपनी उपस्थिति की मंजूरी दी है। इसके अलावा बालीवुड की जिन हस्तियों के इस सम्मेलन में हिस्सा लेने की संभावना हैं उनमें रवि किशन, शिल्पा शेट्टी और आशुतोष राणा प्रमुख हैं।
पंडित नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि यह अंतराष्ट्रीय सम्मेलन देश की प्रतिभाओं को भी एक अवसर प्रदान करने तथा स्वास्थ्य के प्रति समाज में जागरूकता लाने के उदेश्श्य से आयोजित किया जा रहा है।
श्री गगन सिंह ठाकुर ने बताया कि आम के समय में सोशल मीडिया तथा विभिन्न तकनीकों के बढ़ते उपयोग के कारण खास तौर पर युवा पीढ़ी विभिन्न मानसिक समस्याओं एवं तनाव से ग्रस्त हो रही है। योग तथा भारतीय जीवन प्रणाली की मदद से इन तनावों से छुटकारा पाया जा सकता है। इस विशय पर विचार - विमर्श एवं शोध को आगे बढ़ाने में यह अंतराष्ट्रीय सम्मेलन महत्वपूर्ण साबित होगा।


कौन—कौन बनेंगे 'फरिश्ते दिल्ली के'

दुर्घटना के शिकार लोगों को शीघ्र पहुंचाएं अस्पताल : अर​विन्द केजरीवाल
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से दुर्घटना के शिकार लोगों की मदद करने और उन्हें अस्पताल पहुंचाने का अनुरोध किया। केजरीवाल दुर्घटना के शिकार हुए लोगा. को अस्पताल ले जाने के लिए मदद करने वालों को पुरस्कृत करने के वास्ते सरकार की एक पहल 'फरिश्ते दिल्ली' के औपचारिक शुभारंभ के दौरान संबोधित कर रहे थे। इस दौरान कई फरिश्ते को मुख्यमंत्री ने सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। इस दौरान उन तीन लोगों ने अपनी कहानी भी बताई, जिनकी दुर्घटना के तत्काल बाद अस्पताल पहुंचाने से जान बची। फरिश्ता बने कुछ लोगों ने भी अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि दिल्ली का हर नागरिक फरिश्ता बने। आपको दुर्घटना के शिकार लोगों, झुलसने वालों और तेजाबी हमले के शिकार लोगों की मदद करनी चाहिए और उन्हें अस्पताल लेकर जाना चाहिए।


मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हादसे के एक घंटे के भीतर पीड़ितों को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उनकी जान बचायी जा सकती है। केजरीवाल ने कहा कि यह बहुत अनमोल समय होता है और अगर उस दौरान पीड़ित को अस्पताल पहुंचा दिया जाया तो उसके बचने की बहुत उम्मीद होती है। उन्होंने कहा कि हमने खबरों में पढ़ा था कि निर्भया एक घंटे तक सड़क में एटीएम गेंग सक्रिय पर पड़ी रही और किसी ने उसकी मदद नहीं की। अगर समय पर लोगों को भर्ती करा दिया जाए तो उनकी जान बचायी जा सकती है।


इस मौके पर स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पसंदीदा गाना ही है इंसान का इंसान से हो भाईचारा। इस तरह का गाना पसंद करने वाला व्यक्ति ही घायलों के इलाज की मुफ्त स्कीम ला सकता है। मुझे अफसोस है कि अब भी 80 फीसद लोगों को इस स्कीम की जानकारी नहीं है। जबकि दिल्ली के हर व्यक्ति को इसके बारे में पता होना चाहिए। हमारे लिए हर जान कीमती है। दिल्ली के फरिश्ते की कहानी सभी को बताया जाना चाहिए। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग घायलों की मदद को सामने आए। सुप्रीम कोर्ट ने जब घायलों के इलाज से इन्कार पर रोक लगाई तो सबसे बड़ी समस्या यह खड़ी हुई कि अस्पताल को पैसा कौन दे। अरविंद केजरीवाल सरकार ने यह जिम्मा अपने कंधे पर लिया। घायल को दिल्ली के किसी अस्पताल में ले जाए, सारा खर्च सरकार उठाएगी। अगर घायल को पहले छोटे अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है और उसे बड़े अस्पताल ले जाना है तो एंबुलेंस का खर्च भी सरकार देगी। साथ ही अस्पताल ले जाने वाले को दो हजार रुपये दिया जाएगा। हालांकि अभी तक का अनुभव है कि लोग पैसे लेने से मना कर देते हैं। अस्पताल किसी को भर्ती करने से मना करता है तो उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा। प्रारंभ में दिक्कत आ रही थी, अस्पताल संचालकों के साथ बैठक की गई। जिसके बाद यह समस्या खत्म हो गई।


महात्मा फुले ब्राह्मणें के नहीं, ब्रह्यणवाद के विरूद्ध थे

सामान्यतः सामाजिक शैक्षणिक क्रान्ति के जनक महात्मा जोतीराव फुले की जीवनी उनके कार्यों की बात आती है, तो यह अवधारणा बनी हुई है, कि फुले तो ब्रह्यणों के विरूद्ध थे, जबकि फुले की समझ स्पष्ट थी, उनके किसी भी ग्रन्थ में, उनके बारे में लिखे गये किसी भी साहित्य में ब्रह्यणों के विरूद्ध हो, वास्तविकता यह कि फुले ब्रह्यणवाद, पोंगा पंडितवाद, अवैज्ञानिक, तर्क, साहित्य, स्वरूप, तथाकथित दैववाद, अशिक्षा, अंधविश्वास, अश्प्रश्यता, असमानता, भेदभाव, कुरीतियाँ, कर्मकाण्ड मूर्तिपूजा, ढोंग, बेईमानी, भृष्टाचार, महिलाओं की दासता, नारी का अपमानजनक जीवन, आदि आदि बुराईयों के विरूद्ध उन्होने कमर कसली थी, और लिखने बोलने के किसी भी माध्यम से उन्होंने मानवता, विज्ञानवाद, सबको निशुल्क
और रोजगार पूरक शिक्षा, स्वास्थ्य, सहकार, न्याय, ईमानदारी, सदाचार, परोपकार, जैसे मानव जीवन को सहज, सरल, रूप
से जीने के लिए सम्पूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया था ।
उनके साहित्य का अध्यन करने से ज्ञात होता है कि महात्मा फुले की मिशन में सभी जाति, धर्म वर्ण के लोगों का योगदान है। बचपन में उनका साथ मुस्लिम गफ्फार बेग, फातिमा शेख, क्रिश्च्यिन, लिजिट साहेब सनातनी ब्राह्यमण सदाशिव बल्लाल गोवंडे, मोरोपंत विट्ठल वालवेकर, सखाराम यशवंत पराजये, वासुदेव, बलवंत पड़के,  कमान्य तिलक, न्यायमूर्ति माधव, गोविन्द रानडे, बालशास्त्री जांभेकर, गोपालहरि देशमुख, आदि के साथ जीवन की अनेक घटनाऐं एक दुसरे के सहयोगी रहे।
फुले कट्टरता पूर्वक मानवतावाद की मिशन पूरा करने में जुटे रहे, उन्होंने कभी समझोता करके हार नहीं मानी, किन्तु उनके अनेक परिचितों ने समय के साथ समझोता करके घुटने टेक दिये थे। एक उदाहरण है किः- दिनांक 4 अक्टूबर 1890 को पुणे की ''पंचंचकोटेट मिशन'' नामक ईसाई संस्था के सामरोह में पुणे के संभा्रत बा्रह्यण उपस्थित थे, उस समारोह में उस्थित बा्रह्यणों ने ईसाईयों की बनाई हुई, चाय पी, इसलिए कट्टरपंथियों ने उनको बहिष्कृत किया । उनके लोकमान्य तिलक और माधव गोविन्द रानडे और तिलक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तिलक जी ने चाय पीने के बाद काशी जाकर प्रायश्चित किये जाने का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया। अन्य आठ लोगों ने दोष निवारर्णाथ प्रायश्ति के लिये आवेदन किया।
लोकमान्य तिलक चिरोल मुकदमों के मामले में इंग्लेण्ड गये थे, लोटने पर उन्होने सागरपार गमन का सन् 1919 में प्रायश्चित किया ।
राजा राममोहन राय आर्य समाज सुधारक माने जाते है, उन्होने नियम ही बनाया था, कि बा्रह्यमों समाज के धर्म प्रचारक ब्राहम्ण ही होने चाहिए ।
इन उदाहरणों से पता चलेगा कि उस समय के लगभग सभी समाज सुधारक नेताओं ने बहिष्कार के आगे गर्दने झुकाई थी। किन्तु केवल जोतीराव ही ऐसे नेता थे जिन्होनें बहिष्कार की रात्तीभर भी चिंता नहीं की । वे झुकने इस प्रथा को समाप्त कर देना चाहते थे।
बा्रह्यणवाद के मानवतावाद से अनेक दोषों का फुले ने बहिष्कार ही नहीं किया वल्कि समतामय समाज रचना के लिये सर्व प्रथम शिक्षा का महत्तव सम्पूर्ण मानवता को समझाया और स्ंवय ने ही अपनी पत्नि सावित्रीबाई फुले को शिक्षित कर प्रथम प्रशिक्षिक शिक्षिका बनाकर विद्यालय प्रारम्भ कर 18 विद्यालय संचालित कियें, फुले का कार्य और व्यवहार में कोई अन्तर नहीं होता था, वे निडर होकर मानवतावाद के लिए संघर्ष शील रहे। उन्होनें घिसी पीटी धार्मिक अवधारणाओं से मुँह मोड़कर मानवता समता भाव जाग्रत करने के लिए सार्वजनिक सत्यधर्म की स्थापना की 24 सितम्बर 1873 को ''सत्यशोधक
समाज'' बनाकर समाज की रीतिरिवाज में आमूलचूल परिवर्तन कर दिये जो सहज सरल सबको समझने व मानने लायक थे।
हमारे देश में यदि फुले नहीं होते तो पाखण्ड के जीवन से मानव को कब निजात मिलती यह गर्त में छिपा ही रहता । फुले ने सभी धर्मों के ग्रन्थों का अध्यन कर मानवता धर्म की अवधारणा से सामाजिक क्रान्ति की है । आज शिक्षा और नारी शिक्षा के खुले द्वार का हम भारतवासी लाभ उठा रहे है। इसका सम्पूर्ण श्रेय फुले दम्पत्ति को ही जाता है । खासकर शूद्रों तथा नारी को शिक्षा-समानता- मानवता के जो अधिकार हमारे संविधान में बाबा साहेब ने हमें दिये है।, ये भी उनके गुरू महात्मा फुले के जीवन उनके कार्य उनके रचित ग्रन्थों को पढ़-समझ कर ही संविधान के रूप् में मानव समाज को मिले है। 
महात्मा जोतीराव फुलों पर जितना भी शोध किया जाय वह सब प्रेरणा दायक है, प्रत्येक मानव अपने जीवन में फुले के आदर्श उतारकर आचरण करने लायक बन जाय तो दरिद्रता भू , अशिक्षा अंधविश्वास से छूटकारा मिल सकता है। इसलिए भारत के प्रायः सभी लोग चाहते है, कि फुले दम्पत्ति को भरत रत्न दिया जाय। प्रसन्नता है कि महाराष्ट्र चुनाव के संकल्प पत्र में भाजपा ने फुले दम्पत्ति को भारत रत्न दिये जाने का संकल्प लिया है। इसी प्रकार अनेक प्रदेशों के मुख्य
मंत्री, मंत्री विधायक केन्द्र के सांसद मंत्री, समाज सेवी संस्थाऐं निरन्तर भारत सरकार से मांग करती है कि फुले दम्पत्ति को
भारत रत्न दिया जाय।
फुले का सम्पूर्ण जीवन बा्रह्यणवाद के विरूद्ध भरा पड़ा हैं वे बा्रह्यणों के भी साथि थे । फुले के जीवन से प्रेरणा लेकर मानवता से जीने का लाभ मिलता है। हम फुले दम्पत्ति के त्रृणी है। 28 नवम्बर 1890 को फुले का परिनिर्वाण हुआ। 
लेखक : मनारायण चैहान,  महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान, गाजीपुर,  दिल्ली