नई दिल्ली। अभिनेत्री गौहर खान ने उद्घाटन मौके पर कहा, 'एस्थेटिक एवं कॉस्मेटिक सर्जरी का ताल्लुक मुख्य रूप से युवा दिखने से होता है लेकिन वास्तव में इसका महत्व कहीं ज्यादा है। प्रत्येक महिला की चाहत रहती है कि वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयासों से खूबसूरत दिखे। दरअसल यह चिकित्सा का वह क्षेत्र है जहां बहुत सारे लोगों की उम्मीदें पूरी होती हैं, एक मायने में नई जिंदगी भी मिलती है। कुछ लोग इस उपचार के बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ घर से बाहर निकलते हैं। जले और एसिड हमले से पीड़ित व्यक्तियों, जन्मजात विकृतियां और स्तन कैंसर के मरीजों को भी मैं समझती हूं कि इससे लाभ मिलेगा। महिलाओं, यहां तक कि कुछ पुरुषों को भी अपने जीवन को नए सिरे से पटरी पर लाने के लिए सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है, चाहे यह उनकी प्रोफेशनल जिंदगी के लिए जरूरी हो या फिर व्यक्तिगत जिंदगी के लिए। यह मेडिकल प्रैक्टिसनर्स पर निर्भर करता है कि उन्हें यथासंभव कितना सुरक्षित समाधान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा, ''मुझे एक ऐसे सौंदर्य क्लिनिक के साथ जुड़ने में खुशी है जो मरीजों को शिक्षित करने पर बात करता है। बड़े पैमाने पर इस अनियंत्रित उद्योग में योग्य, कुशल प्रोफेशनल्स का घोर अभाव है और इस लिहाज से ककूना सेंटर फॉर एस्थेटिक ट्रीटमेंट अपनी सेवा की विश्वसनीयता और अनुभव की परख कराने के लिए आपको आमंत्रित करता है।'
भारत सौंदर्य और वेलनेस सेक्टर में खर्च करने तथा संभावनाओं के मामले में विश्व के पांच शीर्ष देशों में शुमार है। वैश्विक स्तर पर यह उद्योग सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जबकि भारत में यह 18.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
अभिनेत्री गौहर खान ने दिल्ली में ककूना सेंटर फॉर एस्थेटिक ट्रांसफॉर्मेशन का उद्घाटन किया
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क्या ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से जन स्वास्थ्य को होगा नुकसान?
सरकार ने पिछले दिनों ई सिगरेट पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन कई विशेषज्ञों एवं संस्थाओं का कहना है कि सरकार के इस कदम से जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा।
काउंसिल फॉर हार्म रिड्यूस्ड अल्टरनेटिव्स (सीएचआरए) और एसोसिएशन ऑफ वैपर्स इंडिया (एवीआई) ने ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के नतीजों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को आगाह करते हुए कहा कि इससे लाखों स्मोकर्स सुरक्षित विकल्पों से वंचित हो जाएंगे और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका खासा नकारात्मक असर पड़ेगा। सीएचआरए सुरक्षित विकल्पों को अपनाकर तम्बाकू से होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करने वाला राष्ट्रीय संगठन है। वहीं एवीआई देश भर में ई-सिगरेट का प्रतिनिधित्व करने वाला एडवोकेसी ग्रुप है।
सीएचआरए ने कहा कि सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना खासा दुखद है, जो सिगरेट की तुलना में 95 प्रतिशत कम नुकसानदेह है। यह इसलिए भी हैरत की बात है, क्योंकि दूसरी तरफ सरकार नशे की लत और संक्रामक बीमारियों पर रोकथाम के लिए इससे जुड़े कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देती है।
निकोटिन की तुलना में सिगरेट के जलने से निकलने वाले जहरीले रसायन और टार दुनिया भर में होने तम्बाकू जनित बीमारियों की मुख्य वजह हैं। वैपर्स बॉडी ने संकेत किया कि ई-सिगरेट में निकोटिन तो होता है, लेकिन टार नहीं होता है क्योंकि यह जलती नहीं है। एवीआई ने कहा कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से देश के 12 करोड़ स्मोकर्स कम जोखिम वाले माध्यम निकोटिन के सेवन से वंचित हो जाएंगे।
सीएचआरए के डायरेक्टर सम्राट चौधरी ने कहा, 'चाहे रिफाइंड तेल हो या कम प्रदूषण वाली कारें हों, हम रोजमर्रा के जीवन में सुरक्षित उत्पादों को अपनाकर नुकसान में कमी के विचार पर अमल करते हैं। तम्बाकू के इस्तेमाल में भी कम नुकसान वाले विकल्पों को अपनाकर यूजर्स की जिंदगी को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। सरकार अभी तक तम्बाकू की बुरी आदत छोड़ने के लिए लोगों से भावनात्मक अपील करने पर निर्भर रही है, लेकिन उसने गम्स और पैचेस से इतर विकल्पों की अभी तक कोई पेशकश नहीं की। इनकी सफलता की दर खासी कम रही है। सरकार की सभी उत्पादों और सेवाओं के लिए उपभोक्ताओं को ज्यादा विकल्प उपलब्ध कराने की नीति से इतर ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाना पीछे हटने वाला कदम है।'
एवीआई के डायरेक्टर प्रतीक गुप्ता ने कहा, 'हमारी हैल्थ बॉडीज द्वारा वैपिंग के स्वास्थ्य पर असर के संबंध में कराई गई स्टडीज को देखते हुए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने का विचार बिना सोचा-समझा है। इसके अलावा यूके जैसे देशों में हुई कई वैज्ञानिक स्टडीज के बाद एक्सपर्ट्स और सरकारों ने स्मोकर्स के बीच वैपिंग को प्रोत्साहन दिए जाने की बात को मान लिया है। इसलिए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की जल्दबादी समझ से परे है।'
ई-सिगरेट न सिर्फ सिगरेट की तुलना में कम नुकसानदेह है, बल्कि इससे स्मोकर्स को निकोटिन पर निर्भरता से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा वैपिंग आसपास खड़े लोगों के लिए कम जोखिम भरी है, जो पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं।
अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और यूके जैसे विकसित देशों में ई-सिगरेट के इस्तेमाल को रेग्युलेटरी मंजूर के अच्छे नतीजे सामने आए हैं। इन देशों में हाल के वर्षों में स्मोकिंग की दर तेजी से गिरी है।
इसके विपरीत भारत में स्मोकिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में स्मोकर्स की इच्छा-शक्ति पर निर्भर रहने के बजाय काफी कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि इसमें असफलता की दर 95 प्रतिशत के आसपास है। इसके अलावा, एक सीमा से ज्यादा टैक्स बढ़ाने के दूसरे नुकसान हो सकते हैं और स्मोकर्स ज्यादा नुकसानदेह और सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं।
चौधरी ने कहा, 'हम सरकार और स्वास्थ्य विभागों सें तम्बाकू की महामारी से लड़ने में तम्बाकू के नुकसान में कमी की भूमिका पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करते हैं, जिससे देश में हर साल 10 लाख लोगों की मौत हो रही है।' उन्होंने कहा कि स्वीडिश स्नस के रूप में कम जोखिम वाले धुआंरहित तम्बाकू भी उपलब्ध है, जो ई-सिगरेट के समान ही है और जिसे नुकसान में 95 प्रतिशत की कमी पाई गई है। उन्होंने कहा, 'इसके लिए “छोड़ो या मर जाओ” के नैतिकतावादी नजरिए की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक नजरिए की जरूरत होगी।'
गुप्ता ने किशोरों यानी टीन्स में वैपिंग का इस्तेमाल बढ़ने के आरोपों के जवाब में कहा, 'दुनिया की तुलना में भारत में वैपर्स, पूर्व स्मोकर्स हैं। हम कम उम्र और नॉन स्मोकर्स द्वारा इसके इस्तेमाल का विरोध करते हैं और इस दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का समर्थन करेंगे।'
एवीआई डायरेक्टर ने कहा कि सरकार किशोरों को इसके इस्तेमाल से रोकने के लिए सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत ई-सिगरेट की बिक्री को रेग्युलेट कर सकती है।
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लिवर डिजीज सेंटर
कोलकाता स्थित मुख्यालय वाले मेडिका हॉस्पिटल्स ने साउथ एशियन लिवर इन्स्टीट्यूट के सहयोग से-मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज - की शुरुआत की है।
मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज का उद्देश्य, पूर्वी भारत में प्रत्यारोपण सहित लिवर की तमाम बीमारियों की इलाज संबंधी जरूरतों को पूरा करना है। इस सेंटर में लिवर, पैनक्रियाज और पित्त की थैली संबंधी बीमारियों के इलाज की सुविधा उपलब्ध है। मेडिका के लिवर प्रत्यारोपण कार्यक्रम में जीवित एवं कडैवर (मृत) दोनों, दाता (डोनर) शामिल होंगे। मेडिका, पूर्वी भारत के उन चंद अस्पतालों में से एक है, जहां प्रत्यारोपण सर्जरी सहित, लिवर संबंधी जटिल बीमारियों के इलाज की सुविधा है।
मेडिका सुपरस्पेशलटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी के निदेशक डॉ. प्रदीप्ता कुमार सेठी कहते हैं, लिवर डिजीज सेंटर की शुरुआत, निश्चित तौर पर एक सामयिक निर्णय है। इसमें संदेह नहीं कि अब हम लिवर संबंधी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए समग्र दृष्टिकोण अपना सकेंगे।
मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज के बारे में बात करते हुए साउथ एशियन लिवर इन्स्टीट्यूट के संस्थापक प्रो. (डॉ.) टॉम चेरियन ने कहा, हम चाहते हैं कि लिवर संबंधी बीमारियों का विश्वस्तरीय इलाज हो। और विश्वस्तरीय क्या है? इसका सीधा-सा मतलब है कि लिवर की बीमारी का इलाज चाहे लंदन में हो या कोलकाता में, दोनों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। मैं, भरोसा दिलाना चाहता हं कि लिवर की बीमारी का इलाज, जिस तरह लंदन में करता था, उसी तरह यहां कोलकाता में भी करूंगा। हमने कोलकाता के बहुत से मरीजों का इलाज किया है, वो अच्छा जीवन जी रहे हैं और अपने शहर लौट आए हैं। लेकिन अपने इलाज के लिए, उन्हें बहुत लंबी यात्रा करनी पड़ती थी। मुझे खुशी है कि हम उस इलाज को इस महान शहर तक लाने में सक्षम हैं, जो शानदार लिवर सर्विस के लिए सर्वथा उचित है।
मेडिका अस्पताल समूह के चेयरमैन डॉ. आलोक रॉय ने कहा, लिवर डिजीज सेंटर बहुत बड़ा कदम है, और मेरा मानना है कि यह न केवल कोलकाता और बंगाल, बल्कि समूचे पूर्वी भारत के लिए भी मील का पत्थर है। हमारे पास लिवर संबंधी बीमारियों एवं उससे जुड़ी दिक्कतों से निपटने के लिए आधारभूत ढांचे के अलावा डॉक्टरों और सर्जनों की शानदार टीम है।
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अधिक उम्र में मां बनने का खतरनाक चलन
आज के समय में कई तरह की खतरनाक प्रवृतियां सामने आ रही हैं जिनमें से एक प्रवृति यह है कि आज महिलाएं मीनोपॉज होने के बाद नई प्रजनन तकनीकों का सहारा लेकर मां बन रही हैं। हाल ही में ऐसी रिपोर्टें सामने आई कि 74 साल और 70 साल की महिलाओं ने आईवीएफ के जरिए शिशुओं को जन्म दिया और इससे आईवीएफ तकनीक के गलत इस्तेमाल का संगीन मुद्दा सामने आया।
डॉ. ज्योति बाली ने मातृ आयु और आईवीएफ तकनीक के दुरुपयोग के मुद्दे के बारे में बताया कि जीवन के तीसरे, चौथे, 5 वें और अब छठे दशक तक प्रसव में देरी करने वाली महिलाओं का अनुपात शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।
डॉ. ज्योति बाली बेबीसन फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर की मेडिकल डायरेक्टर हैं और साथ ही दिल्ली चैप्टर, इंडियन सोसायटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन और दिल्ली गायनकोलॉजी फोरम की सेक्रेटरी हैं तथा नेशनल वुमन विंग, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं।
इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह एक आम भ्रामक धारणा है कि प्राकृतिक प्रजनन क्षमता की भरपाई आईवीएफ द्वारा की जा सकती है। उम्र बढ़ने के साथ बांझपन में प्राकृतिक गिरावट होती है। लेकिन जानकारी की कमी और इसकी बढ़ती लोकप्रियता दोनों के कारण बड़ी उम्र में मां बनने की यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है यह होने वाले बच्चे और मां दोनों के लिए उचित नहीं है साथ ही प्रजनन विशेषज्ञों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है।ऐसे में इस समस्या से बचने का एक मात्र उपाय है कि आप क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक का इस्तेमाल करके अपने अण्डाणुओं को फ्रीज करवा के रख ले। जिसे बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है। 35 वर्ष की आयु क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए उचित समय है। हालांकि फिर भी हम छठे दशक में जाकर गर्भधारण करने और करवाने की गलत प्रैक्टिस का पूरी तरह से विरोध करते हैं। आई सी एम आर गाइडलाइन के मुताबिक 50 वर्ष की आयु तक ही गर्भधारण किया जाना चाहिए। इससे अधिक आयु में गर्भ धारण करना अवैध है।
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