विदेशी वैज्ञानिकों ने भी मानी पीतल के घड़ों की उपयोगिता

वैज्ञानिकों ने अपने शोध से सिद्ध किया है कि भारत की सदियों पुरानी पीतल के बर्तनों की परंपरा स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी है। हालांकि आजकल के प्लास्टिक के बर्तनों के आगे पीतल की चमक कुछ फीकी पड़ चली है लेकिन तथ्य कुछ और ही कहते हैं।
सूक्ष्म जीवविज्ञानियों का दावा है कि भारत में इस्तेमाल होने वाले पीतल के परंपरागत घड़े जल-जनित बीमारियों का मुकाबला करने में समर्थ हैं। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि विकासशील देशों में जहां लोग प्लास्टिक के सस्ते बर्तनों को पानी के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं, पीतल के परंपरागत घड़ों को उपयोग में लाना चाहिए। 
ब्रिटेन के नाॅर्थअब्रिया विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीवविज्ञानी राॅब रीड ने भारतीय ग्रामीण समाज में पाई जाने वाली इस धारणा की वैज्ञानिक तौर पर पुष्टि की है कि पीतल के घड़ों में जीवाणु नहीं पनपते।
प्रोफेसर रीड ने अपने दो सहयोगियों- पूजा टंडन और संजय छिंबर के साथ प्रयोगों की दो श्रृंखलाएं पूरी की। इन्होंन पीतल और मिट्टी के घड़ों में पानी भर कर इनमें ई. कोलाई बैक्टीरिया के बीज डाले। यह जीवाणु पेचिश पैदा करने वाला सूक्ष्मजीवी है। शोधकर्ताओं ने 6, 24 और 48 घंटे बाद इन घड़ों के पानी में जीवित बचे जीवाणुओं की गिनती की। नतीजे चैंकाने वाले थे- पीतल के घड़े में जीवाणुओं की संख्या समय के साथ घटती चली गई और 48 घंटे बाद इनकी संख्या इतनी घट गई कि इन्हें गिना जाना भी संभव नहीं रहा। प्रो. रीड ने एडिबरा में हुई सोसायटी फाॅर जनरल माइक्रोबायलाॅजी की बैठक में अपने ये परिणाम पेश किए। रीड के अनुसार जीवाणुओं के नष्ट होने का कारण पीतल में पाया जाने वाला तांबा है जो पानी में घुल कर जैविक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देता है। तांबे के कण जीवाणुओं की कोशिकाओं की दीवारों और उसके एंजाइमों के काम में बाधा डालते हैं-सूक्ष्मजीवी के लिए जिसका अर्थ है मौत। दिलचस्प बात यह है कि इन घड़ों से निकलने वाली तांबे की मात्रा मानव शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती। 
शोधकर्ताओं का दावा है कि यदि पीतल के घड़े में रखा 10 लीटर पानी कोई व्यक्ति रोजाना पीता है तो इससे उसके शरीर में पहुंचने वाली तांबे की मात्रा स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय मानकों से कम होती है। इसके विपरीत प्लास्टिक जीवाणुओं को नष्ट नहीं करता लेकिन विकासशील देशों में लोग सस्ता विकल्प समझ कर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। रीड कहते हैं पीतल के बर्तन महंगे जरूर हैं लेकिन जिस तरह जल-जनित बीमारियों से हर साल लाखों मौत के शिकार होते हैं, पीतल का प्रयोग एक बुद्धिमानीपूर्ण कदम साबित होगा।
जीवाणुओं के नष्ट होने का कारण पीतल में पाया जाने वाला तांबा है जो पानी में घुलकर जैविक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देता है। तांबे के कण जीवाणुओं की कोशिकाओं की दीवारों और उसके एंजाइमों के काम में बाधा डालते हैं, सूक्ष्मजीवी के लिए जिसका अर्थ है मौत।