वायु प्रदूषण से न सिर्फ हमारे फेफड़े प्रभावित होते हैं, बल्कि यह हृदय के रक्त प्रवाह को बाधित कर हृदय रोगों को भी बढ़ावा देता है।
फिनलैंड के शोधकर्ताओं के एक नवीनतम अध्ययन से पता चला कि प्रदूषण से न सिर्फ दमा की, बल्कि हृदय रोगों की भी आशंका बढ़ जाती है। अमरीकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी का अनुमान है कि अमरीका में वायु प्रदूषण के कारण हर साल 60 हजार लोगों की मृत्यु होती है।
फिनलैंड में कुओपिया स्थित नेशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीच्यूट के डा. जुहा पेकानीन और उनके सहयोगियों ने कारखानों और डीजल बसों तथा ट्रकों से निकलने वाले प्रदूषण का अध्ययन करने पर पाया कि प्रदूषित वातावरण में मौजूद अत्यंत छोटे कण सांस के जरिये हमारे शरीर में पहुंचकर फेफड़े और हृदय रोगों को बुलावा देते हैं। हृदय रोगी प्रदूषकों से अधिक प्रभावित होते हैं। प्रदूषण रहित वातावरण की तुलना में प्रदूषित वातावरण में व्यायाम करने पर हृदय को होने वाली रक्त आपूर्ति में कमी हो जाती है और इस्कीमिया होने की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है।
अमरीकन हार्ट एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने इन रोगियों की ई.सी.जी. (इलेक्ट्रोकार्डियाग्राम) में हृदय में होने वाली आॅक्सीजन आपूर्ति में कमी पायी।
यह अध्ययन 45 हृदय रोगियों पर किया गया। इनमें से आधी महिलाएं थीं। ये सभी रोगी हेलसिंकी क्षेत्रा के रहने वाले थे जहां वायु प्रदूषण को आसानी से मापा जा सकता है। डा. पेकानीन और उनके सहयोगियों द्वारा छह सप्ताह तक किये गये इस अध्ययन में इन मरीजों को दो सप्ताह तक व्यायाम करने को कहा गया और हवा में मौजूद बारीक कणों का भी अध्ययन किया गया। प्रदूषित वातावरण में दो सप्ताह रहने के दो दिन बाद इनकी इस्कीमिया के स्तर की जांच की गयी।
इस्कीमिया एक गंभीर हृदय रोग है जिसमें रोगी के हृदय में दर्द नहीं होता है। प्रदूषण धमनियों में रूकावट पैदा करता है जिससे दिल के दौरे तथा हृदयाघात या हृदय के आवर्तन (रिदम) में गंभीर परिवर्तन होने या इन दोनों की आशंका बढ़ जाती है। यही नहीं प्रदूषण में रहने से हृदय की धड़कन भी बढ़कर प्रति मिनट औसतन 61 से 90 हो जाती है।
बोस्टन में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कार्डियोवैस्कुलर एपिडेमियोलाॅजी के निदेशक डा. मुरै मिटलमैन का कहना है कि इस अध्ययन से प्रदूषण का हृदय पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या करने में सहायता मिलेगी। इनका कहना है कि लाॅस एंजिल्स और हाॅस्टन जैसे जाने-माने प्रदूषित शहरों में ही नहीं बल्कि बोस्टन, सिएटल और मिनियापोलिस जैसे कम प्रदूषित माने जाने वाले शहरों में भी वायु प्रदूषण पैदा करने वाले कणों से स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार वायु प्रदूषण पैदा करने वाले ये बारीक कण सांस के जरिये हमारे शरीर में पहुंचकर घंटों तक रह सकते हैं और रक्त के साथ शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंच सकते हैं। ये कण हृदय की सक्रियता को बाधित कर सकते हैं, हृदय की तारतम्यता में अवरोध पैदा कर सकते हैं और धमनियों को संकरा कर सकते हैं। मिटलमैन का कहना है कि वायु प्रदूषण की समस्या दिनोंदिन व्यापक होती जा रही है और बढ़ती जा रही है। जब प्रदूषण का स्तर बहुत ऊंचा हो जाएगा तो अधिकतर लोग घर के बाहर व्यायाम करने की बजाय घर के अंदर ही व्यायाम करना पसंद करेंगे।