उच्च रक्तचाप और किडनी की बीमारी

भारत में लगभग एक लाख लोगों की किडनी फेल होती है और किडनी फेल होने के 27 प्रतिशत मामलों के लिए उच्च रक्तचाप जिम्मेदार है। 
रक्तचाप के नियंत्रण में किडनी मुख्य भूमिका निभाती हैं। इसलिए किडनी की किसी भी बीमारी से रक्तचाप बढ़ जाता है। उच्च रक्तचाप के कारण रक्त शिराएँ क्षतिग्रस्त और संकुचित हो जाती हैं। उनकी लचक भी कम हो जाती है। उच्च रक्तचाप के कारण किडनी की रक्तशिराएँ भी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। जिससे उनकी छानने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किडनी शरीर से विशाक्त पदार्थों को पूरी तरह से निकालने में अक्षम हो जाती हैं। इसके कारण विशाक्त पदार्थ शरीर में जमा होता रहता है और किडनी की बीमारियों के साथ-साथ कई सारी बीमारियों जैसे हृदय की बीमारी, हड्डियों और दौरे की बीमारी आदि पैदा हो सकती है। 
किडनी की बीमारी के मामलों का पता काफी देर से चलता है, तब तक यह अंग पूरी तरह से खराब हो चुका होता है। ज्यादातर मौकों पर मरीज को कोई भी लक्षण पता नहीं चलता है, जबकि किडनी अपनी आधी क्षमता पर काम कर रही होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों को या तो हीमोडायलिसिस या कॉन्टीन्युअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता होती है, ताकि किडनी के कामों का विकल्प हासिल हो सके या फिर किडनी का प्रत्यारोपण कराना पड़ता है।
किडनी की बीमारी की जाँच:
किडनी की बीमारी की पहचान केवल मेडिकल जाँच द्वारा ही संभव है। रक्त की जाँच द्वारा रक्त में व्यर्थ के उत्पादों जैसे क्रेटिनाइन के बढ़े हुए स्तर की पहचान की जा सकती है। 
सामान्य व्यक्तियों में किडनी की छानने की क्रिया यह सुनिश्चित करती है कि पेशाब में प्रोटीन की हानि न हो। क्षतिग्रस्त किडनी के समय प्रोटीन की थोड़ी मात्रा जैसे एलब्युमिन पेशाब में रिसने लगती है, जिसका पता पेशाब की जाँच में चलता है। यह किडनी के खराब होने के बहुत पूर्व के लक्षणों में से एक है।
रोकथाम के उपाय:
रक्तचाप को नियंत्रण में रखने का सबसे अच्छा उपाय किडनी की बीमारी के खतरे को कम से कम करना है। उच्च रक्तचाप का समय पर इलाज करा लेने पर किडनी की बीमारी की वृद्धि रूक जाती है और किडनी के फेल होने की संभावना कम हो जाती है।
आप खुद भी अपने रक्तचाप की नियमित जाँच कर किडनी का बचाव कर सकते हैं और यह दबाव 130/80 मि.मी. पारे के दाब से अधिक नहीं होना चाहिए। नियमित रक्त और पेशाब की जाँच द्वारा किडनी की बीमारी की पहचान बहुत पहले ही की जा सकती है।
उच्च रक्तचाप
उच्च रक्तचाप के कारक 
शरीर में रक्तचाप के कई कारक होते हैं जैसे शरीर में पानी एवं नमक की मात्रा, रक्त वाहिकाओं की तथा किडनी जैसे शरीर के मुख्य अंग की स्थिति, तंत्रिका तंत्र की स्थिति तथा किसी व्यक्ति के हॉर्मोन का स्तर। 
किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या है या नहीं, इसका पता निम्नलिखित लक्षणों से चलता है:
1. अगर वह व्यक्ति मधुमेह एवं मोटापे जैसी समस्याओं का शिकार है।
2. अगर वह व्यक्ति किसी कारण से बहुत ज्यादा तनाव में है।
3. अगर कोई व्यक्ति एक दिन में काफी ज्यादा मात्रा में धूम्रपान करता है या शराब का सेवन करता है तो भी उसे उच्च रक्तचाप की समस्या की समस्या हो सकती है।
4. अगर किसी व्यक्ति के परिवार में पहले भी किसी को उच्च रक्तचाप की समस्या रही है।
उच्च रक्तचाप के कारण
ज्यादातर व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप की समस्या होने का कोई कारण नहीं होता। इसे प्राथमिक उच्च रक्तचाप कहा जाता है। जो रक्तचाप किसी औषधि के सेवन से या किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के फलस्वरूप बढ़ती है उसे मध्यम स्तर का उच्च रक्तचाप कहा जाता है।
मध्यम स्तर के उच्च रक्तचाप के कारण
1. हाइपर पैरा थाइरॉइडिस्म
2. लंबे समय से किडनी की बीमारी
3. किडनी में रक्त संचार करने वाली धमनियों में समस्या
4. अधिवृक्क ग्रंथियों की समस्या जैसे फिओक्रोमोसीटोमा या कुशिंग सिंड्रोम।
5. कुछ दवाइयों जैसे गर्भ निरोधक गोली, माइग्रेन की दवाइयाँ, डाइट की गोलियां तथा ठण्ड से बचने वाली दवाइयाँ।
उच्च रक्तचाप के लक्षण
ज्यादातर लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं होते और डॉक्टर से सलाह करने एवं जांच कराने के पश्चात ही उन्हें अपनी इस समस्या के बारे में पता चलता है। इसके कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होने के कारण बहुत से लोग काफी दिनों तक इस समस्या के शिकार रहते हैं और उन्हें पता तक नहीं होता है। 
अगर आप बहुत तेज सिर दर्द, नाक से खून निकलना, चक्कर आना, उलटी, भ्रम तथा आँखों की समस्या के शिकार हो रहे हैं तो इसका मतलब आपको काफी उच्च रक्तचाप है जिसे मलिग्नैंट हाइपरटेंशन कहते हैं। अगर आप हाइपरटेंशन के शिकार हैं तो अपनी जीवनशैली को बदलें। इससे आपका रक्तचाप सामान्य स्तर पर आने की संभावना रहती है।
रक्तचाप नियंत्रित करने के उपाय
1. ह्रदय को स्वस्थ रखने वाले भोजन खाएं। फाइबर, पोटैशियम और लौह खनिज की मात्रा वाले भोजन करने से आपका ह्रदय स्वस्थ रहेगा। काफी मात्रा में पानी पीना भी एक बेहतर विकल्प है।
2. खाने में सोडियम की मात्रा घटाएं और फर्क देखें।
3. धूम्रपान से दूर रहें। अगर आपको धूम्रपान की आदत है तो इसे धीरे-धीरे छोड़ने की कोशिश करें। धूम्रपान छोड़ना काफी कठिन कार्य है अतः इस मामले में डॉक्टर की सलाह लें।
4. शराब पीने की मात्रा कम करें। शराब पीने का हिसाब रखें एवं इस मात्रा को कम करने की कोशिश करें।
5. तनाव से दूर रहें। तनाव पैदा करने वाली चीजों से परे रहने का प्रयास करें। आप तनाव दूर करने के लिए योग का सहारा भी ले सकते हैं।
6. शरीर का वजन कम करने का प्रयास करें। सही प्रकार के व्यायाम करें जिससे की शर्तिया लाभ हो।
7. वजन घटाने, धूम्रपान छोड़ने एवं शारीरिक व्यायामों के शिविर में हिस्सा लें। इससे सटीक परिणाम मिलेंगे।
आजकल जीवनशैली में परिवर्तन एवं सही दवाओं के चुनाव से रक्तचाप को नियंत्रण में लाना संभव है। अगर इसे नियंत्रण में नहीं किया गया तो आप लंबे समय तक रहने वाली किडनी की बीमारी, पैरों में खून का ना पहुंचना, दिल का दौरा, आँखों की समस्या, बड़ी रक्त वाहिका से रक्तपात जो कि पेट, पैर एवं कूल्हों में रक्त संचार करती है जैसी समस्याओं का शिकार हो सकते हैं।