मौजूदा समय में उच्च रक्त दाब का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। आज हर पांचवा व्यक्ति उच्च रक्त चाप से ग्रस्त है। गुर्दे एवं हृदय की बीमारियों के जनक माने जाने वाले उच्च रक्त दाब को खामोश हत्यारा कहा गया है क्योंकि ज्यादातर मामलों में यह कोई लक्षण प्रकट किये बगैर ही गुर्दे, हृदय और रक्त धमनियों को क्षतिग्रस्त करता रहता है। कई मामलों में इसका पता तब चलता है जब दिल का दौरा पड़ जाता है या गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं।
उच्च रक्त चाप अथवा हाइपरटेंशन को नियंत्रित रखने में हमारे गुर्दे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही साथ गुर्दे की सलामती के लिये रक्त दाब को सही रखना जरूरी होता है क्योंकि उच्च रक्त चाप हमारे गुर्दे को बेकार कर सकता हैं।
रक्त दाब रक्त की धमनियों पर पड़ने वाले रक्त के दवाब को कहा जाता है। जब रक्त धमनियों से रक्त का बहाव होता है तो इन धमनियों की दीवारों पर रक्त का दवाब पड़ता है। जब दवाब अधिक होता है तो उच्च रक्त दाब (हाई ब्लड प्रेशर) तथा जब दवाब कम होता है तो निम्न रक्त दाब (लो ब्लड प्रेशर) कहा जाता है। उच्च रक्त दाब की स्थिति कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है। इनमें एक कारण धमनियों में सिकुड़न या संकरापन आ जाना है। उच्च रक्त दाब का एक प्रमुख कारण गुर्दे में खराबी आ जाना है।
रीढ़ के दोनों तरफ स्थित गुर्दे रक्त को छानकर उसे साफ करने का काम करते हैं ताकि शरीर में स्वच्छ रक्त का प्रवाह हो। हृदय की तरह दिन-रात अनवरत काम करते हुये हमारे ये गुर्दे रक्त से छाने गये जहरीले अंश को मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल देते हैं। गुर्दे खराब होने पर रक्त की सफाई नहीं हो पाती जिसके कारण शरीर के विभिन्न अंगों एवं मांसपेशियों को अशुद्ध और जहरीले रक्त की आपूर्ति होती है। साथ ही साथ गुर्दे की खराबी के कारण शरीर से अतिरिक्त तरल का निकास नहीं हो पाता जिससे शरीर और रक्त में तरल की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त में तरल अधिक हो जाने से रक्त धमनियों पर दवाब बढ़ जाता है।
रक्त दाब अधिक होने पर हमारे हृदय को अधिक काम करना पड़ता है जिससे हृदय कमजोर हो सकता है और दिल के दौरे समेत कई तरह के हृदय रोग हो सकते हैं। इसके अलावा अधिक रक्त दाब पूरे शरीर में गुर्दे और हृदय समेत शरीर के विभिन्न अंगों की रक्त धमनियों को क्षतिग्रस्त कर सकता है। गुर्दे की रक्त धमनियों के क्षतिग्रस्त होने पर वे अपना काम करना बंद कर सकते हैं। गुर्दे के काम करना बंद करने से रक्त से अतिरिक्त तरल एवं गंदे अवशेष बाहर नहीं निकल पाते जिससे अंततोगत्वा रक्त दाब और बढ़ता है।
मधुमेह के बाद उच्च रक्त दाब गुर्दे के बेकार होने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। गुर्दे के बेकार होने की स्थिति को इंड स्टेज रीनल डिजीज (ई.एस.आर.डी.) कहा जाता है। ऐसे मरीजों ंको या तो डायलिसिस करानी पड़ती है या गुर्दे का प्रत्यारोपण कराना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार करीब 50 प्रतिशत मरीजों में उच्च रक्त दाब और मधुमेह के कारण ही गुर्दे खराब होते हैं।
गुर्दे के मरीजों के लिये डायलिसिस मशीन कृत्रिम गुर्दे का काम करती है। मरीज की स्थिति के अनुसार सप्ताह में तीन बार या अधिक बार डायलिसिस के जरिये रक्त को साफ करना पड़ता है। गुर्दे का प्रत्यारोपण गुर्दे के बेकार होने पर एक स्थायी एवं कारकर विकल्प है हालांकि गुर्दे के समुचित प्रत्यारोपण के बाद मरीज सामान्य जीवन जीने में सक्षम रहता है लेकिन उसे जिंदगी भर महंगी दवाइयां खानी पड़ती है और काफी एहतियात बरतने पड़ते हंै। इसके बावजूद गुर्दे के प्रत्यारोपण की सफलता दर 90 प्रतिशत से भी अधिक है। मरीज के शरीर को स्वीकार्य गुर्दे सामान्यतः 13 साल से अधिक चलते हैं। सी.ए.पी.डी. डायलिसिस का एक अलग विकल्प है जिसका प्रयोग मरीज घर में खुद ही करतेे हैं और उन्हें बार-बार अस्पताल जाने की भी जरूरत नहीं रहती।
उच्च रक्त चाप के मरीजों को कोई विशिष्ट लक्षण नहीं होते हैं। आम तौर पर बढ़े हुये रक्त चाप का पता केवल रक्त चाप की नाप से ही चलता है। कई लोगों को उच्च रक्त दाब होने पर चक्कर, सिर दर्द, अनिद्रा और घबराहट जैसे लक्षण होते हैं लेकिन इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर लोग पहला हृदय घात होने के पूर्व तक अपने को स्वस्थ एवं उच्च रक्त दाब से मुक्त मानते हैं। रक्त दाब की माप के लिये हृदय धड़कन के वक्त रक्त धमनियों पर पड़ने वाले दवाब (उच्च अथवा सिस्टोलिक) तथा दो हृदय धड़कनों के बीच रक्त धमनियों पर पड़ने वाले दवाब (निम्न अथवा डिस्टोलिक) की माप की जाती है। सामान्य रक्त दाब 120/80 तथा उच्च रक्त दाब 130/90 होता है।
रक्त चाप दरअसल दमा की तरह एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि यह दम के साथ ही दूर होता है। लेकिन इस रोग पर समुचित नियंत्रण रखकर इस रोग से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है तथा सामान्य जीवन जीया जा सकता है। इस रोग के मरीजों को ताउम्र दवाइयां खाने की जरूरत पड़ सकती है।
महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान रक्त दाब पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि इससे जच्चे-बच्चे पर गंभीर असर पड़ सकता है। बच्चों में उच्च रक्त दाब दिल अथवा गुर्दे की बीमारियों के कारण होता है। इसे द्वितीयक हाइपरटेंशन (सेकेंडरी हाइपरटेंशन) कहा जाता है। अगर उच्च रक्त दाब पैदा करने वाले अन्य कारणों को दूर कर दिया जाता है तो रक्त दाब भी सामान्य हो जाता है।
कुछ दवाइयों से भी उच्च रक्त दाब होता है लेकिन जब इनका सेवन बंद कर दिया जाता है तब आम तौर पर रक्त चाप सामान्य हो जाता है।