अगर आप पेट दर्द अथवा सिर दर्द से तड़पते हुये कोई अस्पताल पहुंचे और वहां पहुंचने पर डाॅक्टर दवा देने के बजाय आपके संगीत सुनाने लगे तो आप शायद डाॅक्टर को भला - बुरा कहते हुये वहां से भाग खड़े हों। लेकिन आपको विश्वास हो या नहीं, आने वाले समय में संगीत को बीमारियों के इलाज का एक कारगर नुस्खे के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाने वाला है।
कहा जाता है कि संगीत एक जादू है, एक नशा है, परम आनंद की प्राप्ति का एक साधन है। लेकिन आज इसे दर्दे दिल और दर्दे जिगर की दवा माना जाने लगा है। वैसे तो दिलो-दिमाग पर संगीत के असर का अहसास मनुष्यों को प्राचीन काल से ही रहा है, लेकिन आज संगीत के विभिन्न पहलुओं पर हुये वैज्ञानिक अध्ययनों ने साबित कर दिया है कि संगीत बहुत सारे मर्ज की दवा भी है। हो सकता है कि कई लोगों को संगीत के चिकित्सकीय एवं औषधीय प्रभावों को लेकर शक हो सकता है लेकिन इस विषय में शोध करने वाले वैज्ञानिकों को इस बात को लेकर अब कोई शक नहीं रहा कि संगीत भविष्य में चिकित्सा का एक कारगर हथियार बनने जा रहा है।
वैज्ञानिकों ने संगीत का असर केवल मनुष्यों और विभिन्न जीव - जन्तुओं पर ही नहीं पौधों पर भी देखा है।
आधुनिक शोधकर्ताओं ने यह साबित किया है कि पौधों के पास नियमित तौर पर शास्त्राीय संगीत बजाया जाये तो पौधों का विकास तेजी से होता है। जापान में एक प्रयोग के तहत देखा गया कि अगर साग-सब्जियों, जड़ी-बूटियों और फलों के पेड़ों के पास नियमित रूप से संगीत बजाया जाये तो इनता तेजी से विकास होता है। मोजार्ट, बीथोवन और शोपां जैसे पश्चिमी शास्त्राीय संगीत को लेकर इस तरह के प्रयोग किये गये। अगर संगीत का पौधों पर इतना साकारात्क प्रभाव पड सकता है तो जाहिर सी बात है कि मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ना लाजिमी है।
संगीत का स्वास्थ्य पर प्रभाव
स्वास्थ्य पर संगीत के प्रभाव को लेकर भारत के अलावा अनेक देशों में कई वैज्ञानिक अध्ययन हुये हैं। इन अध्ययनों से पता चलता है कि मनपसंद और अनुकूल संगीत सुनने से रक्त चाप में कमी आती है, दिल की धड़कन नियमित होती है, डिप्रेशन दूर होता है, एंग्जाइटी में कमी आती है, ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता तथा सृजनशीलता बढ़ती है, आपरेशन के दौरान अथवा उसके पश्चात दर्द निवारक दवाइयों की जरूरत कम होती है, कीमोथिरेपी के बाद उल्टी की शिकायत कम होती है, दर्द से राहत मिलती है और पार्किसन्स बीमारी में शारीरिक अंगों में स्थिरता आती है। संगीत चिकित्सा का इस्तेमाल प्रसव पीड़ा का कम करने के अलावा सिर दर्द और सर्दी-जुकाम जैसी रोजमर्रे की समस्याओं को दूर करने में भी हो सकता हैं। पश्चिमी देशों में संगीत का इस्तेमाल आटिज्म, पार्किंसन, अल्जाइमर और हंटिंगडन बीमारी के अलावा संवेदना में गड़बड़ी के इलाज में हो रहा है।
सर्जरी के दौरान संगीत का असर
स्वीडन में किये गये एक अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि सर्जरी के दौराण कर्णप्रिय एवं मधुर संगीत सुनने से सर्जरी के बाद मरीज के जल्द ठीक होने में मदद मिलती है। ए सी टी ए (एनेस्थिसियोलाॅजिका स्कैंडिनाविका) नामक पत्रिका के हाल के अंक में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार कुछ महिलाओं को बेहोश करके हीस्टेरेक्टोमी का आपरेशन हुआ। बेहोशी के दौरान उसे राहत प्रदान करने वाला संगीत और समुद्री लहरों की आवाजें सुनायी गयी। उसे जब अस्पताल से छोड़ा गया तब उसे कम दर्द और थकावट का अहसास हो रहा था। जिन मरीजों को आपरेशन के दौरान संगीत नहीं सुनाया गया था उनकी तुलना में ये महिलायें आपरेशन के बाद तुलनात्मक रूप से पहले उठने बैठने लगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार एनेस्थिसिया के प्रभाव में बेहोशी की हालत में हमारा मस्तिष्क आसपास की घटनाओं के प्रति जागरूक होता है। आपरेशन के लिये बेहोश किये गये मरीज का अवचेतन मस्तिष्क चिकित्सकों और नर्सों की बातें सुनता है जिससे उसे एंग्जाइटी पैदा हो सकती है और सर्जरी के बाद के परिणामों को लेकर वह चिंतित हो सकता है। मरीज का ध्यान इस तरह की बातों से हटाने के लिये उसे संगीत सुनाया जा सकता है और साथ ही साथ चिकित्सकीय सलाह दी जा सकती है। यह बेहद साघन सस्ता है और इससे सर्जरी के बाद मरीज के जल्द ठीक होने में मदद मिल सकती है और उसे दर्द एवं थकावट से जल्द छुटकारा मिल सकता है। इससे मरीज को कम दर्दनिवारक दवाइयों की जरूरत होती है और यह मरीज के हित में साबित हो सकता है।
क्लीवलैंड स्थित वेस्टर्न रिजर्व युनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने 29 माह तक उन 500 मरीजों पर अध्ययन किया जिनकी पेट की सर्जरी की गयी थी। इन मरीजों की उम्र 18 से 70 वर्ष थी1 इनमें से कुछ मरीजों को आपरेशन के बाद दी जाने वाली चिकित्सकीय देखभाल के अलावा संगीत सुनाया गया और उनपर मन को हल्का करने के उपाय आजमाये गये जबकि जबकि शेष को परम्परागत तरीके से दवाइयां दी गयी और चिकित्सकीय देखभाल की गयी। सर्जरी के बाद संगीत सुनने वाले मरीजों ने सर्जरी के बाद के पहले और दूसरे दिन चलने-फिरने एवं सोने-जागने के दौरान कम दर्द महसूस किया और उन्होंने तुलनात्मक रूप से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ किया।
स्वर विकार दूर करने में संगीत
फ्रांस के चिकित्सक डा. अल्फे्रड टोमाटिस ने 50 वर्ष तक एक लाख मरीजों पर अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला कि स्वर विकारों से ग्रस्त लोग अगर छह माह तक रोजाना एक घंटे तक मोजार्ट संगीत सुने तो उनका स्वर दोष दूर होता है और उनकी अभिव्यक्ति की क्षमता में सुधार आता है। डा. टोमाटिस फ्रंास के सुपरस्टार गेरार्ड डिपाडियू का उदाहरण देते हैं। डिपाडियू जब अपने कैरियर के शुरूआती दिनों में संघर्ष कर रहे थे तब वह स्वर विकार से ग्रस्त हो गये। वह संवादों को ठीक से बोल नहीं पाते थे। डा. टोमाटिस ने उन्हें संगीत चिकित्सा दी जिसके कारण उन्होंने अपने स्वर दोष पर विजय पा ली और फ्रेंच सिनेमा में उन्हें उसी प्रकार की ख्याति हालिस हुयी जिस तरह की ख्याति हिन्दी फिल्मों में अमिताभ बच्चन ने हासिल की है।
नवजात बच्चों के इलाज के लिये संगीत
संगीत का इस्तेमाल समय पूर्व प्रसव से जन्म लेने वाले बच्चों के इलाज के लिये भी होता है। आज अनेक चिकित्सक समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों के इलाज के लिये कुछ खास तरह के संगीत के असर का इस्तेमाल कर रहे हैं।
अटलांटा के पाइडमोंड हाॅस्पीटल में गहन चिकित्सा के चिकित्सक डा. शेवात्र्ज ने गर्भस्थ शिशु और नवजात शिशु की चिकित्सा में विशेषज्ञता हासिल की है। गर्भ में ध्वनि स्तर करीब 80 से 90 डेसिबल होता है। ध्वनि का यह स्तर किसी डिस्को में पैदा होने वाली ध्वनि के बराबर है। गर्भ में प्लेसेंटा में रक्त प्रवाह, माता के श्वसन एवं दिल की धडकन के मिले-जुले असर से इतनी उंची ध्वनि पैदा होती है। जन्म से पूर्व इतने ऊंचे स्तर की ध्वनि सुनने वाले शिशु के लिये जन्म के समय अचानक ध्वनि का नहीं सुनना तनाव का कारण हो सकता है। यही कारण है कि शेवात्र्ज ने गर्भ में पैदा होने वाली ध्वनि की तरह का ही एक खास तरह का संगीत विकसित किया है।
उन्हें अपनी पत्नी के गर्भवती होने पर अपनी पत्नी के गर्भ में पैदा होने वाली ध्वनि रेकार्ड की और उस ध्वनि को स्टुडियो में मधुर संगीत एवं महिला की आवाज के साथ मिश्रित किया। पत्नी के प्रसव के समय से ही इस मिश्रित ध्वनि को शिशु को सुनाया और इसका असर यह हुआ कि शिशु लंबे समय तक गहरी नींद में सोता रहा। इस प्रयोग से उत्साहित होकर उन्होंने समय से पूर्व पैदा होने वाले अनेक शिशुओं पर इस मिश्रित घ्वनि का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि जो बच्चे इस तरह की मिश्रित संगीत के प्रभाव में रहते हैं वे अन्य बच्चों की तुलना में गहन चिकित्सा कक्ष में तीन दिन कम रहते हैं।
संगीत का कैंसर चिकित्सा में उपयोग
कीमोथिरेपी के समय संगीत सुनने से मरीजों में भय, नर्वसनेस और तनाव में कमी आती है। एक अध्ययन के दौरान 70 मरीजों को 350 सी डी में दर्ज तरह-तरह के गीतों के संकलन में से अपने पसंदीदा गीत चुनने को कहा गया। उन्हें उनका पसंदीद संगीत सुनाते हुये कीमोथिरेपी दी गयी। कीमोथिरेपी के पहले तथा बाद में कुछ सवाल पूछे गये।
ज्यादातर मरीजों ने क्लासिकल संगीत को चुना। मोजार्ट के संगीत को सबसे ज्यादा मरीजों ने चुना। अमरीकी चिकित्सक सुसान वेबर का कहना है कि संगीत में शरीर तथा मन पर असर डालने की ताकत होती है। संगीत दिल की धड़कन और श्वसन की दर के अलावा मस्तिष्क तथा पूरे शरीर को प्रभावित करता है।
उच्च रक्त चाप में संगीत
उच्च रक्त चाप के मरीजों के इलाज के लिये खास तरह का संगीत पैदा करने वाला एक उपकरण बनाया गया है। क्लिनिकल परीक्षणों में इस उपकरण को उच्च रक्त चाप को घटाने में कारगर पाया गया है। इस उपकरण को एक इजराइली फर्म ने विकसित किया है। यह उपकरण सबसे पहले मरीज के श्वसन के तौर-तरीके का विश्लेषण करता है। इसके आधार पर खास तरह के संगीत विकसित करता है जो मरीज के सामान्य श्वसन 14-18 श्वसन प्रतिमिनट से घटाकर श्वसन दर को दस श्वसन प्रति मिनट तक ले आता है।
भारत में संगीत चिकित्सा
भारत में दक्षिणी मुंबई स्थित एक अस्पताल और नागपुर के चिकित्सकों की एक टीम ने संगीत चिकित्सा के बारे में अलग-अलग प्रशंसनीय कार्य किये हैं। ड्यूटी के दौरान दिल के दौरे पड़ने के बढ़ रहे मामलों के मद्देनजर मुंबई पुलिस ने भी तनाव घटाने के लिये संगीत का इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया है। बड़ोदरा में किये गये अध्ययनों में पाया गया कि हिन्दुस्तानी शास्त्राीय संगीत अनेक तरह की समस्याओं को दूर करने में सहायक है। कुछ चुने हुये मरीजों पर किये गये प्रयोगों से पाया गया कि चार भारतीय शास्त्राीय राग शरीर, मन और आत्मा पर साकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
मुंबई के एक अस्पताल में दमा, डिपे्रशन, उच्च रक्त चाप और अनिद्रा के 80 मरीजों पर संगीत के प्रभाव का
अध्ययन किया गया। इन मरीजों को आधे घंटे के लिये अहीर भैरव(प्रातःकाल), भीमपलासी(अपराह्न काल), पुरिया (संध्याकाल) और दरबारी कान्हड़ा (रात) में सुनाया गया। इस शोध का नेतृत्व करने वाली निवेदिता मेहता ने इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी की बैठक में इस अध्ययन के निष्कर्ष की जानकारी दी। यह अध्ययन उस समय किया गया जब गोधरा के पास स्थित बडोदरा और अहमदाबाद साम्प्रदायिक हिंसा की आग में सुलग रहा था। चिकित्सकों का मानना है कि संगीत का उन्मादी लोगों पर भी साकारात्मक असर पड़ सकता है और उनके उन्माद को कम सकता हैं। गुजरात में हिन्दुस्तानी संगीत की एक समृद्ध परंपरा रही है जिसके विकास में दोनों समुदाय के लोगों का शानदार योगदान रहा है।
बनारस विश्वविद्यालय से संगीत चिकित्सा में डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले डा.एल पी एस करूणातिलक श्रीलंका में सितार से निकलने वाली ध्वनि की मदद से डिप्रेशन और तनाव के मरीजों का इलाज करते हैं। उन्होंने तनाव और डिप्रेशन से ग्रस्त 450 मरीजों पर अध्ययन किया। उन्होंने सितार से निकलने वाले 200 रागों और सुरों में से उन्होंने 20 को इन मरीजों के इलाज में उपयोगी पाया है।
चेन्नई स्थित अपोलो अस्पताल ने संगीत चिकित्सा पर एक साल का एक पाठ्यक्रम आरंभ किया है। नयी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के बाॅडी-मांइड क्लिनिक में आने वाले मरीजों के इलाज के लिये संगीत चिकित्सका का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस क्लिनिक के प्रमुख तथा वरिष्ठ होलिस्टिक चिकित्सा विशेषज्ञ डा. रविन्द्र कुमार तुली का कहना है कि मनोदैहिक रोगों से ग्रस्त लोगों पर संगीत का चमत्कारिक असर होता है। संगीत चयापचय (मेटाबाल्जिम) को तेज करता है, मांसपेशियों की ऊर्जा बढ़ता है, श्वसन को नियमित करता है तथा रक्त चाप एवं नाड़ियों के स्पंदन पर साकारात्मक प्रभाव डालता है।
संगीत चिकित्सा और हिन्दुस्तानी राग
भारतीय रागों से मरीजों का इलाज करने वाले मुंबई के आबकारी आयुक्त टी वी साईराम का कहना है कि डिमेंसिया, डिप्रेशन, अनिंद्रा, मैनिया, दर्द, बेचैनी, तनाव और न्यूरोसिस जैसी मन-मस्तिष्क से जुडी बीमारियों का संगीत के जरिये उपचार किया जा सकता है। नये अध्ययनों ने भी श्री साईराम की इस धारणा की पुष्टि की है। कर्नाटक और हिन्दुस्तानी संगीत के मर्मज्ञ मस्तिष्क को राहत प्रदान करने में रागों के असर से वाकिफ हैं। प्राचीन वैद्य का मानना था कि तनाव खास तौर पर हीस्टिरिया के दौरान होने वाले तनाव को दूर करने में दरबारी, कान्हड़ा, खमाज और पूरिया जैसे राग मददगार साबित होते हैं।
संगीत चिकित्सा से उच्च रक्त चाप के इलाज में काफी लाभ मिलता है। उच्च रक्त चाप के मरीजों के लिये अहीर भैरव और तोडी जैसे रागों को सुनने की सलाह दी जाती है जबकि निम्न रक्त चाप के मरीजों को मालकौन जैसे नारी राग से फायदा होता है क्योंकि माना जाता है कि इसमें सुपरनेचुरल ऊर्जा निहित होती है।
श्री साइराम के अनुसार गुस्से और हिंसक भावना पर सहाना जैसे कर्नाटक रागों की मदद काबू पाया जा सकता है। हिन्दुस्तानी रागों की मदद से पेट की समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। अम्लता की स्थिति में राग दीपक, कब्ज की स्थिति में गुनाकली और जौनपुरी, गंभीर दमा होने पर मिंया की मल्हार और दरबारी कनाडा, साइनस में भैरवी, सिरदर्द और एंग्जाइटी होने पर तोड़ी और पूरबी तथा नींद संबंधी समस्याओं के लिये काफी थाट और खमाज राग का इस्तेमाल किया जाता है।
मलेरिया जैसे उच्च ज्वर को हिंडोल और मारवा रागों की मदद से और सिर दर्द को दरबारी कान्हड़ा, जयजयवंती अथवा सोहन रागों से दूर किया जा सकता है। अनिंदा के शिकार मरीजों को बागेश्री और दरबारी रागों की मदद से गहरी नींद में सुलाया जा सकता है।
किराना घराना के प्रमुख गायक पंडित ए खान का कहना है कि संगीत चिकित्सा का वांछित असर तभी होता है जब उच्चकोटि के संगीत का इस्तेमाल किया जाये। चेन्नई के राग अनुसंधान केन्द्र और मैसूर के स्वामी गणपति सच्चिदानंद आश्रम में किये गये अनेक अध्ययनों के आधार पर पंडित खान ने दावा किया है कि संगीत अंतःस्राव प्रणाली (इंडोक्राइन सिस्टम) की प्रमुख ग्रंथि- पिट्यूटरी ग्रंथि को स्पंदित करता है। आज जब रेकी, योगा और ध्यान जैसी गैर परम्परागत चिकित्सा पद्धतियां लोकप्रिय हो रही है वैसे में आने में समय में चिकित्सा के क्षेत्रा में संगीत के एक खास स्थान ग्रहन करने की संभावना बन गयी है।
संगीत सुनने के दस सूत्र
0 दिमाग से नहीं दिल से संगीत सुनें।
0 संगीत का आनंद लें, उसका विश्लेषण करने नहीं बैठ जायें।
0 दिल में चार बार उच्च स्तरीय संगीत सुनें।
0 संगीत सुनते हुये भोजन करने, ड्राइविंग, भोजन बनाने और स्नान करने जैसे कामों को आनंददायक बनायें।
0 खाली पेट संगीत नहीं सुने
0 संगीत सुनने के समय गुनगुनायें, इससे संगीत सुनने के आनंद को दोगुना हो जायेगा।
0 बच्चों में संगीत सुनने की आदत डालें।
0 मरीज के पास मधुर एवं सुरीला संगीत बजाये। तेज संगीत बजाने से बचें।
0 घर में समृद्ध संगीत लाइब्रेरी बनायें।