रोजाना दो-तीन कप काॅफी पीने से महिलाओं में स्तन कैंसर होने का खतरा या तो कम हो सकता है या कैंसर की शुरुआत में देरी हो सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि महिला के कुछ जीनों में कितना रूपांतरण हुआ है।
स्वीडन में लुंड यूनिवर्सिटी और माल्मो यूनिवर्सिटी द्वारा हाल में किये गये अनुसंधान में काॅफी के प्रभाव का संबंध मादा सेक्स हार्मोन इस्ट्रोजन से पाया गया है। इन हार्मोनों के कुछ मेटाबोलिक उत्पाद कैंसरजन्य समझे जाते हैं और काॅफी के विभिन्न अवयव मेटाबोलिज्म में परिवर्तन कर सकते हैं जिससे कोई महिला विभिन्न इस्ट्रोजन्स के बेहतर विन्यास को पा सकती है। काॅफी में कैफीन होता है। कैफीन भी कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोक देता है।
कैंसर अनुसंधानकर्ता हेलेना जर्नस्ट्रोम और उनकी सहयोगियों ने लुंड में इलाज करा रही स्तन कैंसर के करीब 460 रोगियों की काॅफी पीने की आदतों का अध्ययन किया। इससे पता चला कि काॅफी का प्रभाव महिला में पाये जाने वाले सी वाई पी 1 ए 2 नामक जीन के रूपांतरण पर निर्भर करती है जो इस्ट्रोजन और काॅफी दोनों को मेटाबोलाइज करने वाले एक एंजाइम के लिए कोड करता है। इनमें से आधी महिलाओं में ए/ए नामक रूपांतरण था जबकि अन्य महिलाओं में या तो ए/सी या सी/सी था।
कैंसर इपिडेमियोलाॅजी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन रिपोर्ट में हेलेना जर्नस्ट्रोम ने कहा है कि जिन महिलाओं में सी रूपांतरण में से एक था और उन्होंने रोजाना कम से कम तीन कप काॅफी पी उनमें उन महिलाओं की तुलना में जिनमें ए/ए रूपांतरण था और उन्होंने भी इतनी ही काॅफी पी थी, की तुलना में स्तन कैंसर बहुत कम विकसित हुआ। उनमें कैसर का खतरा अन्य महिलाओं की तुलना में सिर्फ दो-तिहाई ही था।
जिन ए/ए महिलाओं ने रोजाना दो या अधिक कप काॅफी पी थी उन्हें काॅफी पीने से अधिक संदेहास्पद फायदा हुआ। जबकि दूसरी तरफ 48 साल की बजाय 58 साल की उम्र तक कभी-कभार या कभी भी काॅफी नहीं पीने वाली और रजोनिवृत्ति के लक्षणों के लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थिरेपी भी नहीं लेने वाली महिलाओं, की तुलना में उनका कैंसर देर से प्रकट हुआ। दूसरी तरफ 15 प्रतिशत इन महिलाओं में एस्ट्रोजन इनसेंसिटिव (ई आर निगेटिव) ट्यूमर था जिसका इलाज करना अधिक मुश्किल था।
अधिकतर महिलाओं में फिर भी इस्ट्रोजन सेंसिटिव और तेजी से इलाज किये जाने वाले ट्यमर थे। जिन महिलाओं में अधिक उम्र में स्तन कैंसर विकसित हुआ था उनमें कम उम्र में स्तन कैंसर विकसित होने वाली महिलाओं की तुलना में अच्छी प्रगति हुई। हालांकि उन्हें जल्द ही काॅफी पीने के साथ-साथ आहार संबंधित सलाह भी दी गयी।
हेलेना जर्नस्ट्रोम के अनुसार किसी अंतिम निकर्ष पर पहुंचने से पहले इस पर अभी और अध्ययन करने की जरूरत है। यदि वास्तव में काॅफी स्तन कैंसर से कुछ सुरक्षा प्रदान करती है तो स्वीडन जैसे काॅफी का अधिक सेवन करने वाले देश में अन्य देशों की तुलना में कैंसर के बहुत मामले होने चाहिए। इसकी तुलना कम से कम अमरीका से की जानी चाहिए जहां स्तन कैसंर के काफी अधिक मामले सामने आते हैं और जहां लोग कैफीन रहित और कम कैफीन वाले काॅफी पीते हैं।
भारत में स्तन कैंसर का बढ़ता प्रकोप
महिलायें अपने रूप पर मुग्ध होते हुये दर्पण के समक्ष अपना काफी समय व्यतीत करती हैं लेकिन यह जानने के लिये अपने स्तन की निगरानी करने के लिये कुछ मिनट का भी समय लगाना भी गवारा नहीं करती कि उनके स्तन पर, उसके आसपास या कांख के क्षेत्र में कोई गांठ या सूजन अथवा स्तन कैंसर का कोई अन्य चिन्ह तो नहीं है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई सी एम आर) के एक ताजा आंकड़े से पता चलता है कि भारत में महानगरों में महिलाओं में स्तन कैंसर का प्रकोप सबसे अधिक है और हर 22 भारतीय महिलाओं में से एक को उनके जीवन काल में स्तन कैंसर होने की आशंका होती है।
हमारे आधुनिक विश्व से होने वाले सभी आयातों में स्तन कैंसर की सबसे अधिक संदिग्ध स्थिति है। कभी अमीरों का रोग समझे जाने वाले स्तन कैंसर के प्रकोप ने आज विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया है। मेडिकल कैंसर विषेशज्ञों का माानना है कि वे भारत में हर औसतन साल स्तन कैंसर के 80 हजार नये मरीजों को देखते हैं। एक अनुमान के अनुसार गत वर्ष विश्व भर में स्तन कैंसर के 13 लाख नये मामलों का पता चला।
कैंसर विशेषज्ञ डा. सिद्धार्थ साहनी का कहना है, ''स्तन कैंसर हमारी आधुनिक जीवन शैली की ही देन है। शारीरिक व्यायाम नहीं करने, मोटापा, रक्त शर्करा, मधुमेह, देर से बच्चा पैदा होने, स्तनपान नहीं कराने के साथ-साथ कैंसर, यौन शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव आपको स्तन कैंसर की ओर प्रवृत्त कर सकते हैं।''
देशों का जितना अधिक आधुनिकीरण होगा, उतना ही अधिक महिलाओं में स्थूल तरीके से कार्य करने, देर से बच्चे पैदा करने, अपने प्रजनन जीवन को नियंत्रित करने तथा पश्चिमी खाद्य पदार्थों का सेवन करने की प्रवृति बढ़ेगी। इन कारणों के अलावा भविष्य में महिलाओं के जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होने के कारण भी स्तर कैंसर के प्रकोप की दर में निःसंदेह वृद्धि होगी। यह जरूरी है कि महिलाओं में स्तन कैंसर के खतरे के प्रति जागरुकता बढ़ने के साथ-साथ स्तन कैंसर की पहचान एवं उसके उपचार के संबंध में सरकार और चिकित्सक समुदाय के अपेक्षाओं में भी वृद्धि हो।
डा. साहनी का कहना है, ''स्तन कैंसर शुरुआती अवस्था में दर्द पैदा नहीं करता है, लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ता है वैसे-वैसे परिवर्तन पैदा करता है जिन्हें जल्द पहचाना जा सकता है। हर महिला के लिये जरूरी है कि वे स्तन कैंसर को जल्द से जल्द पहचानने के तरीकों पर अमल करें।'' ''समय पर इलाज कराने के फायदे हैं और यह नियम स्तन कैंसर में भी लागू होता है।''
डा. साहनी बताते हैं, ''स्तन कैंसर का इलाज किया जा सकता है और इसे ठीक किया जा सकता है खास कर तब जब स्तन की स्वयं जांच (बी एस ई) और चिकित्सक द्वारा स्तन की क्लिनिकल जांच (सी बी ई) जैसे स्तन कैंसर की शीघ्र पहचान के तरीकों के जरिये इसे समय रहते ही पता लगा लिया जाये। स्तन कैंसर की पहचान जितनी जल्दी होगी, इसे खत्म करने की संभावना भी उतना ही अधिक होगी। मैमोग्राफी लाभदायक है और 40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार या दो साल में एक बार मैमोग्राफी कराने की सलाह जाती है। 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए यह और भी लाभदायक है क्योंकि तब स्तन का घनत्व कम हो जाता है और धब्बों की पहचान अधिक आसानी से होती है।
स्तन कैंसर को अक्सर पारिवार का रोग माना गया है लेकिन इसका अर्थ यह नही है कि जिस परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास नहीं है उस परिवार की महिलाएं इससे सुरक्षित हैं। पारिवारिक कारणों से 20 से 30 प्रतिशत महिलाओं में ही स्तन कैंसर होता है जबकि 70 प्रतिशत से अधिक रोगियों में वैसी महिलाएं होती हैं जिनके परिवार में कैंसर का कोई इतिहास नहीं होता है।
हाल के वर्षों में, स्तन कैंसर के इलाज के लिये जीवन रक्षक उपचार तकनीकों में क्रांतिकारी विकास हुया है जिससे नयी उम्मीद एवं उत्साह का सृजन हुआ है। एक या दो विकल्पों के बजाय आज इलाज के ऐसे अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जिनकी मदद से हर महिला में स्तन कैंसर की विषिश्ट तरह की कोशिकाओं से लड़ा जा सकता है। डा. साहनी कहते हैं, ''स्तन कैंसर का इलाज कैंसर की स्थिति पर निर्भर करता है। हर महिला की स्थिति एवं उनके कैंसर का स्तर अलग होता है। उपचार की जो विधि किसी एक महिला के अनुकूल है वह दूसरी महिला के लिये अनुकूल नहीं होता है।''
विशेषज्ञों के अनुसार सर्जरी और उसके बाद संभवतः रेडिएशन, हारमोनल (एंटी-इस्ट्रोजेन) थिरेपी और/अथवा कीमोथिरेपी जैसे निर्णयों का स्तन कैंसर के उपचार में गहरा असर होता है।
यह अक्सर देखा जाता है कि स्तर कैंसर के बाद जीवित बचने वाली मरीज वह जीवन नहीं जी पाती है जो उसने कैंसर का पता चलने से पहले जीया था। ये महिलायें इस आशंका को लेकर जीती हैं कि कहीं फिर से कैंसर नहीं हो जाये। यही नहीं उन्हें हृदय रोग होने के खतरे तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी एवं जोड़ों में दर्द जैसे कैंसर के उपचार के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। विशेष हारमोन थिरेपियों के कारण उन्हें इंडोमेट्रायल कैंसर होने का अधिक खतरा होता है।
चिकित्सकों का अनुमान है कि कैंसर पीड़ित 20 महिलाओं में से से एक (पांच प्रतिशत) महिला में जब तक स्तन कैंसर का पता चलता है तब तक कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल चुका होता है। यह अक्सर देखा जाता है कि इनमें से हर पांच महिलाओं में से एक महिला (पांच प्रतिशत) कैंसर का पता चलने के बाद कम से कम पांच साल तक तथा 25 महिलाओं में से एक महिला (चार प्रतिशत) दस साल से अधिक समय तक जीती हैं।