स्लिमिंग पिल्स की मोहपाश में फंसती आधुनिक युवतियां

रेखा अपने मोटापे को लेकर बहुत परेशान रहती थी। हालांकि वास्तव में वह मोटी नहीं थी, लेकिन वह आजकल की दुबली-पतली अभिनेत्रियों और मॉडलों की देखादेखी उन्हीं की तरह छरहरा बनना चाहती थी। वह एक प्राइवेट संस्थान में अधिकारी के रूप में कार्यरत थी। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। उसे घर और बाहर के कामों में दिन-भर व्यस्त रहना पड़ता था। उसके पास व्यायाम करने के लिए समय ही नहीं था। उसे लगता था कि व्यायाम नहीं करने के कारण वह मोटी होती जा रही है। उसकी एक सहेली ने उसे स्लिमिंग पिल्स (छरहरा होने की दवा) लेने की सलाह दी और शिखा ने स्लिमिंग पिल्स लेना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में शिखा का वजन तो कम हो गया, लेकिन वह कई बीमारियों से घिर गई। उसे चक्कर आने लगे, उसके हृदय की धड़कन भी अक्सर तेज हो जाती थी और हर समय थकावट महसूस होने लगी। इसके अलावा वह अनिद्रा और अवसाद (डिप्रेशन) का भी शिकार हो गयी। आज वह अपना इलाज एक मनोचिकित्सक से करा रही है।


शिखा की तरह आज अनेक युवतियां छरहरा बनने और सुंदर दिखने की चक्कर में छरहरा बनाने के नाम पर बेची जाने वाली दवाइयां या भूख कम करने वाली दवाइयां खाना आरंभ कर देती हैं।


चिकित्सकों के अनुसार ऐसी दवाइयां मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस में स्थित भूख को नियंत्रित करने वाले केन्द्र को प्रभावित करती हैं जिससे व्यक्ति की खाने की इच्छा कम हो जाती है और कम खाने के कारण व्यक्ति का वजंन कम होने लगता है। लेकिन इसके साथ ही कई बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं जिनमें थकावट, हदय की धड़कन का बढ़ जाना, अनिद्रा, कब्ज, डायरिया, जी मिचलाना, अवसाद(डिप्रेशन), आलस्य, कामेच्छा में कमी, चिड़चिड़ाहट, रक्त चाप में कमी या वद्धि, चेहरे में सूजन, यौन संबंधों में ठंडापन एवं बांझपन, दृष्टि भ्रम, मिजाज में अचानक परिवर्तन आदि मुख्य हैं। उच्च रक्त चाप, मिर्गी या मानसिक रोग से ग्रस्त लड़कियों पर इन दवाइयों के सेवन के बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ते हैं। कुछ किस्म की स्लिमिंग पिल्स में नशे के अवयव भी होते हैं जिससे उनका सेवन करने वाली लड़कियों को इसकी लत लग जाती है और वे इन दवाइयों पर पूरी तरह से निर्भर हो जाती हैं।


चिकित्सकों का कहना है कि कोई व्यक्ति जब तक स्लिमिंग पिल्स लेता है, उसका वजन कम होता रहता है, लेकिन दवा का सेवन बंद कर देने पर उसका वजन पहले से भी अधिक हो जाता है क्योंकि दवा बंद करते ही उसकी भूख बढ़ जाती है और वह अधिक खाने लगता है। अगर कोई व्यक्ति बचपन से ही अपौष्टिक आहार ले रहा हो और अपना वजन कम करने के लिए स्लिमिंग पिल्स लेना शुरू कर दे तो कम खाने के कारण उसके शरीर में अनिवार्य पोषक तत्वों की कमी हो जाएगी और वह कुपोषण का शिकार हो जाएगा।


आजकल लड़कियों में छरहरा बनने की बढ़ती होड़ का फायदा उठाते हुये बड़े शहरों यहां तक कि कस्बों में वजन घटाने और छरहरा बनाने का दावा करने वाली स्लिमिंग क्लिनिकों की भरमार हो गयी है। लेकिन कई बार ऐसे क्लिनिक लड़कियों को छरहरा तो नहीं बनाते उन्हें अनेक बीमारियों से पीड़ित अवश्य कर सकते हैैं। ऐसे ज्यादातर क्लिनिकों में सुप्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ भी नहीं होते जबकि इनका होना अत्यन्त आवश्यक होता है ताकि वेे बता सकें कि स्लिमिंग पिल्स से वजन कम करने के दौरान किस तरह के खाद्य पदार्थ लेने चाहिए ताकि कम खाने के बावजूद व्यक्ति पर अधिक दुष्प्रभाव नहीं हो। स्लिमिंग पिल्स लेने से पहले व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक जांच भी जरूरी है। अगर व्यक्ति को कोई ऐसी बीमारी हो जिसमें स्लिमिंग पिल्स लेने पर बीमारी के बढ़ने या कोई अन्य बीमारी होने का खतरा हो तो ऐसी हालत में स्लिमिंग पिल्स लेने की सलाह नहीं देनी चाहिए।


कुछ स्लिमिंग क्लिनिकों में मोटापा कम करने के लिए भूख को दबाने वाली दवा के साथ डाइयूरेटिक्स (मूत्रवर्द्धक) भी दी जाती है जिसके सेवन से व्यक्ति को वजन कम होने का भ्रम हो जाता है। डाइयूरेटिक्स लेने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है और रक्त में रासायनिक असंतुलन हो जाता है खासकर पोटाशियम की कमी हो जाती है जिससे कमजोरी, भ्रान्ति और हृदय की धड़कन तेज हो जाती है। इसके सेवन से रक्त में थक्का बनने और थ्रोम्बोसिस होने की संभावना बढ़ जाती है। कई अनुसंधानों से पता चला है कि शरीर के वसा को कम करने में डाइयूरेटिक्स की कोई भूमिका नहीं है और भूख को कम करने वाली दवाइयों का प्रभाव भी दो हफ्ते के बाद नहीं के बराबर रह जाता है। मोटापा कम करने के लिए कुछ स्लिमिंग क्लिनिकों में लैक्जेटिव्स दवाइयां दी जाती हैं जिसके सेवन से रक्त में रासायनिक असंतुलन, डायरिया, पेट में ऐंठन, पेट में गैस बनना, भोजन से विटामिन का ठीक तरह से अवशोषण नहीं हो पाना और इस दवा पर निर्भरता जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जबकि वजन को कम करने में इस दवा का भी कोई महत्व नहीं है।