मानवता एन्थ्रोपोसेन युग में प्रवेश कर चूकी है और यह इतिहास के सबसे बड़े शहरीकरण के मध्य में है एशिया और अफ्रीका सबसे तेजी से बढ़ते शहरीकरण वाले महाद्वीप है। इसके अलावा, मानव निर्मित गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य के पैटर्न में बदलाव हो रहा है और बीमारियों उभर रही है। संचारी और गैर-संचारी रोगों का पारंपरिक दोहरा बोझ सड़क दुर्घटनाओं के चलते होने वाली विकलांगता के कारण तीन गुना हो गया है।
2007 में, हम एक ऐसी दहलीज पर पहुंच गए जहां विश्व की 50ः प्रतिषत आबादी शहरों में रहने लगी है। यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक आबादी का 70ः प्रतिशत हिस्सा शहरों में रहने वाले लोगों का होगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट पैथोलॉजी, नई दिल्ली में बायोटेक्नोलॉजी विभाग की प्रमुख एवं सीनियर प्रोफेसर इंदिरा नाथ ने शांति स्वरूप भटनागर पदक व्याख्यान में बताया कि जलवायु परिवर्तनों के साथ तेजी से होने वाले शहरीकरण ने सभी देशों के लिए चुनौतियों को पेश किया है, लेकिन अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह अधिक है। संघर्षों और ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में होने वाले आंतरिक प्रवास के कारण शरणार्थियों का विस्थापन हुआ है और इसने अतिरिक्त समस्याएं खड़ी की है।
अनौपचारिक बस्तियां शहरों के लिए श्रमिक प्रदान करती हैं, लेकिन खराब बुनियादी ढांचे और लोगों के अधिक घनत्व के कारण बीमारियों भी पैदा करती हैं। शहरीकरण के कारण 'गर्म द्वीपों' का भी विकास होता है जिसके कारण वेक्टरों के व्यवहार बदलते हैं और इस तरह संक्रामक रोगों का भी व्यवहार बदलता है। जहां मलेरिया साफ पानी में पनपती है और गर्म क्षेत्रों में इसमें कमी आती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। चिकनगुनिया और डेंगू पैदा करने वाले मच्छर गर्म क्षेत्रों और वाटर कूलर, खाली खाली बर्तनों, टायरों आदि में स्थिर पानी में पनपते हैं। स्वच्छता की कमी के कारण होने वाला हैजा शहरी क्षेत्रों में दूसरी बड़ी समस्या है। खराब शहर योजना के कारण शहरों में बाढ़ के कारण जल जनित बीमारियां बढ़ती हैं। विस्थापन के कारण वैसी बीमारियों भी फैलती है जो स्थानीय स्तर पर नहीं होती है। जीवन शैली की बीमारियां -ं जैसे हृदय संबंधी बीमारियां, मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप भी शहरी जीवन से जुडी हुई होती है।
शहरों के प्रबंधन और स्वास्थ्य और बेहतरी के लिए सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एकीकृत ट्रांस विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और इसे अलग-थलग होकर नहीं किया जा सकता है। निर्णय निर्माताओं को समग्र सलाह प्रदान करने की आवश्यकता है। एक व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता है क्योंकि शहर में एक एकीकृत जैविक संरचना होती है। इस प्रकार कई एजेंसियों और विशेषज्ञों द्वारा प्रदत्त प्रासंगिक डेटा के साथ नीतियां बनाई जा सकती है और जागरूक निर्णय किया जा सकता है। नीति निर्माताओं को विशेषज्ञों, डॉक्टरों, शहर योजनाकारों के साथ-साथ नागरिक समाज के सदस्यों के साथ बातचीत करने की जरूरत है। अग देष में स्वास्थ्य की स्थिति गंभीरता के साथ प्रभावित होगी तो देश की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी। इस प्रकार एंथ्रोपोसिन युग की शहरी दुनिया में स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिए विश्वसनीय डेटा के साथ प्रणालीगत मुद्दों का विश्लेषण आवश्यक है।
शहरी लोगों के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव : वैज्ञानिक दृष्टिकोण
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