भारत में बचपन में होने वाले निमोनिया के खिलाफ प्रभावी प्रयत्नों की शुरुआत के तहत सेव द चिल्ड्रन ने भारत में निमोनिया के परिस्थिति का विश्लेषण रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। रिपोर्ट का विमोचन केंद्रीय मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त डॉ. अजय खेरा द्वारा दिल्ली में किया गया, जिसमें पांच उच्च भार वाले राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार. मध्य प्रदेश. झारखंड, राजस्थान का गहराई से मूल्यांकन, चुनौतियों के बारे में पहचान और कार्रवाई करने के लिए आह्वान किया गया है।
इस अवसर पर डॉ. अजय खेरा, आयुक्त, मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत सरकार की योजना लक्ष्य (लेबर रूम क्वालिटी इंप्रूवमेंट इनिशिएटिव गाइडलाइन) के बारे में बताया और समझाया किस तरह ये जन्म के समय देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए केंद्रित है जिसमें आशा महिला कर्मचारियों को सुसज्जित करना और महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्रों में एकत्रित करना शामिल है।
उन्होंने आगे कहा, स्वास्थ्य प्रणाली में स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र नए तौर पर जुड़ा है, जो जमीनी तौर पर लोगों तक पहुंचने में मदद करेगासरकार ने बचपन में होने वाली मातृत्व से निपटने के लिए वाकई महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है और इस उद्देश्य के लिए परी तरह प्रतिबद्ध हैसेव द चिल्ड्रन के डायरेक्टर प्रोग्राम्स अनिंदित रॉय चौधरी ने कहा, बच्चों में आज भी निमोनिया मौत का सबसे प्रमुख कारण है और भारत में 51 साल के कम उम्र के बच्चों में इसकीदर 14.3 फीसदी है, जिसका मतलब हैप्रत्येक 4 मिनट में एक बच्चे की मौत। पूरे विश्व में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की निमोनिया से होने वालीमौतों में भारत का आंकड़ा 17 फीसदी है। बचपन में होने वाले निमोनिया कीसमस्या से निपटना सेव द चिल्ड्रन के शताब्दी वर्ष की तीन प्रतिबद्धताओं मेंसे एक है और हम रोके जा सकने वाली निमोनिया मौतों को खत्म करने के लिए। प्रतिबद्ध है। ये मौजूदा रिपोर्ट जिसका शीर्षक है भारत में साँस के लिए संघर्ष जिसे हम प्रकाशित कर रहे हैं इसीप्रतिबद्धता की ओर बढ़ाया गया कदम है।
रिपोर्ट के प्रमख निष्कर्षों से खुलासा होता है कि : 5 साल सेकम उम्र के बच्चों में अध्ययन किए। गए 5 राज्यों में कुल मिलाकर एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (एआरआई) काप्रचलन दर 13.4 फीसदी रहा। जहां एक ओर बिहार में प्रचलन दर सबसेज्यादा (18.2 फीसदी) रहा उसके बाद यूपी (15.9 फीसदी), झारखंड (12.8 फीसदी), मध्य प्रदेश (11.61 फीसदी) और वहीं राजस्थान मेंसबसे कम प्रचलन दर (8.41 फीसदी) दर्ज किया गया। बचपन में होने वाले निमोनियाके लिए घर में वायु प्रदूषण जोखिम का एक महत्वपूर्ण कारक है। जिन घरों में खाना बनाने के लिए एलपीजी जैसे सुधारित ईंधन का इस्तेमालहोता है उसका बचावात्मक प्रभाव देखा गया है।