सेल्फी आत्मविश्वास घटाती है और रूप-रंग को लेकर एंग्जाइटी को बढ़ाती है 

सेल्फी लेना और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना आज के समय में फैशन बन चुका है लेकिन एक ताजा अध्ययन के निष्कर्ष आपको सेल्फी के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर देंगे। अगर आप अपनी सेल्फी लेने जा रहे हैं तो इससे पहले दो बार सोचें! आज सेल्फी शब्द काफी बदनाम हो चुका है क्योंकि अपने फोन के कैमरे से सेल्फी लेने के दौरान कई दुर्घटनाएं हो चुकी है और सेल्फी लेने के चक्कर में कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं। लेकिन एक ताजा अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि सेल्फी लेने की प्रवृति का बहुत ही विनाशकारी मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है जिसके कारण सेल्फी लेने वाले अधिक चिंतित महसूस करते हैं, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और वे शारीरिक आकर्षक में कमी महसूस करते हैं। सेल्फी लेने वाले कई लोगों में अपने रूप-रंग को लेकर हीन भावना इस कदर बढ़ जाती है कि वे अपने रूप-रंग और चेहरे में बदलाव के लिए काॅस्मेटिक सर्जरी कराने के लिए प्रेरित होते हैं। यह निष्कर्ष एस्थेटिक क्लिनिक्स की ओर से किए गए एक अध्ययन का है जिसके तहत उन 300 लोगों पर अध्ययन किया गया जो  कॉस्मेटिक सर्जरी कराने के लिए कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद स्थित एस्थेटिक क्लिनिक गए। 
इस अध्ययन में पाया गया कि किसी फिल्टर का उपयोग किए बिना सेल्फी पोस्ट करने वाले लोगों में चिंता में उल्लेखनीय वृद्धि और आत्मविश्वास में कमी देखी जाती है। जो लोग सेल्फी में सुधार किए बिना या सुधार करके भी सेल्फी पोस्ट करते हैं उनमें शारीरिक आकर्षण को लेकर उनकी भावना में उल्लेखनीय कमी देखी गयी। आम तौर पर सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के परिणाम स्वरूप मूड में गिरावट होती है और खुद की छवि को लेकर व्यक्ति की भावना में कमी आती है। जो लोग सोशल मीडिया पर अपनी सेल्फी को पोस्ट करने से पहले दोबारा सेल्फी लेते हैं या उन्हें सुधार करते हैं वे भी मूड में कमी एवं एंग्जाइटी महसूस करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि सेल्फी पोस्ट करने वाले अधिकांश लोग अपने लुक को बदलने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी और प्रक्रियाओं से गुजरना चाहते हैं। 
औसतन 16-25 वर्ष के बीच के पुरुष और महिलाएं प्रति सप्ताह 5 घंटे तक सेल्फी लेते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत प्रोफाइल पर अपलोड करते हैं। इस अध्ययन के निष्कर्षों को मानसिक स्वास्थ्य समस्यों की रोकथाम और उनके उपचार के लिए उपयोग किया जा सकता है। ये निष्कर्ष सोशल मीडिया और सेहत को लेकर महत्वपूर्ण चिंता पैदा करते हैं। 
प्रसिद्ध फेसियल काॅस्मेटिक सर्जन तथा एस्थेटिक क्लिनिक्स के निदेशक डॉ. देबराज शोम ने कहा, ''चार शहरों में किए गए अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में पाया गया कि सेल्फी लेने, उन्हें बदलने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की प्रक्रिया आत्मसम्मान और अपने शरीर को लेकर व्यक्ति की धारणा को नाकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और अपने शरीर को लेकर हीन भावना को बढ़ाती है। सेल्फी लेने और उन्हें पोस्ट करने का नाकारात्मक प्रभाव शारीरिक आकर्षण को लेकर मूड एवं भावनाओं पर पड़ता है। अध्ययन में पाया गया कि मरीजों ने सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद अधिक चिंतित, आत्मविश्वास में कमी और शारीरिक रूप से आकर्षक में कमी महसूस किया। यही नहीं, जब मरीजों ने अपनी सेल्फी बार- बार ली तथा अपनी सेल्फी में बदलाव की तो सेल्फी के हानिकारक प्रभाव को महसूस किया। हमने पाया कि सेल्फी लेने तथा उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की प्रक्रिया अपने रूप-रंग को लेकर हीन भावना को बढ़ाती है तथा काॅस्मेटिक सर्जरी एवं काॅस्मेटिक प्रक्रियाओं के जरिए अपने लुक में बदलाव लाने की तीव्र इच्छा को बढ़ाती है।''
कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजिस्ट और द एस्थेटिक क्लीनिक्स की सह-संस्थापक डॉ. रिंकी कपूर ने कहा, ''सोशल मीडिया इंटरैक्शन अब बिल्कुल सामान्य हो गए हैं। फोन को बेचने में कैमरे की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। यह बात अब हर किसी को पता है कि सेल्फी लेने से व्यक्ति के जीवन और अंगों के लिए खतरा बढ़ जाता है। सैकड़ों लोगों की मौत सेल्फी लेते समय गिरने से हुई या वे घायल हो चुके हैं। इस अध्ययन में पहली बार देखा गया है कि सेल्फी का किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इसका दुष्प्रभाव उन लोगों पर अधिक पड़ता है जिनमें आत्म विश्वास की कमी होती है और जो अपनी शर्म और सामाजिक एंग्जाइटी को कम करने के लिए सार्वजनिक रूप से लोगों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं। हम सेल्फी लेने के एक भी अच्छे पहलू का पता नहीं लगा सकतेे हैं, और हम सरकार से दृढ़ता से अनुरोध करते हैं कि सरकार मोबाइल फोन में फ्रंट-फेसिंग कैमरों पर प्रतिबंध लगाने पर गंभीरता से विचार करे। लोगों को सेल्फी लेने से हतोत्साहित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।''
डॉ. देबराज शोम ने कहा, ''सोशल मीडिया पर सेल्फी पोस्ट करने से युवा महिलाओं और पुरुषों की आत्म-छवि और मनोदशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनके खान-पान के तौर-तरीकों में भी बदलाव आ सकता है, उनके मूड में उतार-चढ़ाव और एंग्जाइटी डिसआर्डर से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है। बार-बार सेल्फी लेने को बॉडी चेकिंग बिहेवियर माना जा सकता है, जैसे बार-बार अपना वजन लेना और दर्पण में अपने शरीर को बार- बार चेक करना। इसे मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से एक जोखिम भरा ऑनलाइन स्वास्थ्य-संबंधी व्यवहार माना जाना चाहिए, क्योंकि इससे वजन और अपने शरीर के आकार को लेकर असंतोष बढ़ता है।''
इस अध्ययन में लोगों पर सेल्फी के नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव सबसे अधिक दिल्ली के लोगों में पाए गए, उसके बाद मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता के पुरुषों और महिलाओं दोनों में देखे गए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी सेल्फी पोस्ट करने के बाद लोगों के व्यवहार को देखने वाले पूरे देष में किये गये इस अध्ययन में, 60 प्रतिषत पुरुषों और 65 प्रतिषत महिलाओं में एंग्जाइटी में वृद्धि देखी गयी। इस अध्ययन में शामिल सभी लोगों में से, 61 प्रतिशत पुरुषों और 70 प्रतिशत महिलाओं ने अपनी सेल्फी पोस्ट करने के बाद आत्मविश्वास में कमी पायी। यही नहीं, इस अध्ययन में शामिल 61 प्रतिशत पुरुषों और 67 प्रतिशत महिलाओं में शारीरिक आकर्षण को लेकर भी अपनी भावनाओं में उल्लेखनीय कमी आई, जिसके कारण 62 प्रतिशत पुरुषों और 65 प्रतिशत महिलाओं में कॉस्मेटिक सर्जरी से खुद के शरीर में बदलाव कराने की इच्छा पैदा हुई। 
दिल्ली में, 68 प्रतिशत पुरुषों और 82 प्रतिशत महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपनी सेल्फी पोस्ट करने के बाद अपनी एंग्जाइटी के स्तर में वृद्धि देखी, और 71 प्रतिशत पुरुषों और 80 प्रतिशत महिलाओं ने आत्मविश्वास में कमी पायी। शारीरिक आकर्षण को लेकर उनकी भावनाओं ने भी गिरावट दर्ज की गई और 76 प्रतिशत पुरुष और 77 प्रतिशत महिलाएं अपने लुक से असंतुष्ट थीं। इससे कारण दिल्ली में 64 प्रतिशत पुरुषों और 77 प्रतिशत महिलाओं में कॉस्मेटिक सर्जरी से अपने लुक में बदलाव लाने की इच्छा पैदा हुई।
डा. देबराज शोम ने कहा, ''शरीर को लेकर बहुत अधिक असंतोष खानपान संबंधी विकारों के होने का प्रमुख कारण है और इसका संबंध हीन भावना तथा डिप्रेशन से है। सोशल मीडिया पर बहुत अधिक सक्रिय रहने से किसी व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने या खत्म करने के लिए चिकित्सकीय हस्तक्षेप की जरूरत इस अध्ययन से रेखांकित होती है।'' 


डॉ. देवराज शोम और डॉ. रिंकी कपूर एस्थेटिक क्लीनिक के संस्थापक हैं। डा. देबराज शोम ने प्लास्टिक सर्जरी और डा. रिंकी कपूर ने कॉस्मेटिक त्वचाविज्ञान के क्षेत्र में अपार योगदान दिया है। इन्होंने अनेक हेल्थकेयर प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी बदलाव लाया है और भारत तथा विदेशों के लोगों के लिए अत्याधुनिक उपचार को सुलभ बनाया है।