आगरा के विशंभर अग्रवाल पिछले कई वर्षों से सिर दर्द और नजर में कमजोरी से परेशान थे। उन्होंने नेत्र विशेषज्ञ से आंखों की जांच कराकर चश्मा लिया। चश्मे से भी कोई फायदा नजर नहीं आने पर उन्होंने सिर दर्द की दवाइयां खायी। लेकिन सिर दर्द और नजर में कमजोरी घटने के बजाय बढ़ती गयी। कई चिकित्सकों से इलाज कराने के बाद जब वह न्यूरो सर्जन के पास पहुंचे तब न्यूरो सर्जन ने पियूष ग्रंथि में ट्यूमर (पिट्यूटरी ट्यूमर) का संदेह व्यक्त किया और उन्हें आपरेशन कराने की सलाह दी। उन्होंने आॅपरेशन से बचने के लिये अनेक चिकित्सकों से अपना इलाज कराया लेकिन जब उन्हें कोई फायदा नजर नहीं आया तब वह नौएडा (उ.प्र.) स्थित कैलाश अस्पताल तथा नयी दिल्ली के विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य एवं न्यूरो विज्ञान संस्थान (विमहांस) के न्यूरो सर्जन डा. अजय बक्शी के पास पहुंचे। आरंभिक जांच से पियूष ग्रंथि में मैक्रोएडीनोमा नामक ट्यूमर होने का संदेह हुआ। डा. बक्शी ने इलाज के तौर पर माइक्रो न्यूरो सर्जरी की मदद से मस्तिष्क में चीर-फाड़ किये बगैर पिट्यूटरी ट्यूमर निकालने का निर्णय लिया। माइक्रो न्यूरो सर्जरी से पिट्यूटरी ट्यूमर निकालने के लिये नाक के रास्ते अत्यंत सूक्ष्म उपकरणों की मदद से ट्यूमर निकाल लिया जाता है। इसमें रोगी के शरीर पर किसी तरह के टांके नहीं आते हैं। इस तकनीक के तहत नाक के भीतर छोटा चीरा लगाकर और कुछ हड्डियों को तोड़कर माइक्रो न्यूरो सर्जरी के उपकरणों को मस्तिष्क में प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद कुछ विशेष यंत्र की मदद से नाक के रास्ते ही ट्यूमर को तोड़कर उनके छोटे-छोटे टुकड़े निकाल लिये जाते हैं।
जब माइक्रो न्यूरो सर्जरी की मदद से इस ट्यूमर को निकाल कर इसकी पैथोलाॅजिक जांच की गयी तो पता चला कि विशंभर अग्रवाल के पियूष गं्रथि में ट्यूमर नहीं बल्कि तपेदिक है। यह चिकित्सा जगत में एक विलक्षण मामला है। दरअसल पियूष ग्रंथि की तपेदिक अत्यंत दुर्लभ किस्म की बीमारी है और विश्व भर में अब तक केवल 25-30 मरीजों में ही इस बीमारी का पता चला है।
हालांकि तपेदिक अत्यंत सामान्य संक्रामक बीमारी है जो शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है। तपेदिक आम तौर पर फेफड़े को प्रभावित करती है लेकिन पियूष ग्रंथि की तपेदिक इतनी असामान्य बीमारी है कि चिकित्सकों को इसके बारे में आम तौर पर इसका आभास नहीं रहता है। डा. बक्शी के अनुसार पियूष ग्रंथि के ट्यूमर और तपेदिक के लक्षणों में भी इस हद तक समानता होती है कि यह अंतर करना मुश्किल होता है कि मरीज के पियूष गं्रथि में ट्यूमर है या तपेदिक है। इन दोनों बीमारियों में सिर दर्द, आंखों की नजर कमजोर होने, कभी-कभी एक वस्तु का दो दिखने, अधिक प्यास लगने और कभी-कभी सेक्स से संबंधित समस्याएं होने जैसे लक्षण हो सकते हैं।
विशंभर अग्रवाल की पियूष ग्रंथि की तपेदिक पाये जाने के मद्देनजर भारत में इस बीमारी की व्यापकता की पुष्टि हुयी है और इसके मद्देनजर पियूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि की बीमारियों के इलाज में एक नया आयाम जुड़ गया है क्योंकि अगर पहले से ही पियूष ग्रंथि की तपेदिक होने की पुष्टि हो जाये तो मरीज का इलाज दवाइयों से भी हो सकता है। भारत में तपेदिक का प्रकोप अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक होने के कारण यहां पिट्यूटरी ग्रंथि की तपेदिक के भी मरीज काफी संख्या में हो सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में हर साल करीब 80 लाख लोग तपेदिक से संक्रमित होते हैं और इनमें से करीब 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। सिर्फ भारत में ही हर साल तपेदिक के कारण छह लाख लोगों की मौत हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार प्रति मिनट तपेदिक के एक मरीज की मौत होती है।
तपेदिक का समय पर इलाज नहीं होने पर इसके कीटाणु 'मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस' पिट्यूटरी ग्रंथि को भी प्रभावित कर लेती है। सबसे पहले तपेदिक के जीवाणु मस्तिष्क के निचले हिस्से तक पहुंचते हैं उसके बाद ये जीवाणु पियूष ग्रंथि की रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर इस ग्रंथि को नष्ट करना शुरू कर देते हैं।
मस्तिष्क के निचले भाग में सेला टुर्सिका नामक हड्डियों की खास संरचना के बीच अवस्थित मटर के आकार की पियूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि अत्यंत महत्वपूर्ण संरचना है जिससे अनेक महत्वपूर्ण हार्मोनों का उत्सर्जन होता है। शरीर की ज्यादातर अंतरस्राव ग्रंथियों को नियंत्रित करने वाली पिट्यूटरी ग्रंथि मुख्य तौर पर थायराइड, गर्भाशय, शिश्न, गुर्दे के उपरी भाग में स्थित एड्रिनल ग्रंथि तथा ग्रोथ हार्मोन एवं इसके उपउत्पादकों के उत्पादन को नियंत्रित करती है। पिट्यूटरी ग्रंथि प्रसव के बाद स्तन से दूग्ध स्राव को नियंत्रित करती है। सेला टुर्सिका इस महत्वपूर्ण ग्रंथि के लिये सुरक्षा कवच का काम करती है। लेकिन सेला टुर्सिका के कारण पिट्यूटरी ग्रंथि को फैलने के लिये सीमित जगह मिल पाती है। ट्यूमर या अन्य कारणों से पिट्यूटरी ग्रंथि में फैलाव होता है तो इससे मस्तिष्क के उस हिस्से पर दबाव पड़ता है जहां से आंखों के स्नायु गुजरते हैं। इससे सिर दर्द एवं आंखों में कमजोरी एवं रोशनी जाने का खतरा रहता है। इसके अलावा ट्यूमर होने के कारण पिट्यूटरी ग्रंथि दबाव पड़ने से सिकुड़ जाती है जिससे उसकी सामान्य गतिविधियां एवं सक्रियता प्रभावित होती है। ट्यूमर के अलावा तपेदिक होने से इस ग्रंथि की सक्रियता घट जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को रक्त चाप और मधुमेह हो तथा शरीर में सूजन एवं चेहरे का आकार बदल रहा हो तो उसे लापरवाही नहीं करनी चाहिये बल्कि किसी इंडोक्राइनोलाॅजिस्ट से यह जांच करानी चाहिये कि कोई हार्मोन असंतुलन तो नहीं है।
पियूष ग्रंथि की तपेदिक से भारत अछूता नहीं
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