पेंट्स में मौजूद ग्लाइकोल ईथर नामक रसायन के लगातार संपर्क में रहने वाले पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर हो सकता है और वे प्रजनन संबंधी समस्याओं के आसानी से शिकार हो सकते हैं।
ब्रिटेन में किये गए एक शोध से पता चला है कि डेकोरेटर या पेंटर का काम करने वाले पुरुष ग्लाइकोल साॅलवेंट्स के संपर्क में रहते हैं। ऐसे लोगों में इस बात की संभावना अन्य लोगों के मुकाबले में ढ़ाई गुना तक बढ़ जाती है कि वे कुछ ही सामान्य शुक्राणु पैदा कर सकें।
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने प्रजनन संबंधी 14 क्लिनिक्स में इलाज करा रहे दो हज़ार से ज्यादा लोगों का अध्ययन किया है। हालांकि कामकाज और चिकित्सा से संबंधित अध्ययन में बहुत सारे रसायनों का प्रजनन क्षमता पर कोई असर नहीं दिखा। लेकिन इस बात की आशंका जताई गई है कि काम की जगहों पर कई तरह के रसायनों का संपर्क किसी पुरुष के बाप बनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शुक्राणुओं की गति की दिक्कतों को लेकर अपना इलाज करा रहे लोगों और सामान्य लोगों का अध्ययन किया। शोधकर्ताओॅ ने इन लोगों से उनके कार्य, उनकी जीवनशैली और रसायनों से संपर्क की संभावनाओं के बारे में पूछा। इस पूछताछ से पता चला कि ग्लाइकोल ईथर के संपर्क में रहने वाले लोगों में शुक्राणु की गति के साथ समस्या की संभावना ढाई गुना बढ़ जाती है। शुक्राणुओं की गति यानी प्रत्येक इकाई के हिलने-डुलने की रफ़्तार प्रजनन की पूरी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कारक होती है।
ग्लाइकोल जैसे रसायनों का उपयोग गाढ़े पेंट्स को घुलनशील और पतला बनाने के लिए किया जाता है ।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के डाॅक्टर एंडी पोवी कहते हैं, कुछ ख़ास ग्लाइकोल ईथर पुरुषों के प्रजनन पर असर डालते हैं लेकिन उनके उपयोग में पिछले दो दशकों में कमी लाई गई है। लेकिन अब भी काम की जगहों पर इसका ख़तरा है और इस तरह के संपर्क को कम करने के लिए और प्रयास करने की ज़रूरत है।
हालांकि प्रजनन विशेषज्ञ डाॅक्चर एलन पेसी कहते हैं कि यह जानकर पुरुषों को राहत होगी कि यह अकेला रसायन है जिसका प्रजनन क्षमता पर असर होता है।
वे बताते हैं, यहां तक कि बच्चे पैदा कर पाने में अक्षम लोग भी इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि अपने कार्यस्थल पर वे जिन रसायनों के संपर्क में हैं, उसका असर उनकी प्रजनन क्षमता पर तो नही पड़ रहा है।