पैनिक डिसआर्डर एक एंग्जाइटी डिसआर्डर है जिसमें रोगी को अचानक तीव्र डर का असंभावित और बार-बार अटैक होता है। कभी-कभी यह अटैक कुछ मिनटों को होता है तो कभी-कभी लंबा भी होता है। पैनिक अटैक किसी भी समय, कहीं भी और बिना कोई पूर्व लक्षण के हो सकता है। इसलिए अधिकतर रोगी दूसरा अटैक होने को लेकर भयभीत रहते हैं और उस स्थान में जाने से डर सकते हैं जहां उन्हें पहले अटैक हुआ हो। कुछ लोगों पर तो डर इतना हावी हो जाता है कि वे अपने घरों में नहीं रहना चाहते।
पैनिक डिसआर्डर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है। पैनिक अटैक के दौरान दिल की धड़कन बढ़ जाती है और रोगी को पसीना आने लगता है, कमजोरी महसूस होती है, बेहोशी या चक्कर आने लगता है। हाथ में झुनझुनी या सुन्नपन महसूस हो सकता है और रोगी उत्तेजित या ठंड का अनुभव कर सकता है। उसका जी मिचला सकता है, छाती में दर्द या कुछ उत्तेजना, कुछ अनहोनी होने का डर या सर्वनाश होने का डर या खुद पर नियंत्रण खत्म हो सकता है। अधिकतर लोग इलाज से ठीक हो जाते हैं। इसकी थिरेपी के तहत रोगी को यह सीखाया जाता है कि वे अपने सोचने के तरीको में कैसे परिवर्तन लायें। इसके साथ ही रोगी को दवाइयां भी दी जाती है।
पैनिक डिसआर्डर के रोगियों में शारीरिक प्रतिक्रियाएं भी होती है। वह दिल के दौरे की तरह महसूस कर सकता है। पैनिक डिसआर्डर से पीड़ित व्यक्ति हतोत्साहित हो सकता है और लज्जा महसूस कर सकता है क्योंकि वे दूकान से सामान लाने या ड्राइविंग करने जैसे सामान्य दिनचर्या का पालन नहीं कर सकते। यह बीमारी उनके स्कूल या काम को भी प्रभावित कर सकता है।
डा. सुनील मित्तल बताते हैं कि पैनिक डिसआर्डर ऐसा एंग्जाइटी डिसआर्डर है जिसका इलाज संभव है। इसलिए पैनिक डिसआर्डर के लक्षण होने पर व्यक्ति को सामान्य चिकित्सक या मानसिक चिकित्सक से जल्द से जल्द मिलना चाहिए। चिकित्सक के पास जाने से पहले अपने लक्षणों की सूची बना लेनी चाहिए जिससे चिकित्सक को आपकी बीमारी को समझने में आसानी हो। चिकित्सक बीमारी को सुनिश्चित करने के लिए रोगी का परीक्षण करते हैं। बीमारी की पहचान हो जाने पर रोगी को मानसिक चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास भेज दिया जाता है। चिकित्सक रोगी की गंभीरता और पैनिक अटैक की आवृत्ति को कम करने के लिए कुछ दवाईयां देते हैं जिसे प्रभावी होने में कुछ सप्ताह का समय लग जाता है। रोगी को एंटीडिप्रेशेंट, एंटीएंग्जाइटी और बीटा ब्लॉकर्स दवाइयां दी जाती हैं। काउंसलर या मनोचिकित्सक के द्वारा साइकोथेरेपी या टॉक थेरेपी से भी पैनिक अटैक के लक्षणों को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। हालांकि पैनिक डिसआर्डर का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन दवा और/या साइकोथेरेपी से इलाज कराने पर अधिकतर रोगी सामान्य जीवन जीते हैं।
पैनिक डिसआर्डर कभी-कभी आनुवांशिक भी होता है लेकिन जरूरी नहीं है कि परिवार के हर सदस्य को यह बीमारी हो। जब मस्तिष्क में रसायन एक निश्चित स्तर में नहीं होता है तो वह व्यक्ति पैनिक डिसआर्डर को शिकार हो जाता है। दवाइयों से इसके लक्षणों को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है क्योंकि दवाइयां मस्तिष्क के रसायन को सही स्तर तक लाने में मदद करती है। हालांकि वैज्ञानिक इसके इलाज से संबंधित कई अध्ययन कर रहे हैं। एक अनुसंधान के तहत वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अधिकतर रोगियों के लिए कौन सा इलाज अच्छा होगा या विभिन्न लक्षणों के लिए कौन सी दवाइयां बेहतर काम कर सकती हैं। वैज्ञानिक यह भी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि मस्तिष्क किस तरह कार्य करता है ताकि वे इसका नया इलाज खोज सकें।