परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने के दबाव के कारण बच्चे किताबों में आंखे गड़ाए हुए रहते हैं। कई बच्चे कम रौशनी में भी बहुत पास रखकर किताबें पढ़ते हैं या बहुत पास बैठकर टेलीविजन देखते हैं या स्मार्ट फोन पर चैटिंग करते रहते हैं। लेकिन अगर थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो बच्चे आंखों को नुकसान से बचा सकते हैं।
नई दिल्ली के ईस्ट पटेल नगर स्थित दिल्ली आई केयर के निदेशक एवं वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. शशांक राय गुप्ता पढ़ाई के सही तरीकों के बारे में बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाई के दौरान हर 20 मिनट की पढ़ाई के बाद 3-4 मिनट का विश्राम लेना चाहिए। लगातार पढ़ाई करते रहने पर आंखों की समायोजन की क्षमता (एकोमोडेशन फैसिलिटी) प्रभावित होती है। इसके कारण पढ़ने के दौरान स्पष्ट दिखने में दिक्कत होती है। इसके कारण आंखों पर दबाव पैदा होता है।
डा. गुप्ता के अनुसार पढ़ाई के दौरान बिल्कुल एक टक होकर नहीं पढ़ना चाहिए बल्कि बार-बार पलकें झपकानी चाहिये। एक मिनट में कम से कम 15 बार पलकें झपकाएं। आपकी आंख की सतह पर आंसू की एक परत होती है। यह परत आंख पर 10 सेकंड के लिये ठहरती है और उसके बाद आंख की पूरी सतह पर फैल जाती है। यदि आप पलक नहीं झपकायेंगे तो यह परत टूट जाएगी जिससे आंखों में जलन, लाली और भारीपन जैसी समस्यायें पैदा होंगी।
पढ़ाई के दौरान समुचित रौशनी होनी चाहिय। न तो बहुत चमकीली और न तो बहुत मंद रौशनी होनी चाहिये। रात्रि के समय वैसे लैम्प का इस्तेमाल करें जो आपकी पुस्तक पर पर्याप्त रौषनी डाले। आपको पढ़ने के लिये पुस्तकों का अधिक इस्तेमाल करना चाहिये, कम्प्यूटर का नहीं। कम्प्यूटर पर पढ़ने से आंखों पर अधिक दबाव पड़ता है।
डा. गुप्ता के अनुसार कुछ लोगों को कुछ लोगों को अपनी आंखें दिन में दो-तीन बार धोने की आदत होती है। आंखें धोते समय आंसू की परत भी धुल जाती है। इसलिये आंखों को बार-बार नहीं धोएं, यदि आप चेहरे को धो रहे हों, तो आंखें बंद रखें।
उन्होंने बताया कि टेलीविजन देखने या कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने जैसी उन गतिविधियों से परहेज करना चाहिये जिनके कारण आंखों पर दबाव पड़ता हो। इसके अलावा पढ़ाई के दौरान छात्रों को कांटैक्ट लेंस पहनने के बजाय चश्मा पहनना चाहिए। कांटैक्ट लेंस पहनने से आंखों में जलन और सूखापन पैदा होती है।