वैज्ञानिकों ने नैनो तकनीक के जरिये स्पाइनल कार्ड के क्षतिग्रस्त स्नायुओं का इलाज करने का तरीका विकसित किया है।
यह कामयाबी हासिल की है अमरीका के परडयू यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने। इसके तहत किसी दुर्घटना के तुरत बाद इस नैनो-पदार्थों को रक्त में इंजेक्ट कर स्पाइनल कार्ड के चोटग्रस्त स्नायुओं का इलाज किया जा सकता है। इन सूक्ष्म पदार्थों के व्यास करीब 60 नैनोमीटर है और ये लाल रक्त कोशिका के व्यास से भी 100 गुना छोटे हैं।
अनुसंधानकर्ता इस शोध के तहत् यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि सूक्ष्म पदार्थों का इस्तेमाल कैंसर और अन्य बीमारियों के इलाज के लिए षरीर के विभिन्न अंगों में दवाइयां पहुंचाने के लिये किस तरह किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी पता करने की कोशिश की जा रही है कि माइसेल्स क्षतिग्रस्त एक्जोन्स की खुद ही मरम्मत कैसे कर सकता है। एक्जोन्स एक फाइबर है जो स्पाइनल कार्ड में विद्युतीय आवेशों को संचारित करता है।
सुप्रसिद्ध जर्नल ''नेचर नैनोटेक्नोलॉजी'' के ताजा अंक में प्रकाशित इस अनुसंधान में वेल्डन स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग एंड डिपार्टमेंट ऑफ केमिस्ट्री में सहायक प्रोफेसर जी-क्सिन चेंग कहते हैं, ''यह बहुत ही आश्चर्यजनक खोज है। अनुसंधान में दवा की डिलीवरी के माध्यम के रूप में माइसेल्स का इस्तेमाल करीब 30 सालों से किया जा रहा है लेकिन किसी ने अभी तक इसका इस्तेमाल सीधे तौर पर दवा के रूप में नहीं किया था।''
माइसेल्स में दो प्रकार के पॉलीमर होते हैं, एक हाइड्रोफोबिक और दूसरा हाइड्रोफिलिक होता है अर्थात् ये या तो पानी के साथ नहीं घुल सकते हैं या पानी के साथ घुल सकते हैं। हाइड्रोफोबिक का सार भाग बीमारी के इलाज करने के लिए दवाइयों से भरा हो सकता है।
माइसेल्स का इस्तेमाल पॉलीइथिलीन ग्लाइकोल सहित अधिक परम्परागत ''मेम्ब्रेन सीलिंग एजेंट'' की जगह किया जा सकता है जो माइसेल्स का बाहरी कवच बनाता है। नैनोस्केल आकार और माइसेल्स के पॉलीइथिलीन ग्लाइकोल कवच के कारण ये न तो किडनी के द्वारा जल्द फिल्टर होते हैं और न ही लीवर के द्वारा कैप्चर होते हैं। ये रक्त प्रवाह में लंबे समय तक बने रहते हैं और उतकों को क्षतिग्रस्त करते हैं।
चेंग कहते हैं, ''इस अनुसंधान में माइसेल्स जरूरी सांद्रण के स्तर पर गैर-विषैला पाया गया। माइसेल्स के साथ आपको रेगुलर पॉलिइथिलीन ग्लाइकोल के करीब एक लाखवें सांद्रण की ही जरूरत होगी।''
सेंटर फॉर पारालिसिस रिसर्च के निदेशक रिचर्ड बोरगन्स और स्कूल ऑफ वेटेरिनरी मेडिसीन में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर मैरी हुलमैन जार्ज के नेतृत्व में किये गए अनुसंधान में पॉलीइथिलिन ग्लाइकोल या पी ई जी को स्पाइनल कार्ड में चोट वाले जानवरों में लाभदायक पाया गया।
इस शोध में पाया गया कि पी ई जी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को विशेष रूप से लक्ष्य करता है और चोटग्रस्त क्षेत्र को सील कर आगे क्षति होने से बचाता है। इस शोध में यह भी पाया गया कि विशेष पदार्थ से बने सार भाग क्षतिग्रस्त एक्जोन्स की मरम्मत में अन्य की तुलना में बेहतर कार्य करते हैं।
शोध में यह भी पाया गया कि माइसेल्स इलाज एक्जोन की रिकवरी को करीब 60 प्रतिशत बढ़ा देता है। इस शोध में यह पता करने की भी कोशिश की गई कि माइसेल्स क्षतिग्रस्त नर्व कोशिकाओं की किस तरह मरम्मत करता है और साथ ही स्पाइनल कॉर्ड की सिग्नल को ट्रांसमीट करने की क्षमता का भी पता लगाया गया। शोध में पाया गया कि माइसेल्स का इस्तेमाल एक सामान्य प्रकार का स्पाइन इंजरी कंप्रेशन इंजरी के द्वारा क्षतिग्रस्त एक्जोन की मरम्मत के लिए किया जा सकता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों में मरे हुए माइसेल्स की भी खोज की और यह पता किया कि नैनोकण क्षतिग्रस्त जगह पर किस तरह सफलतापूर्वक पहुंचे। इसके अलावा यह भी पता किया गया कि माइसेल्स से इलाज किये गए जानवर किस प्रकार अपने चारों पैर को नियंत्रित करने में सफल रहे जबकि परम्परागत पॉलीइथिलिन ग्लाइकोल से इलाज में ऐसा संभव नहीं था।
नैनोमेडिसीन से होगा क्षतिग्रस्त स्नायुओं का इलाज
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