मोटापे को मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्त चाप जैसे अनेक रोगों की जननी माना जाता है लेकिन आपने शायद ही सोचा होगा कि यह आपके मजबूत घुटने को भी बेकार कर सकता है। आज विलासितापूर्ण जीवन शैली तथा वसायुक्त एवं डिब्बाबंद आहार के बढ़ते प्रचलन के कारण लोगों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
बैरिएट्रिक सर्जरी विशेषज्ञ पारितोष एस. गुप्ता बताते हैं कि मामूली मोटापे को तो डायटिंग, नियमित व्यायाम और दवाइयों की मदद से घटाया जा सकता है लेकिन अत्यधिक मोटापे (मोर्बिड ओबेसिटी) को घटाने के लिये अतिरिक्त उपाय की जरूरत होती है। मौजूदा समय में मोटापे घटाने की सर्जरी अथवा बैरिएट्रिक सर्जरी चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित एक ऐसी विधि है जिसकी मदद से काफी हद तक मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है। लैपरोस्कोपी आधारित बैरिएट्रिक सर्जरी नामक यह शल्य चिकित्सा 100 किलोग्राम से अधिक वजन वाले लोगों के लिए कारगर विकल्प साबित हो रही है।
ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डा. रमनीक महाजन बताते हैं कि मोटापे का असर हमारे घुटने पर भी पड़ता है जो शरीर के भारी वजन को सहते-सहते इस कदर घिस सकते हैं कि घुटने बदलवाने की नौबत आ सकती है। घुटने के घिसने के कारण मरीज को असहनीय पीड़ा का सामना पड़ता है और कई स्थितियों में चारपाई पर जीवन गुजारना पड़ता है। आरंभिक अवस्था में हालांकि दवाइयों और फिजियोथिरेपी से थोड़ी राहत मिलती है लेकिन इस अभिशाप से स्थायी तौर पर छुटकारा घुटने बदलवाने के बाद ही मिलता है।
डा. महाजन बताते हैं कि घुटना बदलवाने का ऑपरेशन केवल मरीज को दर्द से मुक्ति दिलाकर सामान्य एवं सक्रिय जीवन जीने लायक ही नहीं बनाता बल्कि मरीज को कई बीमारियों एवं परेशानियों के खतरे से भी बचाता है। आम तौर पर देखा गया है कि घुटने की तकलीफ से ग्रस्त मरीज बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं जिससे उन्हें एसिडिटी, उच्च रक्त चाप, मधुमेह और अन्य बीमारियां हो जाती हैं लेकिन घुटना बदलवाने के बाद मरीज चलने-फिरने और व्यायाम करने लगता है जिससे वह इन संभावित बीमारियों से बचा रहता है।
डा. महाजन के अनुसार नियमित व्यायाम नहीं करने तथा आहार पर नियंत्रण नहीं रखने के कारण शरीर का वजन बढ़ जाता है जिससे घुटने के भीतर की कच्ची हड्डी (कार्टिलेज) पर दबाव पड़ता है। इस दबाव के कारण घुटने के कार्टिलेज घिस या फट जाती है। इससे घुटने के ऊपर और नीचे की हड्डी आपस में रगड़ खाने लगती है जिससे मरीज को भयानक दर्द का सामना करना पड़ता है। कार्टिलेज घुटने के लिये शॉक आब्जर्बर का भी काम करती है। कार्टिलेज सही- सलामत एवं स्वस्थ होती है तब घुटने सुगमतापूर्वक गतिशील होते हैं। मोटापा के अलावा उम्र बढ़ने तथा ओस्टियो आर्थराइटिस जैसी बीमारियां होने पर भी कार्टिलेज घिसने लगती है और एक स्थिति में फट भी जाती है। इसके कारण घुटने में जकड़न और सूजन आती है तथा चलने - फिरने के समय दर्द होता है।
डा. महाजन के अनुसार शरीर का वजन एक किलोग्राम बढ़ने पर घुटने पर 10 किलोग्राम के बराबर का वजन पड़ता है। शारीरिक वजन में केवल साढ़े चार किलोग्राम की वृद्वि होने पर हर कदम पर प्रत्येक घुटने पर 15 से 30 किलोग्राम का दबाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यह अनुमान लगाया गया है कि चलने के समय किसी व्यक्ति के शारीरिक वजन का तकरीबन तीन से छह गुना भार घुटने पर पड़ता है।
घुटने को बचाने और मोटापे से बचने के लिये नियमित व्यायाम करना चाहिये क्योंकि इससे घुटने की मांसपेशियां मजबूत हो जाती है और साथ ही साथ शारीरिक वजन पर भी अंकुश लगता है। इससे घुटने पर कम दबाव पड़ता है। कुछ समय पूर्व घुटने में दर्द की समस्या आम तौर पर बुजुर्गों में पायी जाती थी लेकिन आजकल यह समस्या कम उम्र के लोगों में भी होने लगी है।