मेट्रो शहरों में फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार माने वाले धूम्रपान की जगह अब तेजी से विषाक्त हवा ले रही है


- भारत के अत्यधिक प्रदूषित मेट्रो शहरों में आप धूम्रपान किए बगैर ही फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हो सकते हैं। 
- हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में प्रति क्यूबिक मीटर सिर्फ 10 माइक्रोग्राम की वृद्धि मात्र से ही फेफड़ों के कैंसर का खतरा 8 प्रतिषत तक बढ़ सकता है।
- पश्चिमी देशों में अध्ययन में पाया है कि फेफड़ों के कैंसर वैसे स्थानों के निवासियों में अधिक पाये जाते हैं जहां की बाहरी हवा प्रदूषित है।



भारत के प्रमुख शहरों में खराब वायु गुणवत्ता एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रही है। चिकित्सकों का कहना है कि पर्यावरण में विषाक्त पार्टिकुलेट पदार्थों की मात्रा बढ़ने के कारण, विषाक्त हवा ने फेफड़ों के कैंसर के लिए प्रमुख जोखिम कारक धूम्रपान की जगह ले ली है।
अपोलो ग्लेनीग्लेस अस्पताल, कोलकाता के कंसल्टेंट मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पी. एन. महापात्रा ने कहा, ''अब तक, धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में माना जाता था। वास्तव में, यह अनुमान लगाया गया है कि 80 प्रतिषत फेफड़ों के कैंसर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तम्बाकू धूम्रपान के कारण होते हैं। हालांकि, प्रमुख मेट्रो शहरों में रहने वाले लोगों को वाहनों से होने वाले अत्यधिक प्रदूषण के संपर्क में भी रहना पड़ता है, जिसके कारण उनके फेफड़े में खराब हवा जाती है जो एक दिन में कई सिगरेट धूम्रपान के बराबर है।''
कोलकाता की हवा पहले से ही खराब है और दीवाली में लाखों पटाखे फोड़े जाने के कारण हवा में पार्टिकुलेट मैटर के बढ़ने के कारण हवा और भी खराब हो गयी है।
2015 में, चीन में चिकित्सा विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि चीन में वर्ष 2020 तक हर साल फेफड़ों के कैंसर के 800,000 नए मामलों का पता चलेगा। वहां देश की खराब हो रही हवा की गुणवत्ता फेफड़ों के कैंसर में भारी वृद्धि का एक प्रमुख कारण बनती जा रही है।
टीएमसी, कोलकाता के कंसल्टेंट मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डाॅ. दीपक दाबकर ने कहा, ''हालांकि हमने अभी तक भारत में इस तरह का विश्लेषण नहीं किया है, लेकिन चिकित्सा समुदाय में इस बात को लेकर आम सहमति है कि दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता जैसे प्रमुख महानगरों में साँस के जरिए ली जा रही विषाक्त हवा फेफड़ों के कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी में प्रमुख योगदान दे रही है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि धूम्रपान नहीं करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। क्लीनिकल साक्ष्यों से पता चलता है कि 20 साल पहले की तुलना में, न केवल फेफड़ों के कैंसर के मामलों में काफी हद तक वृद्धि हुई है बल्कि धूम्रपान नहीं करने वाले लोगांे में भी यह बीमारी होने के मामलों में लगभग 10 प्रतिषत की वृद्धि हुई है। ।
वर्ष 2015 में भारत में सभी मेट्रो शहरों में फेफड़ों के स्वास्थ्य पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कोलकाता में 35 प्रतिषत लोगांे के फेफड़ों की क्षमता कम है। उनमें से 9 प्रतिषत लोगों के फेफड़ों की स्थिति 'खराब' है।
डाॅ. महापात्र ने कहा, ''द इंटरनेषनल एजेंसी फाॅर रिसर्च आॅन कैंसर (आईएआरसी) ने बाहरी वायु प्रदूशण को पहले से ही कैसरजन के रूप में घोषणा की है। द ग्लोबल बर्डेन आफफ डिजीज प्रोजेक्ट 2010 ने दुनिया में फेफड़ों के कैंसर के 223,000 मामलों सहित 32 लाख लोगों की मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया है। 2013 में, आईएआरसी समर्थित एक विशेषज्ञ पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि आउटडोर वायु प्रदूषण लोगों में कैंसर का कारण बन सकती है, यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। ऐसा माना जाता है कि पीएम  2.5 के नाम से जाना जाने वाला वायु प्रदूषण का विषिश्ट भाग (ठोस धूल के कणों, या 'पार्टिकुलेट मैटर', जो  एक मीटर के 2.5 मिलियनवां भाग से भी कम हो) बाहरी हवा में कैंसर पैदा करने वाला प्रमुख घटक है।''
इससे होने वाला जोखिम वायु प्रदूषण के स्तर पर निर्भर करता है जिसके संपर्क मेें लोग नियमित रूप से रहते हैं। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाषित एक अध्ययन के अनुसार, हवा में पार्टिकुलेट मैटर में प्रति घन मीटर मात्र 10 माइक्रोग्राम की वृद्धि होने पर फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना 8 प्रतिशत बढ़ सकती है। 
डाॅ. दाबकर ने कहा, ''पर्यावरण के लिए खतरनाक बन रहे इस जोखिम कारक से मुख्य रूप से शिकार बच्चे हो रहे हैं, जो न केवल क्रोनिक रेसपाइरेटरी डिसआर्डर से पीड़ित हो रहे हैं बल्कि विशाक्त हवा की सांस लेने के कारण उनमें फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी बढ़ रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे बच्चों को हमारी पीढ़ी द्वारा बोये गये बीमारियों के जहरीले फल को काटना पड़ेगा।''
सरकार को इस पर एक स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में विचार करने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्य उपायों को आरंभ करने की जरूरत है जिनमें सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं में सुधार करना और डीजल वाहनों की चरणबद्ध तरीके से हटाना षामिल है। साथ ही, हमें व्यक्तिगत नागरिक के तौर पर अधिक सक्रिय होने की जरूरत है। हमें पटाखे फोड़ने से बचने और सक्रिय रूप से कार-पूलिंग को अपनाने के लिए शपथ लेनी चाहिए।