मौसम की मार कैसे झेलता है हमारा शरीर  

जब  हमारा  शरीर गर्मियों में पसीने से तर-बतर हो जाता है अथवा कड़कड़ाती सर्दी में ठिठुरने लगता है तो शायद कई बार यह सवाल हमारे-आपके जेहन में आया होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है। दरअसल हमारे शरीर की ऐसी प्रतिक्रियाएं अपने आप को मौसम की मार से बचाने के लिये होती है। 
शरीर विज्ञानियों के अनुसार हमारा शरीर मौसम के प्रति विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं करता है। यह व्यक्ति की उम्र, लिंग और उसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। इन प्रतिक्रियाओं का संबंध हमारे शरीर के अंतःस्रावी तंत्र से होता है। यह अंतःस्रावी ग्रंथि हमारे शरीर में हार्मोन के उत्पादन का नियंत्रण करती है लेकिन यह दर्द, तनाव और मौसम आदि से प्रभावित होती है। तकरीबन एक तिहाई लोग बदलते मौसम के प्रति संवेदनशील होते हैं लेकिन युवा, कमजोर और अधिक उम्र के लोग इससे अधिक प्रभावित होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं भी बदलते मौसम के प्रति अधिक संवेदनशील होती  हैं।
शरीर मौसम विज्ञानियों (बायोमेटियोरोलाॅजिस्ट) के अनुसार हमारा शरीर मौसम पर नहीं बल्कि मौसम हम पर हावी है। हमारे शरीर पर मौसम का प्रभाव छोटा लेकिन लंबे समय तक होता है। यहां तक कि यह मृत्यु दर को भी प्रभावित करता है। 
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ मेडिसीन चिकित्सक डा. राकेश कुमार बताते हैं कि मौसम में बदलाव के साथ फ्लू, सनस्ट्रोक, हेफीवर जैसी मौसमी बीमारियां होना आम बात है। कुछ लोग मौसम में बदलाव के साथ सिर दर्द और शरीर में दर्द की शिकायत करते हैं। मौसम में बदलाव के साथ वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन होने के कारण कुछ लोगों के शरीर की हड्डी के जोड़ों का तरल भी प्रभावित होता है जिससे उनमें रह्यूमेटिज्म या आर्थराइटिस की समस्या हो जाती है।
हमारा शरीर बहुत अधिक गर्मी होने पर बेचैनी महसूस करता है जबकि बहुत अधिक ठंड में सिहरन महसूस करता है। गर्मी में जब हम बेचैनी महसूस करते हैं तो हमारी त्वचा पसीना निकालती है जिससे हमारा शरीर ठंडा हो जाता है। इसके विपरीत ज्यादा ठंड के मौसम में हमारे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव होता है और यह शरीर को गर्मी प्रदान करता है। बहुत अधिक गर्मी में हमारे हृदय की  धड़कन बढ़ जाती है, रक्त नलिकाएं त्वचा की सतह तक अधिक रक्त पहुंचाने के लिए फैल जाती हैं और शरीर से अधिक पसीना निकलता है। नयी दिल्ली स्थित बत्रा अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञ एस.के.मिनोचा के अनुसार अधिक गर्मी होने पर शिथिलता, सनस्ट्रोक, खुजली तथा जलन जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। लेकिन डिहाइड्रेशन और केंद्र्रिय तंत्रिका तंत्र में रक्त की कमी होने पर व्यक्ति अचानक बीमार हो सकता है। अधिक उम्र के लोग गर्मी से अधिक प्रभावित होते हैं लेकिन कई युवा लोग भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते और वे स्विंमिंग आदि से अपने शरीर को ठंडा करते हैं। लेकिन शरीर का अधिक तापमान और ठंडा पानी मिलकर शरीर में ऐंठन पैदा कर सकते हैं खासकर खाना खाने या अधिक पानी पीने के बाद स्विंमिंग करने पर शरीर में ऐंठन होने की आशंका बढ़ जाती है। 
चिकित्सकों के अनुसार बहुत अधिक ठंड में हमारा शरीर रक्त नलिकाओं को बंद कर देता है जिससे त्वचा तक रक्त नहीं पहुंच पाता है और यह शरीर को गर्म करता है। फिर भी  अधिक सर्दी होने पर रक्त आपूर्ति में कमी वाले बुजुर्ग लोगों में शरीर का तापमान गिर सकता है, वे निष्क्रिय हो सकते हैं और उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इस हाइपोथर्मिया के कारण हर वर्ष जाड़े के मौसम में मृत्यु दर बढ़ जाती है। इसके अलावा ठंड और फ्लू जैसी बीमारियां निमोनिया और ब्रोंकाइटिस आदि में तब्दील हो सकती हैं और यह दुर्बल लोगों के लिए घातक साबित हो सकती हैं।
गर्मी के शुरू में वायुजनित बीमारी हेफीवर का प्रकोप बढ़ जाता है। यह पराग कण से एलर्जी वाले लोगों को अपना शिकार बनाती है। यह बच्चों के स्कूल में परीक्षाओं का समय होता है इसलिए बच्चों को आंखों में खुजली और नाक बहने जैसी समस्याओं से बचने के लिए एंटी हिस्टामिन दवाईयों का सहारा लेना पड़ता है। वायु प्रदूषण विशेषकर दमा और ब्रोंकाइटिस जैसी फेफड़ों की गंभीर बीमारियों के प्रति संवेदनशील लोगों को अधिक प्रभावित करती है। जाड़े के मौसम में कुछ क्षेत्रों में आजकल यातायात प्रदूषण भी अधिक हो रहा है जिससे वहां के लोगों में फेफड़ों की बीमारियां अधिक हो रही हैं। 
डा.राकेश कुमार बताते हैं कि गर्मी के मौसम में सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें हमारी त्वचा को जला सकती हैं। सूर्य की धूप में अधिक समय तक रहने वाले लोगों में सनबर्न का खतरा अधिक होता है और अल्ट्रा वायलेट किरणों के संपर्क में अधिक देर तक रहने पर त्वचा को स्थायी रूप से क्षति पहुंच सकती है। काले लोगों की तुलना में गोरे लोगों में सनबर्न अधिक होता है। काली त्वचा में काफी मात्रा में मेलानिन होता है और यह हानिकारक किरणों के विरुद्ध सुरक्षा कवच का काम करता है। अल्ट्रावायलेट किरणों से त्वचा कैंसर भी हो सकता है। हालांकि आजकल लोग सूर्य की किरणों से होने वाली क्षति और त्वचा कैंसर के प्रति सचेत हो चुके हैं और इससे बचने के लिए सनस्क्रीन क्रीम का इस्तेमाल करने लगे हैं।
सूर्य की किरणें कम मात्रा में हमारे शरीर के लिए लाभदायक है और यह विटामिन 'डी' बनाने के लिए जरूरी भी है। सूर्य की धूप की कमी से शरीर में विटामिन 'डी' की कमी हो सकती है जिससे रिकेट हो सकता है। विटामिन 'डी' हड्डियों की वृद्धि में सहायक होता है। विक्टोरिया के समय में रिकेट होना बाम बात थी लेकिन अब पौष्टिक आहार और सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने से अमेरिका में यह बीमारी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है।  
हालांकि विभिन्न प्रकार के मौसम हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। क्लाइमेटोथेरेपी से विभिन्न बीमारियों के इलाज के तहत रोगियों को अलग तरह के मौसम वाली जगह में भेज दिया जाता है। तपेदिक या रक्त की बीमारियों के रोगियों को अक्सर पहाड़ों पर भेजने की सलाह दी जाती है जहां वायु दाब कम होता है। समुद्र के पास स्थित रिसोर्ट भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि समुद्र के पास की हवा में सोडियम और आयोडिन काफी मात्रा में होते हैं और यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। समुद्र के पास की जलवायु ब्रोंकाइटिस और रह्युमेटिज्म जैसी गंभीर बीमारियों के रोगियों के लिए प्राणदायक साबित होती है। 
कुछ मामलों में आयोनाइजर, एयर कंडीशनर या ह्यूमिडीफायर का इस्तेमाल कर कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया जाता है। हालांकि इनका इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है क्योंकि हवा का आवागमन नहीं होने के कारण जीवाणुओं का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके अलावा सिगरेट के इस्तेमाल के कारण अन्य प्रदूषकों का प्रकोप भी बढ़ जाता है जो विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है।