शरीर के अन्य भागों में उत्पन्न होने वाली कैंसर कोशिकायें मस्तिष्क में पहुंच कर जानलेवा स्थिति पैदा कर सकती हंै। इसे ब्रेन मेटास्टैसिस कहा जाता है। एक समय इसके इलाज के लिये दिमाग में चीर-फाड़ करनी पड़ती थी जिससे अनेक दुष्प्रभाव एवं खतरे होने की आशंका होती थी लेकिन अब गामा नाइफ एवं एक्स नाइफ जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की बदौलत मौत का सबब बन सकने वाले मस्तिष्क मेटास्टैसिस का कष्ट रहित, कारगर एवं आसान उपचार संभव हो गया है। नयी दिल्ली के विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु विज्ञान संस्थान (विमहांस) स्थित गामा नाइफ सेंटर के विशेषज्ञों का कहना है कि रेडियो तरंगों पर आधारित गामा नाइफ की मदद से केवल कुछ ही घंटों में न केवल मस्तिष्क मेटास्टैसिस जैसे दिमागी ट्यूमर का बल्कि, पार्किन्सन, मिर्गी और पागलपन जैसी दुसाध्य बीमारियों का भी शत-प्रतिशत इलाज किया जा सकता है।
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स्तिष्क का मेटास्टैसिस शरीर के अन्य हिस्से में उत्पन्न होने वाली कैंसर कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाला बे्रन ट्यूमर है। कैंसर की जांच एवं चिकित्सा की नवीनतम तकनीकों के विकास के कारण कैंसर मरीजों के अधिक दिनों तक जीवित रहने की संभावना बढ़ने से मस्तिष्क मेटास्टैसिस की समस्या बढ़ रही है। लेकिन गामा नाइफ तकनीक की बदौलत अब मस्तिष्क मेटास्टैसिस के इलाज में क्रांति आ गयी है। गामा नाइफ तकनीक नयी दिल्ली के विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु संस्थान (विमहांस) स्थित गामा नाइफ सेंटर के अलावा देश के गिने-चुने चिकित्सा संस्थान में उपलब्ध है।
विशेषज्ञों के अनुसार मस्तिष्क मेटास्टैसिस आम तौर पर फेफड़े, स्तन, गुदा और गुर्दा के कैंसर के कारण उत्पन्न होता है। इस अवस्था में मस्तिष्क के किसी खास क्षेत्रा के हिस्से में वृद्धि होने लगती है। मस्तिष्क मेटास्टैसिस के ट्यूमर के बढ़ने या उसमें सूजन आने से या तो मस्तिष्क के भीतर (इंट्राक्रैनियल) दबाव बढ़ जाता है या मस्तिष्क की कार्यशीलता में बाधा आती है। कई बार इस दबाव के कारण सेरेेेब्रल स्पाइनल फ्ल्यूड के रास्ते में अवरोध उत्पन्न होने से मस्तिष्क में पानी भरने (हाइड्रोसिफेलस) जैसी समस्या पैदा होती है। तकरीबन दो-तिहाई मामलों में इसके लक्षण कभी भी प्रकट हो सकते हैं। इसके मरीजों में सिर दर्द, जी मिचलाने, उल्टी, आलस्य और सोचने की शक्ति में हा्रस जैसे लक्षण पैदा होते हैं। रोग के और गंभीर होने पर दौरा पड़ने, कमजोरी, चाल एवं आवाज में गड़बड़ी और स्पष्ट दिखाई नहीं देने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। मस्तिष्क मेटास्टैसिस के पांच से दस प्रतिशत रोगियांे में अन्य गंभीर लक्षण भी पैदा हो सकते हैं। मेटास्टैसिस के तीन से 14 प्रतिशत रोगियों में ट्यूमर के भीतर रक्तस्राव (हैमरेज) हो सकता है। ऐसा आम तौर पर मेलानोमा, कोरियोकारसिनोमा, गुर्दा, थायराइड, फेफड़े, स्तन और जर्म कोशिकाओं के ट्यूमर मंे होता है। अधिकतर मेटास्टैसिस गोलाकार घाव की तरह होते हैं। मेटास्टैसिस धमनियों और नसों के माध्यम से रक्त संवहन के द्वारा मस्तिष्क तक फैलते हैं। धमनी के रक्त मस्तिष्क में जाने से पहले फेफड़े में जाते हैं। फेफड़े के प्रारंभिक अवस्था के ट्यूमर कोशिकाओं के बड़े समूह केशिकाओं के द्वारा छन जाते हैं लेकिन बहुत से इंबोली धमनियों के द्वारा मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। लेकिन फिर भी अकेली ट्यूमर कोशिकाएं फेफड़े की केशिकाओं के माध्यम से चली जाती हैं और बड़े ट्यूमर इंबोली नसों से हृदय के दायें और बांये आलिंद के बीच के रन्ध््राों के जरिये धमनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
ब्रेन मेटास्टैसिस का पता एम.आर.आई. जांच से चलता है। इससे अत्यंत छोटे मेटास्टैसिस ट्यूमर और उसके स्थान का भी पता चल जाता है जिससे ट्यूमर के आॅपरेेशन करने में सहूलियत होती है।
मस्तिष्क के मेटास्टैसिस में अन्य कैंसर की तुलना में अस्वस्थता, विकलांगता और मृत्यु दर कहीं अधिक है। अन्य कैंसर की तुलना में इसकी सर्जरी भी अधिक कठिन है क्योंकि इससे मरीज को मानसिक और शारीरिक कमजोरी आने की आशंका होती है। लेकिन प्रारंभिक अवस्था में ही इसकी पहचान और इलाज करके इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है और रोगी को अधिक लंबी और बेहतर जिंदगी दी जा सकती है।
मौजूदा समय में रेडियो तरंगों पर आधारित गामा नाइफ जैसी तकनीकों के इस्तेमाल की बदौलत अब ट्यूमर का इलाज कष्ट रहित एवं आसान हो गया है। नयी दिल्ली के विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु संस्थान (विमहांस) स्थित गामा नाइफ सेंटर के निदेशक डा0 नवीन चैधरी बताते हैं कि गामा नाइफ की मदद से आॅपरेशन के बाद बचे हुये ट्यूमर को भी हटाया जा सकता है। साथ ही इसकी मदद से मस्तिष्क में गहराई में स्थित ट्यूमर का इलाज किया जा सकता है क्योंकि शल्य क्रिया की मदद से उस ट्यूमर तक पहुंचना कई बार संभव नहीं होता है।
गामा नाइफ केन्द्र के गामा नाइफ रेडियोसर्जरी विभाग के प्रमुख डा.महीप सिंह गौड़ बताते हैं कि गामा नाइफ में रेडियो तरंगें एक साथ कई स्रोतों से डाली जाती है। इसे मस्तिष्क में एक हेलमेट की तरह पहना दिया जाता है जिसके विभिन्न स्रोतों से गामा-नाइफ निकलने वाली किरणें ट्यूमर पर डाली जाती हंै। ये कैंसर कोशिकाओं को मार देती हंै। इससे 90 से 100 प्रतिशत मस्तिष्क मेटास्टैसिस का इलाज संभव है। मस्तिष्क में अधिक मेटास्टैसिस होने पर इसका इलाज पुरानी पद्धति के रेडियोथेरेपी से करने पर मरीज के मंदबुद्धि होने या याददाश्त कम होने की आशंका होती है। इससे दिमागी सूजन भी आ सकती है। लेकिन गामा नाइफ से कई ट्यूमरों का एक साथ इलाज करने पर ऐसी कोई समस्या नहीं आती है। जापान के कुछ विशेषज्ञों ने गामा नाइफ के द्वारा एक ही समय में 50 से 60 मस्तिष्क मेटास्टैसिस का इलाज किया है।
गामा नाइफ विशेषज्ञों के अनुसार गामा नाइफ एक तरह का न्यूरोसर्जिकल यंत्रा है। मस्तिष्क के आॅपरेशन में सामान्य तौर पर धातु या प्लास्टिक के औजारों से या लेजर की किरणों से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्सों को काटा जाता है, लेकिन गामा नाइफ में किसी धातु या प्लास्टिक के औजारों के बगैर ही गामा किरणों की मदद से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से को काटा जाता है।
डा.महीप सिंह गौड़ बताते हैं कि आज मस्तिष्क के ट्यूमर के इलाज में गामा नाइफ का व्यापक इस्तेमाल होने का कारण यह है कि परम्परागत आॅपरेशन के दौरान रक्त स्त्राव होने, मस्तिष्क के सामान्य हिस्सों को क्षति पहुंचने, आॅपरेशन के बाद मस्तिष्क के भीतर ट्यूमर के छूट जाने या ट्यूूमर के साथ-साथ मस्तिष्क के और भी हिस्सों को स्थायी क्षति पहुंचने जैसे कई दुष्प्रभाव होते हैं। हालांकि अब परम्परागत आॅपरेशन के दौरान माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल शुरू होने के कारण मस्तिष्क में बहुत छोटा सा छेद करके ही गहराई में आॅपरेशन किया जा सकता है, परंतु इसमें भी ऐसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
गामा नाइफ सेंटर तथा नौयेडा (उ.प्र.) स्थित नौयेडा मेडीकेयर सेंटर (एन.एम.सी.) के प्रमुख डा.नवीन चैधरी के अनुसार गामा नाइफ से आॅपरेशन करने के दौरान मरीज को बेहोश नहीं करना पड़ता। मरीज की चमड़ी को सुन्न करके मस्तिष्क पर धातु का एक फ्रेम (स्टीरियोटेक्टिक फ्रेम) कसा जाता है और इसके ऊपर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक बाॅक्स लगाए जाते हैं। इसके बाद एम.आर.आई., सी.टी.स्कैन या एंजियोग्राम किया जाता है और इन तस्वीरों को कम्प्यूटर में डाल दिया जाता है। इस दौरान मरीज पूरे होश में रहता है। वह बात भी कर सकता है और सब कुछ देख-सुन सकता है। जब कम्प्यूटर के अंदर सारी तस्वीरें पहुंच जाती हैं तो उसका विश्लेषण करके यह पता किया जाता है कि आॅपरेशन करने के स्थान के आस-पास कोई ऐसी चीज तो नहीं है जिसमें किरणें जाने से उसे क्षति पहुंचे। इन सब बातोें को ध्यान में रखते हुए प्लानिंग की जाती है और तत्पश्चात विकिरण दिया जाता है।
इसके लिए रोगी को मात्रा 48 घंटे ही अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। जिस दिन रोगी को भर्ती किया जाता है, उस दिन उसका सिर्फ निरीक्षण ही किया जाता हैै। अगले दिन सुबह इलाज शुरू होता है जो शाम तक खत्म हो जाता है। इसके बाद रोगी आराम करता है और अगले दिन वह घर जा सकता है। यही नहीं वह उसी दिन से काम पर भी लौट सकता है।
डा. नवीन चैधरी नयी दिल्ली के विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु संस्थान (विमहांस) स्थित रंकन गामा नाइफ सेंटर के निदेशक हैं। डा.महीप सिंह गौड़ गामा नाइफ सेंटर के गामा नाइफ रेडियोसर्जरी विभाग के प्रमुख हैं। उनसे निम्नलिखित टेलीफोन नम्बरों पर संपर्क किया जा सकता है।
मस्तिष्क मेटास्टैसिस : कैंसर कोशिकायें जब दिमाग में पहुंच जाये
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