महिलाओं में रजोनिवृति के दौरान टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का स्तर बढ़ जाने से पेट का मोटापा बढ़ता है जो हृदय रोग के खतरे को बढ़ाता है।
सुप्रसिद्ध हृदय रोग विषेशज्ञ डा. पुरूशोत्तम लाल का कहना है कि मध्य वय की महिलाओं में पेट का मोटापा हृदय रोग का एक प्रमुख कारण है। हालांकि पेट के मोटापे का उम्र से कोई संबंध नहीं है लेकिन महिलाओं में रजोनिवृति के दौरान हार्मोन असंतुलन के कारण पेट का मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा इसी दौरान टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ने से भी पेट की वसा में वृद्धि होती है जो हृदय रोग के खतरे को बढ़ाता है।
कमर के चारों ओर की वसा त्वचा के नीचे की सबक्यूटेनियस वसा से अलग होती है। पेट की वसा समयपूर्व एथेरोस्क्लेरोसिस की समस्या को बढ़ाता है और एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम के खतरे पैदा करता है।
रजोनिवृति की अवस्था किसी महिला के जीवन का निर्णायक मोड़ है। रजोनिवृति के बाद महिला को कोरोनरी रोगों से बचाने वाले हारमोनों का बनना बंद हो जाता है जिससे उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है। महिलाओं के शरीर में रजोनिवृति से पूर्व एस्ट्रोजेन एवं प्रोजेस्ट्रॉन नामक दो हारमोन उत्सर्जित होते हैं। ये हारमोन रक्त धमनियों में कोलेस्ट्रोल के जमाव को रोकते हैं। इसलिये रजोनिवृति के पूर्व महिलाओं में हृदय रोगों का खतरा कम होता है। इस वजह से सामान्य महिलाओं के हृदय रोगों से ग्रस्त होने का खतरा पुरुषों की तुलना में चार गुना कम होता है। लेकिन रजोनिवृति के बाद इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी और टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की अधिकता से महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने और उनके कोरोनरी समस्याओं से ग्रस्त होने की आषंका पुरुशों के बराबर हो जाती है।
डा. बी. सी. राय राश्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डा. लाल कहते हैं कि पहले यह माना जाता था कि इस्ट्रोजन हार्मोन रजोनिवृति से पूर्व महिलाओं में कार्डियोवैस्कुलर बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है और रजोनिवृति के बाद इस्ट्रोजन हार्मोन में कमी आने के कारण महिलाओं की यह सुरक्षा खत्म हो जाती है और कार्डियावैस्कुलर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन हाल के अध्ययनों मे यह पाया गया है कि यह खतरा सिर्फ इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी के कारण नहीं बढ़ता है बल्कि टेस्टोस्टेरॉन की अधिकता के कारण भी बढ़ता है। रजोनिवृति के बाद इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी और टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की अधिकता के कारण हार्मोन असंतुलन पैदा हो जाता है जो पेट की वसा को बढ़ाता है जिसके कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
डा. लाल बताते हैं कि हालांकि पुरुशों की तरह ही महिलाओं में भी धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा, परिवार में दिल के दौरे का इतिहास आदि ऐसे कारण हैं जो हृदय रोग के खतरे को बढ़ाते हैं। महिलाओं में गर्भनिरोधक गोलियां का सेवन भी इसकी एक मुख्य वजह है। इसके अलावा आधुनिक समय में महिलाओं पर घर के साथ-साथ दफ्तर की भी जिम्मेदारियां आ जाने से उन्हें ज्यादा तनाव का सामना करना पड़ता है। ये तनाव एक साथ मिलकर चिंता, दबाव और उच्च रक्त चाप पैदा करते हैं। यही कारण है कि रजोनिवृति की अवस्था पार कर लेने वाली हर चार महिलाओं में से एक महिला को यह रोग होता है तथा 65 साल से अधिक उम्र वाली दो महिलाओं में से एक महिला को यह रोग होता है।
सबसे अधिक एंजियोप्लास्टी एवं स्टेंटिंग करने का श्रेय हासिल करने के लिये इंडियन मेडिकल एसोसिएषन की ओर से सम्मानित डा. पुरूशोत्तम लाल ने बताया कि महिलाओं में हृदय रोगों के तेजी से बढ़ने का एक कारण यह भी है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के हृदय का आकार छोटा होता है और उनकी रक्त धमनियां पतली होती हैं। मौजूदा समय में महिलाओं में हृदय रोगों के प्रकोप में वद्धि होने का एक कारण उनमें धूम्रपान का बढ़ता प्रचलन भी है। पश्चिमी देशों में धूम्रपान की प्रवृति घट रही है, जबकि भारत सहित विकासशील देशों में पुरुषों और महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बढ़ रहा है। इसके अलावा व्यायाम नहीं करने की प्रवृति भी हृदय रोगों को बढ़ावा देती है। व्यायाम नहीं करने वाली महिला अगर गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने के साथ-साथ धूम्रपान भी करती हैं, तब उसे दिल का दौरा पड़ने का खतरा 40 प्रतिशत अधिक हो जाता है।
डा. लाल के अनुसार आम तौर पर भारतीय महिलायें पुरुषों की तुलना में अधिक मोटी होती हैं। औसत भारतीय महिलाओं का वजन सामान्य वजन से करीब 20 प्रतिशत अधिक होता है। चिकित्सकों के अनुसार मोटापा और स्थूलता हृदय रोगों का एक बड़ा कारण है।
डा. लाल बताते हैं कि जैविक एवं शारीरिक कारणों से महिलाओं में हृदय रोग बहुत तेजी से बढ़ते हैं और इसलिये महिलाओं में हृदय रोगों के लक्षण प्रकट होने पर किसी तरह की लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। लेकिन सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि महिलायें इलाज के लिए अस्पताल तभी आती हैं जब उनका हृदय रोग गंभीर हो चुका होता है। महिलायें आम तौर पर चिकित्सकों के पास तभी जाती हैं, जब बहुत देर हो चुकी होती है। वैसे भी पुरुशों के मुकाबले महिलाओं में दिल के दौरे के बाद बचने की संभावना कम होती है। पहली बार दिल का दौरा झेल चुकी महिलाओं में दूसरे दौरे को झेल पाने की क्षमता काफी कम रह जाती है। 40 साल से अधिक उम्र की जो महिलाएं पहले दौरे को झेलकर बच जाती हैं उनमें से 43 प्रतिषत महिलाएं पांच के अंदर दूसरे दिल के दौरे या दिल की अन्य तकलीफ का षिकार बन जाती हैं।
सबसे पहले तो महिलाओं को यह जानना होगा कि उनमें दिल के दौरे के लक्षण पुरुशों से कुछ अलग होते हैं। दिल के दौरे के सामान्य लक्षण हैं- सीने में तेज दर्द या दबाव जो कंधे, गर्दन या बांं तक फैल जाता है, सांस फूलना, पसीना आना, सीने में जकड़न, सीने में जलन या अपच की षिकायत, सीने में बेचैनी महसूस होना, उल्टी आना, अचानक उनींदापन या कुछ समय के लिए बेहोष हो जाना, बिना कारण कमजोरी और थकान, कुछ बुरा घटने जैसा महसूस होना। इनमें से कोई भी लक्षण प्रकट होने पर तुरत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। बेहतर होगा कि मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी सामान्य समस्याओं के प्रति ही महिलाओं को सचेत हो जाना चाहिए ताकि उनमें दिल के दौरे की नौबत ही न आए।