वर्षों से महिलाओं को हृदय रोगों के अभिशाप से मुक्त माना जाता रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में हुये अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि दिल के रोग महिलाओं में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आधुनिक समय में महिलाओं पर घर के साथ-साथ दफ्तर की भी जिम्मेदारियां आ जाने से उन्हें ज्यादा तनाव का सामना करना पड़ता है। ये तनाव एक साथ मिलकर चिंता, दबाव और उच्च रक्त चाप पैदा करते हैं।
भारत जैसे विकासशील देशों की तुलना में अमरीका जैसे विकसित एवं औद्योगिक देशों में महिलाओं में हृदय रोग अधिक होते हैं और इसका कारण यह है कि वहां की महिलायें काफी पहले से पुरुषों की तरह तेज एवं व्यस्त जिंदगी जीती हैं, बहुत ज्यादा काम करती है, बहुत ज्यादा यौन संबंध रखती हैं तथा बहुत अधिक तनाव एवं दबाव में रहती हैं। दूसरी तरफ भारत की औसत महिलायें आमतौर पर सिगरेट, शराब एवं नशीली वस्तुओं का बहुत कम सेवन करती हैं और नौकरी तथा व्यवसाय के दबाव एवं तनाव से मुक्त होती हैं। लेकिन आधुनिक समय में आर्थिक दबावों एवं अन्य कारणों से महिलायें घर के साथ-साथ दफ्तर की जिम्मेदारियां भी उठाने लगी हैं जिससे उन्हें पुरुषों की तरह बल्कि कई स्थितियों में उनसे अधिक तनाव एवं दबाव में रहना पड़ता है। यही कारण है कि देश के महिलाओं के बीच हृदय रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है। हालांकि अभी भी महिलाओं पर पुरुषों की तुलना में हृृदय रोगों का कहर काफी कम है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग चिकित्सक डा.के.के.सक्सेना के अनुसार महिलाओं के हृदय रोगों से कम ग्रस्त होने का कारण यह है कि महिलाओं के शरीर में रजोनिवृति से पूर्व एस्ट्रोजेन एवं प्रोजेस्ट्राॅन नामक दो हार्माेन उत्सर्जित होते हैं। ये हारमोन रक्त धमनियों में कोलेस्ट्राॅल के जमाव को रोकते है। इसलिये रजोनिवृति के पूर्व महिलाओं में हृदय रोगों का खतरा कम होता है। डा.सक्सेना बताते हैं कि इस वजह से सामान्य महिलाओं के हृदय रोगों से ग्रस्त होने का खतरा पुरुषों की तुलना मेें चार गुना कम होता है। लेकिन नौकरी एवं व्यवसाय करने वाली, तनाव में रहने वाली तथा सिगरेट एवं शराब पीने वाली महिलाओं में हृदय रोगों का प्रकोप अधिक होता है। सीताराम भारतीय विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि पुरुषों में मायोकार्डियल इंफ्रैक्शन महिलाओं की तुलना में एक प्रतिशत अधिक होता है जबकि महिलाओं में एंजाइना पैक्टोरिस पुरुषों की तुलना में साढ़े 36 प्रतिशत अधिक है।
एक अन्य अध्ययन के अनुसार महिलाओं में पुरुषों की तुलना में एंसीप्टोमैटीस कोरोनरी से संबंधित हृदय रोगों का प्रचलन अधिक है। अमरीका के आंकड़ों के अनुसार वहां हर नौ महिलाओं में से एक महिला को किसी न किसी प्रकार का हृृदय वाहिका (कार्डियोवैस्कुलर) रोग होता है। रजोनिवृति की अवस्था पार कर लेने वाली हर चार महिलाओं में से एक महिला को यह रोग होता है तथा 65 साल से अधिक उम्र वाली दो महिलाओं में से एक महिला को यह रोग होता है। रजोनिवृति की अवस्था किसी महिला के जीवन का निर्णायक मोड़ है। डा. सक्सेना बताते हैं कि रजोनिवृति के बाद महिला को कोरोनरी रोगों से बचाने वाले हार्मोनों का बनना बंद हो जाता है जिससे उनकेे हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है।
हालांकि अभी तक स्पष्ट तौर पर यह पता नहीं चला है कि एस्ट्रोेजेन और प्रोजेस्ट्राॅन किस तरह से कार्य करते हैं लेकिन इतना साबित हो चुका है कि ये हार्मोन महिलाओं को हृदय रोगों की चपेट में आने से निश्चित रुप से बचाते हैं। लेकिन रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजेन एवं प्रोजेस्ट्राॅन रुपी सुरक्षा कवच के उतर जाने के बाद महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने और उनके कोरोनरी समस्याओं से ग्रस्त होने की आशंका पुरुषों के बराबर हो जाती है। जो महिलायें सिगरेट पीती हैं और गर्भ-निरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उन्हें रजोनिवृति से पूर्व भी हृृदय रोगों का अधिक खतरा होता है क्योंकि इनसे उनके शरीर में कोलेस्ट्राॅल का स्तर अधिक हो जाता है।
डा. सक्सेना के अनुसार मौजूदा समय में महिलाओं में हृदय रोगों के प्रकोप में वद्धि होने का एक कारण उनमें धूम्रपान का बढ़ता प्रचलन भी है। पश्चिमी देशों में धूम्रपान की प्रवृति घट रही है जबकि भारत सहित विकासशील देशों में पुरुषों और महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बढ़ रहा है। इसके अलावा व्यायाम नहीं करने की प्रवृति भी हृदय रोगों को बढ़ावा देती है। व्यायाम नहीं करने वाली महिला अगर गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने के साथ-साथ धूम्रपान भी करती हैं तब उसे दिल का दौरा पड़ने का खतरा 40 प्रतिशत अधिक हो जाता है। आम तौर पर भारतीय महिलायें पुरुषों की तुलना में अधिक मोटी होती हैं। औसत भारतीय महिलाओं का वजन सामान्य वजन से करीब 20 प्रतिशत अधिक होता है। चिकित्सकों के अनुसार मोटापा और स्थूलता हृदय रोगों का एक बड़ा कारण है। भारतीय परिवारों में खान-पान में घी, तेल और मांस आदि पर अधिक जोर दिया जाता है। ये खाद्य पदार्थ मोटापा बढ़ाते हैं। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि महिलायें इलाज के लिये अस्पताल तभी आती हैं जब उनका हृदय रोग गंभीर हो चुका होता है। डा.सक्सेना कहते हैं कि इसका कारण यह है कि महिलायें आम तौर पर अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह भी होती हैं। अपने देश की महिलायें अपने रोगों व कष्टों के प्रति पश्चिमी देशों की महिलाओं की तुलना में बहुत अधिक उदासीन होती हैं और अपने रोगों को छिपाने की कोशिश करती हैं। रोगों की अनदेखी करने से रोग बढ़ता जाता है। महिलायें आमतौर पर चिकित्सकों के पास तभी जाती हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है। अक्सर घर के पुरुष सदस्य भी यह कहते हुये महिलाओं को चिकित्सकों के पास ले जाने को टालते रहते हैं कि यह उनके दिमाग का वहम हैं। महिलाओं के प्र्रति सामाजिक-पारिवारिक भेदभाव और गलत खान-पान एवं गलत रहन-सहन के कारण महिलाओं में हृदय रोग आज गंभीर त्रासदी बनते जा रहे हंै।
डा. सक्सेना का कहना है कि जैविक एवं शारीरिक कारणों से महिलाओं में हृदय रोग बहुत तेजी से बढ़ते हैं और इसलिये महिलाओं में हृदय रोगों के लक्षण प्रकट होने पर किसी तरह की लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। उनके अनुसार महिलाओं में हृदय रोगों के तेजी से बढ़ने का कारण यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के हृदय का आकार छोटा होता है उनकी रक्त धमनियां पतली होती हैं।