महिलाओं में आम है पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम 

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं की प्रजनन आयु में होने वाली सबसे सामान्य समस्या है। मौजूदा समय में इस आयु वर्ग की 9 से 22 प्रतिशत महिलाएं इस समस्या से प्रभावित होती हैं। इस समस्या का पता खास तौर पर तब लगता है जब महिलाएं निम्नलिखित में से कोई लक्षण या शिकायत लेकर हमारे पास आती हैं। ये लक्षण हैं — 
— अनियमित मासिक चक्र या देर से मासिक चक्र जो 35 दिनों से लेकर तीन महीने में एक बार होता है। 
— अत्यधिक मुँहासे या चेहरे के बाल या 
— बांझपन 
—  अत्यधिक वजन बढ़ना या वजन कम नहीं होना 
इन लक्षणों के अलावा कुछ महिलाएं गले के आसपास बहुत अधिक काली वेल्विटी त्वचा से पीड़ित हो सकती हैं।  
इन लक्षणों के साथ—साथ रोगी को बार—बार गर्भपात की समस्या भी हो सकती है और बाद की उम्र में मधुमेह और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर भी हो सकता है। हालांकि यह विकार बहुत ही आम है लेकिन इसका सही ढंग से इलाज जरूरी है। पीसीआडी की जांच कुछ खास परीक्षणों से हो सकती है जैसे हार्मोन जांच जैसे रक्त परीक्षण और अंडाशय के अल्ट्रासाउंड आदि। पीसीओडी की पुष्टि हो जाने पर आम तौर पर इसका इलाज दवाइयों से ही हो जाता है और एक प्रतिशत से भी कम मरीजों को सर्जरी की जरूरत पड़ती है। 
इस समस्या के उपचार के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण सलाह जीवन शैली में बदलाव है। चूंकि पीसीओडी को अब मेटाबोलिक विकार माना जाता है इसलिए मरीज को फास्ट फुड जैसे जंक फुड से दूर रहना चाहिए तथा पर्याप्त सब्जियों और सलाद से भरपूर आहार लेना चाहिए तथा नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। ये सलाह इस बीमारी के उपचार के लिए महत्वपूर्ण हैं। जीवन शैली में बदलाव के अलावा पीसीओडी की जो मरीज अधिक वजन की हैं उनको अपना वजन सामान्य करना चाहिए और कई बार इसके लिए मोटापा घटाने वाली बैरिएट्रिक सर्जरी की भी जरूरत हो सकती है। 
मरीजों को क्या दवाइयां दी जाएगी यह अलग—अलग रोगी के लिए अलग—अलग होती है, जो मरीजों की प्राथमिकताओं पर निर्भर होती है। बांझपन से ग्रस्त मरीजों को ऐसी दवाइयों की जरूरत हो सकती है जिससे अंडाशय से अंडे के उत्सर्जन में मदद मिले और मरीज गर्भ धारण कर सके। उन्हें मधुमेह में इस्तेमाल होने वाली मेटफार्मिन जैसी दवाइयां दी जा सकती है जिससे इंसुलिन का स्तर घटता है। गंभीर मामले में लैप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग की भी जरूरत पड़ सकती है। यह ड्रिलिंग स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा की जाती है जिसमें की होल सर्जरी के माध्यम से अल्ट्रासाउंड के जरिए पोलीसिस्ट को देखते हुए ड्रिलिंग की जाती है। बहुत अधिक गंभीर मामले में अंतिम उपाय के तौर पर आईवीएफ भी किया जा सकता है। 
अगर मरीज के प्रजनन का मुददा नहीं है और मरीज को अनियमित मासिक स्राव तथा अत्यधिक मुँहासे या चेहरे के बालों जैसी परेशानी है तो मरीज के मासिक स्राव को नियमित करने तथा पीसीओएस मरीजों के शरीर में रक्त के साथ संचारित होने वाले अत्यधिक पुरुष हार्मोन को कम करने के लिए कुछ ओसी पिल्स दी जा सकती हैं। साथ में मरीज को इफ्लोनाइथिन जैसी कुछ फेसियल क्रीम लगाने की सलाह दी जा सकती है ताकि चेहरे पर के बालों का विकास कम हो जाए। जरूरत पड़ने पर लेजर के जरिए चेहरे पर के बालों को भी हटाया जा सकता है। पीसीओडी के सभी मामलों में मरीजों के आत्मविश्वास में कमी आती है तथा कई महिलाओं में डिप्रेशन की समस्या भी होती है और इसलिए इस बीमारी का इलाज सही तरीके से किया जाना आवश्यक है ताकि मरीजों में आत्मविश्वास पैदा हो वे जब संतान सुख हासिल करना चाहें उन्हें मां बनने में मदद हो सके।