मौजूदा समय में हमारे देश में मधुमेह का प्रकोप बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है। वैसे तो देश में मधुमेह के मरीजों की संख्या अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है लेकिन बच्चों में मधुमेह का बढ़ता प्रकोप गंभीर चिंता का विषय है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अगले दशक में मधुमेह का प्रकोप विश्व भर में सबसे अधिक होने की आशंका है। इसका मुख्य कारण खान-पान और रहन-सहन के तौर-तरीकों में बदलाव आना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यु.एच.ओ.) का आकलन है कि सन् 2010 तक मधुमेह रोगियों की संख्या विश्व भर में सबसे अधिक होगी। दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र (डी.डी.आर.सी.) के केवल राजधानी दिल्ली में इस समय 10 से 15 लाख लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं। उनके अनुसार दिल्ली में मधुमेह के इतने मरीज और होंगे लेकिन जागरुकता एवं जानकारी के अभाव में वे अपने रोग से बेखबर हैं।
लेकिन अपने देश में बच्चों में मधुमेह (जुवेलाइन डायबेटिक) का बढ़ता प्रकोप एक गंभीर खतरा है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में हर एक हजार बच्चों में दो बच्चे मधुमेह से पीड़ित हैं। केवल दिल्ली में चार से पाँच हजार बच्चे मधुमेह के मरीज हैं। दिल्ली में इतने और बच्चे मधुमेह पीड़ित होंगे लेकिन न तो उनमें रोग का पता चला है और न ही उनका किसी तरह का उपचार हो रहा है। मधुमेह के वैसे मरीजों को जिनके रोग का पता नहीं चला है, टाइप-1 डायबेटिक कहा जाता है और इनकी संख्या मधुमेह के कुल मरीजों की संख्या का 10 प्रतिशत है।
मधुमेहग्रस्त बच्चों के माता-पिता को अत्यंत तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ता है। ये माता-पिता समाज में अपने बच्चे के रोग का भेद नहीं खोलना चाहते क्योंकि उन्हें भय होता है कि अगर लोगों को उनके बच्चे के रोग के बारे में पता चल गया तो उनके बच्चे को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलेगी। निश्चय ही ऐसे बच्चे का पालन-पोषण एवं देखभाल अत्यंत जिम्मेदारी एवं चुनौती भरा कार्य है। लेकिन ऐसे बच्चों को बोझ मानना या अन्य बच्चों से कम करके आँकना मधुमेहग्रस्त बच्चों के साथ अन्याय है क्योंकि ये बच्चे किसी भी मायने में अन्य बच्चों से उन्नीस नहीं होते हैं। ये बच्चे भी भविष्य में अपना, अपने परिवार एवं देश का नाम रौशन कर सकते हैं बशर्ते परिवार एवं समाज के लोग इन बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। लोगों को यह समझ लेना चाहिये कि मधुमेह पीड़ित बच्चे की क्षमतायें दूसरे बच्चों की तुलना में किसी भी तरह से कम नहीं होतीं। ऐसे बच्चों के पालन-पोषण एवं विकास में माता-पिता के साथ-साथ पूरे परिवार, समाज एवं स्कूल का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बच्चे के माता-पिता के लिये यह आवश्यक है कि वे स्कूल के अध्यापकों से बच्चे की बीमारी के बारे में नहीं छिपायें बल्कि उन्हें इस बात से अवगत करायें कि उनके बच्चे की क्या विशेष जरूरतें हो सकती हैं और संकट के समय में क्या करना जरूरी होगा।
बच्चों में मधुमेह की शुरूआत अक्सर अचानक ही होती है। सहसा अधिक प्यास लगने लगती है, भूख बहुत बढ़ जाती है और वजन घटने लगता है। बच्चे बार-बार मूत्र त्याग करते हैं। अगर माता-पिता इन्हीं लक्षणों के उभरने पर बच्चे का सही इलाज आरंभ कर दें तो बाद में बच्चे को कोई खास दिक्कत नहीं होती लेकिन कई बच्चों में मधुमेह का पता तब चलता है जब मधुमेह के कारण बच्चा बेहोश हो जाता है या शरीर में कोई गंभीर संक्रमण हो जाता है।
बच्चों में मधुमेह कई कारणों से होते हैं जिनमें विषाणुओं का संक्रमण, रोग प्रतिरक्षण प्रणाली में गड़बड़ी और आनुवांशिक गड़बड़ियाँ प्रमुख हैं। इन कारणों से अग्न्याशय में स्थित इंसुलीन बनाने वाली पैंक्रियाज ग्रंथि नष्ट हो जाती है जिससे शर्करा को पचाने वाली इंसुलीन की या तो कमी हो जाती है या इसका बनना बंद हो जाता है। शरीर में इंसुलीन के कम होने या नहीं होने पर शर्करा पच नहीं पाता और बिना पचे मूत्रा के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाता है। इससे शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोज नहीं मिल पाता है। शरीर काम के लिये आवश्यक ऊर्जा नहीं जुटा पाता और बच्चा हमेशा थका-थका रहता है।
अभी तक मधुमेह का कोई स्थायी उपचार विकसित नहीं हो पाने के कारण मधुमेहग्रस्त बच्चे को ताउम्र इंसुलीन के टीके लेने होते हैं जिसकी मात्रा उम्र के हिसाब से तय होती है। इसके अलावा खान-पान में सावधानियाँ बरतनी पड़ती है। मधुमेह ग्रस्त बच्चे इंसुलीन के टीके लेकर तथा खान-पान संबंधी एहतियात बरत कर सामान्य बच्चों की भाँति पढ़ाई-लिखाई एवं खेल-कूद जैसी हर गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। लगन एवं मेहनत की बदौलत कई बच्चों ने विभिन्न क्षेत्रों में शानदार कामयाबियाँ पायी है और कीर्तिमान स्थापित किया है।
मधुमेह से ग्रस्त बच्चों के साथ दो संकटमय स्थितियाँ पैदा हो सकती है अतः माता-पिता एवं शिक्षकों को इनके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। पहली स्थिति में रक्त शक्कर की मात्रा घटने से बच्चा हाइपोग्लाइसीमिया में जा सकता है। यह स्थिति अधिक मात्रा में इंसुलीन लेने या समय पर भोजन नहीं करने के परिणाम से उत्पन्न होती है। ऐसे में बच्चे का चेहरा पीला पड़ जाता है, उसे अचानक बहुत कमजोरी महसूस होने लगती है, तेज भूख लगती है, पसीना अधिक आता है, दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है, बदन काँपने लगता है तथा चक्कर आने लगता है। इस संकट से बच्चे को बचाने के लिये उसे तुरन्त शक्करयुक्त मीठी चीज देना जरूरी होता है। इससे आम तौर पर बच्चे की स्थिति कुछ ही मिनटों में सुधर जाती है। लेकिन अगर 10-15 मिनट में आराम नहीं हो तो बच्चे को तत्काल चिकित्सक के पास ले जाना चाहिये। हाइपोग्लाइसीमिया की गंभीर स्थिति में बच्चा बेहोश हो सकता है। ऐसे में बच्चे को किसी अस्पताल की इमरजेंसी में ले जाना चाहिये।
मधुमेह के बच्चे के साथ दूसरी गंभीर अवस्था डायबिटिक कीटो-एसिडोसिस है। इस अवस्था में रक्त शक्कर बहुत अधिक बढ़ जाता है, शरीर में जैव-रासायनिक असंतुलन पैदा हो जाता है, मूत्रा में शर्करा के साथ कीटोन भी जाने लगता है, शरीर में पानी की कमी हो जाती है और रक्त में अम्ल का स्तर बढ़ जाता है। यह स्थिति उपचार के एहतियात का ठीक से पालन नहीं करने या कोई गंभीर संक्रमण हो जाने पर पैदा होती है। इस स्थिति में बच्चे को प्यास बहुत लगती है, बार-बार पेशाब होता है, पेट में दर्द उठता है, जी मिचलाता है, उल्टी हो सकती है, मुँह सूख जाता है, सांस तेज हो जाती है और साँस से सड़े फल जैसी बदबू आती है और नब्ज कमजोर पड़ जाती है। ऐसी स्थिति होने पर बच्चे को तत्काल चिकित्सक के पास ले जाना चाहिये।
मधुमेहग्रस्त बच्चे बोझ नहीं
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