मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इंसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन करना चाहिए।
चिन्ता, तनाव, व्यग्रता से मुक्त रहें।
तीन माह में एक बार रक्त शर्करा की जाँच कराएं।
भोजन कम करें, भोजन में रेशे युक्त द्रव्य, जौ, चने, गेहूँ, बाजरे की रोटी, हरी सब्जी एवं दही का प्रचुर मात्रा में सेवन करें। चना और गेहूँ को 1ः1 में मिलाकर उसके आटे की रोटी खाना बेहतर है।
हल्का व्यायाम करें, शारीरिक परिश्रम करें अथवा प्रातः 4-5 कि.मी. घूमें।
मधुमेह पीड़ित मनुष्य नियमित एवं संयमित जीवन जीने पर विशेष ध्यान दें।
मीठे पदार्थों का सेवन बहुत सीमित मात्रा में करें।
स्थूल तथा अधिक भार वाले व्यक्ति अपना वजन कम रखने का प्रयत्न करें।
चोकर युक्त और रेशा युक्त आहार का विशेष सेवन करें।
दवाओं का सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करें।
प्रति दिन कुछ समय के लिये प्राणायाम अवश्य करना चाहिये। मधुमेह के रोगियों को 'कपाल-भाति प्राणायाम' करने से भी बहुत लाभ होता है।
जहाँ तक संभव हो कुछ समय नंगे पैर जमीन पर अवश्य चलना चाहिए, यदा-कदा स्थान, जलवायु इत्यादि में भी बदलाव करें। शुगर के स्तर की नियमित जाँच कराते रहें।
व्यायाम
व्यायाम से रक्त शर्करा का स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है। प्रतिघंटा 6 कि.मी की गति से चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी की खपत होती है जबकि साइकिल चलाने से लगभग 200 कैलोरी समाप्त होती है।
त्वचा की देखभाल
मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। ग्लूकोज की मात्रा अधिक होने के कारण उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि उनमें रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएं हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। ग्लूकोज की मात्रा अधिक होने से निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।
अपने शरीर की देखभाल
मधुमेह रोगियों को अपने शरीर की स्वयं देखभाल करनी चाहिये। हल्के साबुन और हल्के गरम पानी से नियमित स्नान करना चाहिए। उन्हें अधिक गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए और नहाने के बाद शरीर को अच्छी तरह से पोछ लेना चाहिए तथा कांख, उंगलियों के बीच आदि जैसे त्वचा की सिलवटों वाले स्थान को विषेश रूप से सूखा रखना चाहिए। इन जगहों पर अधिक नमी होने से फफूंदी संक्रमण की अधिक संभावना होती है। त्वचा को अधिक सूखी न होने दें क्योंकि जब आप सूखी, खुजलीदार त्वचा को रगड़ते हैं तो आप कीटाणुओं के लिए द्वार खोल देते हैं। पर्याप्त तरल पदार्थों को लें जिससे कि त्वचा नमीयुक्त बनी रहे।
घावों की देखभाल
समय-समय पर कटने-फटने को टाला नहीं जा सकता है। मधुमेह रोगियों को मामूली घावों पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। मामूली कटने और छिलने का भी सीधे उपचार करना चाहिए। उन्हें यथाशीघ्र साबुन और गरम पानी से धो डालना चाहिए और उन पर विसंक्रमित बैंडेज या पट्टी बांध कर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
यदि बहुत अधिक कट या जल गया हो, त्वचा पर कहीं पर भी ऐसा लालीपन, सुजन, मवाद या दर्द हो जिससे कीटाणु संक्रमण की आशंका हो या रिंगवर्म, जननेंद्रिय में खुजली या फफूंदी संक्रमण के कोई अन्य लक्षण दिखे तो चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।
पैरों की देखभाल
मधुमेह की बीमारी में रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर के कारण स्नायु खराब होने से संवेदनशीलता खत्म हो जाती है। पैरों की नियमित जांच करें, पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की नजदीकी से जांच करें। देखें कि त्वचा कहीं से कट-फट तो नहीं गयी है, उनमें कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है। उंगलियों के नीचे और उनके बीच देखना भी न भूलें। हल्के साबुन से और गरम पानी से प्रतिदिन नियमित रूप से सफाई करें। हाथों और पैरों की उंगलियों के नाखूनों को नियमित काटते रहें। पैरों की सुरक्षा के लिए जूते पहनें।
मधुमेह रोगी क्या खायें और क्या नहीं खायें
- लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स वाली चीजें यानी जो शरीर में जाकर धीरे-धीरे ग्लूकोज में बदलती हैं, खानी चाहिए। इनमें हरी सब्जियां, सोया, मूंग दाल, काला चना, राजमा, ब्राउन राइस, अंडे का सफेद हिस्सा आदि शामिल हैं।
- खाने में करीब 20 फीसदी फाइबर जरूर होना चाहिए। गेहूं से चोकर न निकालें। लोबिया, राजमा, स्प्राउट्स आदि खाएं क्योंकि इनसे प्रोटीन और फाइबर दोनों मिलते हैं। स्प्राउट्स में ऐंटी-ऑक्सिडेंट भी काफी होते हैं।
- दिन भर में 4-5 बार फल और सब्जियां खाएं लेकिन एक ही बार में सब कुछ खाने की बजाय बार-बार थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। फलों में चेरी, स्ट्रॉबेरी, सेब, संतरा, अनार, पपीता, मौसमी आदि और सब्जियों में करेला, घीया, तोरी, सीताफल, खीरा, टमाटर आदि खाएं।
- रोजाना एक मुट्ठी ड्राइ-फ्रूट्स खाएं यानी 10-12 बादाम या 5-7 बादाम और 3-4 अखरोट खा सकते हैं।
- घीया, करेला, खीरा, टमाटर, अलोवेरा और आंवला का जूस खाफी फायदेमंद है।
- लो फैट दही और स्किम्ड/डबल टोंड दूध लेना चाहिए। ग्रीन टी पीना अच्छा है। चाय के साथ हाई फाइबर बिस्किट या फीके बिस्किट ले सकते हैं। उच्च रक्तचाप नहीं है तो नमकीन बिस्किट भी खा सकते हैं।
- जौ (बारले), काला चना, मूंग दाल और जामुन खास तौर पर फायदेमंद हैं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स भी कम है और ये पित्त के इंबैलेंस को कम करने के साथ-साथ अगर अंदर सूजन हो गई है तो उसे भी कम करते हैं।
- काला नमक डालकर छाछ पिएं। नारियल पानी पिएं। घर में बने सूप पिएं।
- नीम-करेला पाउडर ले सकते हैं। हालांकि इसका तुरंत कोई फायदा नहीं होता कि कोई उलटा-सीधा खाने के बाद सोचे कि दो चम्मच नीम-करेला पाउडर खा लेंगे तो ठीक हो जाएगा। यह गलत है। लेकिन लंबे वक्त में यह जरूर फायदा पहुंचाता है।
क्या न खाएं
- चीनी, शक्कर, गुड़, गन्ना, शहद, चॉकलेट, पेस्ट्री, केक, आइसक्रीम आदि मीठी चीजें न खाएं।
- हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजों से बचें क्योंकि ये जल्दी ग्लूकोज में बदल जाती हैं। इससे शरीर में शुगर एकदम से बढ़ जाता है। ऐसे में इंसुलिन को शुगर कंट्रोल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इनमें मैदा, सूजी, सफेद चावल, व्हाइट ब्रेड, नूडल्स, पिज्जा, बिस्किट, तरबूज, अंगूर, सिंघाड़ा, चीकू, केला, आम, लीची आदि प्रमुख हैं।
- पूरी, पराठें, पकौड़े आदि न खाएं। इनसे वजन के साथ-साथ कॉलेस्ट्रॉल भी बढ़ता है।
- जूस से बचना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा ज्यादा होती है। पैक्ड जूस बिल्कुल न लें। सीधे फल खाना ज्यादा फायदेमंद है।
- सब्जियों में आलू, अरबी, कटहल, जिमिकंद, शकरकंद, चुकंदर न खाएं। इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होता है, जो शुगर को बढ़ा सकते हैं। इन्हें उबाल कर कभी-कभी खाया जा सकता है लेकिन फ्राई करके कभी न खाएं।
- फलों में आम, चीकू, अंगूर, केला, अनानास, शरीफा आदि से परहेज करें क्योंकि इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है।
- मैदा और मक्के का आटा न खाएं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स ज्यादा होता है और ये रिफाइन भी होते हैं।
- व्हाइट राइस की बजाय ब्राउन राइस खाएं। चावलों का मांड निकालकर खाना सही नहीं है क्योंकि इससे सारे विटामिन और मिनरल निकल जाते हैं।
- ऐनिमल फैट (मक्खन, पनीर, मीट आदि) का सेवन कम कर देना चाहिए।
- शराब डॉक्टर की सलाह पर ही पीएं। खाली पेट बिल्कुल न पीएं। इससे हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर लेवल का एकदम नीचे गिर जाना) हो सकता है। ज्यादा शराब पीने से यूरिक एसिड और ट्राइग्लाइसराइड बढ़ता है और शुगर को कंट्रोल करना मुश्किल होता है।