आजकल लेजर किरणों का इस्तेमाल ल्यूकोप्लेकिया, हिमैन्जीयोमा, मल्टीपल वार्ट, रोडेन्ट अल्सर, छोटे मस्से और निभस जैसे त्वचा रोगों के इलाज में होने लगा है। इनमें से कई त्वचा रोग समय पर इलाज नहीं होने की स्थिति में कैंसर में भी बदल जाते हैं। नयी दिल्ली के दरियागंज स्थित कुंदन लेजर सेंटर के वरिष्ठ लेजर सर्जन डा. पंकज कुमार के अनुसार लेजर चिकित्सा पूरी तरह से कष्टरहित है। इससे इलाज करने पर न तो रक्त स्राव होता है और न ही कोई दर्द होता है। साथ ही मरीज जल्दी ठीक होता है।
आधुनिक समय में लेजर का इस्तेमाल एक नयी चिकित्सा पद्धति के रूप में होने से कई बीमारियों का इलाज कष्टरहित एवं आसान हो गया है। आज लेजर का प्रयोग अनेक त्वचा ट्यूमरों एवं त्वचा रोगों के उपचार के लिये भी हो रहा है। लेजर चिकित्सा विशेषज्ञ डा. पंकज कुमार के अनुसार लेजर का दो तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। एक तरीके से त्वचा की ऊतकों के पानी का वाष्पीकरण किया जाता है जबकि दूसरे तरीके का इस्तेमाल त्वचा को काटने में होता है। लेजर से त्वचा की जिन बीमारियों का इलाज होता है उनमें हिमैन्जीयोमा, ल्यूकोप्लेकिया, मल्टीपल वार्ट, रोडेन्ट अल्सर, छोटे मस्से, निभस आदि शामिल हैं। हिमैन्जीयोमा धमनियों का मालफाॅर्मेशन है। इसमें बच्चों की त्वचा पर लाल चकत्ते जैसे निकल आते हैं जो मुख्यतः चेहरे और गर्दन पर काले धब्बे की तरह होते हैं।
ल्यूकोप्लेकिया
ल्यूकोप्लेकिया मुंह के कैंसर की पूर्व अवस्था है जिसमें मुंह में गाल की भीतरी त्वचा एवं जीभ पर सफेद चकत्ते (पैच) बन जाते हैं। इसे छूने पर ऐसा महसूस होता है मानो वहां त्वचा पर अलग से कोई पैबंद रखी हुयी है। कई बार ये चकत्ते छिल कर निकल जाते हैं जिससे त्वचा की निचली गुलाबी परत बाहर आ जाती है। त्वचा रोगों के विशेषज्ञ डा. पंकज कुमार बताते हैं कि ल्यूकोप्लेकिया का लंबे समय तक इलाज नहीं कराने पर यह कैंसर में बदल जाती है। इसे चिकित्सकीय भाषा में कैंसर इन सीटू अर्थात अपने दायरे में सिमटा कैंसर कहा जाता है।
ल्यूकोप्लेकिया मुंह के अलावा शरीर के अन्य अंगों खास कर जननांगों में भी हो सकती है।
जननांगों के ट्यूमर
जननांगों में होने वाले ट्यूमर (वार्टस) ह्यूमन पैपिलोमा वाइरस (एच.पी.वी.) नामक विषाणुओं से होने वाला अत्यंत सामान्य किस्म के मस्से हैं। ये बच्चों तथा युवकों में अधिक सामान्य है। तकरीबन 30 प्रकार के ह्यूमन पैपिलोमा विषाणु जननांग के निचले हिस्से में मस्से पैदा करते हैं। ये विषाणु शारीरिक संबंध बनाने वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों के जननांगों को संक्रमित कर सकते हैं। यह संक्रमण सामान्यतः योनि, गुदा या मुख मैथुन के समय होता है। यौन रूप से सक्रिय 80 प्रतिशत लोग अपनी जिंदगी में कभी न कभी इससे अवश्य संक्रमित होते हैं। डा. नीरजा वाटला कहती हैं कि ज्यादातर मामलों में एच.पी.वी. संक्रमण अपने आप ठीक हो जाते हंै। लेकिन अगर ये संक्रमण लंबे समय तब बने रहंे तो ये गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का कारण बन सकते हंै।
एच.पी.वी. संक्रमण का कोई विशेष इलाज नहीं है लेकिन ये विषाणु अक्सर पोडोफाइलिन या इंटरफेराॅन नामक दवाईयों से नियंत्रित हो जाते हैं। कई बार क्रायोसर्जरी, लेजर या परम्परागत सर्जरी की मदद लेनी पड़ सकती है। कई बार ये बिना कोई दाग छोड़े अपने आप ठीक हो जाते हैं लेकिन लंबे समय तक रहने वाले मस्सों को अनेक विधियों से दूर किया जा सकता है। इन विधियों में स्क्रैपिंग, फ्रीजिंग, इलेक्ट्रोकैथेराइजेशन और कार्बन डाई आक्साइड लेजर शामिल हंै। नौएडा (उ.प्र.) के 62 सेक्टर में स्थित चित्रा हाॅस्पीटल के प्रमुख डा. पंकज कुमार के अनुसार लेजर विधि अन्य तरीकों की तुलना में काफी कारगर है।
रोडेन्ट अल्सर
रोडेन्ट अल्सर आम तौर पर ऊपरी ओंठ या नाक के ठीक नीचे उभरने वाले फोड़ें (सोर) हैं। समय पर इनका इलाज नहीं होने पर इनके आकार और गहराई में बढ़ोतरी होती जाती है। गंभीर अवस्था में पूरे ऊपरी आंेठ पर जख्म हो सकते हैं। ये फोड़े मंुह के भीतर भी फैल सकते हैं। कई बार रोडेन्ट अल्सर पिछले पैर पर भी हो सकते हैं। ये फोड़े आम तौर पर कष्टकारी नहीं होते हैं। ये एक तरह के कम फैलने वाले कैंसर हैं। लेजर से इसका इलाज करने पर इनके पुनः होने की आशंका कम होती है।
लेजर से त्वचा रोगों का इलाज
हमारे देश के कुछ गिने-चुने क्रेन्द्रों में त्वचा ट्यूमरों एवं अन्य त्वचा रोगों का लेजर से उपचार किया जाने लगा है। इन ट्यूमरों के परम्परागत आॅपरेशन के तहत प्रभावित हिस्से को सुन्न करके उस हिस्से को निकाल लिया जाता है और वहां टांके लगा दिये जाते हंै। परम्परागत आॅपरेशन की तुलना में विद्युत ऊर्जा की मदद से प्रभावित हिस्से को जलाना अधिक सुविधाजनक है। साथ ही इसमें मरीज को तुलनात्मक रूप से कम कष्ट होता है जबकि लेजर पूरी तरह से कष्टरहित है। उन्होंने बताया कि कार्बनडाईक्साइड लेजर ऊर्जा मरीज को कोई कष्ट पहुंचाये बगैर प्रभावित भाग को जला देती है।
लेजर से इलाज करने पर न तो रक्त स्राव होता है, न ही कोई दर्द होता है और न ही किसी तरह के निशान रहते हैं। साथ ही मरीज जल्दी ठीक होता है। जबकि विद्युत ऊर्जा से जलाने पर जख्म भरने में अधिक समय लगता है और उसके निशान भी रह जाते हैं।
लेजर से एक फोड़े को हटाने में तकरीबन पांच मिनट लगते हैं। विशेष स्कैनर की मदद से पूरे धब्बे की आकृति कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है। लेजर मशीन को चालू करने पर लेजर ऊर्जा सीधे धब्बे पर फोकस होती है और पूरे धब्बे को मात्रा एक सेंकेड में हटा देती है। इस तरह सभी सफेद चकत्ते को निकाल लिया जाता है। इस आॅपरेशन के लिये कार्बन डाई आक्साइड लेजर का उपयोग होता है।
लेजर द्वारा चेहरे की झुर्रियां, चेहरे पर चेचक एवं मुंहासे के दाग हटाने या कटे-फटे निशान को निकालने, गर्भ के बाद पेट एवं छाती में आये दाग को हटाने, पाइल्स (बबासीर), फिस्चुला (भगंदर) एवं फिशर का भी इलाज संभव है।
लेजर से त्वचा रोगों का इलाज
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