तिल हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से अहानिकर धब्बे (लीशन) हैं लेकिन ये चेहरे और शरीर के खुले रहने वाले अंगों की खूबसूरती बिगाड़ देते हैं। चिकित्सकीय भाषा में इन्हें मेलानोसाइटिक अथवा पिगमेंटेड नैवी कहा जाता है।
तिल त्वचा पर समतल या उभरे हुये हो सकते हैं। इनके आकार एवं रंग अलग-अलग हो सकते हैं। ये गुलाबी, गहरे भूरे से लेकर काले रंग के हो सकते हैं। किस व्यक्ति को कितने और किस तरह के तिल होंगे यह आनुवांशिक कारणों और धूप के संपर्क पर निर्भर करता है। तिल का उगना जन्म के बाद से ही शुरू हो जाता है लेकिन नये तिल किसी भी उम्र में उग सकते हैं। धूप में अधिक समय तक रहने तथा गर्भावस्था के दौरान तिल का रंग काला होता जाता है। वयस्क होने पर तिल रंग छोड़ सकते हैं और अधिक उम्र में ये गायब भी हो सकते हैं।
जन्म के समय से मौजूद तिल को कंजेनिटल पिगमेंटेड नेवस कहा जाता है। अनुमानों के अनुसार करीब एक सौ शिशुओं में से एक शिशु को जन्म से ही तिल होता है। जन्मजात तिल का आकार अलग-अलग हो सकता है। कुछ तिल का व्यास कुछ मिलीमीटर हो सकता है जबकि कुछ शिशु की पूरी त्वचा के आधे हिस्से में फैला हो सकता है। बहुत बड़े तिल के बाद में कैंसर में तब्दील होने की आशंका होती है। इसलिये जन्मजात तिल में कोई बदलाव नजर आने पर चिकित्सक से जांच करानी चाहिये।
कई बार तिल के चारों तरफ की त्वचा रंग खोकर सफेद हो जाती है। इस स्थिति को हालो नैवस कहा जाता है। ऐसा बच्चों और किशोरों में अधिक होता है। यह हानिरहित होता है और कुछ समय बाद तिल और उसके चारों तरफ के सफेद घेरे गायब हो जाते हैं। गोरे लोगों खास तौर पर लाल बालों एवं भूरी आंखों वाले लोगों में छोटे-छोटे भूरे समतल तिल अधिक सामान्य होते हैं। इन्हें फ्रैकल्स कहा जाता है। ये तिल शरीर के उन हिस्सों में होते हैं जो धूप के सीधे संपर्क में आते रहते हैं। गर्मी के दिनों में इनका रंग काला होता जाता है। कुछ तरह के तिलों को एटाइपिकल नैवी कहा जाता है और ये कैंसरजन्य तिलों (मेलोनोमा) से मिलते-जुलते हैं। ये तिल कैंसर में बदल सकते हैं।
हालांकि ज्यादातर तिल अहानिकर होते हैं लेकिन ये कई बार सौंदर्य को बिगाड़ देते हैं इसलिये इन्हें कई बार हटाना लाजिमी हो जाता है। लेकिन कई तिल कैंसर एवं अन्य बीमारियों के संकेत हो सकते हैं और इसलिये इनकी जांच कराकर इनका इलाज कराया जाना चाहिये। खास कर उन तिलों का इलाज जरूरी है जिनसे रक्त निकलता हो, जिनका आकार असामान्य हो, जो तेजी से बढ़ रहे हों, जिनके रंग बदल रहे हों और कपड़े, कंघी या रेजर के संपर्क में आने पर जिनमें खुजलाहट होती हो।
बदसूरती पैदा करने वाले तिलों को केमिकल पीलिंग जैसी अनेक विधियों से हटाया जा सकता है लेकिन आजकल इन्हें कारगर एवं कष्टरहित तरीकों से दूर करने के लिये लेजर का इस्तेमाल हो रहा है। लेजर अर्थात लाइट एम्प्लीफिकेशन बाई स्टिमुलेटेड इमिशन आफ रेडियेशन एक विशेष तरह की रोशनी होती है जिसका विशेष तरंग दैध्र्य होता है।
लेजर अनेक तरह के होते हैं और अलग-अलग लेजर का अलग-अलग इस्तेमाल होता है। लेजर के जरिये तिल को मिटाने के लिये सबसे पहले तिल वाले क्षेत्र को सुन्न कर दिया जाता है। इसके बाद मरीज को आपरेशन थियेटर ले जाकर तिल वाले क्षेत्र की सफाई की जाती है। तिल छोटा या उसका रंग हल्का पर सुन्न करना ही पर्याप्त होता है लेकिन बहुत तिल का रंग अधिक गहरा होने पर मरीज को बेहोश करने की जरूरत पड़ सकती है।
तिलों को मिटाने के लिये लेजर थिरेपी का इस्तेमाल होने लगा है। ज्यादातर कास्मेटिक सर्जन कार्बन डाई आक्साइड लेजर का प्रयोग करते हैं। लेजर थिरेपी से उन निशानों को सफलतापूर्वक हटाया जाता है जो त्वचा की सतह से ज्यादा नीचे नहीं होते हैं। इन निशानों को हटाने में लेजर थिरेपी काफी कारगर साबित होती है। जब इस लेजर की किरणें त्वचा पर डाली जाती है तो यह केवल त्वचा के ऊपरी सतह पर असर डालता है। इन लेजर किरणों के प्रयोग से त्वचा से रक्त नहीं निकलता। चिकित्सक तिल के आधार पर यह तय करता है कि कितनी देर तक लेजर किरणें डाली जाये ताकि त्वचा को किसी तरह की हानि नहीं हो। इन किरणों से तिल की परत को जला दिया जाता है लेकिन भीतरी त्वचा सुरक्षित रखी जाती है। लेजर के बाद त्वचा को धूप से बचाना जरूरी होता है।
लेजर किरणें करेगी तिल का सफाया
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
– विनाेद कुमार संगोष्ठी के दौरान डा़ रामदास तोंडे की पुस्तक ʺसाहित्य और सिनेमाʺ का लोकार्पण तेजी से बदलते युग में ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय प...
-
चालीस-पचास साल की उम्र जीवन के ढलान की शुरूआत अवश्य है लेकिन इस उम्र में अपने जीवन के सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा व्यक्ति पार्किंसन जैसे स्नायु...
-
कॉस्मेटिक उपचार के बारे में मन में अक्सर कई विरोधाभाश और सवाल उठते रहते हैं लेकिन अब इनके जवाब अनुत्तरित रह नहीं रह गये हैं। यहां यह उल्लेख ...
Featured Post
श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर विशेष कार्यशाला का आयोजन
नई दिल्ली , 18 जनवरी: मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई) में "श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर एक विशेष कार्यशा...
Blog Archive
Labels
addiction
ayurveda
ayush
traditional medicine
Beauty & Fitness
black fungus
bollywood
breat cancer
central government
Chandrayaan-3
children
CII
cinama
literature
corona
cosmetic laxe
covid
covid positiv mother
diabetes
diet
divyang
DNA vaccine
eye care
eye donation
food
food & nutrition
gov
health
Health centre
health and food
Health Articles
health family welfare
Health News
health news
corona
health problems
healthy food
healthy heart
Heart Care
heart diseases
covid-19
Heart Problems
immunisation
pandemic
infertility
joshimath
Lifestyle
mental health
monkey pox
National News
nutrition
child health
obesity
obesity in children
obesity and mental health
proteins
roda safety
soy food industry
soya
UHI
vaccination
vaccine
WHO
Women's Health
yoga