लीवर की एक्यूट बीमारियों में परंपरागत इलाज अगर कारगर नहीं हो तो होम्योपैथी आजमाएं  -

लीवर की विभिन्न प्रकार की बीमारियों के प्रबंधन में होम्योपैथी बेहद प्रभावी है। हमारे क्लिनिक में हेपेटाइटिस- ए जैसी लीवर की बीमारियों के साथ-साथ लीवर सिरोसिस और हेपेटो-सेल्युलर कार्सिनोमा जैसी अधिक जटिल बीमारियों से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए विकसित किये गये विशिष्ट उपचार रोगियों को अत्यधिक लाभ और राहत प्रदान कर रहे हैं। 
लीवर की कई बीमारियों का पारंपरिक चिकित्सा में कोई विशेष इलाज नहीं है। हमारे क्लिनिक में डॉक्टर के पास नियमित रूप से लीवर सिरोसिस के मरीज आते हैं। ये बीमारियां विभिन्न कारणों से होती हैं। शराब का अत्यधिक सेवन और क्रोनिक वायरल हैपेटाइटिस, लीवर की क्रानिक बीमारी के दो सबसे सामान्य कारण हैं। यदि रोगी प्रारंभिक अवस्था में हमारे पास आता है, तो होम्योपैथिक इलाज से बीमारी को ठीक किया जा सकता है और, कई मामलों में, इसमंे एक हद तक सुधार किया जा सकता है और रोगी को राहत प्रदान किया जा सकता है। जिन रोगियों में एडवांस्ड सिरोसिस होता है, हमारा उद्देष्य बीमारी का बढ़ने से रोकना और रोगी के उच्च गुणवत्ता पूर्ण जीवन स्तर को बनाए रखना होता है। पेट (जलोदर) में काफी मात्रा में द्रव का निर्माण और भोजन की नली (इसोपोफेजल वेरिसेज) की पतली नसों से रक्तस्राव जैसे मुश्किल संकेत और लक्षण भी होम्योपैथिक इलाज से प्रभावी रूप से प्रबंधित किए जाते हैं।
दवा के कारण होने वाली लीवर को क्षति भी एक अन्य सामान्य बीमारी है जिसमें 75 प्रतिषत मामलों में या तो लीवर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है या रोगी की मौत हो जाती है। एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स और कई अन्य पारंपरिक दवाओं के सेवन के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ज्यादातर स्थितियों में, लीवर की गंभीर बीमारियांे का एलोपैथी में इलाज के बहुत सीमित विकल्प हैं, क्योंकि रोगी अन्य दवाओं के प्रति प्रतिकूल प्रतिक्रिया कर सकता है। ऐसे कई मामले जिनका इलाज दुनिया के अग्रणी अस्पतालों में इंटेंसिव केयर यूनिट में किया जा रहा था, इस क्लिनिक में इलाज शुरू करने के बाद उनमें आष्चर्यजनक रूप से फायदा हुआ।
हम हेपेटो- सेलुलर कार्सिनोमा के बहुत से रोगियों को देखते है। यदि रोगी प्रारंभिक अवस्था में हमारे पास आता है, तो होम्योपैथिक इलाज से बीमारी को ठीक किया जा सकता है। हम इस कैंसर के ऐसे बहुत से रोगियों को देखते हैं, जो इसके लिए उपलब्ध सभी प्रकार के इलाज पहले ही करा चुके होते हैं और उन्हें उनसे कोई फायदा नहीं होता है और फिर वे हमारे पास आते हैं। ऐसे कई उदाहरणों में, हम बीमारी को बढ़ने से रोकने में मदद कर सकते हैं, रोगी के जीवन काल को काफी बढ़ा सकते हैं और रोगी को उच्च गुणवत्ता पूर्ण जीवन प्रदान कर सकते हैं।
हेपेटो-सेल्युलर कार्सिनोमा के मरीज के औसतन जीवित रहने की अवधि 11 महीने होती है और वे अधिकतम 24 महीने तक जीवित रह सकते हैं। हमारे पास कई मरीज हैं जो जीवित रहने के समय को पार कर चुके हैं और हमने पाया है कि होम्योपैथिक इलाज कराने वाले ज्यादातर मरीज पांच साल से भी अधिक समय तक जीवित रहे हैं। 
इसी तरह, डीकाम्पन्सेटेड लीवर सिरोसिस वाले जिन मरीजों को एसाइट्स (पेट में तरल पदार्थ) हैं उन मरीजों में से 50 प्रतिषत मरीजों के जीवित रहने की दर एक साल है। हालांकि, हमारे क्लिनिक में इलाज करने वाले ऐसे मरीजों में 80 प्रतिषत मरीज एक साल से भी अधिक समय तक जीवित रहते हैं।
होम्योपैथी की दवाइयां अक्सर पारंपरिक चिकित्सा के साथ-साथ दी जाती हैं। लीवर बीमारी के गंभीर अवस्था में पहुंच जाने पर अस्पताल में रोग के प्रबंधन तथा मरीज की स्थिति पर बारीकी से निगरानी रखने की आवश्यकता होती है। पेट के तरल पदार्थ को निकालने, खून की कमी को रोकने, रक्त प्रोटीन के स्तर में वृद्धि आदि जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में करने की आवश्यकता होती है। हमारे कई मरीज, अस्पताल में रहते हुए अक्सर हमारा इलाज शुरू कर देते हैं।
कई कठिन परिस्थितियां जिन्हें अपरिवर्तनीय या लाइलाज माना जाता है, उनका लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है। हालांकि, वायरल हेपेटाइटिस जैसी अन्य स्थितियों में बहुत कम समय तक इलाज की आवश्यकता हो सकती है। रोगी को आहार और जीवनशैली में बदलाव के बारे में सलाह देना होम्योपैथिक इलाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अल्कोहलिक लीवर डिजीज, फैटी लीवर आदि जैसी कई स्थितियों में इलाज के प्रभावी होने के लिए और बीमारी को दोबारा होने से रोकने के लिए जीवनशैली में तेजी से बदलाव करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, एडवांस्ड लीवर डिजीज में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कौन से खाद्य समूह का अधिक सेवन करना है और किन-किन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना है। इससे स्थिति के बेहतर प्रबंधन में मदद मिल सकती है। हमारे क्लिनिक के डॉक्टर आहार और जीवनशैली के मूल्य को समझते हैं और नियमित रूप से मरीजों को इस प्रकार की सलाह और मार्गदर्शन देने में समय व्यतीत करते हैं।
विभिन्न प्रकार के लीवर रोग वाले रोगियों के लिए होम्योपैथी को एक व्यवहार्य और महत्वपूर्ण विकल्प माना जाना चाहिए। यह सुरक्षित रूप से पीड़ा को कम कर सकती है और एक्यूट बीमारियों में रिकवरी की अवधि कम कर सकती है।
क्रोनिक लीवर डिजीज में, होम्योपैथी रोग के विभिन्न मापदंडों पर काबू रखती है और मरीज को उच्च गुणवत्ता पूर्ण जीवन प्रदान कर सकती है।


डॉ. कुशल बनर्जी, एम.डी. (होमियोपैथी), एम.एससी. (आक्सोन)


डॉ. कुशल बनर्जी ने इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और लुधियाना से होम्योपैथी में एमडी किया। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में साक्ष्य आधारित चिकित्सा में मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री ली। अब तक उपलब्ध महत्वपूर्ण जानकारी से पता चलता है कि वह अब तक के एकमात्र ऐसे होम्योपैथ है जिन्होंने ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई की। वह ब्रिटिश रजिस्टर ऑफ कॉम्प्लिमेंटरी मेडिसिन, इंग्लैंड के सदस्य हैं। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और इंपीरियल कॉलेज, लंदन के सहयोगियों के साथ होम्योपैथी पर शोध का नेतृत्व किया है। होम्योपैथी पर इन दोनों संस्थानों के बीच इस तरह के सहयोग का यह एकमात्र उदाहरण है। वह अब तक के एकमात्र ऐसे होम्योपैथ हैं जिन्हें सेंटर फॉर एविडेंस बेस्ड मेडिसिन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड और ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द्वारा आयोजित एक प्रतिष्ठित सम्मेलन - 'एविडेंस लाइव' में एक पेपर प्रस्तुत करने के लिए चुना गया।