भारत में हर साल करीब डेढ़ लाख बच्चे हृदय विकारों के साथ जन्म लेते हैं लेकिन अगर सही समय पर इन विकारों की पहचान और समुचित इलाज हो जाये तो ये बच्चे सामान्य एवं स्वस्थ जिंदगी जी सकते हैं।
हाल में हृदय विकार से ग्रस्त पांच माह के भ्रूण को गिराने की निकिता मेहता की याचिका को मुंबई उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। निकिता के अजन्मे बच्चे को जन्मजात हृदय अवरोध (कंजेनिटल हार्ट ब्लाॅकेज) से ग्रस्त पाया गया था।
एक अनुमान के अनुसार तकरीबन दो प्रतिशत बच्चे दिल में छेद, हृदय वाल्व में संकरापन या रुकावट, हृदय की किसी रक्त धमनी में अवरोध तथा हृदय कपाटों के बीच पर्दे नहीं होने जैसे किसी न किसी हृदय विकार के साथ पैदा होते हैं।
हृदय विकारों में से सबसे सामान्य विकार दिल में छेद होना है। उल्लेखनीय है कि ''पूर्व की सौंदर्य की देवी'' (वीनस आफ द ईस्ट) के नाम से प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला के हृदय में छेद था, लेकिन उस समय इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था और इस कारण मधुबाला को महज 37 साल की उम्र में इलाज के बगैर मौत को गले लगाना पड़ा।
सुुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डा. पुरूषोत्तम लाल बताते हैं कि कुछ साल पूर्व तक इन जन्मजात हृदय विकारों को दूर करने के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता था लेकिन आज बैलून वाल्वयुलोप्लास्टी जैसी इंटरवेंशनल तकनीकों की मदद से ज्यादातर विकारों को आपरेशन एवं चीर-फाड़ के बगैर दूर किया जा सकता है।
चिकित्सकों के अनुसार कई बार इन बच्चों के हृदय की बीमारी पैदाइशी होती है जिस पर किसी का वश नहीं होता लेकिन कई बार गर्भवती महिलायें अपनी नासमझी अथवा लापरवाही के कारण अपने होने वाले लाडले के लिये जीवन भर की मुसीबतें पैदा कर देती हैं।
मेट्रो हास्पीट्ल्स एंड हार्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक पद्मभूषण डा. पुरूषोत्तम लाल बताते हैं कि जो महिलायें शराब एवं नशीली दवाइयों का सेवन करती हैं, गर्भावस्था के दौरान और खास तौर पर गर्भावस्था के आरंभिक तीन महीने के दौरान चिकित्सक की सलाह के बगैर दवाइयां ले लेती हैं अथवा एक्स-रे जैसे विकिरण के प्रभाव में आ जाती हैं उनके गर्भ में पल रहे भू्रण का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। इससे हृदय सहित शरीर के कई अंगों में विकृतियां आने की आशंका रहती है।
डा. बी सी राय नेशनल अवार्ड से सम्मानित डा. पुरूषोत्तम लाल के अनुसार पैदाइशी कारणों में सबसे प्रमुख गुणसूत्रीय या क्रोमोसोम संबंधी गड़बड़ियां हैं जिनके कारण भ्रूण का हृदय ठीक से नहीं बन पाता है। करीब दो प्रतिशत बच्चों को हृदय के जन्मजात विकार होते हैं।
बच्चों को होने वाले हृदय के विकारों में दिल में छेद, हृदय वाल्व के बंद अथवा संकरा होने, वाल्व के साथ-साथ हृदय की किसी रक्त धमनी के बंद होने, चार चैम्बर के स्थान पर तीन या दो चैम्बर होने अथवा चैम्बरों के बीच पर्दे नहीं होने जैसे विकार प्रमुख हैं। कुछ बच्चों में फेफड़े की नस सिकुड़ी होती हैं जिससे बच्चे में नीलापन होता है।
वाल्व में खराबी या दिल में छेद जैसे विकार एंजियोप्लास्टी आधारित बैलून वाल्वयुलोप्लास्टी जैसी इंटरवेंशनल या इंवैसिव तकनीकों की मदद से ठीक किये जा सकते हैं जबकि चैम्बरों के बीच के पर्दे के नहीं होने जैसे विकारों को ठीक करने के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता है।
चिकित्सकों के अनुसार गर्भवती महिला की कोख में पल रहा भ्रूण जब सिर्फ दूसरे हफ्ते में होता है तब उसमें दिल बनने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। लेकिन भ्रूण के विकास की प्रक्रिया में बाधा रह जाने पर दिल की बनावट में खामियां रह जाती हैं। गर्भावस्था की पहली तिमाही में मां को जर्मन खसरा होने पर 71 प्रतिशत मामलों में दिल ठीक से नहीं बन पाता है। गर्भवती महिला के मधुमेह से पीड़ित होने पर बच्चे को असामान्य या विकृत हृदय बनने का खतरा सामान्य माताओं की तुलना में पांच गुना अधिक होता है। मां पहले से अगर जन्मजात हृदय विकार से ग्रस्त हो या उसकी पहली संतान को कोई हृदय विकार हो तो बच्चे में हृदय विकार की आशंका बढ़ जाती है। रक्त संबंधियों जैसे मामा-भांजी, चचेरे तथा ममेरे भाई-बहनों के बीच विवाहों से हुयी संतानों में जन्मजात हृदय विकार होने की आंशका अधिक होती है।
डा. पुरूषोत्तम लाल बताते हैं कि रह्युमेटिक बुखार या अन्य कारणों से गर्भवती महिला के हृदय वाल्व में खराबी आ जाती है या वाल्व बंद हो जाते हैं ऐसे में वाल्व को समय पर खोलना जरूरी होता है अन्यथा महिला के साथ-साथ बच्चे की मौत होने की आशंका रहती है। लेकिन वाल्व को आपरेशन के जरिये खोलने से महिला और बच्चे की जान जाने का खतरा होता है। बैलून एंजियोप्लास्टी पर आधारित बैलून वाल्वयुलोप्लास्टी की मदद से आपरेशन या चीर-फाड़ किये बगैर ही वाल्व को खोला जा सकता है।
कई मरीजों की हालत ऐसी हो जाती है कि वे बिस्तर पर सीधा नहीं लेट सकते हैं और ऐसे मरीजों को बिठा कर उनके वाल्व को खोला जा सकता है। इस तकनीक की मदद से बच्चों के हृदय के बंद वाल्व को भी खोला जा सकता है।
डा. लाल के अनुसार बैलून वाल्वयुलोप्लास्टी का सिद्धांत बैलून एंजियोप्लास्टी के समान ही है। इस तकनीक में भी जांघ की धमनी में छोटा सा छेद करके उसमें से एक लचीली तार प्रवेश करायी जाती है। इस तार के सहारे गुब्बारे वाले विशेष बैलून कैथेटर को खराब वाल्व तक ले जाया जाता है और वाल्व की खराबी दूर कर दी जाती है।
एंजियोप्लास्टी आधारित अन्य तकनीकों की मदद से दिल के छेद को भी बंद किया जा सकता है। दिल में छेद होने के कारण शुद्ध रक्त में छेद के जरिये अशुद्ध रक्त आकर मिल जाता है। इस विकार के कारण पूरा शरीर नीला पड़ जाता है, हृदय फैल जाता है एवं अपना काम बंद कर सकता है। अभी हाल तक दिल के छेद को बंद करने के लिये छाती को चीर कर आपरेशन करना पड़ता था लेकिन अब आपरेशन बगैर एंजियोप्लास्टी आधारित तकनीक से दिल के छेद को बंद किया जा सकता है।
दिल में छेद को बंद करने के लिये आजकल एक नयी तकनीक इस्तेमाल में लायी जाती है जिसके तहत निटिनोल नामक निकेल टाइटेनियम के अयस्क से बने एक उपकरण की मदद से दिल के छेद को बंद कर दिया जाता है। इस उपकरण की कीमत करीब एक लाख रुपये है।