क्रोनिक किडनी रोग में आहार

क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) में जब डायलिसिस की नौबत आ जाती हैए तो आहार रोगी को दोबारा ठीक करने संबंधी देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्हें फिट रहने के लिए अच्छी तरह से संतुलित आहार आवश्यक है क्योंकि उनकी किडनी उनके रक्त से अपशिष्ट उत्पादों और तरल पदार्थ को निकालने के लिए अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रही होती है। डायलिसिस रोगियों के लिए हर दिन सही मात्रा में प्रोटीनए कैलोरी, तरल पदार्थ, विटामिन और खनिज लेना आवश्यक है। अपने डॉक्टर से बात करें। वे आपको एक आहार चार्ट तैयार करके देंगे जिसका आप नियमित रूप से पालन करें।
प्रोटीन : हालांकि रोगियों को डायलिसिस से पहले की अवधि के दौरान प्रोटीन का कम से कम सेवन करने की सलाह दी जाती हैए लेकिन डायलिसिस के दौरान उन्हें अधिक प्रोटीन का सेवन करने के लिए कहा जाता है। डायलिसिस के दौरान कुछ मात्रा में प्रोटीन निकल जाता है और इसलिएए डायलिसिस कराने वाले रोगियों को डायलिलिसस नहीं कराने वाले रोगियों की तुलना में अधिक प्रोटीन का सेवन करने की आवश्यकता होती है। प्रोटीन की सही मात्रा का सेवन करने से डायलिसिस के रोगियों को फिट रहने में मदद मिलेगी क्योंकि अपर्याप्त प्रोटीन के सेवन से वजन कम हो सकता है, मांसपेशियां कमजोर हो सकती है, संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो सकती है और इस तरह कुपोषण का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे रोगियों के लिए मांसए मुर्गी, मछली और अंडे का सफेद हिस्सा सबसे उपयुक्त है। दही, दूध और पनीर जैसे अधिकांश डेयरी उत्पादों में भी उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन होते हैं।
सोडियम : मरीजों को अपने आहार में सोडियम की मात्रा को सीमित करना चाहिए। सोडियम एक तरह से हाइड्रेटेड स्पंज है जो द्रव को अवशोषित करता है। इसके अधिक सेवन से आप अधिक प्यास महसूस करेंगे और अधिक पानी पीने की इच्छा होगी। तरल पदार्थ के अधिक सेवन से आपका वजन अधिक बढ़ेगा और फिर रक्तचाप में वृद्धि हो सकती है। गुर्दे की बीमारी में सोडियम का कम सेवन करने से द्रव में सामान्य संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलती है। डिब्बाबंद और पैक्ड खाद्य पदार्थ न खाएं क्योंकि इनमें सोडियम की मात्रा अधिक होती है।
पोटेशियम : यह तंत्रिकाओं और मांसपेशियों के कार्य के लिए महत्वपूर्ण है। रक्त में पोटेशियम को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता होती है। रक्त में पोटेशियम का स्तर अत्यधिक होने पर यह मांसपेशियों की कमजोरीए असामान्य हृदय गति और कई मामलों मेंए हार्ट फेल्योर का कारण बन सकता है। इसलिए अधिक पोटेशियम वाले भोजन (यह मुख्य रूप से कुछ फलों और सब्जियों में पाया जाता है) से बचना और कम और मध्यम पोटेशियम वाले भोजन लेना महत्वपूर्ण है। कोल्ड ड्रिंक और सॉस से परहेज करें।
फास्फोरस : रोगियों को फास्फोरस का सेवन कम करने की सलाह दी जाती है। चूंकि गुर्दे अपशिष्ट उत्पादों को फ़िल्टर करने में कम प्रभावी हो जाते हैंए जिससे रक्त में फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाता है। जब यह रक्त में बनना शुरू होता हैए तो हड्डी से कैल्शियम निकल जाता है। कैल्शियम फॉस्फेट उत्पाद रोगी के ऊतकों में कठोर रूप से जम जाता बनाता है जिससे त्वचा में खुजलीए जोड़ों में दर्द और आंखों में जलन होती है और उनकी रक्त वाहिकाएं सख्त हो जाती हैं। इसलिए ऐसे मरीजों को मूलीए गाजर और चुकंदर जैसे जड़ वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
द्रव का सेवन : डायलिसिस के रोगी अधिक मात्रा में तरल पदार्थों को निष्कासित नहीं कर सकते हैं, इसलिए, उनके शरीर में अतिरिक्त तरल पदार्थ जमा हो सकता है, जिसके कारण उनके रक्त परिसंचरण पर अधिक दबाव पड़ता है। इसमें सांस लेने में तकलीफए उच्च रक्तचाप और पैरों में सूजन जैसे लक्षण हो सकते हैं।
एनीमिया को रोकें
डायलिसिस के रोगियों में एनीमिया आम है और यह कुपोषण से पीड़ित या अधिक प्रोटीन का नुकसान वाले रोगियों में अधिक सामान्य होता है। क्रोनिक बीमारी के रोगियों में एनीमिया का मुख्य कारण गुर्दे द्वारा एरिथ्रोपोइटिन (ईपीओ) का कम उत्पादन है। ईपीओ लाल रक्त कोशिकाओं को अस्थि मज्जा बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। जब गुर्दे के कार्य करने की क्षमता कम हो जाती हैए तो ईपीओ का उत्पादन कम हो जाएगा। प्रोटीन, आयरन, विटामिन सी, विटामिन बी 12 और फोलेट का पर्याप्त सेवन एनीमिया की रोकथाम और उपचार में महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पोषक तत्व नई लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में महत्वपूर्ण तत्व हैं।