रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी के सभी विकल्पों में, गुर्दा प्रत्यारोपण डायलिसिस या सीएपीडी की तुलना में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन प्रदान करता है। लोगों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के बढ़ते मामलों को देखते हुए, हमारे देश में हर साल लगभग 2 लाख लोगों में क्रोनिक किडनी फेल्योर के मामले सामने आते हैं, लेकिन लोगों में जानकारी की कमी और दाता की अनुपलब्धता के कारण केवल 5000 मामलों में ही गुर्दा प्रत्यारोपण हो पाता है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल के नफ्रोलाॅजी विभाग के डाॅ. दीपक जैन चैहान ने कहा, ''क्रोनिक किडनी फेल्योर (सीआरएफ) प्रकृति में तेजी से बढ़ने वाला होता है और गुर्दे को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचा सकता है। इसका मुख्य कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, संक्रमण, मूत्र में रुकावट, पथरी के रोग और कुछ आनुवांषिक असामान्यताएं हैं। क्रोनिक किडनी फेल्योर के विकसित अवस्था में हीमोडायलिसिस (रक्त से विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट उत्पादों को छानने की प्रक्रिया), कंटीन्युअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी) या गुर्दा प्रत्यारोपण जैसी कुछ प्रकार की गुर्दे रिप्लेसमेंट थेरेपी (आर आर टी) की आवश्यकता होती है। अभी, क्रोनिक किडनी फेल्योर के किसी भी उपयुक्त रोगी के लिए इलाज का सबसे अच्छा विकल्प गुर्दा प्रत्यारोपण है।''
रोगी को गुर्दा के प्रत्यारोपण के मिलने वाले लंबे समय के लाभों के बारे में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल के नफ्रोलाॅजी विभाग के कंसल्टेंट डाॅ. अंकुर गुप्ता ने कहा, अगर दुर्घटना के शिकार लोगों (हर साल लगभग चार लाख लोगों की मौत होती है) के अंगों को प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध कराया जा सके, तो अंगों की आवष्वयकता और उपलब्धता के बीच की बड़ी खाई को पाटा जा सकता है। शव (मृतक) दाता कार्यक्रम को भी गति दिये जाने की जरूरत है क्योंकि भारत में 95 प्रतिशतत प्रत्यारोपण जीवित दाता के माध्यम से होते हैं जबकि 5 प्रतिशत शव से लिये जाते हैं। दूसरा सबसे व्यवहार्य विकल्प डोनर स्वैपिंग और एबीओ- रक्त समूह असंगत दाताओं से प्रत्यारोपण है। हालांकि पहले ऐसे प्रत्यारोपण में अधिक खतरे रहते थे लेकिन अब उपलब्ध प्रभावी इम्युनो सप्रेसिव उपचार के माध्यम से कम अवधि में और अधिक अवधि में अच्छे परिणाम हासिल हो रहे हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल के डॉ अमरदीप कोहली ने कहा, 'भारत में अंग दान को लेकर कई मिथक हैं और इसलिए लोग षायद ही कभी स्वेच्छा से अपने अंगों को दान करने के लिए आगे आते हैं। अंग दान यहां अब भी वर्जित है लेकिन प्राप्तकर्ता रोगियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है जबकि दान करने वाले लोगों की संख्या अब भी बहुत कम है। भारत में एक वर्ष में, लगभग 5 लाख लोगों में गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 5 हजार रोगियों में ही गुर्दा प्रत्यारोपण हो पाता है, और हर साल 80,000 रोगियों की डाइलिसिस होती है। बाकी रोगियों का पैसे के अभाव या दाता की अनुपलब्धता के कारण उपचार नहीं मिल पाता है। गुर्दा दान बहुत सुरक्षित है और अपने परिजनों को गुर्दा दान करने में कोई बुराई नहीं है। प्रत्यारोपण के बाद प्राप्तकर्ता और दाता दोनों सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।''