क्रोमो विस्को असिस्टेड टेक्नीक से सेंट्रल विजन लाॅस से पीड़ित मरीज में फुल थिकनेस मैक्युलर होल का सफलतापूर्वक इलाज

मोतियाबिंद की सर्जरी के बाद भी 69 वर्षीय मरीज जटिल फुल थिकनेस मैकुलर होल की समस्या से पीड़ित था। इस समस्या के कारण आंखों की रौशनी जा सकती है।
पुणे के 69 वर्षीय अशोल गोपाल जाधव दर्द रहित सेंट्रल विजन लाॅस से पीड़ित थे। मैक्युलर होल मैक्यूला में एक छोटा सा छेद होता है जो रेटिना नामक आंख के प्रकाश संवेदी उत्तक के बिल्कुल केन्द्र में स्थित होता है। मैक्युला स्पश्ट एवं केन्द्रीय दृष्टि प्रदान करता है जिसकी हमें पढ़ने, वाहन चलाने तथा छोटे-छोटे विवरणों को देखने के लिए जरूरत पड़ती है। मैक्युलर होल होने के कारण हमारी केन्द्रीय दृश्टि विकृत और धुंधली हो जाती है। 
उनकी समस्या यह थी कि वह लोगों के चेहरे को नहीं पहचान पा रहा था और उसे पढ़ने एवं वाहन चलाने में दिक्कत होती थी। उसकी बायोनोकुलर दृश्टि बुरी तरह से खराब हो गई थी और पिछले तीन महीनों से वह रोजमर्रे के कामकाज करने में असमर्थ था। रेटिना फाउंडेशन में जांच करने पर यह पाया गया कि फुल थिकनेस मैक्युलर होल के कारण उसकी आरई दृष्टि कम हो गई थी। मरीज के उपचार के तहत कलर्ड विस्कोइलास्टिक टेक्नीक का उपयोग करके एक सीमित आईएलएम इनवर्टेड पील के साथ- साथ पार्स प्लाना विट्रेक्टोमी की गई। 
डाॅ. अग्रवाल आई हाॅस्पिटल, पुणे के मेडिकल डायरेक्टर डाॅ. पंकज असवा ने कहा, ''इस प्रक्रिया के तहत विट्रियस जेल को हटाया गया ताकि रेटिना पर उसके खिंचाव को रोका जा सके तथा उसकी जगह पर हवा और गैस के मिश्रण वाले बुलबुले को प्रतिस्थापित किया गया। आंख पर एक गैस बबल रखा गया ताकि ठीक होने के दौरान मैक्युलर होल के किनारे को स्थिर रखा जा सके। सामान्य जटिलता यह हो सकती थी कि छेद बंद नहीं हो या आईएलएम फ्लैप को नुकसान हो। ऐसे में सर्जनों की टीम ने कलर्ड विस्कोइलास्टिक टेक्नीक का उपयोग किया जो फ्लैप को उसकी स्थिति में स्थिर रखने में मदद करती है। चूंकि विस्कोइलास्टिक रंगीन होता है इसलिए सर्जरी के अंत में इसे आसानी से हटाया जा सकता है। पैपिलो मैक्युलर बंडल को कोई क्षति पहुंचने से रोकने के लिए टैम्पोरल 180 डिग्री आईएलएम फ्लैप लिया गया। इस तकनीक के कारण सर्जरी के बाद मरीज को 6/9 दृष्टि मिल गई। 
डाॅ. अग्रवाल आई हाॅस्पिटल, पुणे के नेत्र चिकित्सक डा. वैभव अवताडे ने कहा, ''आंख की रौषनी धुंधली और विकृत हो जाना बहुत ही भयावह होता है। मरीज मैक्युलर होल के कारण ऐसी स्थिति से पीड़ित हो सकते हैं। यह समस्या आम तौर पर उम्र बढ़ने के कारण होती है और 60 वर्श से अधिक उम्र के लोगों में यह समस्या होने की आषंका अधिक होती है। हर एक हजार में तीन लोग इस चिकित्सीय समस्या से प्रभावित होते हैं। अगर एक आंख में मैक्युलर होल हो जाए तो दूसरी आंख में भी इस समस्या के होने का खतरा 5 से 15 प्रतिषत तक होता है। पुरुशों की तुलना में महिलाओं को यह समस्या अधिक होती है। सामान्य जटिलता के तौर पर आईएलएम पीलिंग के बाद मैक्युलर होल पूरी तरह से बंद नहीं होता है और आॅपरेषन के बाद की दृष्टि कम होती है। चूंकि हमारे सर्जनों ने कलर्ड विस्कोइलास्टिक टेक्नीक का उपयोग किया इसलिए छेद के बंद होने की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है तथा मरीज की दृश्टि 6/60 से बढ़कर 6/9 हो गई।'' 
डॉ. अग्रवाल आई हाॅस्पिटल, पुणे की क्लीनिकल सर्विसेज के प्रमुख डॉ. अशर अग्रवाल ने कहा, “भारत में लगभग डेढ़ करोड़ लोग अंधापन से पीड़ित हैं। इनमें से 75 प्रतिशत मामलों को टाला जा सकता है या समय पर इलाज की मदद से ठीक किया जा सकता है। ''विजन 2020 राइट टू साइट' पहल के तहत टाले जा सकने वाले अंधेपन के उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सन 2020 तक अंधेपन की व्यापकता में 0.3 प्रतिषत की कमी करने की अनुषंसा की गई है। डॉ. अग्रवाल आई हाॅस्पिटल सभी विजन विकारों के लिए विषिश्ट चिकित्सा प्रदान करता है। इसका संचालन अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों और सुविधाओं के साथ प्रसिद्ध नेत्र विषेशज्ञों द्वारा किया जाता है।