बच्चों में खून की कमी या एनीमिया (रक्ताल्पता) काफी खतरनाक समस्या है। इससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है। एनीमिया के शिकार बच्चों के वजन और लंबाई में वृद्धि रूक जाती है। वे पढ़ाई-लिखाई से दूर भागना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर माता-पिता यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चा रक्ताल्पता की वजह से ऐसा व्यवहार कर रहा है जबकि बहुत से माता-पिता जानते हुए भी एनीमिया को गंभीरतापूर्वक नहीं लेते हैं।
सामान्यता यदि किसी बच्चे का हीमोग्लोबिन 12 ग्राम से कम है तो इसे एनीमिया कहा जाएगा। लेकिन बच्चे में एनीमिया के लक्षण हीमोग्लोबिन के 12 ग्राम के स्तर से नीचे आने के पहले ही दिखने लगते हैं। इसका कारण यह है कि शरीर की अन्य कोशिकाओं में लौह तत्व की कमी पहले होती है। बच्चे की भूख में कमी, वजन व लंबाई में वृ़िद्ध रूक जाना, चिड़चिड़ापन, पढ़ाई में मन न लगना आदि एनीमिया के लक्षण हैं। एनीमिया होने पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे बच्चे में न्यूमोनिया, पेट के संक्रमण, टाइफाइड आदि जल्दी-जल्दी होते हैं। अगर हीमोग्लोबिन पाँच ग्राम के स्तर से कम हो गया है, तो बच्चे का दिल सही तरह से काम करना बंद कर सकता है। अपने देश में एनीमिया केवल गरीबों के बच्चों में ही नहीं, संपन्न परिवारों के बच्चों में भी आम बात है। एक सर्वेक्षण के अनुसार तकरीबन 30-40 प्रतिशत बच्चों को एनीमिया होता है। इनमें से तकरीबन 5-10 प्रतिशत बच्चों को गंभीर एनीमिया (पाँच ग्राम के स्तर से कम हीमोग्लोबिन) होता है।
वैसे तो एनीमिया के कई प्रकार हैं, लेकिन अपने देश में दो तरह का एनीमिया सबसे ज्यादा होता है-लौह तत्व की कमी या पोषण संबंधी एनीमिया और थेलेसीमिया। एनीमिया के शिकार बच्चों में 90 प्रतिशत से ज्यादा को लौह तत्व की कमी या पोषण संबंधी एनीमिया होता है। अगर बच्चे की खुराक में आयरन व प्रोटीन उपयुक्त मात्रा में नहीं हो, तो बच्चे को इस तरह का एनीमिया हो सकता है। नवजात शिशु के शरीर में आयरन की मात्रा 0.5 ग्राम होती है, जबकि वयस्कों के शरीर में आयरन की मात्रा पाँच ग्राम होती है। इसका तात्पर्य यह है कि नवजात शिशु के वयस्क होने तक उसे लगभग 4.5 ग्राम आयरन की जरूरत पड़ेगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करीब एक मिलीग्राम आयरन प्रति दिन आँतों से अवशोषित होकर शरीर में पहुँचना चाहिए, क्योंकि खुराक में मौजूद आयरन का केवल 10 प्रतिशत भाग ही आँतों से अवशोषित हो पाता है। इसलिए नवजात शिशु के वयस्क होने तक खुराक में तकरीबन 10 मिलीग्राम आयरन प्रतिदिन होना चाहिए। इसके अलावा खुराक में प्रोटीन की मात्रा भी पर्याप्त होनी चाहिए ताकि शरीर में हीमोग्लोबिन बन सके। हीमोग्लोबिन बनने के लिए आयरन और प्रोटीन, दोनों की आवश्यकता होती है।
बच्चों का रुझान बाजार में मिलने वाले फास्ट फूड, टाॅफी, चाॅकलेट, नमकीन, भुजिया, पिज्जा, शीतल पेय आदि की तरफ ज्यादा रहता है। लेकिन इन खाद्य पदार्थों में प्रोटीन व आयरन बहुत ही नगण्य मात्रा में होते हैं। इस कारण ऐसी चीजें ज्यादा खाने वाले बच्चे एनीमिया का शिकार हो जाते हैं। बच्चे को एनीमिया जैसी खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए बाजार में उपलब्ध फास्ट फूड आदि से दूर ही रखना चाहिए। इसके बदले उन्हें घर में उपलब्ध भोजन, जैसे-अनाज, सब्जियाँ, फल, दूध, अंडा आदि उपयुक्त मात्रा में देना चाहिए।
अगर किसी बच्चे को एनीमिया हो गया है तो तुरन्त किसी विशेषज्ञ डाॅक्टर से उसकी जाँच करानी चाहिए, क्योंकि बच्चे को एनीमिया के साथ-साथ कुपोषण, पेट या शरीर के किसी अन्य हिस्से में संक्रमण, रिकेट्स (हड्डियों की बीमारी) आदि की शिकायत भी हो सकती है। साथ ही, बच्चे को आयरन व बी-काॅम्पलेक्स की कितनी मात्रा दी जाए, यह उसके वजन पर निर्भर करता है और इनकी उचित मात्रा डाॅक्टर ही बता सकता है। बच्चे की खुराक में प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ भी उपयुक्त मात्रा में होने चाहिए। शुरू में बच्चे की भूख एनीमिया की वजह से काफी कम होती है, इसलिए बच्चे को भूख लगने के लिए कोई दवा भी दी जा सकती है। सामान्यतया बच्चे को ठीक होने में छह माह से लेकर एक वर्ष तक लग सकता है। इसलिए माता-पिता को इस दौरान काफी सब्र रखने की जरूरत होती है। मैंने अपोलो अस्पताल में एनीमिया के शिकार करीब 30-35 ऐसे बच्चों को देखा है जिनकी लंबाई उम्र के अनुपात में करीब 10-15 सेंटीमीटर कम और वजन करीब 4-6 किलोग्राम कम था। उपयुक्त इलाज करने के छह माह से एक वर्ष के भीतर बच्चे की लंबाई और वजन उम्र के अनुपात में आ गया। इसलिए अगर एनीमिया से पीड़ित किसी बच्चे का समय से इलाज नहीं कराया गया तो उसकी लंबाई जितनी संभव हो सकती है, उसमें 15-20 सेंटीमीटर कम रह जा सकती है।
एनीमिया की दूसरी सामान्य वजह थेलेसीमिया है। यह आनुवांशिक बीमारी है जिसमें हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया ही दोषपूर्ण हो जाती है। थेलेसीमिया में सबसे प्रमुख है बीटा थेलेसीमिया, जिसमें हीमोग्लोबिन की बीटा चेन में गड़बड़ी होने की वजह से थेलेसिमिया हो जाती है।
पूरे विश्व में करीब 18 करोड़ लोग बीटा थेलेसीमिया जीन के वाहक हैं। इनमें से करीब 2.5 करोड़ लोग भारत में हैं। प्रति वर्ष विश्व में करीब एक लाख और भारत में करीब 8000 थेलेसीमिया ग्रस्त बच्चे पैदा होते हैं। साइप्रस को छोड़कर पूरे विश्व में यह बीमारी व्याप्त है। भारत में उत्तर पूर्वी राज्यों में यह बीमारी प्रमुख रूप से होती है।
इस बीमारी से बच्चे में एनीमिया के लक्षण पाँच-छह माह की उम्र से ही प्रकट होने लगते हैं। इसका पता एचबी इलेक्ट फोरेसिक या पीसीआर से लगाया जाता है। इस बीमारी का जितनी जल्दी पता लग सके, उतना ही बेहतर रहता है। इसके इलाज में बच्चे को नियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता है, ताकि उसका हीमोग्लोबिन स्तर 10 ग्राम के स्तर के आसपास बना रहे और एनीमिया के चलते उसके शरीर या किसी अंग को नुकसान न हो। ऐसे बच्चे को हर 3-4 सप्ताह पर खून की आवश्यकता होती है। खून अच्छे केंद्र से ही लेना चाहिए, क्योंकि जो खून चढ़ाया जा रहा है वह पूरी तरह जाँचा-परखा होना चाहिए।
नियमित रूप से खून चढ़ाने पर बच्चों के शरीर में आयरन की मात्रा ज्यादा हो जाती है। शरीर में जरूरत से ज्यादा आयरन हो जाना भी नुकसानदेह होता है। आयरन की मात्रा जाँचने के लिए हर तीन महीने पर सीरम फेरेटिन जाँच करनी पड़ती है। यदि इस जाँच से पता चलता है कि शरीर में आयरन आवश्यकता से अधिक है तो अतिरिक्त आयरन को शरीर से निकालने के लिए उपचार करना पड़ता है। थेलेसीमिया से ग्रस्त बच्चे में आयरन की मात्रा अधिक होने से रोकने के लिए अंडे की जर्दी, पालक आदि चीजें नहीं दी जाती है। जिसमें आयरन ज्यादा होता है ऐसे बच्चे को ज्यादा चाय पिलानी चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद टेनिन आँतों से लौह तत्व अवशोषित कर लेता है। दिल्ली में थेलेसीमिया बीमारी के उपचार के कई अच्छे केंद्र हैं, जैसे कलावती अस्पताल, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, गंगाराम अस्पताल व अपोलो अस्पताल। अपोलो अस्पताल में ऐसे बच्चों के लिए एक विशेष पैकेज की व्यवस्था है।
थेलेसीमिया के उपचार के लिए मैरो ट्राँसप्लांटेशन पद्धति भी अपनाई जाती है। इसमें बोन मैरो कोशिकाओं की जरूरत पड़ती है। इस पद्धति में एचएल टाइपिंग की जाती है। माता-पिता या भाई-बहन से ही संभव भविष्य में जेनेटिक इंजीनियरिंग की संभावना तलाशी जा रही है।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक 30-40 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रस्त होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि केवल गरीबों के बच्चों को यह रोग होता है। संपन्न घरों के बच्चे भी खानपान की गलत आदतों के कारण इसके शिकार हो जाते हैं। खास बात यह है कि इस रोग का पूरी तरह इलाज संभव है, लेकिन दूसरी ओर इसे नजरअंदाज करने के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं।
खून की कमी हैै
खतरनाक हो सकती है बच्चों में एनीमिया की अनदेखी
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
– विनाेद कुमार संगोष्ठी के दौरान डा़ रामदास तोंडे की पुस्तक ʺसाहित्य और सिनेमाʺ का लोकार्पण तेजी से बदलते युग में ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय प...
-
चालीस-पचास साल की उम्र जीवन के ढलान की शुरूआत अवश्य है लेकिन इस उम्र में अपने जीवन के सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा व्यक्ति पार्किंसन जैसे स्नायु...
-
कॉस्मेटिक उपचार के बारे में मन में अक्सर कई विरोधाभाश और सवाल उठते रहते हैं लेकिन अब इनके जवाब अनुत्तरित रह नहीं रह गये हैं। यहां यह उल्लेख ...
Featured Post
श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर विशेष कार्यशाला का आयोजन
नई दिल्ली , 18 जनवरी: मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई) में "श्वसन विकारों के यौगिक प्रबंधन" पर एक विशेष कार्यशा...
Blog Archive
Labels
addiction
ayurveda
ayush
traditional medicine
Beauty & Fitness
black fungus
bollywood
breat cancer
central government
Chandrayaan-3
children
CII
cinama
literature
corona
cosmetic laxe
covid
covid positiv mother
diabetes
diet
divyang
DNA vaccine
eye care
eye donation
food
food & nutrition
gov
health
Health centre
health and food
Health Articles
health family welfare
Health News
health news
corona
health problems
healthy food
healthy heart
Heart Care
heart diseases
covid-19
Heart Problems
immunisation
pandemic
infertility
joshimath
Lifestyle
mental health
monkey pox
National News
nutrition
child health
obesity
obesity in children
obesity and mental health
proteins
roda safety
soy food industry
soya
UHI
vaccination
vaccine
WHO
Women's Health
yoga