खर्राटे भरने वाले व्यक्ति को दुत्कारा जाता है। कभी-कभी इसकी परिणति तलाक के रूप में होती है। ऐसे व्यक्ति अक्सर हास-परिहास के भी कारण बनते हैं। लेकिन दुनिया की लगभग आधी आबादी नींद में खर्राटे लेती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक 10 वयस्क में से एक व्यस्क खर्राटे अवश्य लेता है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ ई. एन. टी. सर्जन डा. संदीप सिंधु बताते हैं कि खर्राटे लेने वालों में अधिकतर 40 वर्ष से अधिक उम्र के होते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि किसी भी उम्र के लोगों मे यहां तक कि बच्चों में भी यह बीमारी हो सकती है हालांकि पुरुषों की तुलना में कम महिलाएं खर्राटे लेती हैं। एक अध्ययन के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत पुरुष और 45 प्रतिशत महिलाएं नींद में खर्राटे लेते हैं। पुरुषों में 65 वर्ष की उम्र के बाद और महिलाओं में रजोनिवृति के बाद खर्राटे आने बढ़ जाते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है खर्राटे की आवाज भी बढ़ती जाती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि खर्राटे लेने वाले लगभग 80 प्रतिशत लोगों को यह पता नहीं होता कि वे नींद में खर्राटे लेते हैं।
डा. सिंधु के अनुसार कुछ साल पहले तक खर्राटे को एक सामान्य सामाजिक समस्या मानी जाती थी लेकिन हाल में किए गए कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि खर्राटे का संबंध उच्च रक्त चाप, हृदय रोग, मायोकार्डियल एवं ब्रेन इंफ्रैक्शन जैसी कई गंभीर बीमारियों से भी है। यही नहीं खर्राटे के कारण स्मरण शक्ति और एकाग्रता का Ðास, अनिद्रा, सुबह के समय सिर दर्द और थकावट, कार्य क्षमता का ह्रास, नपुंसकता तथा कार्य क्षमता में ह्रास जैसी कई समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं।
जब व्यक्ति सो रहा होता है तब उसकी जीभ पीछे की ओर पलट कर तालु से चिपक जाती है जिसके कारण सांस लेने के दौरान मुंह के भीतर आने वाली हवा के कारण जीभ और तालु में एक दूसरे के विरुद्व कंपन होता है जिससे खर्राटे आने लगते हैं।
डा. संदीप सिंधु बताते हैं कि खर्राटे की एक खतरनाक स्थिति अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया है जिसके कारण हर साल कई लोग नींद में ही मौत के ग्रास बन जाते हैं। खर्राटे भरने वाले लगभग 30 प्रतिशत लोग इस खतरनाक बीमारी से ग्रस्त रहते हैं। इसमें गहरी नींद के दौरान जीभ पीछे की ओर पलट कर गले की मांसपेशियों के बीच इस कदर फंस जाती है कि व्यक्ति 10, 20 या 30 सेकेण्ड तक सांस ही नहीं ले पाता है। इस क्षणिक अवधि के दौरान कोई आवाज नहीं निकलती। लेकिन श्वास क्रिया बंद होते ही व्यक्ति की जीवन रक्षा पद्धति सक्रिय हो जाती है जिससे नींद खुल जाती है और व्यक्ति तुरन्त जीभ को आगे कर लेता है। इससे वायुमार्ग खुल जाता है और श्वसन आरम्भ हो जाता है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति गहरी नींद में जाता है उक्त क्रिया फिर से शुरू हो जाती है।
अभी तक स्लीप एप्निया के कारणों का पूरी तरह से पता नहीं चला है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी के शिकार लोगों की सांस नली अपेक्षाकृत अधिक संकरी होती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को कभी भी गहरी नींद नहींं आती और उसकी नींद बार-बार टूटती है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति को दिल के दौरे पड़ने और मस्तिष्क घात की अधिक आशंका होती है। नींद के दौरान बार-बार श्वसन अवरुद्व अथवा बंद होने के कारण व्यक्ति को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती जिससे हृदय को शरीर के सभी अंगों को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने के लिए अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है जिससे हृदय को क्षति पहुंचती है। ऐसे लोगों का रक्त दाब भी ज्यादा हो जाता है।
गले में किसी भी तरह की सूजन यहां तक कि बढ़े हुए टांसिल और थायरॉयड की थोड़ी-बहुत समस्या के कारण भी खर्राटे आ सकते हैं। बच्चों में भी खर्राटे का एक बड़ा कारण गले की बनावट और टांसिल का बड़ा होना माना जाता है। सामान्य से 30 प्रतिशत ज्यादा स्थूल शरीर वालों को यह बीमारी अधिक सताती है। खास कर गर्दन में ज्यादा चर्बी होना बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि इससे गर्दन से ऊपर की ओर जाने वाली हवा के रास्ते (नलिकाएं) संकरे हो जाते हैं जिसके कारण खर्राटे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
कई बार खर्राटे का कारण नाक की हड्डी बढ़ना होता है जिसे ऑपरेशन द्वारा ठीक कर खर्राटे को रोका जा सकता है। कुछ लोग सोते समय नाक के बजाय मुंह से सांस लेने लगते हैं। जिसके कारण मुंह के अंदर गले के पास वाली त्वचा में कंपन होता है और आवाज उत्पन्न होती है। यह आवाज हमें खर्राटे के रूप में सुनाई पड़ती है। मुंह से सांस लेने का एक कारण पीठ के बल सोना है। जब व्यक्ति पीठ के बल गहरी नींद में सोया होता है तो उसकी जीभ पीछे की ओर गले की तरफ होती है जिससे श्वास नली कुछ हद तक अवरुद्ध हो जाती है और व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है जिसके कारण खर्राटे की आवाज निकलती है। ऐसे व्यक्ति को अगर करवट करके सुला दिया जाए तो उसकी जीभ सही स्थिति में आ जाती है और उसके खर्राटे बंद हो जाते हैं।
स्लीप एप्निया और खर्राटे के स्थायी इलाज के लिये युवुलोपेलेटो प्लास्टी नामक ऑपरेशन का सहारा लिया जाता है जिसके तहत गले के भीतर की ढीली और लटकती मांसपेशियों को ऑपरेशन के जरिये ठीक कर दी जाती है ताकि वे श्वास के मार्ग में रूकावट नहीं डाल सकें।
डा. सिंधु के अनुसार अब आधुनिक चिकित्सा के तहत ऑपरेशन के बजाय लेजर से खर्राटे तथा स्लीप एप्निया के स्थायी उपचार की कारगर तकनीक विकसित हुई है जिसे ''लौप'' अर्थात लेजर एसिस्टेड युवुलोपेलेटोप्लास्टी कहा जाता है। यह चिकित्सा इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल सहित देश के प्रमुख चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध है। इस ऑपरेशन के लिये मरीज को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ता। यह लेजर ऑपरेशन मरीज को बेहोश किये बगैर किया जा सकता है। ऑपरेशन के तुरन्त बाद मरीज बिना दिक्कत के सभी काम-काज सामान्य रूप से कर सकता है।
इस ऑपरेशन के जरिये तालु और जीभ के पिछले भाग के फालतू भाग को लेजर ऊर्जा के जरिये हटा दिया जाता है। इससे उनका आकार छोटा हो जाता है और नासा ग्रसनी (नैसोफेरिंगल) वायु मार्ग खुल जाता है। जरूरत पड़ने पर टांसिल, आवश्यकता से अधिक बड़े टर्बिनेट और जीभ के पीछे के हिस्से की खराबी को भी लेजर से ठीक कर दिया जाता है।
लेजर आधारित इस ऑपरेशन के दुष्परिणाम नहीं के बराबर हैं। वैसे तो इस ऑपरेशन के दौरान बहुत ही कम रक्त बहता है लेकिन कुछ लोगों में ऑपरेशन के बाद रक्तस्त्राव होता रहता है, लेकिन इसे आसानी से नियंत्रित कर लिया जाता है। किसी भी रोगी को रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। खर्राटे का लेजर से उपचार अत्यन्त आसान और कष्टरहित है। कुल मिलाकर लेजर ऑपरेशन से होने वाले दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव परम्परागत् ऑपरेशन युवुलोपेलेटो फेरिंजोप्लास्टी की तुलना में नगण्य हैं। परम्परागत् ऑपरेशन के लिये मरीज को बेहोश करना पड़ता है और कई बार अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। कई बार मरीज को खून चढ़ाने की जरूरत पड़ जाती है।
खरार्टे और स्लिप एप्निया लाइलाज नहीं समझें
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