कैसे पायें कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण

आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में कोलेस्ट्रॉल आज का सबसे अधिक चर्चित रसायन है। हर चिकित्सक मरीजों को कोलेस्ट्रॉल से बचे रहने को सुझाव देते हैं। हृदय रोगियों के लिये तो कोलेस्ट्रॉल अभिशाप के समान है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की आशंका मात्र से व्यक्ति कांप उठता है। लेकिन दरअसल दिल की बीमारियों का प्रमुख कारण माना जाने वाले कोलेस्ट्रॉल अपने आप में बुरा नहीं है। कोलेस्ट्रॉल के फायदे और नुकसान तथा इस पर नियंत्रण के बारे में  बता रहे हैं नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग चिकित्सक डा.के.के.सक्सेना
कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर के लिये अनिवार्य है। कोलेस्ट्रोल हमारे बहुत काम आता है। मिसाल के तौर पर कोलेस्ट्रोल के बगैर पुरुषत्व और नारीत्व संबंधी हार्मोन नहीं बनते हैं। बच्चों के रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल कोशिका निर्माण के काम आता है और यह इस उम्र में आवश्यक होता है। लेकिन व्यक्ति के वयस्क हो जाने पर कोशिका का निर्माण कम हो जाता है और इसलिये शरीर का अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल नसों में जमा होना शुरू हो जाता है। हमारा शरीर आहार में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को ग्रहण करने के अलावा स्वयं इसका निर्माण भी करता है। हमारे शरीर का यकृत कोलेस्ट्रॉल का निर्माण करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने पर रक्त में भी इसकी उपस्थिति का स्तर बढ़ता जाता है। 
हृदय को रक्त एवं ऑक्सीजन पहुंचाने वाली रक्त धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमने के कारण एंजाइना एवं दिल के दौरे की जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है। कोलेस्ट्रॉल रक्त में अघुलनशील होता है इसलिये रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने पर वह रक्त नलियों में जमा हो जाता है जिससे रक्त प्रवाह में रुकावट  आती है। कोलेस्ट्रॉल हृदय की रक्त धमनियों के अलावा मस्तिष्क, किडनी, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य अंगों की रक्त धमनियों में जमा होकर उनमें रक्त प्रवाह बाधित कर सकता है। जिस तरह से कोलेस्ट्रॉल हृदय की रक्त धमनियों में जमा होकर दिल के दौरे की नौबत उत्पन्न कर सकता है उसी तरह यह अन्य अंगों की धमनियों में जमा होकर उन अंगों को बेकार कर सकता है। मस्तिष्क की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमा होने पर ब्रेन अटैक एवं लकवा जैसी स्थितियां उत्पन्न होती है जबकि हाथ-पैरों की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमने से गैंगरीन की नौबत आ सकती है। पेट की मुख्य धमनी और पैरों में रक्त की आपूर्ति करने वाली उसकी शाखाओं में रुकावट से लेरिक सिंड्रोम नामक खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है।
हमारे देश में पूरी आबादी में करीब 15 प्रतिशत लोग कोलेस्ट्रॉल के जमाव की बीमारी से ग्रस्त हैं। हालांकि हृदय की बीमारियों का प्रमुख कारण हृदय की रक्त धमनियों में कोलेस्ट्रॉल का जमाव है लेकिन मधुमेह, रक्त चाप, रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर, धूम्रपान, रहन-सहन के गलत तौर-तरीके, मानसिक तनाव और शारीरिक काम-काज जैसे अन्य सभी कारण भी कॉलेस्ट्रोल और हृदय रोगों को बढ़ाते हैं और इसलिये इन्हें रिस्क फैक्टर कहा जाता है।
रक्त धमनियों में कोलेस्ट्रॉल का जमाव कम उम्र करीब 30 साल की उम्र में ही आरंभ हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ नसों में कोलेस्ट्रॉल के जमने की प्रक्रिया तेज होती जाती है। करीब 40 साल की उम्र में जब कोलेस्ट्रॉल का जमाव एक सीमा तक पहुंच जाता है तब मरीज में इसके लक्षण प्रकट होने आरंभ हो जाते हैं। जमाव ज्यादा होने पर दिल के दौरे या एंजाइना जैसी गंभीर स्थिति भी पैदा हो सकती है।
रक्त धमनी में काफी अधिक कोलेस्ट्रॉल जमा हो जाने पर बाई पास या एंजियोप्लास्टी के जरिये मरीज को जीवनदान दिया जा सकता है। लेकिन इन उपायों से भी कोलेस्ट्रॉल जमाव की प्रक्रिया नहीं रोकी जा सकती है। यह प्रक्रिया बाई पास या बैलूनिंग के बाद भी जारी रह सकती है।
कोलेस्ट्रॉल के जमाव की प्रकृति व्यक्ति की आनुवांशिकी के आधार पर तय होती है। व्यक्ति की जीन में गड़बड़ी होने पर शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने तथा रक्त धमनियों में जमा होने की दर और तेज हो जाती है। ऐसे में अगर आहार में भी कोलेस्ट्रॉल की उपस्थिति अधिक हो तो रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर ज्यादा बढ़ता है और व्यक्ति को दिल के दौरे एवं एंजाइना की आशंका अधिक होती जाती है।
मरीज में कोलेस्ट्रॉल के जमाव के लक्षण प्रकट होने पर हृदय रोग चिकित्सक सबसे पहले मरीज के शरीर के रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा की जांच की जाती है। अधिक कोलेस्ट्रॉल होने पर मरीज को मक्खन, घी, सूखे फल, आइसक्रीम, चॉकलेट एवं मिठाई जैसे अधिक कोलेस्ट्रॉल वाले आहार से परहेज करना चाहिये। फल, साग-सब्जियों तथा सलाद आदि का सेवन लाभदायक होता है। इसके अलावा नियमित व्यायाम और रहन-सहन के तौर-तरीके में सुधार करने से भी कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है। लेकिन इनसे कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित नहीं होने पर दवाइयों का सहारा लिया जाता है। कुछ समय पहले तक उपलब्ध कई दवाइयां के अनेक दुष्प्रभाव थे लेकिन आज ऐसी दवाइयां उपलब्ध हो गयी हैं जिनका बहुत कम दुष्प्रभाव है तथा वे काफी कारगर भी हैं। 
जिन व्यक्तियों को दिल के दौरे पड़ चुके हैं वे अगर कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण रखें तो उनकी बीमारी के बढ़ने की आशंका कम होगी। कोलेस्ट्रॉल के जमा होने का जितना जल्द पता चले उतना ही बेहतर है। इसलिये 30 साल की उम्र से ही व्यक्ति को नियमित तौर पर कोलेस्ट्रॉल की जांच करानी चाहिये। क्योंकि इस उम्र में कोलेस्ट्रॉल के जमने का पता चलने पर बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। 
स्टैटिन्स नामक दवा कोलेस्ट्रॉल के मरीजों के लिये फायदेमंद है। यह लीवर पर असर डाल कर कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने वाले एंजाइमों पर नियंत्रण रखता है। इसलिये हृदय रोगियों को दिल के दौरे पड़ने अथवा एंजाइना होने पर स्टैटिन्स पर रखा जाना चाहिये। लेकिन इसके साथ ही आहार पर नियंत्रण रखना चाहिये, नियमित व्यायाम करना चाहिये तथा धूम्रपान से परहेज रखना चाहिये।
कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण के घरेलू उपाय
— नियमित योग एवं व्यायाम करके तथा कम वसा युक्त एवं अधिक रेशेदार आहार ग्रहण करके एक साल में ही कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम से कम 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है जबकि अमरीका जैसे देशों में दवाइयों की मदद से इतनी अवधि के पश्चात् कोलेस्ट्रॉल के स्तर में मात्र सात प्रतिशत तक कमी आती है।
— नियमित व्यायाम से दिल की काम-काज की क्षमता बढ़ती है। इससे रक्त में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटती है और स्वास्थ्यवर्द्धक एच डी एल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है।
— अनेक तरह के फल एवं सब्जियां भी कोलेस्ट्रॉल घटाने में मददगार हैं। 
— अधिक वसा युक्त आहार, धूम्रपान एवं मांसाहारी भोजन हृदय के लिये नुकसानदायक होते हैं, क्योंकि ये रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाते हैं।
— हृदय रोगी के लिये आहार से रोजाना 65 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा 30 प्रतिशत प्रोटीन ग्रहण करना अच्छा रहता है। हृदय रोगी को दूध से परहेज करना चाहिये क्योंकि इसमें कोलेस्ट्रॉल मौजूद होता है।
— मेथी, कच्चा प्याज, अदरक और लहसुन हृदय के लिये उपयोगी हैं। इनसे कोलेस्ट्रॉल और रक्त कणों का चिपचिपापन घटता है तथा रक्त चाप में सुधार होता है। लहसुन के नियमित सेवन से दस प्रतिशत तक कोलेस्ट्रॉल घट सकता है।
— अनेक तरह के फल एवं सब्जियां भी कोलेस्ट्रॉल घटाने में मददगार हैं। हृदय को साइलम हस्क (इसबगोल) से भी बहुत अधिक फायदा पहुंचता है। आमतौर लोग इसे कब्ज दूर करने के लिये लेते हैं। यह घुलनशील रेशे का अच्छा स्रोत है और यह कोलेस्ट्रॉल घटाता है। एक माह तक रोजाना 15 ग्राम इसबगोल का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल में 15 प्रतिशत तक कमी की जा सकती है।
— आहार में अधिक एंटी आक्सीडेंट्स लेना चाहिये। एंटी आक्सीडेंट्स एथोरिक्लोरोसिस होने से रोकते हैं। ये विटामिन सी, विटामिन ई और बीटा कैरोटिन में मौजूद होते हैं। 
— अनेक तरह के फल एवं सब्जियां भी कोलेस्ट्रॉल घटाने में मददगार हैं। आम तौर पर नट को हृदय रोग में नुकसानदायक माना जाता है। लेकिन दरअसल नट लाभदायक है।
— हृदय रोगियों को दूध वाली चाय से परहेज करना चाहिये क्योंकि इसमें कैलोरी अधिक होती —हैं। ऐसे रोगियों के लिये बिना दूध व चीनी की चाय बहुत अधिक मुफीद है क्योंकि इसमें एंटी आक्सीडेंट्स होते हैं। दिन भर में दो-तीन कप ऐसी चाय पीना लाभदायक होता है।