जन्म के पहले छह माह में बच्चे को केवल माँ के दूध की जरूरत होती है इसलिए जन्म के बाद ही बच्चे को तुरन्त माँ का दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए। हमारे समाज में लोगों में यह धारणा है कि बच्चे को जन्म के बाद माँ का दूध नहीं देना चाहिए और उसे शहद या ऊपर का दूध देना चाहिए। लेकिन यह धारणा गलत है। बच्चे के जन्म के बाद शुरू के छह-सात दिन में माँ को थोड़ा कम दूध तकरीबन 40-50 मिली लीटर ही होता है लेकिन यह दूध बच्चे के लिए पर्याप्त होता है। उसे अलग से दूध या पानी की जरूरत नहीं होती है। सात दिन के बाद माँ के दूध की मात्रा काफी बढ़ जाती है जो कि तीसरे-चैथे हफ्ते तक 600-800 मिली लीटर तक पहुँच जाती है। बच्चे को प्रथम छह माह में केवल माँ का दूध ही देना चाहिए क्योंकि माँ के दूध में कुछ ऐसे तत्व भी होते हैं जिससे बच्चे का माँ के पेट में जो विकास नहीं हुआ होता है वह भी पूरा हो जाता है। जो बच्चे किसी वजह से पहले छह माह में माँ का दूध पूरी तरह से नहीं पी पाते हैं उनके शरीर में किसी न किसी तरह की कमी रहने की आशंका अधिक रहती है। कुछ माताएँ और उनके सगे-संबंधी अंधविश्वास के कारण यह समझते हैं कि माँ के दूध की तुलना में बच्चे को ऊपर का दूध देना ही बेहतर होता है। लेकिन ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है बल्कि बच्चे को बुखार, खाँसी, जुकाम जैसी छोटी-मोटी बीमारियाँ होने पर भी बच्चे को अपना दूध पिलाना जारी रखना चाहिए। अगर किसी वजह से बच्चे को ऊपर का दूध देना ही पड़े तो किसी अच्छे विशेषज्ञ की निगरानी में ही देना चाहिए।
छह माह के बाद माँ का दूध कम होने लगता है और बच्चे के विकास के लिए यह पूरा नहीं पड़ता इसलिए बच्चे को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से गाय या भैंस का दूध, दाल, दूध और दाल की बनी चीजें जैसेµसाबूदाने की खीर, चावल की खीर, सूजी की खीर, दलिया, दही, दाल-चावल, खिचड़ी, फलों का रस आदि दे सकते हैं। लेकिन बच्चे को खिलाने से पहले इसे पीस कर अच्छी तरह से पेस्ट बना लेना चाहिए क्योंकि दाँत नहीं होने के कारण बच्चा चबा नहीं पाता और सिर्फ निगलता है। बच्चे का भोजन स्वादिष्ट रहना बहुत जरूरी है। इसे बनाते समय उसमें नमक, मसाले, चीनी, घी आदि आवश्यक मात्रा में डालें। हालाँकि लोगों में यह आम धारणा है कि बच्चे को घी, मसाले आदि नहीं देना चाहिए लेकिन ऐसा करना स्वाभाविक लगता है क्योंकि अगर बच्चे का खाना स्वादिष्ट नहीं होगा तो बच्चा नहीं खाएगा। बच्चे को दूध बोतल से न पिला कर चम्मच या कटोरी से पिलाना चाहिए। बोतल से दूध पिलाने से बच्चे को कई तरह के संक्रमण होने की आशंका होती है। बच्चे को डिब्बाबंद दूध या भोजन कभी नहीं देना चाहिए क्योंकि उष्णकटिबंधीय देशों में अधिक तापमान की वजह से डिब्बाबंद भोजन निर्धारित तिथि से पहले ही खराब हो जाते हैं जिससे बच्चे में संक्रमण की आशंका अधिक हो जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर जन्म के समय वजन तीन किलोग्राम, लंबाई पचास सेंटी मीटर और सिर की माप 34 सेंटी मीटर हो तो एक वर्ष की उम्र होने पर वजन दो किलोग्राम, लंबाई 75 सेंटी मीटर एवं माथे की माप 44 सेंमी मीटर हो जानी चाहिये।
एक वर्ष की उम्र तक बच्चे की खुराक काफी बढ़ जाती है और वह अपनी माँ की आधी खुराक तक खाने लगता है। एक वर्ष का बच्चा तकरीबन 750 मिली दूध, आधा कटोरी दाल, एक अंडा, एक रोटी या चावल तक खा सकता है। इस दौरान बच्चे के विकास पर भी निगरानी रखनी जरूरी है। इसलिए हर दो या तीन माह पर बच्चे की लंबाई, वजन और सिर के घेरे की माप लेते रहना चाहिए। एक वर्ष की उम्र तक बच्चे का वजन तकरीबन जन्म के वजन से तीन गुणा, लंबाई 20 से 25 सेमी अधिक तथा सिर की माप 10 सेंटीमीटर अधिक हो जाता है।
स्तनपान
बच्चों का मूल आहार दूध है और बच्चों का दूध पिलाने का सर्वोत्तम व सर्वमान्य तरीका स्तनपान है। शिशु के स्वस्थ विकास में स्तनपान की मुख्य भूमिका है। बच्चे के जन्म के एक घण्टे के भीतर ही उसे स्तनपान शुरू करवा देना चाहिए। सिजेरियन आॅपरेेशन द्वारा पैदा हुए बच्चे या किसी अन्य गंभीर स्थिति में भी बच्चे को जितना जल्द हो सके स्तनपान अवश्य शुरू करा देना चाहिए। प्रारंभ के दो-तीन दिन बच्चे को बार-बार स्तन से लगाते रहना चाहिए, इससे माता के स्तन में ज्यादा दूध उतर कर आता है। पहले के दो-चार दिन माँ के स्तन से बहुत कम दूध आता है, परन्तु नवजात शिशु के लिए यही काफी होता है। शिशु के जन्म के तुरन्त बाद माता के स्तन से निकलने वाले दूध को कोलेस्ट्रम कहते हैं जो हल्के पीले रंग का होता है। इसकी मात्रा 8.10 चम्मच प्रतिदिन तक होती है। नवजात शिशु को बाहर से दूध या पानी नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चे को बीमारी होने का डर होता है। शिशु को कम से कम पहले 6 महीने तक केवल स्तनपान ही कराना चाहिए। प्रारंभ में बच्चे को भूख लगने व रोने पर ही दूध देना चाहिए। यदि बच्चे को आधी रात में भी भूख लगी हो तो उसे अवश्य स्तनपान कराना चाहिए। माँ के दूध में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, यह स्वच्छ होता है, संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है, इससे बच्चे को एंटीबाॅडीज प्राप्त होते हैं तथा बच्चे का विकास समुचित तरीके से होता है। इसलिए नवजात शिशुओं तथा बच्चों के लिए यह सर्वोत्तम आहार है। माँ के बीमार होने की स्थिति में भी बच्चे को स्तनपान कराते रहना चाहिए। मासिक धर्म के दौरान या बुखार, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियों में भी स्तनपान कराना चाहिए। केवल डाॅक्टर के मना करने पर ही स्तनपान रोकना चाहिए। दूध पिलाने के बाद बच्चे को डकार दिलवा देना चाहिए।
स्तनपान, महिला की आकृति को संवारने का एक प्राकृतिक तरीका है। गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में वसा की जो मात्रा एकत्रा हो जाती है, उसका उपयोग स्तनपान द्वारा हो जाता है। शिशु जन्म के तत्काल बाद बच्चे को स्तनपान कराना शुरू कर देने से बच्चेदानी सख्त हो जाती है और रक्तस्राव को बंद होने में सहायता मिलती है और इससे प्रसव के पश्चात महिला की शारीरिक स्थिति को भी सामान्य होने में सहायता मिलती है।
स्तनपान के प्रथम माह की समस्यायें
दूध सूख जाना या दूध की मात्रा कम होना
इसका कारण प्रायः मानसिक होता है। इसके लिए माँ के अंदर आत्मविश्वास पैदा करना चाहिए कि वह अपने बच्चे को पर्याप्त दूध पिलाने में सफल होगी और उसे प्रोत्साहित करना चाहिए कि बच्चे को दोनों स्तनों से कई बार लगाए। यदि बच्चा अधिकतर समय माता के पास रहे तो इससे दूध बनने की प्रक्रिया पर मानसिक प्रभाव भी पड़ता है। स्तनपान के दौरान माँ के खाने-पीने और विश्राम पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए।
यदि माता की मृत्यु हो जाए तो बच्चे के लिए धात्राी माँ का प्रबंध सर्वोत्तम माना गया है अन्यथा गाय, भैंस या बकरी का दूध डाॅक्टर की सलाह से देना चाहिए। प्रारंभ के प्रथम माह में गाय के दूध में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर तथा उसमें आवश्यकतानुसार चीनी मिलाकर बच्चे को पिलाएँ। गाय का दूध उपलब्ध नहीं होने पर भैंस या मदर डेयरी या बकरी का दूध बच्चे को दिया जा सकता है। बच्चे को ऊपर का दूध पिलाने के लिए बोतल का इस्तेमाल न करें, बल्कि चम्मच से ही दूध पिलायें।
स्तनपान कराते समय निम्न बातों का ध्यान रखें
(1) स्तनपान कराते समय हर संभव सफाई का प्रयत्न करना चाहिए।
(2) स्तनपान के समय बच्चा व माँ दोनों को ही आराम व शांत होना चाहिए।
(3) हर बार स्तनपान के समय कम से कम एक स्तन अवश्य खाली हो जाना चाहिए।
(4) स्तनपान का समय 5 मिनट से प्रारंभ करके धीरे-धीरे बढ़ा कर 15-20 मिनट कर देना चाहिए।
(5) स्तनपान के बाद बच्चे को डकार अवश्य दिला देनी चाहिए।
(6) स्तनपान कराने वाली माँ को स्वयं अपने भोजन, सफाई, स्वास्थ्य व आराम पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसे सामान्य से अधिक पौष्टिक व पोषक भोजन लेना चाहिए तथा आवश्यक विश्राम अवश्य करना चाहिए।
(7) यदि माँ नौकरीपेशा है तो पहले से निकाले हुए माँ के दूध का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
स्तनपान संबंधी समस्यायें व उपचार
स्तन का भारी होना
यह स्तन में अधिक दूध होने से होता है। अधिक दूध हाथ से दबाकर निकाल देना चाहिए।
निपल (चूचक) का चपटा होना
गर्भावस्था के अंतिम त्रिमास में निपल धीरे-धीरे खींचना चाहिए व शिशु के जन्म के बाद निपल व स्तन का काला हिस्सा उसके मुख में देना चाहिए।
निपल पर घाव
इसके लिए स्तनपान से पहले स्तन को साफ करके कम समय के लिए परंतु बार-बार स्तनपान कराना चाहिए। पहले हाथ से दबाकर कुछ दूध निकाल देना चाहिए फिर बच्चे को स्तन से लगाना चाहिए। दूध पिलाने के बाद स्तन को सुखाकर घी या नारियल का तेल लगाना चाहिए।
विकास के विभिन्न चरणों में आहार
वीनिंग (अन्न प्रासन)
पहले छह माह के दौरान माँ का दूध बच्चे के लिये पर्याप्त होता है लेकिन कभी-कभी लगभग 4 माह की उम्र के बाद शिशु के लिए माँ का दूध पर्याप्त नहीं होता, इसलिए बच्चे को इस समय अर्ध ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए ताकि उसकी समुचित वृद्धि की प्रक्रिया को बनाये रखने के लिए उसे पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा मिल सके और कुपोषण को रोका जा सके। परन्तु बच्चे को स्तनपान 2 वर्ष की उम्र तक जारी रखना चाहिए।
4-6 माह की आयु में आहार
अगर बच्चे का विकास ठीक तरह से हो रहा हो तो बच्चे को छह माह तक केवल माँ का दूध देना चाहिये। अगर किसी वजह से माँ का दूध कम हो रहा हो तो प्रारंभ में केले अथवा सूजी की लुगदी बना लेनी चाहिए या आटा, चावल, दूध-दही, दाल आदि से मिश्रित रबड़ी तैयार कर लेनी चाहिए, जिसमें थोड़ी सी मात्रा में तेल अथवा घी मिला लिया जाना चाहिए। प्रारंभ में बच्चे को यह रबड़ी एक या दो चम्मच ही खिलाना चाहिए। बच्चे के आहार को अच्छी तरह से पेस्ट बना लेना चाहिये। इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि बच्चे को दिया जाने वाला आहार पूरी तरह से स्वादिष्ट हो। अगले तीन से चार सप्ताह में धीरे-धीरे इसकी मात्रा कम से कम आधा कप (50 से 60 ग्राम) कर देनी चाहिए। बाजार में मिलने वाले बेबी फूड काफी महंगे होते हैं तथा इनसे बच्चे को न केवल संक्रमण होने का खतरा रहता है साथ ही इनमें मौजूद रसायन बच्चे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए बच्चे को घर पर तैयार ताजा आहार ही देना चाहिए। इससे बच्चे को संक्रमण का भी खतरा नहीं रहता है।
6-9 माह की आयु में आहार
इस उम्र में बच्चे को मौसमी हरी सब्जियाँ उबालकर अथवा पकाकर दिया जा सकता है। आलू बच्चों के लिए अच्छा आहार है। यदि सब्जियाँ नरम हों तो इनकी लुगदी बनाकर और उसमें थोड़ा घी या तेल मिलाकर अर्ध ठोस आहार के रूप में बच्चे को दी जा सकती है।
9-12 माह की आयु में आहार
इस आयु में बच्चे को दिन में चार-पाँच बार घर में उपलब्ध सामान्य आहार दिया जा सकता है। उसे खिचड़ी अथवा चावल-दाल, दही, अंडा, डबलरोटी, अंडे दिये जा सकते हंै।
एक से दो वर्ष की अवधि में आहार
बच्चे को घर में तैयार किया जाने वाला उपयुक्त भोजन दिन में लगभग पाँच बार दिया जाना चाहिए।
कैसा हो आपके शिशु का आहार
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
चालीस-पचास साल की उम्र जीवन के ढलान की शुरूआत अवश्य है लेकिन इस उम्र में अपने जीवन के सर्वोच्च मुकाम पर पहुंचा व्यक्ति पार्किंसन जैसे स्नायु...
-
कॉस्मेटिक उपचार के बारे में मन में अक्सर कई विरोधाभाश और सवाल उठते रहते हैं लेकिन अब इनके जवाब अनुत्तरित रह नहीं रह गये हैं। यहां यह उल्लेख ...
-
– विनोद कुमार शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर आज मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (मो.दे.रा.यो.सं.) के प्रेक्षागृह में डिप्लोमा इन योग साइंस ...
Featured Post
सतिंदर सरताज और सिमी चहल ने दिल्ली में किया ‘होशियार सिंह (अपना अरस्तु)’ का प्रमोशन
पंजाबी स्टार सतिंदर सरताज और सिमी चहल अपनी आनेवाली पंजाबी फिल्म ‘होशियार सिंह (अपना अरस्तु)’ के प्रचार के सिलसिले में पिछले दिनों राष्ट्रीय ...
Blog Archive
Labels
addiction
ayurveda
ayush
traditional medicine
Beauty & Fitness
black fungus
bollywood
breat cancer
central government
Chandrayaan-3
children
CII
cinama
literature
corona
cosmetic laxe
covid
covid positiv mother
diabetes
diet
divyang
DNA vaccine
eye care
eye donation
food
food & nutrition
gov
health
Health centre
health and food
Health Articles
health family welfare
Health News
health news
corona
health problems
healthy food
healthy heart
Heart Care
heart diseases
covid-19
Heart Problems
immunisation
pandemic
infertility
joshimath
Lifestyle
mental health
monkey pox
National News
nutrition
child health
obesity
obesity in children
obesity and mental health
proteins
roda safety
soy food industry
soya
UHI
vaccination
vaccine
WHO
Women's Health
yoga